“आइने गुज़रा हुआ वक़्त नहीं बताया करते सुमन….हम उसको पकड़ कर बैठे रहते हैं… जो हो गया जो बीत गया बस वो हमारे मानस पटल पर ऐसे अंकित हो जाते हैं कि हम चाहकर भी उनसे अलग नहीं हों पाते हैं ….देखो ना तुम आज भी छोटी के व्यवहार को लेकर दुखी होकर बैठ गई हो…
आज भी चाहती हो वो हमारे साथ आकर यहाँ रहें पर उसको तो हमारे साथ नहीं रहना था…अब हर तीज त्योहार पर उसको याद कर के खुद भी उदास होती और बच्चों को भी दुखी कर देती हो…चलो अब उठो और रसोई में चलो.. देखो तो सही हमारे बच्चों ने आज तुम्हारे जन्मदिन पर क्या क्या बनाया है उनके लिए ही मुस्कुरा दो…
अब रिश्तों में बढ़ती दूरियों को तुम अकेले तो पाट नहीं सकती हो….छोटी का मन करता तो कभी ये दूरियाँ आती ही नही….अब बस जो है हम सब है और हमारे बच्चों के साथ हमारी खुशी ।”कहते हुए कुन्दन ज़बरदस्ती सुमन को उठाकर रसोई की ओर ले गए
बेटा बहू मेहुल और मिहिका एक केक बनाकर उसको सजाने में व्यस्त थे… मिहिका ने माँ की पसंद की पाव भाजी की तैयारी कर रखी थी।आज सुमन पूरी पचास साल की हो गई थी।सबने बहुत जतन किया था सुमन के पचासवें जन्मदिन को अच्छी तरह से मनाने का पर सुमन उसके लिए राजी ना हुई ।
“ हैप्पी बर्थडे मम्मी ” कहकर मेहुल और मिहिका माँ के पैर छू लिए।
बच्चों को आशीर्वाद देकर दोनों को गले लगाती बोली ,“ ये सब करने की क्या ज़रूरत थी? जानते हो ना मुझे ये सब नहीं पसंद है पाँच साल होने को आए केक तो काटना बंद ही हो गया है ।”
“ हमने ज़्यादा कुछ नहीं किया है हमें पता है आपको ये सब पसंद नहीं है पर हमारी ख़ुशी भी तो मायने रखती हैं ना… बस हमारी ख़ुशी के लिए ही सही आप आज यूँ मायूस होकर मत रहिए ।” मिहिका सुमन के गले लग कर प्यार जताते हुए बोली
इस कहानी को भी पढ़ें:
“ अब मान भी जाओ श्रीमती जी … देखो आज तो तुम्हारे इंजीनियर बेटे ने रसोई में हाथ साफ़ किया है कुछ गड़बड़ होगी तो बताना…।” हँसते हुए कहा कुन्दन ने
चारों मिलकर केक काटे और पाव भाजी के मजे लिए।
तभी बहू एक गिफ़्ट लेकर आई,”मम्मी जी ये तोहफ़ा ख़ास आपके लिए ।”
सुमन ने गिफ़्ट रैप खोला तो अंदर एक पुरानी तस्वीर थी… सुमन ,कुन्दन , मेहुल ,मिहिका , देवर , देवरानी और उनका एक बेटा मिहिर।ये तस्वीर मेहुल के शादी के कुछ दिनों बाद की थी जब पूरे परिवार की तस्वीर ली गई थी ।
तस्वीर देख कर सुमन याद करने लगी, देवरानी नीता हमेशा बड़ी बहन सा सम्मान देती थी।हँसते खेलते पूरा परिवार साथ ही रहता था।ख़ानदानी व्यापार में सभी लगे पड़े थे ।
मेहुल की शादी के वक़्त बहुत लोग आए हुए थे उनमें ही नीता की माँ भी थी।वो लगभग पन्द्रह दिन नीता के पास रूकी क्योंकि नीता का बेटा नानी को रूकने की ज़िद कर रहा था ।
कुन्दन और उनके भाई का घर उनके माता-पिता का बनाया हुआ था पर कुन्दन ने पहले से ही छोटे से घर में थोड़ी ज़रूरत के हिसाब से मरम्मत कार्य के साथ साथ एक और कमरा बनवा दिया था, पहले से तीन कमरों के घर में दोनों भाई एक-एक कमरे में और एक कमरे में मेहुल अपने भाई के साथ रहता था । मेहुल की शादी तय होने के बाद कुन्दन ने उपर के अहाते में एक कमरा बनवा दिया था बेटा बहू के लिए ।
नीता की माँ इस बात पर नीता के कान भरने लगी थी कि ,“अब तो घर में जगह भी नहीं है जब तेरे बेटे की शादी होगी तो उसको कौन सा कमरा देंगी । एक कमरा तो आने जाने मेहमानों के लिए रहेगा बाकी तीन कमरे तो सबने ले ही रखें है ।”
पता नहीं नीता पर इस बात का इतना असर हुआ कि वो घर के बँटवारे की बात करने लगी जिससे दो दो कमरे उनके हिस्से में आ जाए और अपने बेटे के लिए वो भी एक कमरा रख सकें ।
“ नीता अभी मिहिर छोटा है जब ज़रूरत होगी ज़रूर कोई ना कोई इंतज़ाम हो जाएगा अभी से बँटवारे की बात क्यों कर रही हो ? घर में नई बहू आई है .. लोग क्या सोचेंगे… सोचकर देखो ।” सुमन ने बहुत समझाया
लाख समझाने पर भी नीता नहीं मानी।
इस कहानी को भी पढ़ें:
घर का बँटवारा भी हो गया और संजोग से नीता के हिस्से में उपर नीचे के कमरे आए और उसे रसोई नई बनानी पड़ती …उसने इतनी मेहनत करने की जगह ऐसे ही किसी को कमरे किराए पर दे दिया जो एक एक कमरा लेकर रहने को तैयार था और खुद दूसरी जगह रहने चली गई ।
इस बात का सदमा सा लग गया सुमन को ….उसने बहुत दिनों तक खाना पीना छोड़ दिया था।बहुत समय बाद सुमन अपनी ज़िन्दगी में सुचारू रूप से आने की कोशिश कर रही थी ।आज इस तस्वीर को देख कर उसे नीता की बहुत याद आ रही थी, परिवार कैसा भी हो… अगर आप दिल से रिश्ते को निभाओ तो आप कही ना कही खुद को उससे जुड़ा महसूस करते हैं पर कुछ अपने लोग ही इतने कान भर देते हैं कि अच्छे ख़ासे रिश्ते में दूरियाँ बढ़ने लगती है ।
कुन्दन हमेशा सुमन को यही समझाने की कोशिश करते रहते थे ,आइने में यथार्थ दिखाई देता वो गुज़रा हुआ वक़्त नहीं बताया करता.. तुम यथार्थ को स्वीकार करना सीखों और जैसे वो अपनी ज़िंदगी में ख़ुश है तुम भी रहो नहीं तो बीमार पड़ जाओगी पर सुमन तो सुमन थी वो अपनी बहन समान देवरानी को कभी गलत नहीं समझती थी..
उसे उम्मीद थी एक दिन नीता ज़रूर लौट कर आएँगी और फिर से आइने में पुराने अक्स नज़र आने लगेंगे ।
तभी हाथों में पकड़ी तस्वीर पर आँसू की बूँद गिरी।
“ आप रो रही है मम्मी जी… मैं तो ये तस्वीर इसलिए बनवाई थी कि आप अच्छी यादें याद करके खुश हो ।” मिहिका ने कहा
सुमन आँसुओं को पोंछती हुई तस्वीर टांगने की जगह तलाश करने लगी ।
शाम तक सुमन काफी हद तक सामान्य होने का प्रयास कर रही थी कि तभी दरवाज़े की घंटी बजी।
कुछ लोग अपने चेहरे के पास फूलों का गुलदस्ता लिए खड़े थे ।
सुमन उन्हें देखने की कोशिश करने लगी तभी सबने कहा,“ हमें अंदर आने नहीं कहेंगी?”
ये जानी पहचानी सी आवाज़ सुन कर सुमन बस इतना ही कह पाई,“ नीता तुम आ गई… मुझे पूरी उम्मीद थी तुम वापस आ जाओगी ।”
इस कहानी को भी पढ़ें:
सबने सुमन को जन्मदिन की बधाई दी और देवर और नीता हाथ जोड़कर बोले,“ हमको माफ कर दीजिएगा, पता नहीं माँ कीं बातों में कैसे आ गए।”
“ सच्ची भाभी एक दिन भी आपको याद किए बिना नही गुजरा होगा पर हिम्मत नहीं हो रही थी आपके सामने आने की वो तो शुक्र है बहू का जिसने बस इतना ही कहा ,“ आज मम्मी जी का पचासवाँ जन्मदिन है अगर आप लोग आएँगे तो मम्मी जी के लिए इससे बड़ा तोहफ़ा हम उन्हें कभी दे भी नहीं पाएँगे….बस भाभी हमसे रहा नहीं गया …
अब अपनी छोटी को माफ़ करो और डाँट लगाओ… सच्ची बुरा नहीं मानूँगी। ये पाँच साल हम भी आपके बिना अधूरे से थे। अब हम साथ में ही रहेंगे चाहे जैसे रहना पड़े अब रिश्तों में दूरियों की कोई जगह नहीं होगी।” नीता सुमन के हाथ पर हाथ रख कर बोली
आज पूरा परिवार सुमन के पचासवें जन्मदिन पर फिर से इकट्ठा हो गया था और सच यही था सुमन को इससे ज़्यादा कोई तोहफ़ा ख़ुशी भी नहीं दे सकता था ।
मिहिका को गले लगाती दोनों सास ने कहा,“ हमें मिलाने के लिए शुक्रिया बहुरानी!”
इस दृश्य को मिहिर ने झट से कैमरे में क़ैद कर लिया और बोला,“ आप लोगों की वजह से मैं भाभी के हाथों का इतना टेस्टी खाना मिस करता रहा… ये झगड़ा बड़े करते भुगतना हम बच्चों को पड़ता।”
“ अरे तुझे कैसे पता… तेरी भाभी खाना बहुत अच्छा बनाती?” सुमन ने पूछा
“ वोऽऽ वोऽऽ मैं भैया के सोशल मीडिया पर तस्वीरें देखता रहता था जो अक्सर आप सब के साथ उधर पोस्ट करते रहते थे.. मैं और भैया हमेशा बातें भी करते रहते थे और चाहते थे हम सब फिर से साथ में रहे।” मिहिर ने सफ़ाई देते हुए कहा
“सच भाभी मैंने अपने ही रिश्तों में दरार डाल दी… बहू को भी लोगों ने क्या क्या नहीं कहा था तब जब नई बहू के आते बँटवारा हो गया लोग कहते लगता नई बहू अच्छी नहीं है.. फिर भी ना मिहिका ने कुछ कहा ना आपने… मुझे आप सब माफ कर दो !” नीता रोते हुए बोली
“ अब कोई रोना धोना नहीं आज तो जमकर पार्टी करने का दिन है, माँ अब हम यही रहेंगे जब तक वो कमरे ख़ाली नही हो जाते.. अब तुम जाने भी कहोगी तो नहीं जाने वाला… क्यों बड़ी माँ रखोगी ना अपने पास!” मिहिर सुमन के गले लगते बोला
आज फिर से इस घर में ख़ुशियाँ लौट आई थी । कुन्दन सुमन के आइने को देख रहे थे जिसमें लोगों की बढ़ती उम्र ज़रूर दिख रही थी पर रिश्तों में जो एक धुंधली परत आ गई थी अब वो छँट गई थी आज वो फिर से चमकने लगा था ।
आपको मेरी रचना पसंद आए तो कृपया उसे लाइक करें और कमेंट्स करें ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
*#रिश्तों में बढ़ती दूरियां*