ये आप क्या कर रही हैं , आज फिर आपने ये पुराना एल्बम उठा लिया है और फिर से अपना दिल दुखाना शुरू कर दिया है आप ने। कितनी बार आपसे कहा है भूल जाइये उन रिश्तों को जिनकी डोरी इतनी कच्ची थी,जो ज़रा से झटके से टूट गई।
अपनी माँ सीता देवी के हाथों से एल्बम लेकर अलमारी में वापस रखते हुए राशि ने कहा।
इतने में राशि की भाभी राधिका चाय ले आई, सभी ने मिलकर चाय पी। राशि माँ के दुःख को भुलाने के लिए और माहौल को हल्का करने के लिए इधर उधर की बातें करने लगी।
कुछ देर बाद राशि और राधिका रात के खाने की तैयारी करने के लिए रसोई घर की तरफ़ चली गई।
माँ भी उठकर मंदिर में शाम की आरती और भजन कीर्तन में शामिल होने के लिए चली गई।
रात को सबने हलके फुल्के माहौल में खाना खाया और खाने के बाद चाय पीकर अपने अपने कमरों में चले गए।
सोने से पहले राशि और राधिका माँ के कमरे में आई और उनके पास बैठ गई , राधिका ने सास के हार्थों को अपने हाथों में लेकर कहा कि “माँ , मैं आपकी अपराधी हूँ , मेरी वजह से आज तक आप को अपनों से जुदाई का दुःख सहना पड़ रहा है , अगर मेरी शादी नीलेश से न हुई होती तो आज अपनों से दूर न हुई होती , मुझे माफ़ कर दीजिये। ” इतने में नीलेश भी कमरे में आ चुका था।
राधिका और नीलेश ने माँ के आगे हाथ जोड़कर माफ़ी मांगी। लेकिन सीता देवी ने दोनों के हाथ थामकर दोनों को सीने से लगा लिया , और कहा कि नहीं मेरे बच्चों , इसमें तुम दोनों का कोई कुसूर नहीं है , ये तो भाग्य की बात है और कुछ आपसे रिश्तों की नासमझी , जिसकी वजह से अपने अपनों से दूर हो गए।
बहु बेटों को समझाने के बाद सीता देवी ने उन्हें अपने अपने कमरे में जाकर सोने को कहा , क्योंकि सुबह नीलेश और राधिका का ऑफिस होता है और राशि को भी कॉलेज जाना होता है।
राशि, राधिका और नीलेश ने माँ को शुभ रात्रि कहा और अपने अपने कमरों में सोने चले गए ,लेकिन सीता देवी की आँखों से नींद कोसों दूर थी।
सीता देवी ने एक बार फिर से एल्बम निकाला और पुरानी यादें उनके ज़हन में घूमने लगी।
सीता देवी और सावित्री दोनों बचपन की सहेलियां थी , दोनों सहेलियां कम और बहनें ज़्यादा थी , एक दूसरे के घर आमने सामने होने के नाते दोनों सारा दिन एक साथ रहती , एक दूसरे के घर में अपने घर की तरह ही रहती। दोनों के माँ बाप भी दोनों में कोई फर्क नहीं करते और दोनों को अपनी अपनी बेटी ही मानते। उनकी दोस्ती की मिसालें दी जाती।
सीता और सावित्री बचपन से साथ रही ,साथ पढ़ी लिखी और साथ ही जवान हुई। अब घर में दोनों की शादी की चर्चा होने लगी। दोनों को चिंता होने लगी कि अब शादी हो जाएगी तो एक दूसरे से अलग होना पड़ेगा।
रंजन को सीमा देवी को लाइट चुन कर उसकी शादी रंजन से कर दी गई।
घर में हर कोई खुश था और सीमा भी अपने ससुराल में अब बहु की तरह पूरी ज़िम्मेदारी उठा चुकी थी , कुछ दिन बीत जाने पर सही लड़का और मुहूर्त देखकर सावित्री के घर वालों ने सावित्री की शादी भी कर दी ।
शादी के बाद भी सीमा और सावित्री की बचपन की दोस्ती जस की तस रही।
वक़्त बीतता गया ,, सीमा ने एक बेटे और बेटी को जन्म दिया , वही सावित्री भी एक बेटे को जन्म दे चुकी थी।
घर की ज़िम्मेदारियाँ निभाते हुए भी दोनों सहेलियां एक दूसरे से जुड़ी रही और एक दूसरे के सुख दुःख में बराबर शामिल होती रही।
इसी तरह कई साल गुज़र गए , दोनों सहेलियों के बच्चे बड़े हो गए , सीमा के बेटे नीलेश की नौकरी एक मल्टी नेशनल कंपनी में लग गई । उसके बाद से नीलेश के लिए एक से बढ़कर एक रिश्ते आने लगे। सीमा देवी अभी इन रिश्तों में से अपने बेटे के लिए कोई सुकन्या देख ही रही थी , इतने में सावित्री सीमा के घर आई ,उसे देखकर सीमा की ख़ुशी का ठिकाना न रहा।
बातें करते हुए सीमा ने सावित्री को कुछ लड़कियों की तस्वीरें नीलेश के रिश्ते के लिए दिखाई और लड़की पसंद करने को कहा।
तस्वीरों को एक साइड रखते हुए सावित्री ने सीमा से कहा कि ‘अगर तुम मेरी ही पसंद की लड़की चाहती हो तो मेरी नज़रों में एक लड़की है जो हर तरह से हमारे नीलेश के लिए उपयुक्त है और आज उसी लड़की के रिश्ते की बात करने मैं यहाँ आई हूँ’।
सावित्री ने सीमा से कहा कि ये लड़की और कोई नहीं है मेरी ननद की बेटी है सुलक्षणा ,”सुन्दर, घरेलू काम काज में दक्ष , पढ़ी लिखी और समझदार”। इससे बेहतर लड़की हमारे नीलेश को कोई मिल ही नहीं सकती।
ये सुनकर सीमा देवी की खुशी का ठिकाना न रहा , उन्होंने सावित्री को बिना सोचे समझे इस रिश्ते के लिए हां कर दी और कहा कि मुझे तेरी पसंद और रिश्ते पर मुझे पूरा भरोसा है।
सीमा देवी की हाँ सुनने के बाद सावित्री ने ख़ुशी ख़ुशी अपनी ननद को इस रिश्ते के लिए वादा कर दिया और दो दिन बाद इतवार के दिन शगुन तय कर दिया।
सीमा देवी भी अगले दिन सावित्री के साथ जाकर उस की ननद की बेटी को देख आई और रिश्ता पक्का कर आई , न करने की कोई वजह भी नहीं थी क्योंकि सुलक्षण सच में सर्वगुण सम्पन्न थी। सुलक्षणा के घरवालों ने एक बार नीलेश की मर्ज़ी जानने की बात कही तो सीमा देवी ने फ़क्र से कहा कि उसकी हाँ में ही उस के बेटे की हाँ है, उन्हें अपने बेटे पर पूरा भरोसा था।
ये सुनकर सुलक्षणा के घरवाले भी मुत्मइन हो गए हुए और सावित्री ने भी उन्हें भरोसा दिला दिया।
। शाम को घर आकर सीमा देवी ने ख़ुशी ख़ुशी नीलेश से ये बात बताकर और रविवार को शगुन का कहकर अपनी ख़ुशी ज़ाहिर की , ये सुनकर राशि अपने भाई के लिए बहुत खुश हुई लेकिन नीलेश चुपचाप अपने कमरे में चला गया।
नीलेश की चुप्पी को राशि और सीमा देवी ने नोटिस तो किया लेकिन उन्हें लगा कि नीलेश बचपन से ही शर्मीला और कम बोलने वाला लड़का है , इसलिए उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
दोनों माँ बेटी अगले दिन जाकर शगुन के लिए सामान खरीदने निकल गई। दूसरी तरफ सुलक्षणा के घरवाले भी शगुन की तैयारियों में लग चुके थे।
खरीददारी करने के बाद दोपहर को घर आने पर अभी सीमा देवी और राशि बैठी ही थी कि दरवाज़े पर बेल बजी।
राशि, “बेटा देख तो कौन आया है , ये टाइम नीलेश के आने का तो नहीं है”। सीमा देवी ने बेटी से कहा तो राशि दरवाज़ा खोलने चली गई।
माँ, माँ जल्दी बाहर आइये , राशि की आवाज़ सुनकर सीमा देवी दौड़ी दौड़ी दरवाज़े पर आई तो वहां का नज़ारा देखकर सुन्न रह गई , उनके सामने नीलेश एक लड़की के साथ खड़ा था , और लड़की की मांग में सिन्दूर , गले में मंगलसूत्र और दोनों के गले में वरमाला देखकर सीमा देवी को समझते देर न लगी की नीलेश ने इस लड़की से शादी कर ली है।
कुछ देर सीमा देवी कुछ न बोल सकी, थोड़ी देर तक वो ऐसे ही खड़ी रही , राशि ने माँ को झकझोरा तो उन्होंने कहा कि राशि मेरी बहु आई है , आरती की थाली ला।
सीमा देवी ने बहु का गृह प्रवेश अच्छे से कराया , घर के अंदर आने के बाद नीलेश और राधिका माँ के क़दमों में बैठ गए और नीलेश ने अपनी माँ से कहा कि माँ , मैं राधिका से प्यार करता हूँ लेकिन आप के लिए जहाँ आप कहती मैं शादी कर लेता लेकिन माँ , राधिका का मेरे सिवा और कोई नहीं है ,वो दुनिया में अकेली है , इस लिए उसे मैं अकेला नहीं छोड़ सकता था। मुझे माफ़ कर दीजिये।
इतना सुन सीमा देवी ने बहु बेटे को गले से लगा लिया लेकिन अंदर से वो बैचैन थी कि अब अपनी बचपन की सहेली सावित्री से किये वादे को तोड़कर वो कैसे उसका सामना करेगी और सुलक्षणा के परिवार से कैसे माफ़ी मांगेगी।
अभी सीमा देवी ये सब सोच ही रही थी कि सावित्री देवी उनके घर आ गई , नीलेश और राधिका को देखकर उन्हें समझते देर न लगी कि क्या माजरा है??
इससे पहले सीमा देवी सावित्री को कुछ समझाती , सावित्री देवी ने सीमा देवी की तरफ़ देखकर कहा कि ये सब क्या है सीमा, अगर तुम्हारा बेटा किसी और से प्यार करता था तो किसी और लड़की को देखने की क्या ज़रूरत थी , सुलक्षणा मेरी सगी ननद की बेटी है , उन लोगों ने मेरी और तुम्हारी बात पर भरोसा करके शगुन की त्यारियां शुरू कर दी हैं , अब मैं उन्हें क्या जवाब दूंगी। ये कहते कहते सावित्री रो पड़ी।
नहीं सावित्री , तुम रोओ मत , सुलक्षणा के घरवालों से मैं माफ़ी मांग लुंगी , तुम पर कोई बात नही आएगी।
इतने में राधिका ने नीलेश के इशारा करने पर सावित्री देवी के पैर छुकर आशीर्वाद लेने की कोशिश की तो सावित्री तुरंत पीछे हट गई और राधिका को अनदेखा करते हुए सीमा देवी से बोली आज तुम्हारी वजह से मेरे ससुराल में मेरी ज़ुबान की कोई क़ीमत नहीं रह जाएगी , आज से तुम्हारा मेरा रिश्ता ख़तम।
ये कह कर सावित्री घर से निकल गई और सीमा देवी उसे रोकती रह गई।
आज लगभग 3 महीने हो गए , न तो सावित्री ने सीमा देवी से बात की , न उसके घर आई और न ही उसके फ़ोन का कोई जवाब दिया।
हालाँकि सीमा देवी ने एक दो बार सावित्री के घर जाकर उससे बात करने की कोशिश भी की लेकिन सावित्री देवी ने उससे मिलने से भी इंकार कर दिया।
आज वही सब यादें और बातें याद करके सीमा देवी फिर व्याकुल थी और एल्बम में अपनी और सावित्री की बचपन से लेकर अब तक की सारी तस्वीरें देखकर अपने आंसू नहीं रोक पा रही थी।
उन्हें इस बात का गहरा दुःख था कि उनके और सावित्री के रिश्ते की डोर इस उम्र में आकर टूट गई , इन्ही बातों को सोचते सोचते सीमा देवी की आँख लग गई।
माँ जल्दी उठिये देखिये कौन आया है , राधिका की आवाज़ पर सीमा देवी की नींद खुली तो उन्होंने देखा कि सुबह के 9 बज चुके हैं , सीमा देवी घबरा कर उठी और राधिका से बोली कि बहु आज इतनी देर हो गई ,मुझे उठा तो देती बेटा।
अरे माँ आप ये सब छोड़िये , पहले आप बाहर आइये और देखिये आपसे मिलने कौन आया है।
राधिका अपनी सास का हाथ पकड़ कर जल्दी से उन्हें हॉल में ले आई।
हॉल में आकर सीमा देवी को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ , क्योंकि सामने सोफ़े पर सावित्री बैठी मुस्कुरा रही थी।
सावित्री तुम , मेरी बहन ,,, मेरे सामने ,,,इतना कहकर सावित्री सीमा के गले लग गई और दोनों की आँखों से अश्रुधारा बह निकली। काफ़ी देर तक दोनों एक दूसरे के गले लगकर रोती रही , मन हल्का होने के बाद दोनों अलग हुई ।
सीमा मुझे माफ़ कर दें , मैंने तेरा बहुत दिल दुखाया ,तुझसे अपने घर तक नहीं मिली। सावित्री ने पश्चाताप के स्वर में सीमा देवी से कहा।
सीमा देवी ने सावित्री का हाथ थाम लिया और बोली कि मेरे मन में तेरे लिए कोई मैल या ग़ुस्सा नहीं है , मैं तेरी जगह होती और मेरी ससुराल में रिश्ते की बात होती तो शायद मैं भी यही करती।
लेकिन ये बता आज तू कैसे आ गई , तेरी नाराज़गी कैसे ख़त्म हो गई।
सीमा, आज सुलक्षणा ने सारे परिवार के सामने सच बताया है कि जिस दिन उसका रिश्ता नीलेश से तय हुआ था उसने मेरे मोबाइल से नीलेश का नंबर निकाल कर उसे इस रिश्ते के लिए न कहने को कहा था क्योंकि वो किसी और से प्यार करती थी और उसी से शादी करना चाहती थी।
नीलेश तो अपनी माँ की ख़ुशी और इज़्ज़त के लिए राधिका से शादी करने को न कह चुका था लेकिन सुलक्षणा की बात सुनकर उसने राधिका से शादी कर ली और सुलक्षणा पर कोई बात नहीं आने दी।
ये सुनकर मुझे बहुत आत्मग्लानि हुई कि नीलेश मेरे घर की बेटी का मान रखकर ख़ुद बुरा बन गया और इस सबमें मैंने तुझसे भी रिश्ता तोड़ लिया जबकि तेरी कोई गलती भी नहीं थी।
और आज उसी आत्मगलानि में मैं तेरे पास आई हूँ ,मुझे माफ़ कर दे और जो रिश्तों की डोरी मैंने तोड़ी उसे फिर से जोड़ दें।
सीमा देवी ने एक बार फिर सावित्री को गले लगा लिया।
सावित्री ने राधिका से भी माफ़ी मांगी और उसे जी भर कर आशीर्वाद दिया।
ये सब देखकर सभी की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए हुए सब एक साथ कह उठे कि बस कभी भी ये *रिश्तों की डोरी टूटे न*। …
लेखिका : शनाया अहम
प्रतियोगिता कहानी……*रिश्तों की डोरी टूटे न*। …