आज सभी लोग अपने अपने घर को चले गए पीछे फिर से वही लोग रह गए जिनको कहीं जाना ही नहीं था पर सबकी विदाई करने के बाद भी मानसी को किसी भी बात का कोई मलाल नहीं था…. होता भी कैसे एक वक्त वो भी था जब वो बस पश्चाताप के आँसू बहाया करती थी पर अब नहीं ।
“ बहू जरा इधर आना।” सासु माँ कमला जी की आवाज़ सुन मानसी एक लंबी साँस भरते हुए उनके कमरे की ओर बढ़ गई
“ क्या हुआ माँ जी… अब क्या सुनाने के लिए बुलाया है?” मानसी के तीखे बोल सुन कर कमला जी सकते में आ गईं
“ वोऽऽऽ लगता है बड़ी बहू का बहुत सारा सामान यहीं रह गया…।” कमला जी आगे कुछ कहती मानसी ने ही उनका वाक्य पूरा करते हुए कहा,” आप चिंता मत करे माँ जी उनका सारा सामान एक जगह रख दूँगी जब आप जाएगी लेते जाइएगा मुझे इन सब की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी ।”
“ बहू तुम अभी तक उन सब बातों तो लेकर बैठी हो…. अरे उस वक्त एक एक चीज संजो संजो कर रखते थे इसलिए तुम्हें कह दिया पर अब समय बदल गया है मैं तो बस तुम्हें बता रही थी कहीं कल को तुम ये ना सोचो ये किसका सामान रह गया ।” कमला जी बोली
“ माँ मैं उस बात को कभी भूल ही नहीं सकती.. खैर जाने दीजिए अब उन बातों की चर्चा कर के घर में फिर से कोहराम मचाने का कोई शौक नहीं है … मैं एक बैग दे देती हूँ आप ये सारा सामान उसमें रख लीजिएगा और हाँ वो बैग आप रख सकती हैं मुझे वापिस करना जरूरी नहीं है…सामान मेरा हो या फिर आपका है तो हमारा ही … वो चाहे यहाँ रहे चाहे वहाँ ।” आख़िरी शब्द पर जोर देते हुए मानसी ने कहा और वो एक बैग लेने चली गई
कमला जी मानसी के इस उखड़े स्वभाव को समझ भी रही थी और महसूस भी कर रही थीं कहीं ना कही दोनों बहुओं के बीच उनकी वजह से ही खटास आ गई थी ।
कमला जी अपनी बड़ी बहू का सामान समेटकर एक तरफ रखती जा रही थी और चलचित्र की तरह उन्हें वो पुराने दिन याद आ रहे थे जब मानसी जेठ जेठानी के घर गई हुई थीं… साल में एक बार वो लोग यहाँ आते और एक बार ये लोग उनके पास जाते …. कमला जी का जब मन करता जहाँ मन करता वो वहाँ रहती दो बेटों और एक बेटी की माँ… बेटी ब्याह के बाद विदेश चली गई तो उसका आना जाना कम ही होता…मानसी दस दिन के लिए जेठ जेठानी के घर गई हुई थी आते वक्त रात का सफर था तो मानसी के पति नितिन ने अपनी भाभी से कहा,” भाभी रात के खाने के लिए मानसी को बोल दिया है वो कुछ बना कर पैक कर लेगी।”
मानसी खाना तैयार कर उसे पैक करने के लिए डिब्बे देखने लगी तभी उसकी जेठानी ने एक बड़ा टिफ़िन बॉक्स देते हुए कहा,” इसमें पैक कर लो आराम से सब पैक भी हो जाएगा और एक जगह पर रहेगा ।”
मानसी ने भी आराम से टिफ़िन लेकर पैक कर लिया और अपने साथ ले आई… उसके बाद वो टिफ़िन साफ कर के रख दी…उसके बाद कितनी बार आई गई कभी टिफ़िन का कोई ज़िक्र नहीं हुआ तो वो भी भूल गई थी ।
एक दिन अचानक कमला जी का फोन आया,” बहू यहाँ से जो टिफ़िन ले गई थी वो कहाँ रख दी हो मिल ही नहीं रहा है ?”
“ माँ वो तो यहाँ है … उसको लेकर आना था क्या?” मानसी आश्चर्य से पूछी
“ और नहीं तो क्या… अब यहाँ टिफ़िन की जरूरत पड़ गई तो ख़रीदने जाए इस बार जब आओगी तो लेते आना।” कमला जी की आवाज़ में मानसी को अपने लिए वो प्यार नहीं दिखा जो जेठानी के लिए था
“ माँ एक टिफ़िन के लिए आप कैसे बोल रही हैं…जब भी वहाँ आते हैं आप हमसे क्या कुछ नहीं बोल कर खरीदवा लेती हैं… एक टिफ़िन ही तो है नया आ जाता इसमें फोन कर के ऐसे बोलने की क्या ज़रूरत थी वो भी पड़ोस वाली रमा चाची के पास… खैर अभी दो दिन बाद नितिन जाने वाले हैं मैं भिजवा दूँगी।”
मानसी को उस दिन बुरा ज़रूर लगा था पर अब तो हद हो गई थी….नितिन के सामने बड़े प्रेम से सब दे दिया जाता और पीछे से मानसी को कहा जाता था ये भिजवाया था लेते आना…. इस बार जब मानसी गई तो नितिन के सामने फिर से कमला जी और जेठानी ने जो भी सामान पैक करना था वो अच्छे टिफ़िन और डिब्बों में भरने के लिए दिया जाने लगा…मानसी के सब्र का बांध टूट चुका था वो बोली,”आप दोनों अपने डिब्बे और टिफ़िन रहने दीजिए… जो कुछ देना है वो पॉलीथिन में नहीं तो पैकिंग पेपर में लपेट कर दे दीजिए…… आप लोग बार बार हमें ये डिब्बे टिफ़िन देते रहते है फिर आपको नया लेना पड़ता है बेकार के खर्चे बढ़ जाते है.. अगली बार से एक काम करूँगी मैं अपने साथ कुछ डिब्बे और टिफ़िन लें आया करूँगी ।”
मानसी की बात सुनकर नितिन बिदक गया ग़ुस्से में मानसी से बोला,” ये सब क्या बोल रही हो मानसी…अरे ये लोग प्यार से दे रहे हैं रख लो…कौन सा हम कोई कीमती सामान लेकर जा रहे हैं ।”
“ कीमती का तो पता नही पर आपकी भाभी के घर की कोई चीज मैं अपने साथ अब ले जाना नहीं चाहती…हम इतना कुछ इनको लाकर देते रहते हैं वो इन्हें नहीं दिखता पर जो डिब्बे और टिफ़िन ये देते हैं इन्हें वो तुरंत चाहिए होता है आपको तो पता भी नहीं… इसके लिए मुझे फोन कर के याद दिलाया जाता है… वो डिब्बे जो हम फेंक देते हैं वो देकर भी ये कहते हैं लेकर आना… मैं चुपचाप लाकर रख देती हूँ आपको नहीं बताने की हिदायत जो दी जाती है….फिर उसमें ही भर कर देते हैं आपको लगता है कितनो महान हैं ये लोग पर ऐसा कुछ नही है ।”
मानसी की बात सुनकर नितिन ने सबके सामने एक थप्पड़ उसके गाल पर रसीद दिया ।
मानसी रोती हुई वहाँ से चली गई… पश्चाताप के आँसू अपनी रफ़्तार से निकल रहे थे पर अब उसे संतुष्टि थी कि वो सास जेठानी के दिखावेपन को सामने ले आई।
नितिन के व्यवहार से आहत हो वो चुपचाप अपना सामान बाँधने लगी सात बजने वाले थे कुछ देर में निकलना था… जेठानी वो डिब्बे और टिफ़िन उसके पास रखते हुए बोली,” इसको भी रख लेना।”
मानसी ने कोई जवाब नहीं दिया … निकलते वक्त वो सब सामान बेड के साइड में रख कर निकल गई कुछ भी नहीं लिया
ट्रेन में बैठें कुछ वक्त ही गुजरा था कि कमला जी का फोन आया,” बहू सारा सामान सब यही रह गया ।”
“ माँ अब उन सब सामान की जरूरत नहीं है आगे से कभी नहीं दीजिएगा…. आप दोनों के दिखावे में मेरे पति ने मुझपर हाथ उठा दिया और आप दोनों चुप रही… क्या गलत कहा मैंने?” मानसी ठंडे स्वर में बोली
“ बहू तुम्हें तो पता है बड़ी बहू सामने से कुछ नहीं कहती पर ।” कमला जी बात पूरी करती उसके पहले मानसी ने कहा,” आप भी उनका ही साथ दीजिए… फोन रखती हूँ आवाज़ साफ़ नहीं आ रही।”
उसके बाद से मानसी ने सास और जेठानी से दूरियाँ बना ली… कितना भी कुछ हो जाता वो कुछ भी नहीं लेकर आती थीं…
“ ये लीजिए माँ जी… इस बैग में सारा सामान अच्छी तरह देख कर रख लीजिएगा… कुछ छूट गया तो मुश्किल होगा।” मानसी की आवाज़ सुन कमला जी की यादों से वो पल वही थम गया और हाथ में पकड़ा सामान बैग में रखते हुए बोली,” बहू बात इतनी भी बड़ी नहीं थी जितना तुम लेकर बैठ गई हो।”
“ माँ बात छोटी बड़ी की नहीं है परिवार में तेरा मेरा की है…हमारा किया आप कभी नहीं बोलती है पर वहाँ से एक सामान भी आ जाए आपको टेंशन हो जाती…आखिर ऐसा क्यों?” मानसी जाते जाते रूक कर पूछी
“ बहू बड़ी बहू अपनी हर चीज को बड़े जतन से रखती… अब वो नितिन के सामने दे तो देती है पर पीछे से बोलती रहती है… मेरा ये सामान मानसी के पास है … सुनकर अच्छा नहीं लगता था इसलिए तुम्हें बोल देती थी ।” कमला जी सफ़ाई देते हुए बोलीं
मानसी हूं कर कर के निकल गई ।
कुछ दिन बाद कमला जी नितिन के साथ बड़े बेटे को पास जा रही थी तभी मानसी दौड़ती हुई आई और एक पैकेट कमला जी को पकड़ाते हुए बोली,” इसमें रास्ते के लिए खाना है…हाँ माँ जेठानी जी को बोल दीजिएगा… मानसी इसे अपने लोगों को दे रही हैं वो आराम से इसे रख सकती हैं… मैं कोई खोज खबर नही करूँगी ।”
ये बात सुनकर नितिन मानसी को कुछ बोलता उसके पहले कमला जी ने उसका हाथ पकड़कर चुप कराते हुए बोली,” बहू जो कुछ भी पहले हुआ है उसमें तुम्हारी कोई गलती नही थी फिर भी नितिन ने तुम पर हाथ उठा दिया मैं कुछ बोल नही पाई पर आज बोलती हूँ… नितिन मानसी ने जो कुछ उस दिन कहा सही कहा और जो कर रही सही कर रही…इस बार जाकर बडी बहू को समझाने की जरूरत है…परिवार में तेरा मेरा नहीं होता जरूरत बड़ी होती… ला इसे इस थैले में रख दे।”
आज एक बूँद पश्चाताप के आँसू कमला जी की आँखों में भी लुढ़क आए…काश समझ पाती एक छोटी सी बात भी रिश्तों में कितनी बड़ी बातों को तूल दे सकती है जो रिश्तों में बिना कहे भी खटास ला देती है ।
रचना पर आपकी समीक्षा का इंतज़ार रहेगा ।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
# पश्चाताप के आँसू