रिश्तों का फर्क- शिप्पी नारंग : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “भाभी आप यहां किचन में घुसी हुई हैं चलो ना बाजार नहीं जाना क्या ? परसों राखी है बस आज का दिन है कल ऑफिस जाना है तो समय ही नहीं मिलेगा।” राशि ने अपनी जेठानी नमिता से कहा। “पर मैंने तो तीन दिन हुए राखी कोरियर से भिजवा दी है और वह….” नमिता की बात बीच में काटते हुए आश्चर्य से राशि ने पूछा – “जी भेज दी मतलब आप राखी पर जाओगी नहीं ?

आपका तो मायका लोकल है और आप घर नहीं जाती अमित और आशीष भैया लोग को राखी बांधने ?” “नहीं मैं चार साल हो गए राखी और भाई दूज पर अपने मायके नहीं गई ।” कहते हुए नमिता की आंखें भर आई जिन्हे छुपाने के लिए वह सिंक की तरफ मुड़ गई । “भाभी आप मुझे बताओ क्यों नहीं जाती कुछ गंभीर बात है या आप नहीं बताना चाहती तो मैं आप पर दबाव नहीं डालूंगी।”

राशि ने पूछा । “नहीं ऐसी कोई बात नहीं है । मम्मी जी का कहना है कि रितु और अलका आएंगी राखी वाले दिन तो वह क्या खुद काम करेंगी यहां मायके में, तो तुम अपनी राखी भेज दिया करो कोरियर से । मैंने शुरू में कहा भी कि मैं रात को जाकर भाई लोग को राखी बांधकर सुबह-सुबह आ जाऊंगी तो वह तब भी नहीं मानी।

अब अमित, तुम्हारे भाई साहब ने तो मुंह खोलना ही नहीं है तो क्या करती या तो क्लेश करती या फिर चुप रहती तो मैने चुप रहना बेहतर समझा।” अब नमिता का जैसे बांध टूट गया और वह बिलख पड़ी । राशि के मुंह से बोल ना फूटा पर इतना तो समझ गई यही स्थिति अब कल फिर से रिपीट होने वाली है ।

अभी राशि सोच ही रही थी कि नमिता की आवाज आई “मेरे मायके में तो भाई दूज भी मनाया जाता है पर यहां तो ये रीत ही नहीं है तो मेरा भाई दूज भी बंद करा दिया कि हमारे यहां यह रिवाज नहीं है तो तुम्हें अब इस घर के हिसाब से चलना है यानी मैं अब अपने भाइयों का तिलक भी नहीं कर सकती लेकिन अलका हर भाई दूज पर यहां आती है

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उसने अपने ससुराल में कहा है कि हम तो भाई दूज मानते हैं मजे की बात तो यह है कि उसके ससुराल में भी भाई दूज नहीं मनाया जाता लेकिन वह झूठ बोलकर सारा दिन यहां बिता जाती है बेटियों का तो मायका है पर बहू का ….” कहते हुए नमिता फिर रोने लगी । राशि ने जेठानी को चुप कराया । राशि की शादी विवेक से 10 महीने पहले हुई थी तो जाहिर है कि उत्साह भी कुछ ज्यादा ही था। नमिता की शादी हुई 4 साल हो गए उनकी डेढ़ वर्ष की बिटिया भी थी ।

दोनों बहुएं कामकाजी थी। आपस में दोनों समझदारी व प्यार से चलती थी । सासू मां सुमन जी को दोनों का बहनापा पसंद नहीं आया पर उन्हें आराम मिल रहा था तो चुप लग जाती थी । नमिता बड़ी बहू पर उनका पूरा कंट्रोल था । नमिता का पति, अमित मां के आगे जुबान नहीं खोलता था। नमिता ने शुरू में एक दो बार कहां भी के मम्मी का रवैया ठीक नहीं है रितु और अलका भी आग में घी डालने का काम करती है

पर अमित सिर्फ सुनता था गलत को भी गलत कहने का साहस उसमें ना था तो नमिता ने भी कुछ कहना छोड़ दिया । रात को डिनर करते समय राशि ने सासू मां से कहा “मम्मी जी परसों राखी है । मैं और भाभी कल आधा दिन की छुट्टी लेकर बाजार चली जाएंगी । राखी मिठाई और गिफ्ट भी लाना है तो कल यह काम करते हुए आएंगे आपको कुछ मंगवाना तो बताएं । सुमन जी ने खाते हुए अपना हाथ रोक लिया “तुमने अपनी राखी अभी तक भेजी नहीं कोरियर से नमिता ने तुम्हे बताया नहीं।

राखी वाले दिन तुम कैसे जा सकती हो रितु और अलका ने भी तो आना है तो….” सुमन जी की बात बीच में काटते हुए राशि बोली ” हां तो आए ना उन्हें किसने मना किया है वह अपने मायके हम अपने मायके क्यों भाभी..?” कहते हुए राशि ने नमिता की तरफ देखा । नमिता की सांस ऊपर नीचे होने लगी बोली कुछ नहीं।

“तो क्या त्यौहार वाले दिन दोनों अपने मायके आ कर यहां काम करेंगी..?” सुमन जी ने आवाज में तेजी ला कर पूछा। “क्यों काम क्यों करेंगी ? हम सुबह-सुबह सब कुछ तैयारी करके जाएंगे बस चपाती बनानी होगी तो वह तो बन ही जाएगी 8-10 चपाती ही तो डालनी होगी भाभी मेरे साथ चली जाएंगी। रास्ते में ही उनका मायका पड़ता है उन्हें वहां उतार दूंगी और शाम को हम साथ में आ जाएंगे।” राशि ने थोड़े में ही सारी बात रख दी ।

अब सुमन जी का भड़कना स्वाभाविक था । “नहीं नमिता ने तुम्हें बताया नहीं राखी पर वह भी मायके नहीं जाती घर की लड़कियां आएंगी तो यहां कौन करेगा। बहू हो तो बहू की तरह रहो।” शांति प्रसाद जी, सुमन जी के पति ने कुछ कहना चाहा तो सुमन जी ने एकदम रोक दिया “यह औरतों का मामला है आप चुप रहिए ” और शांति प्रसाद जी चुप बैठ गए । ” मम्मी जी बहुएं हैं तो किसी की बेटी और बहन भी हैं।

क्या बहू को अपने भाइयों का शगुन करने का, तिलक करने का कोई हक नहीं है ? आपकी बेटियां बेटियां और दूसरों की बेटियां…. मैं तो जरूर जाऊंगी और भाभी भी मेरे साथ जाएंगी। उन्हें मैं छोड़ दूंगी और ….” तभी अमित ने गुस्से में कहा “नमिता नही जाएगी और अगर गई तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। मम्मी ने जो कह दिया तो कह दिया ।

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बाकी तुम्हारा तुम जानो और विवेक तुम…..” विवेक एकदम बोला “सही है भैया दोनों नहीं जाएंगी और मम्मी रितु और अलका दोनों को बोल दो कि वह अपनी अपनी राखियां हमें कोरियर से भेज दें उनकी भी तो ननदें मायके आएंगी तो क्या त्यौहार वाले दिन वह अपने घर में काम करेंगी। बिल्कुल नहीं।” सब स्तब्ध खड़े विवेक का मुंह देखने लगे। ,”

भैया मुझे तो ताज़्जुब हो रहा है । आपको मैं अपना आदर्श मानता था पर पता नहीं था कि आपकी सोच भी ऐसी होगी । आपको भाभी का कर्तव्य याद है पर आपका क्या कर्तव्य हैं वह भूल गए या याद नहीं रखना चाहते । अपनी मां और बहनों को खुश करने के लिए पिछले 4 सालों से अपने अपनी पत्नी को इस खुशी से दूर कर दिया। क्यों…?

आपकी बहनें हैं तो उनके भाई नहीं हैं क्या ? और मम्मी आपने बरसों पहले हमारी बुआ जी का आना बंद करवा दिया था। पापा ही जाते थे राखी बंधवाने । तब आपने एक बेटी का यहां आना बंद किया था और अब बहुओं का जाना बंद करना चाहती है तो ठीक है फैसला आप करो अगर इस घर की बहुएं नहीं जाएंगी तो आपकी बेटियां भी यहां नहीं आएंगी । वह राखी अपने घर मनाएंगी या फिर यह दो बेटियां भी अपने मायके जाएंगी ” और ये कहता हुआ विवेक कमरे से बाहर चला गया और पीछे छोड़ गया गहन निस्तब्धता।

शिप्पी नारंग

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