” समय कितना बदल गया,साथ ही खुशियों के मायने भी “रेवती जी ने उदासी से कहा।
“तुम ठीक कह रही हो, पहले हमारी खुशी परिवार के साथ होती थी, पर आज खुशियाँ भी अपना अर्थ बदल दी, प्रतिस्पर्धा इस कदर बढ़ गई इसमें रिश्ते भी डूब जाते हैं, क्योंकि मैं इतना भारी हो जाता, जिसमें हम की अहमियत खो जाती है “सुधाकर जी ने रेवती के कथन में सहमति जताई..।
रेवती -सुधाकर जी के दो बेटे और एक बेटी, तीनों बच्चे विदेश में.., कहने को सुधाकर जी के परिवार में कोई कमी नहीं थी, बच्चे अच्छे से सेटल हैं, धन -धान्य से भी परिपूर्ण हैं, पर सुधाकर जी को बच्चों के बिना सब व्यर्थ लगता…। लोग उनके घर की मिसाल देते पर विदेश की चकाचौंध के नीचे फैले एकाकीपन का स्याह अंधेरा किसी को न दिखता..।
बाकी दिन तो निकल जाते थे लेकिन त्योहार पर बच्चों का साथ न होना सुधाकर जी और रेवती जी को बहुत खलता, पर करते क्या..बड़े सपने तो उन्होंने ही दिखाये थे, तब ये अकेलापन का आभास कहाँ हुआ ..!!
संयुक्त परिवार के सुधाकर जी नौकरी के सिलसिले में दूसरे शहर तो आ गये पर हर त्योहार पर छुट्टी ले घर भागते थे,क्योंकि त्योहार की खुशी उन्हें अपनों के बीच मिलती थी, बड़ा सा घर, जहाँ ताऊ -चाचा के बच्चों के संग पला -बढ़ा…, भला उनसे दूर कैसे खुशियाँ मना सकता…।
तब रिश्तों में दूरियां नहीं थीं, चचेरे -ममेरे सब भाई -बहन अपने ही होते थे।सबका सुख -दुख सांझे होते थे, बड़े भाई के कपड़े, छोटे भाई बड़े शौक से पहन लेते थे, कुछ भी अपना -पराया नहीं था…।एक कमरे में सारे भाई एक साथ रह शहंशाह महसूस करते थे, जबकि अब महल जैसे घर में सारी सुख -सुविधा होते हुये भी खुश नहीं थे..।
अब संयुक्त परिवार टूट गया,पैसों की अंधी दौड़ में, घर और रिश्ते पीछे छूट गये। एक दूसरे का देखा -देखी परिवार के अधिकांश बच्चे विदेश चले गये, जिन माँ -बाप ने उन्हें पढ़ाने के लिये अपनी जमा -पूंजी भी खर्च करने से गुरेज नहीं किया आज उन्ही बच्चों के पास माँ -बाप के लिये समय नहीं, परिवार मियाँ -बीवी और बच्चे तक सीमित हो गया।
दादा -दादी या नाना -नानी तो ओल्ड फैशन के प्रतीक और बच्चों के विकास में बाधक हो गये डिजिटल वर्ल्ड का जमाना है, फिर परियों और महापुरुषों की कहानी सुन कर बच्चों का विकास कैसे होगा…अब परिवार के बच्चे एक दूसरे से मिल कर खुश नहीं होते, एक का आगे बढ़ जाना दूसरे को बेचैन कर देता .. जहाँ प्रतिस्पर्धा हो वहाँ प्रेम कहाँ….??
आज सुधाकर जी बेचैन थे, रह -रह कर उनको अपना बचपन याद आ रहा… सारे भाई -बहनों से बात किये लंबा समय बीत गया…। अब तो किसी तरह सगे भाई -बहन से रिश्ता निभ रहा…।
“रेवती अगले हफ्ते होली है, मैं सोच रहा, बच्चे तो हैं नहीं, क्यों न हम अपने सारे भाई -बहन को यहाँ बुला, एक बार फिर पहले की होली की मस्ती कर लें…”सुधाकर जी रेवती से कहा..।
“विचार तो अच्छा है, पर रिश्तों पर पड़ी धूल इतनी जल्दी साफ नहीं होगी, कोई नहीं आया तो…?”रेवती जी सोचते हुये कहा।
“प्रयास करने से पहले हार मान लेने वालों में से मैं नहीं हूँ रेवती, एक बार कोशिश करने में क्या जाता..”सुधाकर जी ने कहा…।
अगले दिन सुधाकर जी ने अपने चचेरे और ममेरे भाई -बहनों को होली का निमंत्रण भेज दिया..। अभी तक सब एक दूसरे के यहाँ शादी -ब्याह पर ही जाते थे,त्योहार तो सूने चले जाते थे, होली का निमंत्रण पाते ही, कुछ तो तैयार हो गये लेकिन कुछ का अहम आड़े आ गया।”मैं ज्यादा संपन्न हूँ, मुझे क्या जरूरत जाने की “सोच कुछ नहीं गये…।
होली पर कुछ भाई -बहन आ गये, रेवती और सुधाकर सबके स्वागत करने में व्यस्त थे… चाय पीकर फुफेरे भाई ने कहा “सुधाकर अब हमलोगों के कमरे दिखा दो, थोड़ा आराम कर लेते हैं”
“भैया, हॉल में सारे जेंट्स और बैडरूम्स में लेडीज रह लेंगी “सुधाकर जी उत्साह से बोले।
“पागल हो गया है क्या सुधाकर, तब का जमाना और था अब हमें अलग से एक कमरा चाहिए होगा…”भाई के कथन का अनुमोदन सबने किया…।
कुछ को अपने घर में, और कुछ को होटल में ठहरने की व्यवस्था कर सुधाकर जी किसी तरह होली सेलिब्रेट कर ली, रौनक़ तो थी, पर वो अपनत्व सुविधा में कहीं खो गया..। प्राइवेसी की चाहत सबको अपने में ही सीमित कर दी… पीढ़ी कोई भी हो अब सब समय के अनुसार ढल गये…।
“अब नहीं बुलाऊंगा, किसी को “थोड़ी नाराजगी से सुधाकर जी ने कहा।
“सुधाकर हमने एक आगाज़ किया है, अब पहले वाला समय नहीं है, तो थोड़े बदलाव के साथ खुशियों का आगाज़ करने में बुराई नहीं है, सब की लाइफ स्टाइल बदल गई, जरूरतें बदल गई, इसलिये जो मिला उसी में खुश होने की कोशिश करो “रेवती ने सुधाकर को समझाने का प्रयास किया।
मेहमानों ने जाते समय सुधाकर को धन्यवाद दिया, क्योंकि उनके प्रयास ने सबकी होली रंगीन कर दी…।
“अगले साल मेरे घर पर होली का सेलिब्रेशन होगा “जाते -जाते फुफेरे भाई बोल गये…।
सुधाकर रेवती की बात समझ कर उन्हें अंगूठा दिखा दिया…. चलो एक छोटा सा आगाज़ तो हो ही गया…..।
संगीता त्रिपाठी