रिश्ते तोड़ना आसान जोड़कर रखना मुश्किल क्यों? – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ छोटी देख कनु की शादी तय हो गई है… तुम सब कब आओगी… जल्दी से आ जाना मुझे सहूलियत हो जाएगी।” जेठानी गरिमा के फोन पर ये कहते ही मनस्वी के समझ नहीं आया वो खुशी ज़ाहिर करे या पुरानी बातों को लेकर ना आने का बहाना बनाएं।

देवरानी की चुप्पी से गरिमा ने फिर से जोर देते हुए कहा,” तुम सुन रही हो ना।” 

“ हाँ दीदी सुन रही हूँ…आप सब कुछ एक बार मैसेज करके बता दीजिएगा किस दिन क्या है उस हिसाब से हम आने का देख लेंगे ।” मनस्वी ने कहा और फोन पर औपचारिक बातचीत कर फोन रख दी

शाम को पति अनिकेत के घर आने पर मनस्वी को सूझ ही नहीं रहा था वो बोले तो क्या बोले… पता नही जेठानी जी ने अनिकेत को फोन किया है और नहीं ।

अनिकेत जब फ्रेश होकर आए मनस्वी चाय लेकर आई और वही बैठ गई ।

मनस्वी की चुप्पी देखकर अनिकेत समझ गया कोई बात है जो वो कहना चाहती है ।

“ क्या बात है मनस्वी तुम यूँ चुपचप सी क्यों हो कोई बात हुई है क्या?” 

“ अनिकेत कनु की शादी तय हो गई आपको ये सब बातें पता थी ?” मनस्वी ने सीधा सपाट सा सवाल किया 

“ पूरी बात तो नहीं पर भैया एक बार बोल रहे थे कनु के लिए लड़का देख रहे है.. क्यों क्या हो गया?” 

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“ आज दीदी का फोन आया था… कनु की शादी तय हो गई… सगाई शादी सब आसपास ही रखे हैं हमें पहले से आने के लिए बोल रही है…मैं इस बार शादी में नहीं जाना चाहती आप चले जाना।” कहकर मनस्वी खाली कप लेकर रसोई में चली गई

मनस्वी की ऐसी बातें सुन अनिकेत उसके पीछे पीछे रसोई तक आ गया 

“ ऐसा क्यों बोल रही हो…उनके लिए तो आख़िरी शादी है ना.. अगर हम ही नहीं जाएँगे तो उनके तरफ से अपना कौन होगा।” 

“ मैं आपको कब मना कर रही हूँ… आप जाइए… मैं अपना दिल इतना बड़ा नहीं रख सकती… जहाँ जब जाती हूँ अपशब्द ही सुनने को मिलते हैं… कितना भी कर लो तारीफ तो कोई करेगा नहीं कमियाँ हजार निकाल देते और आपकी भाभी वो कौन सा कम है… मीठे शब्दों से आप फँसते होंगे मैं नहीं ।” मनस्वी पुरानी कड़वी यादों के मकड़जाल से खुद को निकाल ही नहीं पा रही थी 

“मनस्वी जो हो गया सो हो गया… उस बात को पाँच साल हो गए हैं उसके बाद तुमने वहाँ जाना भी छोड़ दिया जब भी जाने की बात होती तुम कोई ना कोई बहाना बना देती थी… अरे भैया भाभी की दो ही बेटियाँ एक की शादी हो गई एक की बची है …चलते हैं तभी तो वो हमारे बच्चों की शादियों में आएँगे ।” अनिकेत समझाते हुए बोला 

“ मेरे बच्चों की शादी में अभी वक्त है… ना आना चाहे तो भी अच्छा पर मुझे जरा भी इच्छा नहीं इस बार शादी में जाने की प्लीज़ मुझे फोर्स मत करो… तुम बच्चों को बुला कर डाइनिंग टेबल पर बैठो मैं खाना लगाती हूँ ।” कह मनस्वी व्यस्त हो गई 

सोने के लिये जब कमरे में गई तो उसे नींद ही नहीं आ रही थी…. ऐसा लग रहा था जैसे कल की ही बात हो…जेठानी की बड़ी बेटी मनु की शादी वो भी घर का पहली शादी मनस्वी पूरे मनोयोग से सब प्रोग्राम में बढ़चढ़कर हिस्सा ले रही थी…पर जेठानी के माँ पता नही क्यों मनस्वी से उसकी शादी के बाद से ही थोड़ा जलन रखती थी

कारण कभी समझ नही पाई पर एक बार महसूस किया कि शायद उसके रहन सहन से उन्हें आपत्ति होती थी उनकी बेटी के आगे मनस्वी उन्हें फूटी आँख ना सुहाती थी…. मनस्वी जब भी वहाँ जाती अपना घर समझ कर सब काम करती थी पर जेठानी की माँ सुना देती मेरी बेटी का घर है उससे पूछ लिया करो वो अक्सर बेटी के घर आती रहती थी …

मनस्वी को तब बुरा लगता था उसके पति की नौकरी थी तबादला होता रहता था इसलिए वो किराए के मकान में रहते थे… मनु की शादी में मनस्वी उसके लिए हीरे का सेट और दामाद के लिए सोने का चेन लेकर गई थी…जब वो ये सब दिखा रही थीं तो मनु का नानी गरिमा से बोली,” ये देख तेरी देवरानी क्या लेकर आई है…इतना पतला चेन … तू भी अच्छे से देख ले ऐसा ही तुझे भी देना होगा ।” 

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गरिमा ने हाथों में लेकर सारे गहने देखे और बोली,” मनस्वी तुम लोग ही उसके दादी घर से बस उसके चाचा चाची हो … लड़के वाले पर प्रभाव पड़ता जरा और अच्छा ले आती… वैसे भी सब ठीक ही कहते हैं चाचा चाची कभी अपने कहाँ होते हैं…. बच्चों के लिए नानी घर के लोग ही अपने होते हैं… उसके मामा मौसी तो बहुत कुछ दे रहे हैं… हमने तो मना भी किया पर कह रहे हमारा भी हक है मनु पर … फिर तो मैं मना नहीं कर पाई….मनु के दादा दादी तो हैं नहीं जो हो तुम लोग ही हो कुछ अच्छा देती तो हम भी तुम्हारे बच्चों को अच्छा ही देते।” 

ये सब सुन कर मनस्वी को धक्का सा लगा… वो तो अपने हिसाब से दोनों पति पत्नी अच्छा सामान ही लेकर आए थे पर जेठानी की माँ की बात सुन जेठानी भी उनकी हाँ में हाँ मिला रही थी । 

मनस्वी यो सब सुन कर रुआँसी होकर एक कोने में जाकर बैठ गई ।

शादी की रस्मों के लिए मनस्वी की खोज हो रही थी गरिमा उसे खोजते हुए वहाँ आई और बोलने लगी,” ये क्या तरीक़ा है मनस्वी… पता तो है इस रस्म को घर की बहुएँ मिल कर करती हैं फिर भी तुम ना तैयार हुई हो ना नीचे आँगन में आई… चलो जल्दी से तैयार हो कर आ जाओ ।”

मनस्वी बुझें मन से रस्में निभाने चली गई… जब भी कभी नेग देने की बात होती जेठानी की माँ ताना देती रहती अरे चाची हो देखो मामी मौसी इतना दे रही तुम बस इतना ही… गरिमा भी इशारों में समझा देती सब देख रहे है लोग क्या कहेंगे और मनस्वी से ज़बरदस्ती करवाया जाता ये कहकर अरे भाई दादी घर से जो नेगाचार है वो तो तुम्हें ही करना .. इन सब से मनस्वी को बहुत धक्का लगा था

जब वो अनिकेत से ये सब बातें कही तो वो बोल कर चुप करवा दिए कि शादी ब्याह में ऐसे मज़ाक़ चलता रहता तुम दिल पर मत लो..  पर मनस्वी को ये बात चुभ गई थी और उसके रिश्ते जेठानी और उनके मायके वालो से टूटने लगे थे वो जेठानी से लगभग ना के बराबर ही बात करती थी इधर बहुत दिनों बाद कनु की शादी को लेकर फोन आया था उसे समझ नही आ रहा था वो फिर से वही सब दोहराने जाए और नहीं ।

“ सो गई क्या?” अनिकेत की आवाज से मनस्वी यथार्थ में लौट आई 

“ नहीं बस सोच रही हूँ क्या करना चाहिए?” 

“ मनस्वी देखो मैं समझ सकता हूँ तुम्हें वो सब बुरा लगा था पर अब उसको गुज़रे हुए वक्त हो गया… भाभी की माँ भी अब बीमार रहने लगी है … हो सकता है इस बार पहले जैसा कुछ ना हो… अभी भैया से ही बात कर रहा था… बोल रहे थे छोटे तुम लोग पहले आ जाना…अब मेरी तबियत भी नासाज़ रहने लगी है तुम रहोगे तो सहारा रहेगा

नहीं तो अकेले सब सँभालना मुश्किल होगा… अब भाई को क्या कहूँ बताओ… जो भी है हम दोनों भाइयों का और है ही कौन… तुम्हें बताया नहीं पर भाभी मुझे हमेशा कहती है मनस्वी के रहने से मुझे बहुत सहारा लगता है एकदम छोटी बहन की तरह सब सँभाल लेती है।” 

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मनस्वी ये सब सुनकर थोड़ा चौंक गई और पता नहीं क्यों दिल से एक आवाज़ आई ,” रिश्ता तोड़ना जितना आसान है उसे  जोड़ कर रखना उतना ही मुश्किल …क्यों ना मुश्किल काम किया जाए ।”

मनस्वी अनिकेत अपने बच्चों के साथ शादी में शामिल होने दो दिन पहले से ही आ गए ।

इस बार मनस्वी के लिए सब कुछ अजीबोग़रीब था… गरिमा की माँ बात बात पर कह रही थी,” अच्छा किया मनस्वी तुम जल्दी आ गई … गरिमा कब से बोल रही थी मेरी छोटी बहन नहीं आएगी तो मैं क्या क्या कैसे सँभालूँगी उसके होने से मुझे साहस मिलता है…देखो दोनों बहन कितने अच्छे से सब रीत व्यवहार कर रही हो… यही सब तो रिश्तों को जोड़ कर रखता है।” इसके साथ ही साथ मनस्वी पर आशीर्वाद की बारिश करती जा रही थी 

गरिमा भी इस बार मनस्वी के लाए चीजों को सबको दिखा दिखा कर कह रही थी अनिकेत और मनस्वी की पसंद वैसे एकदम परफ़ेक्ट होती है ।

मनस्वी को ये सब कुछ समझ नहीं आ रहा था ऐसे अचानक टूटे रिश्ते जुड़ने कैसे लगें 

शादी के बाद जब सब जाने लगे तो गरिमा की  माँ ने मनस्वी से कहा,” बिटिया मनु की शादी में बहुत कुछ बोल गई थी तब अपनी नातिन की शादी की खुशी में बौराई हुई थी वो तो बाद में मेरी बहुओं ने कहा… माँ जी आपको मनस्वी दी को ऐसे नहीं कहना चाहिए था…देखिए वो दोनों एक ही परिवार के लोग है कल को जरूरत पड़ने पर हम काम आए ना आए अनिकेत जी और मनस्वी दी ही गरिमा दीदी से साथ खड़े रहेंगे… परिवार के बीच बोलने से पहले ये ज़रूर देखना चाहिए कि उससे आपकी बेटी का रिश्ता टूटेगा और जुड़ेगा… बस बेटी मैं तब से सोच रही थी जब तुम मिलोगी इस बात की माफी मांग लूँगी ।” कहते हुए गरिमा की माँ की ऑंखें नम हो गईं 

“ हाँ मनस्वी माँ सही कह रही हैं… मैं भी तब तुम्हारे साथ खड़ी नहीं रही पर अब वादा करती हूँ…हमारे बीच अब अपनी माँ को भी बोलने नहीं दूँगी… जो भी है हम तुम हमेशा मिलकर अच्छे से रहेंगे जब तुम्हें जरूरत हो मुझे एक बार बोलना हाजिर हो जाऊँगी ।” पीछे से गरिमा की आवाज़ आई 

मनस्वी निःशब्द हो गई… क्या ही कहती.. जब उसके बिना कुछ कहे सब सही हो रहा था… वो तो ये सोच रही थी अगर वो शादी में नहीं आती तो क्या टूटे रिश्ते फिर से जुड़ पाते??

मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# टूटे रिश्ते फिर से जुड़ने लगे

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