रिश्तों में कुछ देख कर भी अनदेखा करना होता है-मनीषा सिंह : Moral Stories in Hindi

शादी ,हनीमून खत्म हुआ••• अब आर्या अपने जाने जहां हर्ष नौकरी करता था, की तैयारी शुरू करने लगी। देखो•• कल की ट्रेन है•• सारी पैकिंग हमें आज ही करनी होगी•• ताकि कल तक हम निश्चित हो सके। कहते हुए हर्ष आर्या को अपने बाहों में भर लेता है।

 पर इतनी सारी पैकिंग क्या कल तक हो पाएगा••?

 इठलाते हुए वह हर्ष से बोली। अरे–तुम सिर्फ हुकुम तो दो मेरी जान•• यह जादूई जीन सारे काम को मिनटों में कर सकता है।

अच्छा••• तो जीन महाराज••! आपके साथ मुझे भी लगे रहना होगा•• वरना पता चला आज का तो छोड़ो कल तक भी नहीं हो•• पाएगा! कहते हुए आर्या हंसने लगी । अरे•• हां••” मां की भी तो पैकिंग हमें करनी होगी” 

हां••! 

दो-तीन घंटे में सारी पैकिंग हो जाने के बाद हर्ष अपनी मां कविता जी के पास आता है।

” मां••! अब आप अपना सारा सामान मुझे दे दो जो-जो आप ले जाओगे ताकि मैं सभी चीजों को अच्छे से रख सकूं–!  बेटा•••! मुझे कहां ले जाओगे•••तुम लोग जाओ– यहां पापा भी अकेले हो जाएंगे•••!

 मां–! आर्या पहली बार बाहर जा रही है और अभी इसे आपकी जरूरत है•• सारा दिन मैं ऑफिस रहूंगा और यह बेचारी अकेली हो जाएगी। कुछ दिन आप रहोगे तो इसे भी अच्छा लगेगा और  आप अपनी स्पेशल रेसिपी बनाना भी सिखा देना••!

 क्यों आर्या•••?

हां•• मां••प्लीज चलिए ना आपके जाने से घर में रौनक रहेगी•• आर्या खुशी इजहार करते हुए बोली। “बच्चे इतना जिद कर रहे हैं तो चली जाओ ना बड़ी बहू है ना•• मुझे देखने के लिए•• देव बाबू अपनी पत्नी को समझाते हुए बोले।

 ठीक है चल मेरी भी पैकिंग कर दे–

 आज प्रस्थान का दिन था ।

दो-तीन महीने शादी की वजह से घर में कितनी रौनक थी•• और आज पूरा का पूरा घर सूना हो जाएगा••! जेठानी मधु आर्या से बोली ।

कोई बात नहीं दीदी••! आप सब भी वहां आ जाना मेरा भी मन तो वहां नहीं लगेगा•• फिर भी क्या करूं•• जाना तो पड़ेगा !

आर्या के मम्मी-पापा भी उसे छोड़ने स्टेशन आए••• गाड़ी खुल चुकी थी सभी की आंखों में आंसू थे••।” बस बाबू•••! “अब कब तक उन्हें देखती रहोगी•• चलो आंसू पोछ लो•• और थोड़ा मुस्कुरा दो—! हर्ष आंसू पोछते हुए बोला।

 चलो मां•• के पास चलते हैं वह हमारा इंतजार कर रही होंगी••!  नव जीवन की शुरुआत तथा एक सुंदर जीवन की कल्पना करते हुए आर्या अपने पति तथा सासू मां के साथ मुंबई चली आई।  

 वैसे तो घर बहुत अच्छा है••• पर तुमने इसे ढंग से नहीं रखा•• सारी चीजें अस्त-व्यस्त हैं—-! दुपट्टा कमर में खोसते हुए और झाड़ू उठाकर आर्या काम में लग गई–।  अब तुम आ गई हो ना•• इसे सजाने संवारने••! 

चलो सफाई में मेरी मदद करो•••अभी हम सफाई करेंगे•• और शाम में हम जरूरत का सामान ख़रीदेंगे—!

 हां-हां वैसे भी जो करना है आज ही कर लो क्योंकि कल से मुझे ऑफिस ज्वाइन करनी होगी•• हर्ष बोला  ।

सभी लग गए घर की सफाई करने में•••तभी हर्ष अपने हाथ में एक घड़ा लेकर आता है यह लो आर्या•• इसे अच्छी तरह से धो लो•• लगे तो नई वाली स्क्रबर वहां रैक पर रखी है उससे इसे रगरकर साफ कर लेना•• यह पानी के लिए है बहुत गर्मी हो रखी है  ठंडा पानी चाहिए हमें इसलिए आज इसी से काम चलानी होगी शाम में हम फ्रिज खरीद लेंगे•••! तभी कविता जी हर्ष के हाथ से घड़ा लेकर वहीं पुरानी इस्तेमाल किया हुआ गंदा स्क्रबर से घड़ा साफ करने लगती है कि•••” मां•••! इसे नई वाली से साफ करनी होगी लाइए मैं कर देती हूं कविता जी बिना कुछ बोले घड़ा रखते हुए चली गई ।

आर्या कुछ समझ नहीं पाई और सारा काम निपट जाने के बाद मां••! आप हाथ मुंह धो लीजिए चाय चढ़ा देती हूं परंतु कविता जी ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया अरे  पहले मां चाय पी लेंगी•••फिर  स्नान करेगी अभी मैं सब्जी लाने जा रहा हूं ••! हर्ष बोला।

 कुछ समय पश्चात 

लीजिए मां••• चाय•••! मुझे नहीं पीनी चाय—! कहते हुए कविता जी ने अपना मुंह फेर लिया ।

 पर अभी तो आपने इनसे दूध मंगवाई चाय पीने के लिए•••• क्या हुआ तबीयत तो आपकी ठीक है••• ना•••? माथा टटोलते हुए आर्या बोली कि••• एक झटके से हाथ हटाते हुए •••तबीयत ठीक है मेरी•••! आर्या डर गई कि अचानक मां को क्या हुआ– अभी तक तो ठीक थीं और अब उनके चेहरे पर नाराजगी साफ दिख रही थी परंतु उसके समझ से यह बात परे थी कि मां किस बात से नाराज हो गई  ।

तभी हर्ष सब्जी लेकर मार्केट से आता है और आकर मां के पास बैठ गया जाता है । पता है— यहां सब्जियों का रेट भी बहुत है पटना में यहां के मुकाबले आधे दाम में किलो भार की सब्जी मिलती है और अब यहां देख लो•••! मां•• ने चाय नहीं पिया•• फिर से चाय का कप सामने लाते हुए आर्या बोली। क्यों क्या हुआ—? आपको कहीं घर की याद तो नहीं आ रही•••? कहीं पापा की चिंता तो नहीं सता रही•••? चिंता मत करो भाभी भैया है ना•• पापा और घर की बिल्कुल भी टेंशन मत लो कहते हुए हर्ष मां से लिपट गया।

 तभी कविता जी फूट-फूट कर रोने लगी ।

क्यों रो रही हो बताओ तुम्हें मेरी कसम•••!

 अरे जिंदगी भर मुझे सभी कहते  कि कविता तू तो सफाई करने में मास्टर है इतनी साफ-सुथरी हो और इतना साफ-सुथरा घर रखती हो और आज—

 आज क्या मां—? आर्या तपाक से पूछी ।

आज यह लड़की मुझे सिखा रही है कि इससे नहीं उसे स्क्रबर से साफ कीजिए—!

 अरे नहीं—वो तो इन्होंने ही मुझे कहा था कि नए वाले स्क्रबर से घड़ा साफ करना है•• सही में•• पुराना वाला तो बहुत गंदा था–! वही तो अब मैं गंदी हो गई और तुम साफ- सुथरी हो••! कहते हुए कविता जी पुन:फूट-फूट कर रोने लगी । हर्ष अवाक था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे मां को चुप करें ।

 नहीं मां••मेरे कहने का मतलब यह नहीं था आप खामखा•• बात को बढ़ा रही हैं••!

 बस अब चुप भी करो आर्या••• तब से तुम्हे सुन रहा हूं माफी मांगो मां से••••! मैने क्या किया है•••जो मैं माफी मांगू•••?  आर्या आश्चर्य से हर्ष की तरफ देखने लगी ।

 मैंने कहा माफी मांगो मां से••! आंखों में आंसू लेकर वह अपने कमरे में चली गई  ।

“शाम के 6:00 बज गए परंतु तब से हर्ष एक बार भी आर्या के कमरे में उसे मनाने नहीं आया ।

 जब आर्या ने कविता के कमरे में झांका  तो देखा कि हर्ष मां के साथ सोया हुआ था ।

 कैसे लोग हैं यह•••? मुझे ही दोषी ठहरा रहे हैं और खुद दोनों मां- बेटा चैन की नींद सो रहे हैं•••!  ८:00 बज गये 

  किचन में कुछ खटपट सुनाई दी तो उसे लगा कि अब हर्ष आते ही होंगे उसे मनाने••• परंतु ये क्या•• खुद ही वह खाना बनाने लगा और खाना बन जाने के बाद कविता जी को खिलाया फिर   दवा देकर उन्हें सुलाकर खुद भी वही सो गया। काफी देर इंतजार के बाद जब हर्ष आर्या के कमरे में नहीं आया तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि यह क्या नौटंकी है क्या सिर्फ मैं ही प्यार की “मोहताज” हूं••• क्या उन्हें मां का ही ज्यादा ख्याल है••? 

मेरा नहीं•••? वह मुझे एक बार भी समझाने नहीं आए•• एक बार भी मुझे खाने के लिए नहीं पूछा••! इसी उधेड़बुन में जाने कब उसकी आंख लग गई कि तभी उसे लगा कि कोई उसे अपने सीने से सटा  रखा है जब चेतना में आई तो सामने हर्ष उसे चिपकाए था उसे अपने सामने देख वह फूट-फूट के रोने लगी ।

 मुझे इतनी दूर लाकर क्यों अकेला छोड़ दिया•••? तुम तो जानते थे कि इसमें मेरी कोई गलती नहीं•• मां ने तो बात का बतंगड़ कर दिया•••! 

बस-बस बच्चे रोते नहीं••• !मुझे सब कुछ पता था कि तुम्हारी गलती नहीं पर तुमको पता होना चाहिए की मां हमारे घर आई है अगर उनकी गलती हो भी तब भी हम उन्हें गलत होने का जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते••• क्योंकि वह हमारे घर आई हैं वह अभी हम पर आश्रित हैं•••

अगर यही बात मां के यहां  होता तो मैं जरूर तुम्हारा पक्ष लेता वह यहां है बहुत मुश्किल से हमारे साथ रहने आई हैं•• वह भी पहली बार•• अपने पति को छोड़कर••• तुमको भी पता है शादी के बाद हर मां यही सोचती है कि••• बेटे पर अब मेरा अधिकार नहीं रहा••• इसलिए हम कभी-कभी रिश्तो के “मोहताज” हो जाते हैं••• तब कुछ सोच समझ के कदम उठाना पड़ता है और मुझे उम्मीद है कि तुम भी इस बात को समझोगी•••!

आर्या” हां “मैं अपना सीर हिला  देती है ।

पर तुमने तो मुझे खाने के लिए  भी नहीं पूछा•• कितनी जोर की मुझे भूख लगी••• !” अरे पगली मैं भी कहां खाना खाया हूं•• और तुम्हें खिलाए बिना मैं खा भी नहीं सकता•••वैसे मैंने हम दोनों के लिए खाना बनाकर रखा है चलो चलकर खाते हैं ••सीने से लगाते हुए हर्ष बोला ।

हां चलो•• पर मां अभी भी मुझसे नाराज हैं•••?

नहीं उनको भी महसूस हो रहा था कि उन्होंने कुछ ज्यादा ही बोल दिया देखना कल तक वह ठीक हो जाएंगी•••!

 कल गरमा-गरम चाय के साथ जाना तो मां का गुस्सा मिनटों में शांत हो जाएगा ! हंसते हुए हर्ष बोला तो आर्या भी हंसने लगी।” तुम खुश हो तो मुझे सब कुछ अच्छा लगता है  सोचते आर्या  किचन की तरफ बढ़ गई ।

दोस्तों कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं जहां  हमें कुछ देखकर भी अनदेखा करना होता है। गलतियां  भले ही उनकी होती है परंतु समझदारी इसी में  है कि हम उस बात को तुल ना दे और बात को यही समाप्त करें इससे रिश्तो में खटास पैदा नहीं होती। अगर आपको मेरी कहानी पसंद आई हो तो प्लीज इसे लाइक्स शेयर और कमेंट्स जरुर कीजिएगा । 

धन्यवाद ।

मनीषा सिंह

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