मम्मी! बार बार फोन करके मुझे परेशान मत किया करें! नम्रता जी का बेटा अमन लंदन से फोन करके कह रहा था”आप आधा घर किराए पर दे दें आपकी सिक्युरिटी भी रहेगी और महीने के पैसे भी आते रहेंगे! और सर्वेंट क्वार्टर में एक फैमली वाले को रख लो जिससे आपको डामेस्टिक हैल्प भी हो जाएगी मैं बार बार भाग कर कहां आता फिरूंगा मुझे और भी बहुत काम हैं?और उसने खट् से फोन बंद कर दिया।
नम्रता जी हैलो हैलो कहती रह गई। आंखों में आंसू भरकर वे खिड़की के पास आकर बरसों पुरानी यादों की पोटली खोलकर बैठ गई! रह रहकर उन्हें वे दिन याद आने लगे जब वे नई नई दुल्हन बनकर कैलाश जी के नौकरी में मिले छोटे से फ्लैट में आई थीं।
नई शादी नया घर सबकुछ नया,बड़े चाव से घर सजाने में ब्याह के खुमार में किसी दूसरे की जगह ही कहाँ थी।दोनों अपनी छोटी सी दुनिया में खुश थे।
नम्रता की मां मीना जी अमीर बाप की इकलौती बेटी धमंडी और खुदगर्ज लेडी थीं जिनके लिए पैसा ही सबकुछ था रिश्ते नाते उनके लिए मायने नहीं रखते थे दिखावा उनकी रग-रग में समाया था। आए दिन नम्रता और कैलाश जी की ज़िंदगी में दखल दिये बिना उनका खाना हजम नहीं होता था।
नम्रता के पिता का देहांत होने पर मीना और नम्रता के कहने पर कैलाश जी अपना काम छोड़कर उन्हीं के बिजनेस में लग घर दामाद बन गए। उनकी हालत धोबी के कुत्ते सी हो गई जो ना घर का ना घाट का रहा।
मीना हर वक्त कैलाश जी को उनकी हैसियत का ताना देकर उन्हें छोटे होने का ऐहसास कराने से नहीं चूकतीं!
कैलाश जी के परिवार में बस एक बड़े भाई और विधवा मां थी!
कभी-कभार अगर वो लोग कभी कैलाश को मिलने आ जाते तो मीना अपने व्यंगों के ऐसे बाण चलातीं कि उन्हें अगले दिन ही वहाँ से जाना पड़ता!
नम्रता भी यहाँ आकर अपनी मां के रंग में रंगने लगी थी अगर कभी कैलाश उनसे मिलने जाना चाहते तो नम्रता कलह करती।
कैलाश जी का तो अपना अस्तित्व और आत्मसम्मान जैसे खत्म ही हो गया था जैसे।
वे गुमसुम मशीन की तरह हो कर रह गए।
बेइज्जती सहने की बजाए उन्होनें अपनी मां और भाई से मिलना ही छोड़ दिया।
नम्रता का बेटा अमन पैदा हुआ तो कैलाश जी की मां पोता देखने का लोभ संवरण ना कर पाई! बच्चे के कपड़े-खिलौने लेकर वे चली आईं
मीना ने उस सामान को लेकर भी खूब ताने दिये और उनके सामने ही सारा सामान काम वाली को पकड़ा दिया!
मां भारी मन से लौट गई।
अमन बड़ा होता गया पर मीना और नम्रता ने उसे नानी और ननिहाल का ही पाठ पढ़ाया!
दादी-बुआ-ताऊ-चाचा ददिहाल क्या होता है सबसे दूर रखा।
ऐसे माहौल में अमन बचपन से ही इकलखोरा हो गया उसकी आँखों पर भी पैसों की पट्टी बंध गई! रिश्ते क्या होते हैं उसे बताया ही नहीं गया।
उसकी दादी और बाकी लोगों की बुराइयां मीना ने कूट-कूट कर उसके बाल मन में भर दीं।
उसकी हर जायज-नाजायज मांग को पूरा कर मीना ने उसे स्पाॅईल चाईल्ड बना दिया।
अपने आगे अमन किसी को कुछ नहीं समझता था।उसके बिगडैल रवैये की वजह से कोई उसका दोस्त नहीं बना।
कैलाश जी कभी अमन को समझाने की कोशिश करते तो अमन उल्टा उन्हीं से जबानदराजी करने लगता!उसके मन में यह बात घर कर गई थी कि पापा हर चीज को मना कर देते हैं नानी हर चीज दिला देती है!पापा कंजूस हैं कहकर मीना अमन को कैलाश जी के खिलाफ भड़काने से नहीं चूकतीं।
नम्रता कभी समझाने की कोशिश करती तो मीना उसे भी चुप करा देती कि तुमने दुनिया नहीं देखी!
मीना सबकी जिंदगी पर ऐसी हावी थी क्योंकि वह घर सारा बिजनेस उसी का था। नौकरी छोड़कर कैलाश जी ने तो अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ही ली थी! नम्रता को भी अपने इकलौते होकर सारी जायदाद पाने का लालच तो था ही साथ ही मां के घर में ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीने की ललक भी।
अमन को बड़ा सा डोनेशन देकर लंदन पढ़ने भेज दिया गया।
समय अपनी रफ्तार से चलता रहा! कैलाश जी को अंदर ही अंदर घुटने की वजह से हार्ट अटैक हुआ और वो चल बसे!
और फिर एक दिन मीना जी भी बड़ा सा महल जैसा घर और बिजनेस छोड़कर दुनिया से चली गईं।
अकेला घर नम्रता को काटने को दौड़ता!कोई रिश्तेदार,सगा सम्बंधी था ही नहीं किसी से संबंध रखे ही नहीं थे तो कौन आता कौन खड़ा होता!
अमन लंदन में नौकरी कर रहा था वहीं बस गया था उसने भूले से भी नम्रता को लंदन आने को नहीं कहा!जिस पैसे के दम पर नम्रता और मीना को गुमान था उसके होते हुए भी आज कितनी असहाय थी नम्रता!
आज नम्रता को अपनी “गलती” का ऐहसास हो रहा था भले ही पैसे की कमी थी पर वह कैलाश जी के साथ अपने छोटे से घर में कितनी सुखी और खुश थी।क्यूं अपनी मां की बातों में आकर उसने अपनी सोने सी गृहस्थी में आग लगा ली।
काश उसने अमन को ऐसे संस्कार दिये होते उसे रिश्तों का मूल्य समझाया होता।परिवार के मायने उनकी अहमियत समझाई होती तो वह आज यूं बिल्कुल अकेली ना होती।
नम्रता बार बार कैलाश जी की फोटो के आगे हाथ जोड़कर रो रो कर अपनी इस ब्लंडर के लिए माफी मांग रही थी!पर अब पछताऐ क्या होता है।
कभी कभी पैसे के मद में चूर लोग रिश्तों की अहमियत भूल जाते हैं! उसी परिवेश में उनके बच्चे बड़े होकर संस्कार हीन होकर उन्हें अकेला छोड़ जाते है!जब तक होश आता है बड़ी देर हो चुकती है अपनी गलती का ऐहसास बड़ी देर से होता है और आखिर में पछतावे के सिवा कुछ हाथ नहीं आता।