रोज़ी का फौजी – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

शारदा आज बीना जा रही थी। कान्वेंट स्कूल में ओरियेंटशन प्रोग्राम था। काउंसलिंग कोर्स और चाइल्ड साइकॉलजी के नियमित अध्ययन से यह एक नई उपलब्धि थी शारदा के लिए।एक शिक्षक के तौर पर पिछले चौबीस वर्षों से अध्यापन करते हुए ,पढ़ाने के साथ-साथ बच्चों को मानवीय मूल्यों का महत्व समझाती रही थी शारदा।अब विभिन्न विद्यालयों में बच्चों और अभिभावकों के समक्ष अपने अनुभवों को साझा करने का नया अवसर मिला था।

ट्रेन में बैठी ही थी कि फोन बजा।शारदा ने समझा बेटे ने किया होगा,पर कॉल में रोज़ी का नाम देखकर चौंक गई वह।उठाकर जैसे ही उसने हैलो कहा,रोज़ी की चहकती हुई आवाज सुनाई दी”आंटी,फाइनली शादी कर रही हूं मैं।आपको अपना वादा याद है ना?आप आ रहीं हैं हमारी शादी में।आपके फौजी की तबीयत खराब हो गई है,इसलिए आपसे बात नहीं कर पाया।आप मेरी तरफ से रहेंगी ना,मेरी शादी में?”

शारदा को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।अभी दो महीने पहले ही बात हुई थी रोज़ी से।तब भी शादी के लिए राजी नहीं थी।कितना समझाया था शारदा ने।आज अपनी शादी की खबर दे रही है रोज़ी।शारदा के लिए यह एक परी कथा जैसा ही था।दो साल पहले ऐसे ही एक ओरियेंटेशन कार्यक्रम में मंडला जाना हुआ था।

जबलपुर स्टेशन से घर लौटने के लिए रात साढ़े नौ बजे की ट्रेन थी।वेटिंग रूम में जब पहुंची तब एक जोड़े को देखकर,उनके बगल वाली सीट पर बैठ गई थी शारदा। बाथरूम जाने के लिए अपनी बगल में बैठी लड़की से जब कहा”मेरा सामान देखना बेटा,मैं आ रही हूं,”उसने लगभग नजरअंदाज करते हुए मुंह दूसरी ओर घुमा लिया था।

उसका यह व्यवहार उसके साथ बैठे लड़के को शायद अच्छा नहीं लगा था।तुरंत बोला”आंटी आप जाइये।हम देखेंगे आपका सामान।”शारदा सोचने लगी थी,लड़कियों में कितना एटिट्यूड आ गया है।आकर वापस बैठी ,तो लड़का तीन कॉफी ले आया।शारदा को लेना पड़ा।बगल में बैठी शारदा दोनों युगल के बीच चल रही नोक -झोंक सुन रही थी।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

क़िस्मत की कठोरता; – दीपांशी राजपूत : Moral Stories in Hindi

उसे बड़ा मज़ा आ रहा था,क्योंकि वो दोनों बंगाली में बात कर रहे थे।इस बात से अनभिज्ञ थे कि शारदा बंगाली है।दोनों की बातचीत सुनकर समझ आया कि लड़की बैंगलुरू में नर्सिंग की पढ़ाई कर रही है।लड़का फौज में है।लड़का , लड़की को समझाए जा रहा था,कि अब शादी कर लेनी चाहिए।

दोनों के घर वाले भी राजी थे।आज लड़के के बड़े पापा कहीं से आ रहे थे।उनके साथ दोनों मुंबई जाने वाले थे।जहां लड़की मुंहफट थी,वहीं लड़का काफी सुलझा हुआ लग रहा था।बीस मिनट बचे थे उनके बड़े पापा की ट्रेन आने में।आधे घंटे में उनकी ट्रेन थी।लगभग आधे घंटे में शारदा की ट्रेन भी आ जाएगी।

शारदा एक नॉवेल निकालकर पढ़ने लगी।पता नहीं लड़के को क्या हुआ,शारदा से बोला”आंटी जी प्लीज़,आप समझाइये ना इसे ,यह मानती ही नहीं शादी करने को।”उस लड़के के संबोधन में गहरा अपनत्व था।शारदा तो उनके बीच का वार्तालाप समझ ही चुकी थी।लड़की की ओर देखकर कहा”रोज़ी,राइट?मैं शारदा हूं। तुम्हारी उम्र के मेरे भी  दो बच्चे हैं।तुम शादी से इतना डरती क्यों हो बेटा?”

रोज़ी अवाक होकर देखती रह गई।थोड़ी देर बाद बोली”आंटी,आप बंगाली हैं क्या?”शारदा ने हां में सर हिलाया तो वह उछलकर बोली”अरे ,अल्ला मियां कितना मेहरबान है।हम बंगाली मुसलमान हैं आंटी।अब तक आप हमारी बातें सुन और समझ रही थीं ना?”

शारदा ने फिर हां में सर हिलाया।अब रोज़ी की जगह लड़का बोला”आंटी,आप इसे समझाइये,मुझसे अच्छा लड़का इसे कोई नहीं मिलेगा।”शारदा ने उसकी बात से सहमति जताते हुए कहा”हां,रोज़ी।फौजी सच कह रहा है।ये फौजी अपने वादे के बड़े पक्के होतें हैं।तुम‌ भरोसा क्यों नहीं कर पा रही हो इस पर?तुम लोगों के घरवाले भी तो राज़ी हैं।फिर क्या दिक्कत है?”

रोज़ी ने अचानक से प्रश्न दागा”आंटी,आप टीचर हैं क्या?”शारदा ने कहा”हां,तुम्हें कैसे पता चला?”

उसने अपनी आंखें मटकाते हुए कहा”आपके बात करने के लहज़े से ही पता चल रहा है।आंटी ,मैंने शादी का दुखद पहलू भी देखा है।मेरी अम्मी अब इस दुनिया में नहीं हैं।अब्बू ने दूसरी शादी कर ली है।मैं एजूकेशन लोन लेकर नर्सिंग की पढ़ाई कर रही हूं।मुझे नौकरी कर लोन भी पटाना है।आपका  फौजी परिवार का बड़ा बेटा है।

इसकी अम्मी मुझे कहीं और नौकरी करने नहीं देंगी न।वो मुझे गांव (समस्तीपुर)में ही रहने को बोलती हैं।मैं नौकरी नहीं करूंगी,तो सारा बोझ इस फौजी पर आ जाएगा।अपने घर की भी जिम्मेदारी है।बाद में फिर पछताकर कोसता बैठेगा मुझे।लड़ाई -झगड़ा शुरू हो जाएगा।शादी , बर्बादी बन जाएगी।मुझे नहीं करनी शादी।ये कर लें ,किसी से भी।”

इस कहानी को भी पढ़ें: 

माँ का प्यार – संजय निगम : Moral Stories in Hindi

रोज़ी की बातें वास्तविक जीवन का पहलू बयान कर रही थी।शारदा ने फिर भी उसे शादी का अच्छा पहलू भी समझाया।थोड़ी देर में ही फौजी के बड़े पापा आ गए।तीनों अगली ट्रेन से मुंबई जाने की हड़बड़ी में वेटिंग रूम से निकलने लगे। जाते-जाते अचानक रोज़ी पलटी और शारदा का नंबर ले लिया।

शारदा घर वापस आ चुकी थी।अपनी बेटी( जो कि पुणे में रह कर नौकरी करती थी) को रोज़ी के बारे में बताया,तो उसने अलग समझाइश दे दी कि राह चलते ऐसे किसी को भी अपना नंबर नहीं देते मम्मी।क्या जाने कौन किस मंशा से नंबर मांग रहा है।शारदा को भी उसकी बात उचित ही लगी।सच में बात भी ज्यादा ही करती थी शारदा। चलते-चलते किसी से भी अनौपचारिक हो जाना उसकी दुर्बलता थी।आगे से ध्यान रखना होगा।बेटी सच ही कहती हैं।

लगभग दो महिने बाद रोज़ी का फोन आया। बैंगलुरू से बात कर रही थी वह।अपने जीवन के सभी अनकहे तथ्य बता रही थी वह।पढ़ाई खत्म होने के बाद इंटर्नशिप कहां से सही रहेगा?शादी के बाद फौजी बदल तो नहीं जाएगा?उसकी शादी में अब्बा और नई अम्मी नहीं आए तो?ऐसे कई सवाल शारदा से पूछने लगी।

शारदा को उसकी मासूमियत पर और साफगोई बहुत अच्छी लगी।अपनी तरफ से शादी को एक खूबसूरत जिम्मेदारी बताकर समझा तो दिया शारदा ने।एक महीने बाद फिर उसने कॉल कर तबीयत के बारे में पूछा।शारदा की आत्मीयता बढ़ रही थी उससे।अभी कुछ दिन पहले अचानक ही उसने फोन पर पूछा”आंटी,मेरी शादी में आप आएंगी ना,मेरी अम्मी बनकर?शारदा की आंखों में आंसू आ गए।इतना विश्वास है रोज़ी को उस पर।अपनी मां की जगह बिठा दिया।शारदा ने आश्वस्त किया था उसे आने का वादा देकर।

आज वही रोज़ी फोन कर रही थी,अपनी शादी में मेरी उपस्थिति अनिवार्य बताकर।शारदा इस बात से भी हैरान थी कि आज भी उसकी यात्रा का कारण दो साल पहले वाला ही था।राह में थोड़ी देर के लिए मिलकर कोई रिश्ता इतना करीबी कैसे हो सकता है?एक बेटी शादी का फैसला,राह में मिली एक मां समान औरत की बातों से प्रभावित होकर ले सकती है भला?कोई मानेगा सच इसे?यह नियति है?या निःस्वार्थ प्रेम का प्रतीक?यह विश्वास है या भरोसा?

शारदा कुछ देर बाद रुंधे गले से बोली”रोज़ी,मैं बहुत खुश हूं।तुम मान गई शादी के लिए।मैं तो आ नहीं पाऊंगी बेटा इतनी दूर।अभी दो दिनों के लिए मैं बाहर आई हूं।दादी की भी तबीयत ठीक नहीं है।तुम आंख बंद कर जब -जब मुझे याद करोगी,मुझे अपने पास ही पाओगी।ज़िंदगी रही तो ,कभी ना कभी,कहीं ना कहीं हम जरूर मिलेंगे बेटा।”

वह भी रो रही थी ज़ार-ज़ार। ट्रेन में बैठे लोग घबरा कर देखने लगे तो शारदा ने कहा”अब रख।शादी की सारी फोटो भेजना।ठीक है।फौजी से बोलना बात करेगा मुझसे।”

पंद्रह दिनों के बाद ही रोज़ी का वीडियो कॉल आया।उठाते ही देखा,फौजी था सामने।खुश होकर बोली रहा था”आंटी,आखिर मैं रोज़ी का फौजी बन गया।आपकी रोज़ी अब नाश्ता भी बना रही है,खाना भी बना रही है।दो महीने के लिए गांव में रहने को भी मान गई है आंटी।आप हमेशा अपना हांथ हमारे सर पर रखिएगा।”

शारदा ने हंसकर कहा”वाकई,तुम रोज़ी के ही थे।”

शुभ्रा बैनर्जी

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!