रिश्तो का ताना-बाना – डॉ सरिता सिंह Moral Stories in Hindi

पहले जन्मदिन पर क्षितिज तोतली जबान से .. शंख बजते ही बार-बार दोनों हाथ उठाकर जय भोलेनाथ कर रहा था.. मोहन और देवकी ने पंडित जी के पैर छुए तो वह भी पंडित जी के पैर छूने लगा मोहन और देवकी ने आगे बढ़कर अपने सभी बड़ों बुजुर्गों के पैर छुए साथ-साथ में क्षितिज भी जा जाकर सबके पैर छू रहा था

पंडित जी यह सब देखकर मोहित हुए जा रहे थे जाते-जाते उन्होंने क्षितिज को आशीर्वाद दिया और कहा कि पूत के पांव पालने में…. एक दिन यह बहुत बड़ा आदमी बनेगा और साथ ही साथ बहुत महान… इसकी ख्याति दूर-दूर तक जाएंगी… लेकिन एक समस्या है… अच्छा सभी लोग खुश रहे प्रसन्न मंगल रहे…. हम फिर आते हैं यह कहकर पंडित जी अपने घर को प्रस्थान कर लिया…

धीरे-धीरे समय बिता चला गया जन्मदिन का पांचवा वर्ष आ गया बड़े धूमधाम से जन्मदिन मनाया गया… अब उसका  एडमिशन भी हो चुका था…..

खेलकूद में और कई प्रकार की गतिविधियों में खूब सारे मेडल मिले… यह तो अभी पहले पायदान थी.. जन्मदिन का पांचवा वर्ष सब बहुत खुश थे.. पंडित जी जब घर पर आए तो उन्होंने क्षितिज के सर पर हाथ रखते हुए कहा कि “यथा नाम तथा गुण”एक दिन दुनिया की क्षितिज पर राज करेगा…… बस एक समस्या है… फिर सब लोग खाने-पीने में व्यस्त हो गए

लेकिन मां के दिमाग से वह बात है नहीं रही थी कि आखिर पंडित जी बार-बार समस्या वाली बात क्यों कहते हैं पहली बार जब उन्होंने की तो लगा कि शायद मजाक है…. जन्मदिन के बाद जब सब लोग चले गए तो अगले दिन पंडित जी को फोन किया और उनसे घर पर बुलाकर पूछा कि आप बार-बार यह समस्या की बात क्यों कहते हैं और इस समस्या का समाधान कैसे निकलेगा…. पंडित जी ने बताया कि हर 5 वर्ष में पूजा करवाते रहिये…

पंडित जी ने बताया कि इनकी कुंडली में लिखा हुआ है कि आपकी मां से आपकी नहीं बनेगी और आपके जीवन में मातृ पक्ष से दुख मिलेगा….. यह बात देवकी को बहुत बुरी लगी….. क्षितिज बहुत कठिनाइयों से पैदा हुआ था लोगों को मालूम भी नहीं कि वह रिस्क प्रेगनेंसी से हुआ पैदा हुआ डॉक्टर ने जवाब दे दिया था…. मा बच्चा में से एक बचेगा …

देवकी ने कहा की कोई बात नहीं मुझे एक बार मां बनने का चाहिए… मैं कोई भी रिस्क लेने को तैयार हूं जिंदगी एक बार मिली है मैं… बांझ बनाकर जीवन नहीं जीना चाहती…. ईश्वर का चमत्कार कहिए कि दोनों ही स्वस्थ हुए….. इसीलिए वह क्षितिज को एक छींक भी नहीं आने देती…. पंडित जी ने यह कैसे कह दिया मां उसकी प्रगति में बाधक बन सकती है,?

उम्र के 10 में साल में जब वह कक्षा 5 में था तो उसने खेल में अपना नाम लिख लिया…. वह रेस में भाग लेना चाहता था… मां को डर था कि कहीं चोट न लग जाए

।। चुपचाप जाकर मा ने उसका खेल से नाम कटवा दिया.. 14 साल का हुआ तो पहली बार बच्चों के साथ एक एजुकेशनल टूर जा रहा था जिसमें बच्चे और टीचर जा रहे थे लेकिन मां उसे इतना प्रेम करती थी कि उसने उसे टूर के लिए मना कर दिया अंतिम में क्षितिज को बहुत गुस्सा आया तो वह भी अपना सामान पैक करके साथ में चली गई……

सब बच्चे उसे पर हंसने लगे कुछ दिन बाद उसका स्कूल में मन नहीं लगा उसे स्कूल से निकाल कर दूसरे स्कूल में दाखिला कर दिया गया….. मां चाहती थी वह पढ़ाई करके डॉक्टर बने लेकिन क्षितिज… बीसीए करना चाहता था……

मां के कहने पर जबरदस्ती एक बार मेडिकल परीक्षा , मैं बैठा और परीक्षा पास कर ली लेकिन उत्तर प्रदेश में खाली होने के कारण. बाहर की सीट मिल रही थी.. बड़ी मुश्किल से न नुकर करने के बाद…. दिल्ली पढ़ने चला गया….. मां को यह चिंता खाए जा रही थी कब वह वापस आएगा…. वह पढ़ाई तो पूरी करके आ गया लेकिन फिर इंटर्नशिप के लिए बाहर गया

और इसलिए अमेरिका जाने की इच्छा थी कि वहां पर जाकर मेडिकल में रिसर्च करें और जाकर वहीं  सेटल हो जाए….. देवकी ने फिर से पंडित जी को बुलाया और घर में हवन पूजा हुई क्योंकि पंडित जी ने कहा था कि हर 5 वर्ष में पूजा होती रहेगी तो सब ठीक रहेगा लेकिन…. देवकी अपना पुत्र मोहछोड़ नहीं पा रही …. और पंडित जी ने बातों बातों में बचपन वाली उसे बात का जिक्र कर दिया

उससे क्षितिज के मन में यह डर बैठ गया था कि कहीं सच में तो नहीं मेरे जीवन में मेरी मां बाधक है.. कुछ और करना चाहता था मां ने यह जानते हुए की विज्ञान में मेरी रुचि नहीं है जबरदस्ती मुझे मेडिकल प्रोफेशन में धकेल दिया…. मैं आज यह जानकर ही रहूंगा कि वह ऐसा क्यों कर रही है…. क्षितिज देवकी के पास गया और बोला, बचपन से मुझे कभी भी दौड़ भाग का खेल नहीं खेलने दिया

वरना आज स्पोर्ट्समैन होता …. बीसीए नही करने दिया वरना मैं इंजीनियर होता….. आज मैं डॉक्टर भी बन गया हूं तो मुझे बाहर नहीं जाने दे रही है…. मां डॉक्टर में ऐसा क्या रखा है?…पैसा ही तो कमाना है बीसीए करके मैं लाखों करोड़ों कमा सकता था…. बातें ठीक है बेटा लेकिन पैसे से तू किसी का जीवन नहीं बचा सकता…… और मां यह कहकर रोने लगी….

एक दिन तुझे एहसास होगा बेटा….यह सारी बातें उसने अपने दोस्त डॉक्टर विवेक से कही …. विवेक बोला दोस्त क्यों परेशान होता है जितना इस सब चक्कर में पड़ेगा उतना लाइफ खराब हो जाएगी अब तो वह लोग अपना जीवन जी चुके अब तो बच्चा नहीं है अपनी जिंदगी जी ले,….. शहर में ही अपना दवाखाना खोल लिया और इसी सोच में कि उसे जीवन में अपने मां का कुछ नहीं मिला

उसने अपने आप को अकेला कर लिया….. रात देर तक मरीज देख फिर… अपनी दुनिया में मस्त रहता दोस्तों के साथ पार्टी करना… यही उसकी दिनचर्या बन गई थी कुछ दिन में मां की अचानक तबीयत खराब है और बहुत उपचार के बाद भी वह नहीं बची क्योंकि मां को गर्भाशय का कैंसर था….. मरते मरते मां ने कहा कि बेटा मैं तुझे सिर्फ इसीलिए डॉक्टर बनना चाहती थी

ताकि तू मेरे जैसे मां बहन बेटियों की जान बचा सके…..इस घटना से क्षितिज बहुत दुखी हुआ….. क्योंकि वह मां की कैंसर से हुई इसीलिए वह कैंसर का रिसर्च करने लगा और  कैंसर पर रिसर्च  क्षितिज  कैंसर रोग का बहुत बड़ा डॉक्टर बन गया…. जब वह किसी महिला का इलाज करता है तो उसको अपनी मां की याद आ जाती….. उसने जीवन का एक लक्ष्य बनाया

कि कैंसर का निशुल्क उपचार करेगा…. चिकित्सा और अनुसंधान के क्षेत्र में उसे अनेकों पुरस्कार मिले…. मां के नाम से खुले हुए अस्पताल देव की कैंसर मेमोरियल ट्रस्ट….. देश की सरकार ने किस राष्ट्रीय चिकित्सा सेवा सम्मान से सम्मानित किया…. इस मौके पर उसे बहुत सारे दोस्त बधाई देने आए  एमसीए बीसीए करके बड़ी कंपनियों में मैनेजर या बड़ी कंपनियों के मालिक हैं

उन सब का रुतबा देखकर जहा कभी मन भारी होता था…. आज इसको अपने चिकित्सक होने पर गर्व हो रहा था…….

#रिश्तो की डोरी टूटे ना 

डॉ सरिता सिंह

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