” मेरा विश्वास कीजिये मम्मी जी, मेरी गोद में दीपक का ही बेटा है।हम दोनों ने दो साल पहले ही मंदिर में जाकर शादी कर ली थी।उसने कहा था कि समय आने पर मैं खुद ही तुम्हें अपने घर ले जाऊँगा लेकिन वो नहीं आया और अब तो मेरा फ़ोन भी..।” कहते हुए श्रुति की आँखों से आँसू बहने लगे।
” देख लड़की..मैं तेरी मम्मी-वम्मी नहीं हूँ और ना ही तेरे मगरमच्छी आँसुओं में बहने वाली हूँ..मुझे अपने बेटे पर पूरा विश्वास है..उसकी पत्नी शिल्पी है..यही सच है..अब तू यहाँ से निकलती है या…।”
कहते हुए मालती ने अपने दाहिने हाथ की पहली अंगुली से श्रुति को बाहर जाने का रास्ता दिखा दिया।उनके पति श्रीकांत जी उन्हें रोकते रहें लेकिन उन्होंने भड़ाक-से दरवाज़ा बंद कर दिया और कमरे में आकर अपनी रोती हुई बहू को चुप कराने लगीं।
मालती के पति श्रीकांत जी एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थें।वो अपनी गृहस्थी में बहुत खुश थीं और जब दीपक उनकी गोद में आया तो उनका परिवार भी पूरा हो गया।उनका समय दीपक के पालन-पोषण में बीतने लगा।अच्छी शिक्षा और अच्छे संस्कार लेते हुए दीपक सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा।
अच्छे अंकों से बारहवीं की परीक्षा पास करके दीपक ने इंजीनियरिंग काॅलेज़ में दाखिला लिया और कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करने लगा।
दीपक देखने में हैंडसम था, पढ़ाई में होशियार और स्वभाव से हँसमुख।इसलिये काॅलेज़ की लड़कियाँ उसके आगे-पीछे घूमती रहतीं थीं।हर लड़की उसके साथ बैठकर काॅफ़ी पीने की फ़िराक में रहती थी लेकिन उसने कभी उन पर ध्यान नहीं दिया
और अपनी पढ़ाई करता रहा।उन्हीं में से एक लड़की थी श्रुति जो शहर के बड़े बिजनेसमैन की बेटी थी।लड़कों के साथ घूमना और मौज-मस्ती करना ही उसका शौक था।
उसने दीपक को भी इंप्रेस करना चाहा लेकिन नाकाम रही।चिढ़ के कारण उसने प्रिंसिपल से उसकी झूठी शिकायत करके उसकी छवि भी बिगाड़नी चाही लेकिन वहाँ भी उसे सफ़लता नहीं मिली तो वो तिलमिलाकर रह गई।
इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर दीपक ने एमबीए करने के लिए IIM मुंबई में दाखिला लिया।पहली बार बेटा आँखों से ओझल हो रहा था,
मालती का मन घबराने लगा कि इतने बड़े शहर में कहीं मेरा दीपक भटक न जाए।इसलिये वो उसे रह-रहकर समझाती रहती कि देख बेटा..हमें तुम पर पूरा भरोसा है।तू मन लगाकर अपनी पढ़ाई करना और कोई ऐसा काम न करना कि हमारे # विश्वास की डोर टूट जाए।
अपनी माँ को तसल्ली देकर दीपक मुंबई चला गया।समय-समय पर अपने माता-पिता को फ़ोन करके वो अपनी सकुशलता समाचार देता रहता।देखते-देखते दो वर्ष बीत गए, उसे एमबीए की डिग्री के साथ-साथ मुंबई के ही एक मल्टीनेशनल कंपनी में ज़ाॅब भी मिल गई।
छह महीने बाद मालती ने अपने एक परिचित की बेटी शिल्पी के साथ उसकी शादी करा दी।शिल्पी शिक्षित थी और समझदार भी।कुछ दिन सास-ससुर के साथ रहकर वो दीपक के पास चली गई और समय के साथ उसने मुंबई के माहोल में खुद को भी ढ़ाल लिया।दोनों शाम को कभी समुद्र-किनारे घूमने निकल जाते तो कभी माॅल चले जाते।
एक दिन दीपक और शिल्पी एक पार्टी में गए हुए थे।वहीं पर श्रुति भी आई हुई थी।दीपक को देखकर वो लपककर उसके पास आई और हँस-हँसकर उससे पुराने दिनों की बातें करने लगी।उसे लगा कि शिल्पी गुस्सा करेगी लेकिन उसे शांत देखकर उसने पूछा,” शिल्पी..तुम्हारा पति इतना हैंडसम है..तुम्हें उस पर शक नहीं होता..।”
मुस्कुराते हुए शिल्पी बोली,” श्रुति जी..रिश्तों में विश्वास हो तो शक की कोई गुंजाइश नहीं होती और पति-पत्नी के बीच तो सिर्फ़ प्यार होता है..।” जवाब सुनकर दीपक गर्व से उसकी तरफ़ देखकर मुस्कुराया लेकिन श्रुति तिलमिलाकर रह गई।उसने तभी दीपक की गृहस्थी में आग लगाने का फ़ैसला कर लिया।
एक दिन मालती और श्रीकांत जी बेटे के पास आये हुए थे।बेटे-बहू को खुश देखकर उनका जी खुश हो गया था।सभी लोग कहीं घूमने जाने का प्लान बना रहे थे कि एक दिन श्रुति आ धमकी।शिल्पी उसे पहचानती थी, इसलिए उसने उसका स्वागत किया।बातों-बातों में श्रुति शिल्पी को बताने लगी कि मैं और दीपक बहुत करीब थे..
हमने साथ में रातें भी गुज़ारी हैं..हम तो शादी भी..।वो बोलती जा रही थी और शिल्पी के चेहरे का रंग बदलता जा रहा था।मालती ने सुना तो क्रोधित हो उठी और डपटते हुए उससे बोली,” तुम्हारी कहानी पर न तो मैं विश्वास करूँगी और ना ही मेरी बहू..अब तू निकल यहाँ से..।
” कहते हुए उन्होंने उसके हाथ से काॅफ़ी का कप छीन लिया और उसे बाहर निकालकर दरवाज़ा बंद कर लिया।श्रुति चली गई लेकिन जाते-जाते वो शिल्पी के मन में शक का बीज बो गई थी।
शाम को दीपक जब ऑफ़िस से घर आया तो शिल्पी ने उसे बहुत भला-बुरा कहा और रोने लगी।दीपक ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन इंसान जब गुस्से में होता है तो वो अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझता।शिल्पी की भी वैसी ही स्थिति थी।उसने दीपक की एक न सुनी और उससे बात करना बंद कर दिया।
कुछ दिनों बाद दीपक को ऑफ़िस के काम से कनाडा जाना पड़ा।उधर श्रुति को उम्मीद थी कि दीपक उसके पास आयेगा..उस पर गुस्सा करेगा लेकिन दीपक के कुछ न कहने से उसकी उम्मीद पर पानी फिर गया।तब उसने एक नई चाल चली
और एक छह माह के बच्चे को गोद में लेकर फिर से दीपक के घर आ गई और बेशर्मी-से अपनी नई कहानी सुनाने लगी।शिल्पी तो पहले से ही भरी हुई थी, ऊपर से श्रुति की शादी-बच्चे की बात ने आग में घी का काम किया।वो अपने कमरे में जाकर फूट-फूटकर रोने लगी।
श्रुति की बात सुनकर एक बार को तो श्रीकांत जी का बेटे पर से विश्वास उठने लगा लेकिन मालती अडिग थीं।उन्होंने श्रुति को फटकारा कि उस दिन के ज़हर उगलने से तेरा पेट नहीं भरा जो अब नया नाटक..।तब श्रुति ने अपने आँसुओं का औजार फेंका लेकिन मालती ने उसे..।
मालती ने अपने आँचल से शिल्पी के आँसू पोंछे और उसे समझाते हुए बोली,” देख बेटी..अपने रिश्तों में विश्वास रख।ये जीवन बहुत लंबा है।श्रुति जैसे कितने ही लोग आयेंगे..
कभी मेरे बारे में तो कभी दीपक के बारे में बोलकर तेरे मन को अशांत करके खुद खुशियाँ बनायेंगे लेकिन तुझे अपने पर भरोसा रखना है।अपने# विश्वास की डोर को इतना मजबूत रखना है कि सौ क्या हजार श्रुति भी आये तो तू उनके सामने अटल खड़ी रहे।”
शिल्पी ने अपनी सास की तरफ़ देखा तब मालती बोलीं,” दीपक मुझे पहले ही श्रुति के बारे में बता चुका था।मैं चाहती थी कि तुम स्वयं इसका सामना करो लेकिन बात बिगड़ती देख मुझे बोलना पड़ा।”
” मम्मी जी..वो तो नाराज़ होकर चले गए..।” शिल्पी फिर से रोने लगी।तब हँसते हुए मालती बोलीं,” पगली..नाराज़ तूने किया है तो मनाएगा कौन..।” वो कमरे से बाहर चली गईं ,तब शिल्पी कनाडा फ़ोन करने लगी।
पंद्रह दिनों बाद जब दीपक आया तब श्रीकांत जी ने उसे सारी बात बताई और बोले कि तेरी माँ तो शेरनी है शेरनी..।फिर तो सब खूब हँसे और घर का माहोल फिर से खुशनुमा हो गया।
विभा गुप्ता
# विश्वास की डोर स्वरचित, बैंगलुरु
श्रुति जैसे लोग दूसरों के घरों में आग लगाकर अपने अहं की संतुष्टी करना चाहते हैं लेकिन मालती जैसी समझदार महिलाएँ मजबूत विश्वास की डोर से उनकी मंशा को असफल कर देतीं हैं।