रिश्ते का मान – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

आज प्रताप सिंह जी अकेले पार्क में पड़ी बेंच पर अकेले बैठे थे । अचानक एक ही दिन में बूढ़े नज़र आने लगे थे । आँखों पर लगाया चश्मा उतारा , साथ में लाई बोतल से दो घूँट पानी पिया और एक लंबी गहरी साँस के साथ पीछे सिर टिकाकर आँखें मूँद लीं । 

—- कल यहीं मैं परमजीत के साथ बैठा था । हम दोनों मोटे- थुलथुले शरीर वाले वर्मा का मज़ाक़ बना रहे थे, कहकहे थे और दूसरों के लिए बहुत सी नसीहतें थी ।

—— ओय मोटे , कुछ कसरत- वसरत भी कर लिया कर । किसी दिन ये तोंद फट जाएगी । मुझे देख, कोई कह नहीं सकता कि 75वें साल में हूँ । 

—- क्या करूँ यार ! खाने से खुद को रोक ही नहीं पाता हूँ । चल अब ज़्यादा जी के करूँगा भी क्या ? पर भाई! सचमुच तू हमारे लिए एक उदाहरण है । 

—- परम ! तेरा  भी वजन बढ़ता जा रहा है…….लगता भाभी ने सर्दियों में खूब गाजरपाक और लड्डू खिला दिए ।

और तीनों बचपन के दोस्त कहकहे लगा उठे थे । नर्सरी से लेकर ग्रेजुएशन तक की दोस्ती… बहुत कम लोगों की और विशेष रूप से पुरुषों की ऐसी घनिष्ठ मित्रता कम ही निभती है । प्रताप सिंह और धर्मवीर वर्मा ने तो अपना पुश्तैनी कार्य सँभाल लिया था पर परमजीत सिंह का सपना भारतीय सेना में जाकर देश की सेवा करना थी । जिस दिन उनका चयन हुआ, तीनों दोस्त इसी पार्क में इकट्ठे हुए थे ।

—- परमजीत! तेरा सपना पूरा हो गया, ख़ुशी तो है पर यार , याद रखना हमारी दोस्ती टूटनी नहीं चाहिए ।

—- ए , हरगिज़ नहीं । हम तीनों की दोस्ती मरने के बाद ही समाप्त हो सकती है और हम इतनी आसानी से नहीं जाएँगे । 

सचमुच हुआ भी ऐसा ही….. प्रताप जी और वर्मा तो रोज़ सुबह पार्क में मिलते रहे , जीवन के दुख- सुख साझा करते रहे पर ट्रेनिंग के दौरान परमजीत सिंह के लिए दोस्तों के संपर्क में रहना भी मुश्किल हो गया । जब भी उन्हें समय मिलता वे बात तो करते पर सीमित समय के लिए । 

धीरे-धीरे प्रताप और वर्मा ने सोच लिया कि अब  आजीवन तीनों की दोस्ती की मिसाल एक सपना रह गई है । पर जिस दिन पार्क में परमजीत सिंह की वीडियो कॉल आई तो दोनों की जैसे मन की मुराद पूरी हो गई । 

—— अरे यार ! सेना की नौकरी अनुशासन पर टिकी है । पर अब ऑफिस जाने से पहले का समय मेरा अपना है ।मैंने कहा था ना कि हमारी दोस्ती कभी नहीं टूट सकती । 

बस उसी दिन से तीनों पार्क में सुबह के समय इकट्ठे मिलते , एक – दूसरे को छेड़ते और कहकहे लगाते । वर्मा और परमजीत दो- चार महीने में घूमफिर आते पर  इन सब में प्रताप सिंह जी अपनी दोस्ती को लेकर कुछ ज़्यादा ही जुनूनी थे । कई बार इस बात को लेकर पत्नी के साथ तकरार हो जाती, बच्चे शिकायत करते और उनकी माँ अक्सर समझाती —-

प्रताप, बेटा ! बहू और बच्चों की माँग नाजायज नहीं है । कभी तो उन्हें भी कहीं घुमाने- फिराने ले जा । दोस्ती का मतलब यह थोड़े ही होता है कि कहीं जाओ ना आओ । उन दोनों  दोस्तों के  घर में भी लड़ाई करवाएगा ।

अरे माँ! दिन में घुमा सकता हूँ पर सुबह के समय पर केवल और केवल मेरे मित्रों का हक़ है ।  परम और वर्मा तो पहले ही पत्नियों के सामने चुप रहते हैं अगर मैं उन्हें ना पकड़ूँ तो वे मनमर्ज़ी के मालिक हो जाएँगे । 

पर वे दोनों तो अपने – अपने परिवार के साथ बाहर जाते हैं । हफ़्ता दस दिन बाद फिर मिल लेते हैं , बताओ अगर मैं ग़लत कह रही हूँ तो ? 

दोस्तों के खिलाफ भड़का रही हो मुझे? 

उन्होंने इस बात पर कभी समझौता नहीं किया कि सुबह के वक़्त वे कभी शहर से बाहर रहें । 

प्रताप सिंह जी अपने ख़्यालों में से तब बाहर आए जब उन्होंने अपने कंधे पर किसी के हाथ का स्पर्श महसूस किया—

अंकल ! आप ठीक तो हैं ना ? बहुत देर से देख रहा हूँ आपको …आप यूँ ही बैठे हैं । अंकल , आप तो तीन लोग होते हैं ना रोज़? आज आप अकेले ? 

हाँ बेटा, मैं ठीक हूँ । बस ज़रा कुछ देर बचपन से अब तक के सफ़र पर नज़र डाल रहा था । 

ओके अंकल …. आर यू श्योर? आप ठीक है ? 

इतना सुनकर वे हल्के से मुस्कुराए और घर की तरफ़ चल दिए। 

घर आकर पत्नी से बोले —-राधा ! चलो परमजीत के घर …. दाह- संस्कार ग्यारह बजे का है, शाम को वर्मा को देखने हॉस्पिटल चल पड़ेंगे …. परमजीत का सुनकर इतना बी० पी० बढ़ गया कि आई० सी० यू० में है । 

वर्मा भाई साहब को आप ही समझा सकते हैं…. एक उम्र के बाद आदमी को मानसिक रूप से खुद को हर परिस्थिति के लिए तैयार करना बहुत ज़रूरी होता है । उम्र की ढलती साँझ तो परिपक्वता  और समझदारी का भंडार होती है । 

परमजीत के सभी अंतिम संस्कार पूरे होने के बाद वर्मा को फ़ोन करते हुए प्रताप सिंह जी ने कहा —-

वर्मा , कल भाभी को लेकर जाना अपने साथ पार्क में….. यार ! बच्चों ने टिकट बुक करवा दी है… मैं और राधा जगन्नाथ भगवान के दर्शन करने जा रहे हैं , लौटकर फ़ोन करूँगा । ध्यान रखना अपना । 

दूर कुर्सी पर बैठी पत्नी ने उनकी बात सुनकर कहा —-

बच्चों ने कब टिकट बुक करवाई ? मुझे तो नहीं बताया?

किसी ने भी करवाई हो पर टिकट बुक हो चुकी है । राधा , मुझे लगता था कि अगर मैं एक दिन भी कहीं बाहर चला गया तो परमजीत और वर्मा शायद नियमित रूप से पार्क नहीं आएँगे और धीरे-धीरे हम अपने पारिवारिक जीवन में उलझकर अपनी दोस्ती की मिसाल  को खो बैठेंगे । 

माँ ने कितना समझाया , पर मैं अपने दोस्तों को पकड़े रखना चाहता था । अचानक परमजीत के जाने से मुझे महसूस हुआ कि जीवन में स्वाभाविक रुप से जीना चाहिए…. हर रिश्ते का मान रखना बहुत ज़रूरी है । हर चीज़ एक समय के बाद समाप्त होनी ही है । इसलिए जो समय बचा है मैं उसे भरपूर जीना चाहता हूँ । 

लेखिका : करुणा मलिक

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