रिश्ता वही निभता है जो बराबरी का होता है – कमलेश आहूजा : Moral Stories in Hindi

मीना के पति की नौकरी दूसरे शहर में लग गई थी।वैसे वो बहुत खुश थी क्योंकि पति को बड़ी कम्पनी में नौकरी मिलने के साथ साथ बड़ा पद भी मिला था बस दुख यही था कि वो अपनों से दूर जा रही थी।

मीना लंबे समय से पति व बच्चों संग अपने मायके के शहर में ही रह रही थी।यहां भी उसके पति की नौकरी अच्छी चल रही थी।मीना भी खुश थी जब चाहे अपने मम्मी के घर चली जाती या फिर वो लोग उसके घर आ जाते। त्योहार हो या कोई फैमिली फंक्शन सब मिल जुलकर मनाते।हंसते मुस्कुराते कब पांच साल बीत गए पता ही नहीं चला।अब जाने की बारी आई तो मीना के बच्चे भी उदास हो गए।वो भी नाना नानी से काफी घुल मिल गए थे।

नए शहर में आकर वो मायके वालों को बहुत मिस कर रही थी।अभी उन्हें घर नहीं मिला था इसलिए कम्पनी के गेस्ट हाऊस में ही रह रहे थे।पति सुबह ऑफिस चले जाते और बच्चों का भी स्कूल में एडमिशन करा दिया था सो वो भी स्कूल चले जाते थे मीना सारा दिन अकेले बोर हो जाती।कोई काम भी नहीं था नाश्ता खाना सब बना बनाया मिल जाता और सफाई करने वाले उनका रूम साफ कर जाते।कपड़े लॉन्ड्री से धुलकर आ जाते।मीना को यही लगता कि काश! इस शहर में कोई अपना होता तो वो कुछ समय के लिए उनके पास चली जाती।

एक दिन मीना उदास सी बैठी थी क्योंकि पति ने कहा था कि अभी एक महीना और गेस्ट हाऊस में रहना पड़ेगा तभी उसके छोटे भाई का फोन आया -“हेलो दीदी, मैं रोहन बोल रहा हूं कैसी हैं आप?”

“मैं ठीक हूं ..तुम लोगों को बहुत मिस कर रही हूं।”

“दीदी हम भी अपको बहुत मिस कर रहें हैं।आपके लिए एक गुड न्यूज है।”रोहन चहकते हुए बोला।

“कैसी न्यूज भाई?”

“दीदी मुझे किसी ने बताया है कि कॉलेज में आपका जो बेस्ट फ्रेंड सुरेश था वो आजकल आपके ही शहर में है।बहुत बड़ा बिजनेस मेन बन गया है।मैंने उसका मोबाइल नंबर भी ले लिया है।”

“सच,तू जल्दी से बता मुझे उसका नंबर मैं आज ही उसे फोन करूंगी।उसे मालूम पड़ेगा कि मैं यहां हूं तो वो बहुत खुश होगा।”मीना उत्साहित होकर बोली।

मीना ने रोहन से सुरेश का मोबाइल नंबर ले लिया और उससे बात करने के बाद सुरेश को फोन लगाया -“हेलो,क्या मैं सुरेश जी से बात कर सकती हूं?”

“मैं सुरेश ही बोल रहा हूं,आप कौन बोल रही हो?”

“सुरेश,मैं मीना बोल रही हूं।”

“अरे मीना तुम..इतने सालों बाद तुम्हारी आवाज सुन रहा हूं।कैसी हो?कहां हो आजकल?”सुरेश ने एक साथ प्रश्नों की झड़ी लगा दी।

“मैं तुम्हारे ही शहर में हूं।मेरे हसबेंड की यहां जॉब लग गई है।बड़ी मुश्किल से तुम्हारा नंबर मिला तो मैंने सोचा तुमसे बात करती हूं।”

“मीना,ये तुमने बहुत अच्छा किया।तुम लोग कहां रूके हुए हो मुझे पता बता दो मैं तुम्हें मिलने आता हूं।और हां आज रात का डिनर तुम लोग हमारे साथ करना।” मीना ने सुरेश को गेस्ट हाऊस का पता बता दिया।सुरेश से बात करने के बाद मीना अतीत की यादों में खो गई….कॉलेज में मीना और सुरेश बेस्ट फ्रेंड हुआ करते थे। दोनों अपने नोट्स शेयर करते थे।एक दूसरे के घर आना जाना भी था।कॉलेज के बाद सुरेश ने अपना फैमिली बिजनेस ज्वॉइन कर लिया और मीना की शादी हो गई।शादी के बाद मीना जब मायके आती तो सुरेश से मिलने उसके घर जरूर जाती थी।सुरेश भी उससे मिलने आता था।कुछ समय बाद सुरेश की शादी हो गई और वो दूसरे शहर में शिफ्ट हो गया।इधर मीना भी अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गई।लगभग दस पंद्रह साल हो गए थे मीना और सुरेश को मिले।आज इतने सालों बाद दोनों मिल रहे थे।

शाम को मीना के पति ऑफिस से आए तो उसने सुरेश के बारे में बताया।वो भी बहुत खुश हुए कि इस शहर में कोई तो पहचान का मिला।

सुरेश तय शुदा समय पर गेस्ट हाऊस पहुंच गया।मीना और उसके पति से मिलकर वो बहुत खुश हुआ।फिर अपनी ही गाड़ी में उन्हें घर लेकर आया।

सुरेश का आलीशान बंगला देखकर मीना दंग रही।आधुनिक सज्जा से सुसज्जित बंगला किसी महल से कम नहीं लग रहा था।

सुरेश की पत्नी ने मीना के पति व बच्चों का अच्छे से स्वागत किया।सुरेश ने अपनी दोनों बेटियों से मीना का परिचय कराया।

जहां मीना का परिवार सादगी से परिपूर्ण था वहीं सुरेश की पत्नी व उसकी बेटियां पूरी तरह से आधुनिकता के रंग में ढली हुईं थीं।

बातों ही बातों में सुरेश मीना से बोला तुम रिया(सुरेश की पत्नी)से फ्रेंडशिप कर लो।इसके साथ क्लब वगैरह चली जाया करो।तुम्हारा मन लग जाएगा।मीना कुछ बोली नहीं बस मुस्कुराकर रह गई। डिनर के बाद रिया ने मीना के बेटों को कीमती तोहफे दिए तो मीना को बड़ी शर्म महसूस हुई क्योंकि वो तो सिर्फ एक मिठाई का डिब्बा लेकर आई थी।उसने रिया से कहा -“आपने तो इतने कीमती तोहफे दे दिए मैं तो बच्चों के लिए कुछ लेकर नहीं आई।”

“अरे,ऐसे भी कोई महंगे गिफ्ट नहीं हैं दीदी आप इतना मत सोचें।” रिया मीना से बोली। सब कुछ ठीक ही था पर घर आकर मीना को कहीं न कहीं ये महसूस हो रहा था कि ये दोस्ती का रिश्ता ज्यादा दिन तक नहीं चल पाएगा।

मीना अपने घर में शिफ्ट हो गई।उसने छोटी सी पूजा रखी थी तो सुरेश और रिया को भी बुलाया।पूजा के बाद रिया ने मीना को सोने के इयररिंग गिफ्ट में दिए तो मीना आश्चर्य से बोली -“ये किस खुशी में दे रही हो तुम?”

“दीदी,आप अपने नए घर में शिफ्ट हुए हो ना इसलिए।”रिया मुस्कुराते हुए बोली।

“अरे ये कोई हमारा घर थोड़ी है ये तो कम्पनी वालों का घर है।जब हमारा अपना घर बनेगा तब तुमसे मैं जरूर ये तोहफा लूंगी पर अभी नहीं।”मीना ने रिया को समझने की भरपूर कोशिश की पर वो नहीं मानी।

मीना के पति ने भी इशारे से तोहफा लेने से मना किया।रिया और सुरेश जबरदस्ती तोहफा देकर चले गए।

अब तो ये रोज की बात हो गई।रिया और सुरेश आए दिन त्यौहार या किसी फैमिली फंक्शन में मीना के घर आते तो कीमती तोहफे दे जाते।मीना को भी मजबूरन बदले में कीमती तोहफे देने पड़ते।वैसे मीना के पति की तनख्वाह अच्छी खासी थी ईश्वर की कृपा थी पर घर का बड़ा बेटा होने की वजह से परिवार की

जिम्मेदारियां उनके ऊपर ही थीं। मीना और उसके पति बड़े तरीके से गृहस्थी चलाते थे।बड़े पद पर होने के बावजूद भी उनका रहन सहन दिखावे से परे बिल्कुल सादगीपूर्ण था।आखिर थी तो नौकरी ही ना,कोई ऊपर की कमाई तो थी नहीं जो फालतू उड़ाते रहते।कीमती तोहफों की बात तक ही सीमित रहता तो भी ये रिश्ता निभाया जा सकता पर हद तो तब हो गई जब रिया मीना को अपने साथ किट्टी पार्टियों में चलने के लिए बाध्य करने लगी।

एक आध बार मीना उसके साथ गई भी पर उसे वहां जाकर बिल्कुल अच्छा नहीं लगा।पैसे वाले घरों की औरतों वहां आती थी।जो कीमती गहने और स्टाइलिश ड्रेसेज पहनती थीं।खाने पीने के बाद पत्ते खेलना और गॉसिप करना यही उनका कार्यक्रम रहता था।मीना को ये सब रास नहीं आता था।कहने को वो भी अपने

पति के साथ ऑफिस की पार्टीज में जाती थी पर ऐसी आधुनिकता उसने कभी नहीं देखी थी।इसके अलावा रिया को तो अपनी बेटियों की पढ़ाई लिखाई की कोई चिंता नहीं थी।उसे लगता था,कि पैसा है तो लड़कियां ज्यादा नहीं भी पढ़ी तो उनकी शादी कर देंगे।लेकिन मीना को अपने बेटों के भविष्य की चिंता थी वो उनपर बहुत ध्यान देती थी इसलिए उसके पास किट्टी पार्टियों में जाने

का समय भी नहीं था।मीना ने सोचा था कि नए शहर में कोई अपना मिल गया तो एक अच्छा रिश्ता बन जाएगा ताकि दुख सुख में काम आ सकें पर अब मीना को ये रिश्ता बोझ लगने लगा।

एक दिन वो अपने पति से बोली -“आप ही बताएं मैं क्या करूं?रिया मुझे आए दिन किसी न किसी पार्टी में चलने को कहती है।एक तो बच्चों को छोड़कर जाना पड़ता है दूसरा वहां हाई फाई लोगों को बीच मुझे बिल्कुल सहज नहीं लगता।कैसे पीछा छुड़ाऊं इस मुसीबत से।” 

मीना के पति मुस्कुराते हुए बोले -“वेरी सिंपल..अब जब कभी भी रिया का फोन आए तो उसे साफ साफ बोल देना,कि मेरे हसबैंड को इस तरह मेरा रोज रोज पार्टीज में जाना अच्छा नहीं लगता इसलिए मैं तुम्हारे साथ अब नहीं आ सकती।वो अपने आप समझ जाएगी और फिर तुम्हें दुबारा फोन नहीं करेगी।”

“ये तो आपने सही कहा।वैसे भी एक न एक दिन तो ये सब करना ही था क्योंकि हम इन पैसों वालों की बराबरी नहीं कर सकते।न तो हमारे पास उड़ाने के लिए इतना पैसा है ना ही गवाने के लिए वक्त।महंगे तोहफे देना,पार्टियों में जाना..यह सब बड़े लोगों के चोंचले हैं हमारे बस की बात नहीं।सच कहा है किसी ने…कि रिश्ता हमेशा बराबर वालों से बनाना चाहिए।”मीना आह भरते हुए बोली।

एक दिन किट्टी पार्टी में चलने के लिए रिया का फोन आया तो मीना ने उसे पति के बताए अनुसार बोल दिया।रिया को इस बात का बहुत बुरा लगा और उसने फिर फोन करना बंद कर दिया।सुरेश तो वैसे ही अपने बिजनेस में बिजी रहता था।एक बार उसने मीना को फोन किया तो उसने उसे भी बड़े सलीके से बता दिया,

कि अब वो रोज रोज रिया के साथ पार्टीज में नहीं जा सकती।वो कुछ नहीं बोला पर इसके बाद सुरेश और रिया का मीना के घर आना लगभग बंद हो गया।हालांकि एक बार मीना के मन में आया भी कि सुरेश और रिया क्या सोचेंगे उसके बारे में…वो कितनी स्वार्थी है अपने आप दोस्ती की शुरुआत की और अपने आप ही रिश्ता तोड़ दिया पर वो क्या करती?इस दिखावे के रिश्ते को कैसे निभाती?फिर उसने यही सोचकर मन को तसल्ली दी कि..जो होता है अच्छे के ही लिए होता है।

मीना एक बार साफ बोलकर बुरी जरूर बन गई पर उसे दिखावे की जिंदगी से हमेशा के लिए निजात मिल गई।रिश्ता वही निभता है जो बराबरी का होता है।

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#दिखावे की जिंदगी 

कमलेश आहूजा

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