रिश्तों की अहमियत – गौरी भारद्वाज: Moral stories in hindi

 प्रीति का  सिर दर्द से फटा जा रहा था और आंखें रो-रो कर लाल हो चुकी थी। पर उसकी पड़ी किसे थी? सब अपने-अपने काम में व्यस्त थे। जेठ जेठानी, ननद ननदोई सब अपने अपने घर जाने की तैयारी कर रहे थे। 

“तुम्हें तो मेरे माता पिता की सेवा के लिए लाया गया है, उससे ज्यादा तुम्हारा मेरा कोई रिश्ता नहीं ” 

मोनू के ये शब्द अभी भी प्रीति के कानों में गूंज रहे थे। ऐसे लग रहा था कि ये शब्द उसके खिलाफ साजिश कर रहे हो। बार-बार उसके दिमाग में घूम-घूम कर उसे हथौड़े मार रहे हो।

पति मोनू अभी थोड़ी देर पहले ही यहां से रवाना हुए हैं। इतने में ननद सुनीता कमरे में आई और उससे बोली, 

“भाभी कब तक ये आंसू बहाती रहोगी। भाई तो सीधा सीधा जवाब दे गया कि वो तो तुम्हें मां बाप की सेवा के लिए लाया है। तो अपना फर्ज निभाओ। जब तक मां पापा है तब तक ही तुम यहाँ पर हो। उसके बाद तो भैया तुम्हें अपने साथ ले ही जाएंगे”

इतने में जेठानी कोमल भी कमरे में आ गई। और आते ही बोली,

” अरे! हम लोग जा रहे हैं, कम से कम मुस्कुराते हुए चेहरे से विदा कर दो। क्यों बेवजह कि मनहुसियत फैला रही हो। 

पति बाहर कमाने ही तो गया है। वापस लौट कर भी आ जाएगा। और कमाएगा नहीं तो तुम लोगों को खिलाएगा क्या? जो बेवजह का तमाशा कर रही हो। कोई पहली बार तो गया नहीं है, जो इतना नाटक कर रही हो”

लेकिन प्रीति अपने पलंग से उठकर खड़ी भी नहीं हुई। सबको लग रहा था जैसे उसे कुछ पता ही ना हो। तब तक सासू मां सुशीला जी भी कमरे में आ गई।  आते ही गुस्से में बोली,

“अरे, ये क्या रोनी सूरत बना रखी है। अब पति कमाने भी नहीं जाएगा क्या? चुपचाप से उठ और इन दोनों को भी खुशी-खुशी रवाना कर”

आखिर प्रीति नहीं उठी तो ये देखकर तीनों तमतमाती हुई खुद ही बाहर आ गई। ननद और जेठानी तो अपना-अपना सामान उठाकर अपने-अपने पतियों की गाड़ियों में जाकर बैठ गई। थोड़ी देर बाद दोनों कारों के वहां से रवाना होने की आवाज आई। इधर सुशीला जी भी दरवाजा बंद कर कमरे में आई और प्रीति को डांटने लगी,

” ये क्या नाटक लगा रखा है बहू। घर में बच्चे आए थे, तुमने उनसे ठीक से बात तक नहीं की। और अजीब जिद लगा कर बैठी हुई हो कि पति के साथ जाना है। 

अरे पूरी जिंदगी उसी के साथ तो रहना है तुझे। कुछ दिन हमारी सेवा कर लेगी तो कुछ बिगाड़ नहीं जाएगा तेरा। अब चुपचाप उठ। और रसोई की सफाई कर दे। पूरी रसोई बिखरी पड़ी है”

“आजकल की बहूओं को तो सास ससुर की सेवा करते ही रोना आता है। ना खुद सेवा करती है, ना अपने पति को ही करने देती है। मुंह उठा कर कह देती है कि पति के साथ रहना है। जैसे पति के अलावा कोई है ही नहीं। परिवार तो जाए भाड़ में इनकी बला से” 

कहती कहती सुशीला जी भी कमरे के बाहर निकल गई। प्रीति वही पलंग पर बैठी बैठी सुशीला जी की बड़बड़ाहट आंसुओं के साथ सुनती रही।

एक साल हो चुका है उसकी शादी को। घर के सबसे छोटे बेटे मोनू की पत्नी बनकर वो इस घर में आई थी। ये शादी मोनू के पिता भवानी प्रसाद जी ने करवाई थी। अच्छा खासा रुतबा था उनका। पैसों से नहीं बल्कि नाम से। पैसा इतना ही था कि उन्हें उच्च मध्यम वर्गीय कह सकते थे। 

उन्होंने अपनी ईमानदारी से जिंदगी में नाम तो बहुत कमाया पर उनके बच्चों को उनकी कद्र कभी नहीं थी। कभी उनके मान सम्मान का उन्होंने कभी ध्यान नहीं रखा। बच्चे तो ऐसे थे ही, बड़ी बहू कोमल भी ऐसी ही थी। पर वो तो अपने पति के साथ दूसरे शहर में रहती थी। ऊपर से पत्नी सुशीला जी किसी की कोई इज्जत नहीं करती थी। जो मुंह में आता वही बोल देती।

प्रीति भवानी प्रसाद जी के दोस्त की बेटी थी, जो मध्यवर्गीय परिवार से थी। बिन मां की बेटी होने के बावजूद भी उसमें संस्कार पूरे थे। परिवार को परिवार समझ कर चलती थी। और उसकी यही आदत भवानी प्रसाद जी को बहुत पसंद आ गई। 

हालांकि प्रीति को इस घर में कोई भी बहू बनाकर लाना नहीं चाहता था। पर भवानी प्रसाद जी के सामने कोई कुछ बोल नहीं पाया। और  इस घर की बहू बनकर आ गई। लेकिन अब भवानी प्रसाद जी के बिस्तर पकड़ने के बाद प्रीति की कोई इज्जत भी नहीं रही। तानों की बोछार भी अब तेज हो चुकी थी। पर बिस्तर पर पड़े पड़े उसकी हालत देखकर उन्हें दुख होता था। 

इधर अपने कमरे में पड़े-पड़े भवानी प्रसाद जी भी आंसू बहा रहे थे। 

लेकिन क्या ही कर सकते थे। परिवार वालों को तो मौका मिल चुका था अपनी जबान खोलने का। सचमुच उन्होंने तो अपनी मर्जी थोपकर प्रीति की शादी करवा दी। पर ये शादी न होकर प्रीति की बर्बादी ही रही और कुछ भी नहीं। 

क्योंकि नौकरी तो मोनू इस शहर में भी कर सकता था पर उसने जानबूझकर ट्रांसफर कर लिया। मोनू वहां किसी और लड़की के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा था। उसका नाम सुहानी था। और बहुत जल्द ही उससे शादी करना चाहता था। 

और इसी सिलसिले में वो इस बार यहां आया था। 

भवानी प्रसाद जी से तो मिलने का सिर्फ बहाना था। इसीलिए पूरा परिवार एक साथ यहां इकट्ठा हुआ था। पर जो भी बात हुई बंद कमरे में ही हुई। भवानी प्रसाद जी के सामने ही हुई। 

कितनी अजीब विडंबना थी। फैसला भी उन्हीं के सामने हुआ कि जब भवानी प्रसाद जी की मृत्यु हो जाएगी उसके बाद ये शादी होगी। नहीं तो दुनिया को बोलने का मौका मिल जाएगा। और उससे भी बड़ा कारण था कि अभी तो फ्री की नर्स प्रीति मिली हुई थी। अगर प्रीति चली जाती तो ये सेवा कौन करता?

इसीलिए भवानी प्रसाद जी ने प्रीति को मोनू के साथ जाने के लिए कहा। हालांकि उन्होंने इसका कारण नहीं बताया। नहीं तो प्रीति को दुख होता। लेकिन प्रीति तो ये बात सुन चुकी थी। जब वो लोग कमरे में बात कर रहे थे और प्रीति चाय पकड़ाने के लिए कमरे में आ रही थी। तब उसे ये बातें सुनाई दी थी।

सुनकर उसे रोना तो बहुत आ रहा था। पर अपने आंसुओं को रोक कर वो कमरे में आई थी। जानती थी कि मोनू तो अपनाएगा नहीं। पर बस भवानी प्रसाद जी के कारण प्रीति ने मोनू के साथ जाने की जिद की थी। 

मगर भवानी प्रसाद जी अपने जीते जी कुछ ना कुछ फैसला करके जाना चाहते थे। क्योंकि उन्हें ये पक्का विश्वास हो चुका था कि मोनू प्रीति को रखेगा नहीं। और उनके मरने के बाद प्रीति बेसहारा हो जाने वाली है। क्योंकि उसके पिता की मृत्यु तो उसकी शादी के कुछ महीने बाद ही हो चुकी थी।

इसलिए दो दिन बाद ही उन्होंने प्रीति को कहकर अपने किसी दोस्त को फोन किया और उन्हें घर बुला लिया। लेकिन घर में किसी को भी नहीं पता था कि उन्होने अपने दोस्त को बुलाया क्यों है? यहां तक कि प्रीति को भी नहीं पता था। हालाकि उन्होंने प्रीति से ये जरूर कहा था कि अपना हक बिल्कुल मत छोड़ना। तब प्रीति को कुछ भी समझ नहीं आया था।

एक महीने बाद भवानी प्रसाद जी इस दुनिया से कुच कर गए। तब सारे परिवार के लोग वापस एकत्रित हुए। इस बार मोनू के साथ सुहानी भी आई थी। हालांकि रिश्तेदारों में उसने अपनी दोस्त बता कर ही उसकी पहचान कराई थी। 

जब सारा क्रिया का कार्य हो गया तो पूरा परिवार बाहर कमरे में एकत्रित था। उस समय प्रीति रसोई में काम कर रही थी। तब सुशीला जी ने प्रीति को बुलाया। जब प्रीति रसोई से निकल कर बाहर आई तो मोनू ने कुछ पेपर्स उसके सामने रखते हुए कहा,

” देखो प्रीति मैं तुम्हें पहले भी कह चुका हूं कि तुम्हें इस घर में सिर्फ और सिर्फ मेरे माता-पिता की सेवा के लिए लाया गया है। इससे ज्यादा मेरा कोई तुम्हारे साथ रिश्ता नहीं। अब मैं तुम्हें किसी अंधेरे में नहीं रखना चाहता। तुम्हें यहां रहना है आराम से रहो। क्योंकि तुम्हारा अपना कोई घर नहीं। तुम्हारा खर्चा भी हम उठा लेंगे। यहां रहकर मेरी मां की सेवा करो। 

पर अब मैं सुहानी के साथ शादी कर रहा हूं। इसलिए इन तलाक के पेपर्स पर साइन कर दो”

प्रीति ये सुनकर हक्की बक्की सी खड़ी रह गई। जानती थी कि ये होगा, लेकिन इतनी जल्दी होगा इसकी उम्मीद नहीं थी। इतने में भवानी प्रसाद जी का दोस्त वहां एक वकील के साथ आ गया। तो सब लोगों ने बातचीत का मुद्दा बदल दिया। वहां बैठते ही उसने कुछ पेपर्स निकाले और वकील को देते हुए बोले,

” ये वसीयत भवानी प्रसाद जी ने बनवाई थी अभी एक महीने पहले। वकील साहब जरा पढ़ दीजिए और सबको भवानी प्रसाद जी के साइन भी दिखा दीजिए”

उनकी बात सुनते ही सब लोग एक दूसरे की शक्ल देखने लगे और सुशीला जी बोली,

”  तो आप उस दिन वसीयत के लिए यहां आए थे?”

” जी भाभी जी “

” पर आपने तो मुझे बताया ही नहीं?”

” कैसे पता चलता आपको भाभी जी? आप भाई साहब के बिस्तर पकड़ने के बाद बैठी कब उनके पास। प्रीति के अलावा तो कोई उनसे बात करने उनके पास आता तक नहीं था”

उनकी बात सुनकर सुशीला जी ने मुंह बिगाड़ लिया,

” ठीक है, पढ़ो। वैसे भी जानती हूं प्रॉपर्टी तो हम ही लोगों में बँटनी है” 

वकील साहब ने वसीयत खोली तो सब लोग साँस थामे उसे सुनने को तैयार हो गए। आखिर सब जानना चाहते थे कि उनके हिस्से में कितना क्या आया है। तभी वकील साहब ने पढ़ना शुरू किया,

” मैं भवानी प्रसाद अपने पूरे होशो हवास में यह वसीयत तैयार करवा रहा हूं। इस वसीयत के अनुसार मैं अपने तीनों बच्चों को इस प्रॉपर्टी से बेदखल करता हूँ। क्योंकि जीते जी उन्होंने कभी भी मेरा मान सम्मान नहीं रखा। मेरी अहमियत नहीं समझी, वही इस प्रॉपर्टी के दो हिस्से होंगे। एक हिस्सा मेरी पत्नी सुशीला को दिया जाएगा, जिससे वो अपने बुढ़ापे में अपने बच्चों पर मोहताज ना हो। और दूसरा हिस्सा मेरी छोटी बहू प्रीति के नाम कर रहा हूँ। उस बच्ची ने मेरे बच्चों से बढ़कर मेरी सेवा की है, तो वो इस हिस्से की पूर्णतया हकदार है”

सुनकर सब लोग सकते में आ गए। 

” अरे ऐसे कैसे प्रॉपर्टी से बेदखल कर सकते हैं पापा हमें? हम उनके बच्चे हैं। हमारा पूरा हक है इस प्रॉपर्टी पर। हम कोर्ट में जाएंगे”

ननद मंजू तिलमिलाते हुए बोली।

” आपको कहीं भी जाना है आप लोग जाइए। वसीयत भवानी प्रसाद जी ने खुद बनवाई थी। कोई भी कोर्ट इस वसीयत के विरुद्ध जाकर के आपको आपका हक नहीं दिलवा सकता”

वकील ने कहा।

वकील ने जरूरी कागजात सुषमा जी को दिए और कुछ जरूरी कागजात जो की प्रीति के नाम थे अपने साथ लेकर रवाना हो गए। ये कहकर कि ये पेपर्स बाद में हमसे ले लीजिएगा। आपको अभी पेपर्स नहीं दिए जाएंगे। भवानी प्रसाद जी का हम से यही अनुरोध था। उनके जाते ही घर में हंगामा शुरू हो गया,

” देखा सेवा के बहाने प्रॉपर्टी अपने नाम करवा ली इसने। इतना बड़ा धोखा किया हमारे साथ” 

जेठानी कोमल बोली।

” क्यों री, यही बातें करने जा बैठती थी तू उनके पास। मेरे बच्चों का हक छीन रही है। शराफत से इनका हक वापस कर दे। तेरा इस प्रॉपर्टी में कोई हिस्सा नहीं है” 

सुशीला  जी बोली। 

” हां प्रीति, वो प्रॉपर्टी तुम वापस करो। और तलाक के पेपर पर साइन करो। बस बहुत हो गया। हम मानते हैं कि तुम्हारे पास कुछ नहीं है। इसीलिए ऑफर कर रहा हूं कि यहां रहकर मां की सेवा कर लेना। हम तुम्हारा खर्चा उठा लेंगे”

मोनू ने बड़ी बेशर्मी से कहा। उसकी बात सुनकर प्रीति को गुस्सा आ गया,

” मैंने तुमसे शादी की है, तुम्हारी मां को गोद नहीं लिया है। 

 

जो तुम ये बात कह रहे हो। और किस हक से कह रहे हो कि मेरे पास अब कुछ नहीं है। मेरे पास इस प्रॉपर्टी का आधा हिस्सा मौजूद है। पापा जी ने कहा भी था कि अपना हक बिल्कुल मत छोड़ना। तो उसे मैं बिल्कुल नहीं छोडूंगी। मैं अपना भला बुरा खुद देख लूंगी”

” अच्छा! तो तू यहां से मेरे बच्चों का हक लेकर जाना चाहती है। ऐसा तो मैं होने नहीं दूंगी”

सुशीला जी बीच में ही बोली।

” क्यों माँ जी, बिन सेवा के मेवा चाहिए आपके बच्चों को। कभी अपने पिता का मान सम्मान तो किया नहीं इन लोगों ने। उन्हीं के सामने बैठकर उनकी ही मौत की बात कर रहे थे। आपको क्या लगता है उस दिन आप लोगों ने वो बंद कमरे में उनके सामने जो बातें की, वो मुझे सुनाई नहीं दी। वकील साहब कह चुके हैं कि आपको जिस कोर्ट में जाना है, आप वहां जाइए। और रही बात मेरी, तो फिलहाल मैं यहां से जा रही हूं। और रही बात तलाक की। तो जब तक आधी प्रॉपर्टी मेरे नाम नहीं हो जाएगी, तब तक तो मैं तलाक भी नहीं दूंगी”

कहकर प्रीति उस घर से निकल गई। उसके इस रवैये से सब लोग हैरान रह गए। कहाँ तो सब उसे सीधी-सादी गाय समझ रहे थे। और कहाँ वो इतनी तेज तर्रार निकली।

वहां से निकलकर प्रीति सीधे भवानी प्रसाद जी के दोस्त के यहां गई। कुछ दिनों बाद जब प्रॉपर्टी का आधा हिस्सा उसे मिल गया। उसके बाद ही उसने तलाक के पेपर पर साइन किये। एक छोटा सा फ्लैट खरीद कर उसी में रहने चली गई। साथ ही अब जाॅब भी करने लगी थी और आत्मनिर्भर हो चुकी थी। 

लेकिन यहां सुशीला जी बिल्कुल अकेली रह गई क्योंकि प्रीति को तो उन्होंने कभी बहु की अहमियत से देखा ही नहीं था

और कोई भी बेटा उनकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं था। 

 

स्वरचित 

✍️गौरी भारद्वाज ✍️

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