आज सुबह सुबह सुधा अपने छोटे बेटे अजय की पत्नी सुनीता को ताना देने लगी कि मैंने बड़े अरमान से अपने बेटे अजय की शादी तुमसे की परंतु तुम्हारे पिता ने हमारी हैसियत के अनुसार दहेज नहीं दिया। न जाने सुनीता को इस बात पर क्रोध आ गया और अपनी सास से कह दिया कि मेरे पिता ने तुम्हारे दहेज़ की मांग को पूरा करने के लिए अपना घर तक गिरवी रख दिया था।
अब उनके पास रहने का कोई ठिकाना नहीं है। इस बात पर सुधा जी को गुस्सा आ गया और उन्होंने खाना पीना छोड़ दिया। शाम को जब अजय आया तो सुनीता की शिकायत करने लगी कि तुम्हारी पत्नी मुझसे जबान लड़ाती है।
इस बात को लेकर अजय ने सुनीता की पिटाई कर डाली। सुनीता और अजय में अब बोलचाल बंद हो गई थी। एक दिन सुधा जी की तबियत बहुत ही ज्यादा बिगड़ गई और उन्हें अजय तुरंत ही अस्पताल ले गया। डॉक्टरों ने सारी जांच कर बताया कि इनको ब्लड केंसर है यदि इनको तुरंत खून नहीं दिया गया तो इनका बच पाना संभव नहीं है।
दैवयोग से सुनीता के पिता भी अपने रिश्तेदार से मिलने उसी अस्पताल में आए थे । जब उनको अजय से जानकारी मिली कि सुधा जी को ब्लड केंसर है और उन्हें खून की आवश्यकता है तो उन्होंने डॉक्टर से अपने खून की जांच करने को कहा। उनका खून सुधा जी के खून से मिल गया था। सुधा जी को तुरन्त ही खून चढ़ाया गया और इस तरह से उनकी जान बच गई।
एक सप्ताह बाद सुधा जी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई और वह अपने बेटे अजय के साथ घर पर आ गई। जब उनको पता चला कि सुनीता के पिता ने अपना खून दे कर उनकी जान बचाई है तो उन्हें अपने आप से घृणा हो गई और उसके बाद से उनके स्वभाव में परिवर्तन हो गया।
अब वह समझ गई कि दहेज रिश्तों से अधिक अहमियत नहीं रखता है और वह रिश्तों का मान रखना सीख गई थी।