मां..! सुना क्या..? परिधि ने 12वीं में टॉप किया है… अब तो चाची के पैर ज़मीन पर ही नहीं पड़ेंगे…
सुहासी ने अपनी मां रति से कहा…
रति: हां…! अब बेटे ने तो कभी कुछ नहीं किया… चलो बेटी से ही अपना नाम बटोरेगी तेरी चाची….
यह सब वहां बैठे, रति के पति अभय अखबार पढ़ते हुए सुन लेते हैं… मां बेटी की इस बात पर वह कहते हैं… तुम मां बेटी में इतना आक्रोश क्यों भरा पड़ा है..? कि किसी की खुशियों पर उन्हें बधाई देने की जगह, बस उनकी बुराइयां ढूंढती रहती हो… और रति तुम..! अपने और रमा का मनमुटाव अपनी बेटी पर भी डाल रही हो..?
रति: मैं क्या किसी में कुछ डालूंगी..? अब सुहासी तो कोई दूध पीती बच्ची हैं नहीं जो, उसे कुछ समझ नहीं आता… आखिर रमा कम बुरा सोचती है हमारे बारे में..? याद है जब अपनी प्रिया एमबीए के लिए बाहर गई थी, तो क्या कहा था रमा ने..? यह सब दिखावा है…. दिखावा… देखना बाहर जाकर सिर्फ मौज मस्ती करेगी…
अभय: हां.. तो आखिर सच ही तो साबित हुई ना उसकी बात..? देखो रति..! सामने वाले के लक्षण देखकर ही कोई उसके बारे में टिप्पणी करता है.. प्रिया गई तो थी एमबीए करने, पर लौटी कोर्ट मैरिज करके..
रति: तो क्या हुआ..? बच्चे जब बड़े हो जाते हैं, अपने मर्जी के मालिक हो जाते हैं.. फिर प्रिया ने तो अपने लिए अच्छा ही वर चुना… ज़रा उनके रोहन को देख लिजिए… सालो साल UPSC के बहाने समय बर्बाद किया और अब निठल्ला मोहल्ले में घूम रहा है…
अभय: बस यही आक्रोश, रिश्ते बिगाड़ने में सहायक होते हैं.. गलती, कमी, अच्छाई और बुराई हर किसी में होती है.. पर हमे सिर्फ एक दूसरे के कमी को उजागर करने में मजा आता है.. अच्छाई के वक्त आंखों पर पट्टी बांध लेते हैं…
रति: आपसे तो बहस करना ही बेकार है.. जब देखो तब भाषण… आप यह क्यों नहीं समझते..? दोनों तरफ से ही रिश्ते को बचाने की जिम्मेदारी होती है… अब देखिएगा, रमा शाम को मिठाई लेकर आएगी, अपनी खुशियां कम, मेरी प्रिया के ताने ज्यादा देकर जाएगी…
शाम को सही में रमा आती है… मिठाई लेकर…
रमा: दीदी..! भैया..! यह लीजिए मिठाई… खबर तो मिल ही गई होगी… परिधि ने 12वीं में टॉप किया है…
रति: हां बधाई देना परिधि को…
अभय: सिर्फ बधाई क्यों .? कल उसको हमारे घर खाने पर भेज देना… आखिर बच्ची ने इतनी मेहनत जो की है… उसकी दावत तो होनी ही चाहिए..
रमा: सही कहा भैया आपने.. मेरी परिधि की तो जितनी तारीफ करो, उतना ही कम है…
रमा के इतना कहते ही, रति मुंह बनाने लगी, क्योंकि उसे पता था कि अब रमा परिधि के तारीफों के पुल बांधेगी… सुहासी भी अपने कमरे में जाने लगे कि, तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी उम्मीद वहां किसी को नहीं थी…
रमा: हां.. काश..! परिधि की तरह, मेरे रोहन ने भी कुछ अच्छा कर लिया होता.. ना जाने कितने ही पैसे खर्च कर दिए उस पर… पर सारे बच्चे अपने मां बाप का सिर ऊंचा करें, यह कहां होता है..? यह कहकर रमा भावुक हो गई…
रति रमा को संभालते हुए: मैंने भी प्रिया के लिए ना जाने कितने सपने देखे थे..? पर कर ही क्या सकते हैं..? बच्चों पर एक वक्त तक ही हमारा वश चलता है… फिर तो..? पर तेरी परिधि ऐसी नहीं है.. उसे खूब पढ़ाना, वह जो चाहे करने देना.. अगर इस बीच हमारी कोई जरूरत पड़े, तो बताने से भी मत हिचकिचाना..
रमा: जानती हो दीदी..! आज मैंने एक बहुत बड़ी सबक सीखी है.. के आपसी मनमुटाव, हमें हमेशा नीचे की ओर ही धकेलते हैं… जब परिधि ने टॉप किया था, उसने इसका पूरा श्रेय अभय भैया को दिया… क्योंकि जब भी उसे गणित में दिक्कत होती, भैया ने उसकी मदद की और उसे प्रोत्साहित करते रहे.. भैया ने हमारे बीच का मनमुटाव कभी भी परिधि पर जाहीर नहीं होने दिया…
हम अपनों को नीचा दिखाने के चक्कर में, उनसे दूरी बना तो लेते हैं.. पर इससे फायदा कुछ नहीं होता, उल्टा नुकसान यह होता है कि, हमारे बच्चे भी यही सीख कर, मिल जुल कर रहना भूल जाते हैं…
हमें एक दूसरे की कमी को किस तरह सुधारा जाए, उस पर काम करना चाहिए, नाकी उसे उजागर कर जगहसाई करवाना… हमारे रिश्ते पुल के खंबे की तरह होते हैं… जो वह मजबूत होंगे, तो आसानी से जीवन को पार कर सकते हैं, वरना गिरना तो तय हैं…
रति: सही कहा तूने रमा..! मेरी सुहासी भी तो अपनी चाची के हाथ से ही खाना सीखी थी… पर मैं भी वह भूल गई…
यह कहकर दोनो गले मिलकर, रोने लगती हैं..
अभय: बस.! बस.! अब इतना रोओगी, तो कहीं यह पुल, तुम लोगों के आंसुओं की वजह से ढह ही ना जाए…
फिर सभी हंसने लगते हैं…
धन्यवाद
स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित
#आक्रोश
रोनिता कुंडू