“सुनो छवि,मैं किसी काम से बाहर जा रही हूँ तुम दोपहर का खाना बना लेना।”नेहा आर्डर देते हुए बोली।”
“भाभी,मेरे पेट में बहुत दर्द हो रहा है मैं खाना नहीं बना पाऊँगी।” नेहा रुआँसी होकर बोली।
“तुम्हारा तो रोज का ही कुछ न कुछ प्रॉब्लम रहता है…काम के नाम पे कभी सर में दर्द तो कभी पेट में दर्द..कभी पढ़ाई का बहाना।अब और नाटक नहीं चलेगा।चुपचाप जैसा कहा है वैसा कर देना।” संडे का दिन था तो रवि भी घर पर था।बहन को दर्द में देख उससे रहा नहीं गया।नेहा पर गुस्सा होते हुए बोला-“कैसी औरत हो तुम?जो एक औरत का दर्द नहीं समझ पाती।छवि की जगह तुम्हारी बेटी होती तो क्या तुम उसके साथ भी ऐसा व्यवहार करती?”
“बस रवि,आप तो रहने ही दीजिए।पहले आपकी माँ ने बेटी को सर चढ़ा रखा था और अब आप उसे बिगाड़ रहें हैं।”
“कैसी बातें करती हो तुम?छवि बेचारी तो सारा दिन तुम्हारे साथ काम काम में लगी रहती है।कभी उसने किसी काम से मुँह नहीं मोड़ा।और ऐसा कौनसा जरूरी काम है जिसके लिए तुम्हें अभी ही बाहर जाना है।शाम को भी तो जा सकती हो।मैं तुम्हें गाड़ी में ले चलूँगा।”
“मेरी मर्जी मैं जब आऊँ जब जाऊँ।तुम्हें अपनी बहन पे तरस आ रहा है तो तुम बना देना खाना।” नेहा तुनककर बोली और बैग उठाकर मार्केट के लिए निकल पड़ी। अमूमन छवि कभी काम के लिए मना नहीं करती थी पर आज शायद उसे कुछ ज्यादा ही दर्द हो रहा था।नाश्ता भी उसने अच्छे से नहीं किया था।
उसका बस लेटे रहने का मन कर रहा था।भाभी के मुँह से अपने लिए कड़वी बातें सुन उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।रवि उसके सर पे प्यार से हाथ फेरते हुए बोला-“क्यों रो रही है पगली?तेरा भाई है ना तेरे साथ।तेरे हर दर्द को हर लूँगा मैं।बस तू रो नहीं तुझे रोते देख मुझे बहुत तकलीफ होती है।
“छवि और रवि दोनों गले मिलकर रोने लगे।रवि को याद आ गया वो दिन जब माँ आखिरी साँसे ले रही थी..उसके मुँह से यही शब्द निकले थे..नेहा बेटा,अब से इस घर की जिम्मेदारी तेरी है छवि का अपनी बेटी की तरह ख्याल रखना उसे कभी कोई दुख न देना…!!
छवि को माँ बहुत प्यार करती थी।वह उसके कलेजे का टुकड़ा थी।रवि के पिता बहुत जल्दी ही दुनिया छोड़कर चले गए थे।तब रवि तो फिर भी समझदार हो गया था लेकिन छवि बहुत छोटी थी उसे तो पिता का मतलब भी नहीं पता था।रवि और छवि की उम्र में 8 साल का अंतर था।रवि की माँ ने बड़ी मुश्किलों से दोनों बच्चों को पाल पोसकर बड़ा किया।
पति की पेंशन आती थी और उसने घर के ऊपर के पोर्शन को किराए पे चढ़ा दिया था सो उसका भी किराया आ जाता था।इस तरह जैसे तैसे गुजारा हो जाता था।रवि को तो फिर कुछ समय के लिए पिता का साथ व प्यार मिला था पर छवि बेचारी तो पिता के प्यार से वंचित रह गई।
वैसे तो रमा अपने दोनों बच्चों से प्यार करती थी पर छवि से उसके विशेष लगाव था क्योंकि वो बहुत छोटी थी।रवि के एक ही बेटा था इसलिए वो छवि को बेटी की तरह ही मानता था।जब तक सास जिंदा थी तब तक सब ठीक था पर उसके जाने के बाद नेहा को छवि बोझ लगने लगी।वो उसे किसी न किसी बहाने परेशान करती और ताने देती।उसके मन में छवि के लिए सिर्फ और सिर्फ नफरत ही थी।रवि बहुत दुखी होता और नेहा को समझाता पर उसके कानों पर तो जैसे जूं तक नहीं रेंगती।
छवि ने पढ़ाई पूरी कर ली तो रवि ने उसके लिए लड़का देखना शुरू कर दिया।आखिरकार रवि की तलाश खत्म हुई उसे छवि के लिए रोहित जीवनसाथी के रूप में मिल गया।रोहित इंजीनियर था और बड़ी कंपनी में कार्य करता था।घर परिवार भी अच्छा था।छवि की शादी में सबसे ज्यादा खुश नेहा थी।उसे यही लग रहा था कि उसके सर से नंद का बोझ उत्तर गया।छवि के जाने के बाद कुछ दिनों तक तो नेहा खुश रही पर जैसे जैसे समय बीतने लगा उसे घर काटने को दौड़ने लगा।
क्योंकि रवि अपने ऑफिस के कामों में व्यस्त रहते और बेटा अपनी पढ़ाई में।बेशक वो छवि से झगड़ती रहती थी फिर भी कभी कभी उसके साथ इधर उधर की बातें कर लिया करती थी।उसका मूड ठीक होता तो छवि को अपने साथ बाजार भी ले जाती थी।अब तो सारा काम भी उसे खुद ही करना पड़ता था।उसे कहीं न कहीं न छवि की कमी खलने लगी।एक दिन रवि ऑफिस से देर आया तो उसने देखा नेहा उदास सी बैठी थी।वो बोला-“क्या हुआ? चुपचुप कैसे बैठी हो?”
“होना क्या है?आप ऑफिस से देर से आते हो।आपका बेटा कॉलेज से आते ही किताबों में घुस जाता है।मेरे से कोई बात करने वाला ही नहीं होता।सारा दिन अकेले बैठे बैठे बोर हो जाती हूं।छवि थी तो घर में रौनक सी लगती थी अब तो सब सूना सूना लगता है।”नेहा के मुंह से अचानक से छवि का नाम निकल गया तो रवि को बड़ा आश्चर्य हुआ।वो तंज कसते हुए बोला-“जब वो यहां थी तब तो तुम्हें फूटी आंख नहीं भाती थी।सारा दिन उस बेचारी को कोसती रहती थी।मैने और मां ने जिसे नाजों से पाला था उसका तुमने जीना हराम कर रखा था।अब क्यों उसे याद कर रही हो?तुम्हारे लिए तो वो एक बोझ थी।”
“मुझे मेरी गलती का एहसास हो गया है।मैं माँ से किया हुआ वादा निभा नहीं पाई…मैंने अपनी नंद को प्यार कम दुख ज्यादा दिया।उसे बोझ समझकर उससे नफरत करती रही।मुझे माफ कर दीजिए प्लीज।”कहकर नेहा रवि से लिपटकर रोने लगी।तभी छवि का फोन आया -“भैया,हम दोनो कल आपके पास आ रहें हैं।”
“ये तो बहुत खुशी की बात है।कैसी है तू?”
“भैया मैं ठीक हूं।भाभी कैसी हैं?
“ले खुद ही बात कर ले भाभी से।”रवि ने फोन नेहा को दे दिया।
“छवि कैसी है तू?जल्दी से आजा मैं तुझे बहुत मिस कर रही हूं।”नेहा चहकते हुए बोली।
“भाभी,मैं भी आपको बहुत मिस कर रही थी।बस कल पहुंच रही हूं।”
नेहा छवि से मिलकर बहुत खुश हुई।पहली बार उसे लगा जैसे वो अपनी बेटी से मिल रही हो।उसने नंद और नंदोई का खूब अच्छे से स्वागत किया।रवि नेहा का बदला स्वरूप देखकर बहुत खुश हुआ।छवि जितने दिन रही नेहा बहुत खुश थी।जिस दिन वो जाने लगी तो उसके गले मिलकर बहुत रोई।बोली -“छवि,मैने तेरे साथ बहुत बुरा किया मुझे माफ कर दे।मैं अपनी जिम्मेदारियां ठीक से निभा नहीं पाई।पर अब वादा करती हूं कि तुझे इतना प्यार दूंगी कि तेरी आंखों में कभी आंसू नहीं आने पाएंगे।”नेहा की आँखें नम हो गईं। रवि के मुंह से तो बस यही निकला…”देर से ही सही तुम्हें इस बात का एहसास तो हुआ कि रिश्ते बोझ नहीं होते।”
“भाभी,माफी मांगकर मुझे शर्मिंदा न करो।आपको मैने हमेशा अपनी माँ माना है। माँ कभी अपने बच्चों के साथ बुरा नहीं करती।”कहकर छवि ने नेहा को गले से लगा लिया।नेहा के मन में जो नफरत की दीवार खड़ी हो गई थी वो मानो पल भर में ढह गई।
सच जब तक कोई हमारे साथ रहता है तब तक हमें उसकी कदर नहीं होती हम उसे बोझ समझकर उससे बस नफरत करते रहते हैं।पर जब वो हमसे दूर चला जाता है तब उसकी अहमियत पता चलती है।
कमलेश आहूजा