भाई ये तुमने ठीक नहीं किया हमने तो तुम पर भरोसा किया था,हर सुख-दुख में तुम्हारा साथ दिया था ।तुम बड़े भाई थे तुम्हारे हर बात पर विश्वास किया, तुम्हें पिता समान समझा और तुम्ही ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा किया। अरे कुछ ऊपर वाले से भी तो डरो।भाई भाई का रिश्ता तो भगवान ने बनाया होता है
विपत्ति में साथ रहने को।खून के रिश्ते कभी टूटते नहीं है , मां बाप भाई बहन के साथ ऐसा ही रिश्ता होता है । लेकिन आपने तो रिश्ते का कोई लिहाज ही नहीं किया। दिनेश लगातार बोले जा रहा था और बड़ा भाई उमेश और उसकी पत्नी रमा सबकुछ सुन रही थी । फिर अचानक से उमेश ने कहा हां हां ठीक है अब मैं तुम्हारा बोझ नहीं उठा सकता।अपना कोई अलग ठिकाना देख लो ।
उमेश और दिनेश दो भाई थे और उनकी बूढ़ी मां गायत्री देवी थी । उमेश की शादी हो चुकी थी और दो बेटे थे ।और दिनेश की अभी तीन साल पहले शादी हुई थी पिताजी का देहांत हो चुका था ।गांव में घर था वहीं पर सब इकट्ठे रहते थे फिर उमेश अपने बच्चों के पढ़ाई लिखाई के चक्कर में शहर आने का निर्णय लिया और मां और भाई के साथ शहर आ गया और वहीं किराए का मकान लेकर रहने लगे ।
गांव में पिता जी रेहनदारी का काम करते थे जिसमें लोग अपने जेवर रख कर पैसा उधार लेते हैं और जब पैसा चुका देते हैं तो जेवर वापस ले लेते हैं । लेकिन उनमें से कितने लोग जेवर छुड़ा ही नहीं पाते थे और वो दिनेश के पिता जी लालाराम की तिजोरी में इकट्ठे होते रहते थे।इस तरह काफी जेवर इकट्ठे हो गए थे और जब भी जरूरत पड़ती पैसों की जेवर बेचकर पैसे ले आते। दिनेश और उमेश को मैं काम समझ नहीं आया
और फिर बच्चों का भविष्य देखना था तो शहर आने का मन बनाया।घर का सोना चांदी और कुछ नकद पैसे लगाकर उमेश ने अपना काम खोला और फिर दिनेश भी साथ में लग गया । दिनेश की शादी नहीं हुई थी तो फिर शहर में एक अच्छी लड़की देखकर दिनेश की शादी कर दी गई। दिनेश की शादी अच्छे परिवार में हुई थी । काफी अच्छा दहेज मिला था जिससे घर भर गया किसी चीज की जरूरत ही न रही । दोनों भाई सभी सामान का इस्तेमाल करते कोई तेरा मेरा न था।
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दिनेश की भाभी अक्सर बीमार रहती थी दिनेश की बीबी रंजना उनकी खूब सेवा सहाय करती थी।सास भी बूढ़ी थी तो उनकी भी देखभाल रंजना करती थी। दिनेश की शादी को तीन साल हो गए थे लेकिन उसके कोई औलाद नहीं थी । दिनेश और रंजना भतीजों को ही खूब प्यार करते थे।खैर अभी समय नहीं हुआ था शादी के हो सकता है रंजना की गोद भी भर जाए ।सबका हंसी खुशी से समय व्यतीत हो रहा था।
फिर एक दिन उमेश ने कहा दिनेश अब समय आ गया है कि हम दोनों भाई अपना अलग अलग हिसाब किताब कर लें । हमारे बच्चे बड़े हो रहे हैं बड़े घर की जरूरत है घर छोटा पड़ रहा है । दिनेश ऐसा करो कि तउज्ञ मां के साथ अलग घर में रहो और अपना अलग काम धाम देखो। यदि बच्चे पढ़-लिख लेते हैं तो ठीक है नहीं तो हमारे साईं अब हमारे बच्चे काम करेंगे। बहुत कुछ सोचने विचारने के बाद दिनेश ने कहा ठीक है आपको साथ नहीं रखना है तो हम मां को लेकर गांव वाले घर चले जाते हैं ।
पर वो मकान तो हमने बेच दिया ,बेच दिया अब कैसे भइया आपने हमें बताना भी जरूरी नहीं समझा और फिर वो मकान तो मां के नाम पर ही था । मां ने ही तो पेपर पर साइन किए थे । गायत्री देवी बोली हमने कब साइन किए थे और तुमने तो मुझसे पूछा भी नहीं कब साइन करा लिए पेपर पर पता ही न चला। अरे बेटा गांव का मकान तो बाप दादा की निशानी थी और तुमने बिना भाई को बताए और मुझसे पूछे बगैर बेच दिया वाह बेटा वाह ।और जो सोने चांदी के सामान थे वो ,वो मैं ले आया हूं
और मेरे लाकर मे है।वाह भइया वाह कैसे पीठ पर छुरा भोंका है । सबकुछ हड़प लिया और अब कह रहे हो कि अलग घर में रहो। गायत्री देवी बोली तुमने ठीक नहीं किया उमेश तुम सबकुछ अकेले कैसे हड़प सकते हो ।।भाई भाई और परगवउकए लोग विपत्ति में एक दूसरे के सहारा बनते हैं और तुमने तो इतना बड़ा धोखा किया । धोखा क्यों किया हमने मां उमेश बोला दिनेश उसकी बीबी और मां तुम्हें इतने समय से पार रहा हूं ।अब मुझे अपने परिवार की अपने बच्चों की फ़िक्र है अब मैं तुमलोगो का नहीं कर सकता ।अपना दूसरा ठिकाना ढूंढ लो ।
बेटे के इस धोखे से गायत्री देवी को ऐसा झटका लगा कि रात को सोती तो फिर उठी ही नहीं । अंतिम सहारा भी दिनेश का खत्म हो गया।भाई के धोखे से तो परेशान था ही अब मां भी छोड़कर चली गई।अब उमेश बार बार दिनेश को जाने को कहने लगा ।सब रूपया पैसा तो भाई हड़प चुका था अब भाई जाए तो कहां जाएं । फिर दिनेश की पत्नी रंजना ने अपने पिता जी से बात की । रंजना के पिता जी का थोड़ा रूतबा था तो उन्होंने किसी तरह दिनेश की नौकरी लगवा दी और अपने घर के ऊपर वाला हिस्सा रहने को दे दिया और बोले जबतक कोई इंतजाम नहीं होता यह सकते हो ।
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दिनेश सोचने लगा जो अपने थे उन्होंने तो इतना बड़ी धोखा दिया ये भी न सोचा मैं कहां जाऊंगा और एक गैर इंसान जिनसे अभी कुछ साल पहले रिश्ता जुड़ा विपत्ति में आज उन्होंने साथ दिया।
दोस्तों इस तरह के वाक्ए अक्सर सुनने को मिलते हैं । पैसे के मामले में बड़े भाई या छोटे भाई किसी की नीयत खराब हो सकती है। सावधान रहें ।इस तरह भाई बहन के हिस्से का पैसा मार लेना अच्छी बात नहीं है ।इस तरह के पैसे से आपकी बरक्कत नहीं होती। सावधान रहें ऐसे रिश्तों से। कभी भी आंख मूंद कर भरोसा न करें । अपने हक लिए लगे जरूर। लेकिन जब सबकुछ अपने नाम करा लिया तो लग के भी क्या करेंगे।आज के जमाने में ये सच्चाई बनती जा रही है। किसी के प्रति किसी का किया हुआ अहसान कोई याद नहीं रखता।स्वार्थ पहले आगे आ जाता है ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
29 अगस्त