रिश्ते ऐसे भी होते हैं…. – रश्मि प्रकाश : Moral stories in hindi

पूरे दस साल बाद आज रीवा अपने शहर लौट रही थीं। कहाँ तो आख़िरी बार ये सोच कर निकली थी कि फिर यहाँ कभी कदम नहीं रखेंगी ….पर क्या पता था ….समय-चक्र एक बार फिर से उसे वहीं ला कर खड़ा कर देगा जहाँ से निकलने के लिए उसने खुद से कितनी लड़ाइयाँ लड़ी थी। 

शायद वो आज भी ना जाती अगर माँ ने ये नहीं कहा होता कि,”अब अंतिम यात्रा पर जाने वाली रीवा …..अब तो आकर मिल लें।”

ट्रेन की गति के साथ -साथ रीवा भी अतीत की यादों में चलने लगी।

रीवा, माँ रमा ,एक छोटा भाई नितिन और उसकी नानी यही तो परिवार था उसका। 

ख़ानदानी रईस नानी की इकलौती बेटी होने के नाते माँ को उनकी चल अचल संपत्ति विरासत में मिली हुई थी पर माँ ने कभी उनको हाथ नहीं लगाया था, नाना की मृत्यु के बाद से नानी भी उनके साथ ही रखने लगी थी। 

पिता के अकस्मात निधन से सब कुछ बिखरने लगा था …पर ऐसे समय में माँ ने हिम्मत दिखाया और अपनी बड़ी सी हवेली नुमा घर को अपने रहने भर का रख कर बाकी किराये पर दे दिया।

किराये के पैसों से रमा ने अपने दोनों बच्चों को पढ़ाया लिखाया इस क़ाबिल बना दिया कि वो दोनों अपनी ज़िन्दगी अच्छे से गुज़ार सके।

रीवा बड़ी थी तो उसकी शादी भी कर के रमा जी ने अपना एक काम पूरा कर लिया था ।

शादी के कुछ समय बाद तक सब ठीक चलता रहा….

रीवा जब भी घर जाती उसे भरपूर प्यार मिलता था ।

नितिन भी नौकरी करने लगा था पर उसे और कमाने की चाहत होने लगी और उसने नानी की पुरानी हवेली को होटल के रूप में प्रयोग करने का मन बना लिया ।

नानी ने रीवा और नितिन दोनों को इसकी जिम्मेदारी दे दी थी। 

रीवा भी खुशी खुशी अपने भाई के साथ होटल के काम में उसकी मदद करने लगी। 

जरूरत के हिसाब से पैसे भी लगाती चली गई। 

भाई ने कहा था कि,”जब होटल अच्छा चलने लगेगा तो तुम्हारे पैसे दे दूँगा….अभी जो जरूरत है वो तुम लगा दो।”

रीवा भी सोचती ये है तो हम दोनों भाई बहन का ही तो पति से पूछ कर उसने होटल के साजो सामान में अपनी तरफ़ से खर्चे कर दिए ।

ये सब सेट हो जाने के बाद ….रीवा अपने घर चली गईं।

भाई से जब भी पूछती कि होटल कैसा चल रहा तो जवाब मिलता,”अभी तो नया है वक्त लगेगा।”

होटल की बेबसाइट रीवा ने तैयार की और उसे वो खुद ही देखती थी ।

एक दिन भाई ने कहा,‘‘ दीदी तुम तो दूसरे शहर में रहती हो, ज्यादा वक्त नहीं दे पाती होगी ऐसा करो बेबसाइट का काम भी अब से मैं देख लूंगा।”

रीवा ने सोचा भाई ठीक ही कह रहा है उसके अपने बच्चे भी छोटे है ….जब वो सब देख ही रहा तो ये भी देख ही लेगा।

रीवा जब भी पूछती होटल कैसा चल रहा वो एक ही जवाब देता,”अभी कुछ खास नहीं चल रहा।”

समय गुजर रहा था अचानक एक दिन उसको अपने शहर के एक सज्जन मिले उन्होंने बातों बातों में बताया,”नितिन का होटल अच्छा चल पड़ा है….बहुत मेहनती हैं …आगे तक जाएगा।”

ये सुन कर रीवा को धक्का सा लगा…जब सब ठीक चल रहा है तो  वो मुझसे झूठ क्यों बोलता रहता है… आखिर ऐसा क्यों कर रहा है?

रीवा ये बात मन में ही रखकर रह गई। 

अपना भाई ऐसा कैसे कर सकता है….नहीं नहीं…खुद से जाने उसने कितने सवाल जवाब कर लिए।

 कुछ समय बाद खबर आई नानी नहीं रहीं। 

रीवा को भी जाना पड़ा था। 

इस बार घर का माहौल बदला बदला सा नजर आया।। माँ भी कमजोर दिख रही थी। 

नितिन के साथ एक लड़की रोज़ी भी नजर आई….पता चला वो उससे शादी करने वाला है ।

किसी की रजामंदी हो ना हो उसे उस लड़की से ही शादी करनी है ।

रीवा सारे कार्य सम्पन्न हो जाने के बाद जब अपने घर जाने वाली थी उसके पहले वो नानी के कमरे में जाकर उनका कमरा समेट कर उनका सब सामान अलमारी में रख रखी थी तभी नितिन उसके पास आया और बोला,”दीदी तुम्हें नानी की आलमारी से जो लेना है इसमें से ले लो ….इसके बाद इसकी चाभी रोजी के पास रहेगी।”

रीवा ये सुनकर चौंक गई। 

ना जाने कैसा ज़माना आ गया है…जो उसकी अपनी बहन है उससे किसी ग़ैर लड़की के लिए कैसे कह रहा है… माना शादी करना चाहता है पर अभी घर की सदस्य तो नहीं बनी है ….. कुछ सोचकर वो बाहर जाने को हुईं ही तो देखा दरवाजे पर माँ नजरें नीची कर के खड़ी थी और नितिन के साथ रोज़ी अंदर आ चुकी थी ।

सवालिया निगाहों से माँ को देखी पर माँ का मौन देख समझ गई अब कहने को कुछ भी नहीं बचा।

जाने से पहले रीवा ने नितिन से बोला,”देख नितिन तेरा होटल अच्छा चल पड़ा है …मैंने जो पैसे लगाए हैं वो मुझे दे दे, वो तेरे जीजा जी के पैसे है… उन्होंने हमारी मदद की थी अब उनके पैसे हमें लौटा देना चाहिए ।”

‘‘कैसे पैसे दीदी….कुछ नहीं है तुम्हारा….कौन सा कही लिखा हुआ है जो तुमने खर्च किए हैं…इसमें सब पैसे नानी के लगाए हैं अब जब नानी नहीं रही तो कैसे पैसे ?”नितिन ने दो टूक शब्दों में कह दिया

रीवा अपने भाई को देखती ही रह गई।

ये मेरा सगा भाई है भी और नहीं?

‘‘ वाह भाई वाह, खूब सिला दिया तूने… खैर ये बात तो साफ है कि ये तेरे बोल नहीं हो सकते ….जिनके इशारों पर नाच रहे हो ना …..देखना एक दिन कही के नहीं रहोगो।”घूरती नजरों से रोज़ी को देखते हुए रीवा ने कहा

‘‘ माँ अब मैं यहां कभी नहीं आऊँगी, तुम भी पता नहीं क्यों  बेटे की बात सुनकर भी चुप हो…. घर में शांति बनाए रखने के लिए चुप रहना कहा तक जायज है नहीं पता…..पर तुम्हारा बेटा नालायक निकल गया है …..यूँ चुप रह कर कुछ हासिल नहीं होगा।”कहकर रीवा माँ के गले लग निकल गई 

समय के साथ कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा  लगा कर रीवा और उसके पति ने नितिन से अपना हिस्सा निकलवा लिया।

पर रीवा का नितिन के साथ रिश्ता कटु होता चला गया।

अचानक ट्रेन झटके से रुक गई। 

रीवा भी अतीत से वर्तमान में लौट आई थी……बाहर देखा तो उसका स्टेशन आ गया था।

वो ट्रेन से उतर कर ऑटो पकड़ कर घर पहुंची तो देखती है माँ अंतिम साँसें ले रही थी।

रीवा को देखकर हल्के से मुस्कुराईं और चली गईं अपने पति के पास।

रीवा चुपचाप सब नजरअंदाज कर माँ के क्रियाकर्म में शामिल हुई ना नितिन ने ज़्यादा कुछ बोला… ना उसकी पत्नी रोजी ने …. उनके लिए तो रीवा उस जायदाद का हिस्सा लेने वाली नज़र आ रही थी जो ये उसे कभी देना ही नहीं चाहते थे ।

रीवा वापस अपने घर आ गई थी अपने उस शहर जहाँ पति और बच्चे साथ रहते थे जो अब उसका अपना घर हो चुका था…. वो आख़िरी बार अपने उस शहर हो कर आ चुकी थी जहाँ उसे अपनों से रुसवाई मिली …अपना सगा भाई जिसने बचपन में ना जाने अपनी बड़ी बहन से कितना लाड लड़ाया होगा …झगड़ा भी किया तो तुरंत सुलह कर लिया पर इस बार बात पैसे पर आ गई थी साथ ही साथ किसी गैर को इतना अपना मान लिया कि अपनी ही बहन उसे दुश्मन नजर आने लगी थी और जब रिश्ते ऐसे मोड़ पर आ जाते हैं तो वो दम घोटूँ हो जाते हैं जिनसे बाहर निकलना ज़रूरी हो जाता है ।

दोस्तों सच में ना जाने कैसा ज़माना आ गया है…. पहले एक भाई कमा कर दूसरे भाइयों के परिवार को भी सँभाल लेता था… बहनों को हाथों हाथ रखता था पर अब का ज़माना बस स्वार्थ पर टिका हुआ है… कुछ ही गिने चुने रिश्ते होंगे जो प्रेम से फल फूल रहे होंगे ।

मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा…. ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#वाक्यकहानीप्रतियोगिता 

# ना जाने कैसा ज़माना आ गया है…

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