नन्हीं खुशबू का एक ही सपना था। उसे पहाड़ पर चढ़ना था लेकिन व्हीलचेयर पर बैठी खुशबू ये भी जानती थी कि ये सपना कभी पूरा नहीं होगा।
लेकिन वो सपने ही क्या जो पूरा होने की ज़िद ना करे……रात दिन एक ही सोच कैसे करूँ अपना सपना पूरा। जुझारू तो बचपन से थी पर ये जो हादसा हुआ था उसके साथ उसमें शरीर के साथ साथ आत्मविश्वास और हिम्मत को भी आघात लगा था।
स्पोर्ट्स की दिवानी खुशबु जो अपने स्कूल और अन्य स्पोर्ट्स प्रतियोगिताओं में सक्रिय भाग लेती थी
वो ऐसी ही एक प्रतियोगिता में अपने एक साथी को बचाते हुए दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी।
लम्बे इलाज के बाद वो ठीक तो हो गई थी पर अभी भी चलने में असमर्थ थी। उसकी रीढ़ की हड्डी में आई चोट ने उसे व्हील चेयर पर ला दिया था।
खुशबू रात दिन रोते रोते बस अपनी किस्मत को ही कोसती रहती थी कि किसी की मदद करने गई थी और आज खुद ही दूसरों की मदद की मोहताज हो चुकी थी।
हर वक्त अपनी किस्मत को कोसते रोते रोते भी उसका सपना उसे निरन्तर याद आता ।
अपने माता पिता के साथ और प्रोत्साहन से उसकी टूटी हिम्मत कहीं ना कहीं फिर जुड़ने लगी और वो अपने हालातों से मुकाबला करने के लिए खुद को तैयार करने लगी ।
वो और उसके माता पिता हर संभव कोशिश कर रहे थे कि वो ठीक हो जाए।
तब उन्हें मिली एक उम्मीद की किरण उसके पिता के एक पुराने डाक्टर दोस्त के रूप में जो प्राकृतिक तरीके से इलाज करने के लिए मशहुर थे।
ये इलाज कठिन और दर्दनाक था । जब भी खुशबू अपनी हिम्मत हारने लगती तब उसके माता पिता उसकी हौसलाअफजाई करते और आखिर
आज वो दिन था जब खुशबू ने अपने सपने को जीने के लिए पहला कदम रखा अपने पैरों पर फिर से खड़ा होकर।
फिर एक लम्बा सिलसिला चला चलने की कोशिश , और उसके बाद ट्रेनिंग का।
आसान नहीं था पर उसने हर मुश्किल का सामना किया और आज वो खड़ी थी वहाँ उस ऊँचाई पर जहाँ पहुँचने का सपना उसने हमेशा देखा था।
हर जगह उसकी हिम्मत के किस्से थे और उसके हाथ में सबसे छोटी पर्वतारोही का खिताब और सिर पर माता पिता का आशीष भरा हाथ।
छोटी सी खुशबू ने एक बड़ा सबक दिया सबको जो उसने खुद भी जिया
“मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत”
“हौसलों की उड़ान को आगाज़ मिल गया उड़ाने अभी और भी बाकी है।
अभी तो उड़ना सीखा है कि आकाश को चुमना बाकी है।”
स्वरचित
स्वाती जितेश राठी