रिश्तों की बदलती बयार – डॉ कंचन शुक्ला :

Moral Stories in Hindi

ढोलक की थाप पर सोहर गीत गूंज रहा था पूरा घर खुशियों से भरा था कामिनी दौड़-दौड़कर समारोह की व्यवस्था देख रही थी घर में रिश्तेदारों का जमघट लगा था पूरा घर हंसी-ठिठोली से गुंजायमान हो रहा था हो भी क्यूं ना आज कामिनी के पोते की बरही थी।

कामिनी के चेहरे पर भी खुशियों की आभा दिखाई दे रही थी लेकिन पता नहीं क्यूं उनकी आंखों में ख़ुशी के साथ-साथ अनचाहे दर्द की परछाईं भी थी जिसे कोई नहीं देख सका, तभी किसी ने पीछे से आकर उसको अपनी बांहों में भरते हुए कहा,” दादी बनने की बहुत बहुत बधाई कामिनी ” कामिनी उस आवाज को सुनकर चौंक उठी ये आवाज़ तो उसकी सबसे प्यारी सहेली रमा की थी कामिनी ने भी खुशी से चहकते हुए कहा “तुम भी तो मौसी दादी बन गई हो मेरी बधाई भी स्वीकार करो” फिर दोनों सहेलियां एक-दूसरे से लिपट गई।

थोड़ी देर बाद जब दोनों अलग हुई तो रमा ने कामिनी को देखा उसके चेहरे पर मुस्कान थी पर आंखों में दर्द और मायूसी साफ़ दिखाई दे री थी कामिनी अपने दर्द को रमा से छुपाने का भरसक प्रयास कर रही थी पर  रमा से कुछ छुपा नहीं रहा उसने  पूछना चाहा फिर कुछ सोचकर चुप रह गई।

  पोते की बरही का कार्यक्रम बहुत अच्छे से सम्पन्न हुआ सभी मेहमान एक एक करके अपने अपने घरों को चले गए। जाते हुए सभी मेहमान कामिनी को दादी बनने की बधाई दे रहे थे कामिनी मुस्कुराते हुए सभी का धन्यवाद कर रही थी।पर रमा देख रही थी  कामिनी की मुस्कान खोखली थी उसमें दर्द छुपा हुआ है वो सोचने लगी ऐसा कामिनी के जीवन में क्या घटित हो गया जिसने हर परिस्थितियों में खुश रहने वाली कामिनी को अपने दर्द में समेट लिया जिसे वो किसी के सामने जाहिर भी नहीं कर रही है रमा ने मन-ही-मन सोचा वो कामिनी से बात करेंगी कामिनी तो बच्चे के जन्म से पहले कितनी खुश थी उसके आने की कितनी बेसब्री से बाट जोह रही थी  उसने उस बच्चे के लिए क्या कुछ नहीं खरीद लिया था अभी दो सप्ताह पहले ही तो कामिनी ने खुशी से चहकते हुए उसे बताया था की बहू के आपरेशन की डेट डाक्टर ने बता दी है अब वो उसी तैयारी में लगी हुई है।

फिर इस बीच ऐसा क्या हुआ जो आज कामिनी की आंखों में ख़ुशी के साथ-साथ दर्द भी दिखाई दे रहा है। रमा ने सोच लिया वो कुछ दिन कामिनी के साथ रहेगी जिससे वो उसके मन में छिपे उस दर्द को जान सके वरना कामिनी तो बताने से रही जो दर्द कोई नहीं देख पा रहा था उसे रमा ने बहुत आसानी से देख लिया था।वो महसूस करती भी क्यूं ना वो  भी तो शादी से पहले ऐसे ही अनकहे दर्द को हमेशा मन में छुपाकर मुस्कुराती रहती थी पर कामिनी से रमा का दर्द कभी छुपता नहीं था कामिनी को रमा की सौतेली मां के स्वभाव के बारे में सब पता था इसलिए वो रमा की मनःस्थिति को बिना कहे ही समझ जाती थी कामिनी रमा को उस दर्द से निकालने में मदद करती कामिनी ने ही अपने दूर के रिश्ते के भाई से रमा की शादी करवाई थी शादी के बाद रमा के जीवन के सभी दुःख दर्द हमेशा के लिए उससे दूर भाग गए । उसका जीवन खुशियों से महकने लगा अपने जीवन में आई खुशियों का श्रेय रमा कामिनी को देती थी इसलिए उसका कामिनी के लिए परेशान होना स्वाभाविक था रमा कामिनी को इस तरह घुटते हुए नहीं देख सकती थी।

एक सप्ताह बाद कामिनी की बहू की विदाई थी जब बहू बच्चे के साथ अपने मायके चली गई तो रमा ने कामिनी को अपने पास बैठाया और उसका हाथ पकड़कर गम्भीर लहज़े में पूछा,” कामिनी तेरे मन में ऐसा क्या दर्द छुपा है जो तू सबसे छुपाने की कोशिश कर रही है तू सबसे अपने दर्द को छुपा सकती है पर मुझसे नहीं अब सच-सच मुझे बता क्या बात है मुझसे झूठ बोलने की कोशिश भी न करना समझी”

कामिनी ने मुस्कुराते हुए जबाब दिया,” रमा तू कैसी बातें कर रही है मेरे जीवन में दर्द की कोई जगह ही नहीं है मेरा जीवन तो खुशियों से भरा हुआ है मेरे जीवन में एक कमी थी वो भी ईश्वर ने पूरी कर दी भगवान ने मुझे दादी भी बना दिया “

रमा ने कामिनी को घूरते हुए कहा,” अब मुझसे ज्यादा नाटक करने की जरूरत नहीं है तू मुझे सब सच-सच बता दे वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा समझीं “

कामिनी ने चुटकी लेते हुए कहा,” तूझसे बुरा कोई हो ही नहीं सकता ये मैं अच्छी तरह जानती हूं “

रमा ने दांत पीसते हुए गुस्से में कहा,” अब तू मुझे सच खुद बताएगी या मैं  तेरी बहू से पूछूं “

बहू का नाम सुनते ही कामिनी का चेहरा पीला पड़ गया जैसे किसी ने उसके झूठ को पकड़ लिया हो

फिर स्वयं को संयमित करते हुए कामिनी ने जल्दी से कहा,” तूझे मेरी बहू से क्या पूछना है”??

” यही की इस घर में ऐसा क्या हुआ है जिसके बाद  हमेशा,सच बोलने वाली जटिल से जटिल समस्या को हंसकर सुलझाने वाली  मेरी सहेली कामिनी अब झूठ क्यों बोलने लगी है  अब वो समस्याओं को सुलझाने की जगह उसे मन में क्यों छुपाने लगी !!??”

कामिनी ने गहरी सांस ली फिर फीकी मुस्कान के साथ बात को टालते हुए कहा,” रमा तू क्यों राई को पहाड़ बना रही है यहां सब ठीक है “

” अब तू मुझे सच-सच बताती है या मैं तेरी बहू से बात करूं ” रमा अब तक इतना तो समझ ही गई थी की रमा के साथ जो कुछ भी हुआ है उसमें उसके बहू बेटे शामिल हैं रमा जबसे यहां आई थी उसने नोटिस किया था कामिनी ने अपने बहू बेटे का नाम एक बार भी नहीं लिया था वरना कामिनी बात-बात पर कहती फिरती थी मेरा बेटा ऐसा है, मेरी बहू ऐसी है आज वो बिल्कुल मौन है इसके पीछे कुछ बहुत बड़ा कारण ही है जिसे कामिनी बताने से कतरा रही है।

रमा ने भी ठान लिया था कि,वो कामिनी से सच जानकर ही रहेगी उसने कामिनी को घूरते हुए कहा,”कामिनी तू मुझे एक बात बता बच्चे के आने से पहले तू बहुत खुश थी पर आज मैं देख रहीं हूं तेरी आंखों में दर्द सिमटा हुआ है ऐसा क्यूं है अब मैं कोई बहाना नहीं सुनूंगी अगर तुमने मुझसे झूठ बोलने की कोशिश की तो  आज के बाद हमारी दोस्ती हमेशा के लिए खत्म समझो!!? रमा ने आखिरी दांव खेला

कामिनी ने पहले तो कुछ भी बताने से इंकार कर दिया लेकिन जब रमा ने दोस्ती खत्म करने की बात कही तो कामिनी के सब्र का बांध टूट गया वो फूट-फूटकर रो पड़ी उसने रोते हुए कहा, “रमा मैंने  बहू को कभी बहू नहीं अपनी बेटी माना और उसी ने बच्चे के जन्म के बाद मुझे अपमानित किया वो भी सिर्फ इसलिए की  अब वो ससुराल में नहीं मायके में रहना चाहती है उसे कभी ससुराल में न रहना पड़े इसके लिए उसने बेवजह मुझ पर झूठे इल्जाम लगाकर मेरा अपमान किया उसने रिश्तों की मर्यादा की सभी हदें पार कर दी उसके झूठे इल्ज़ामों को सुनने के बाद मैं टूटकर बिखर गई हूं उसने मेरे विश्वास को तोड़ दिया रमा मेरी बहू अपने मन में इतना जहर लिए हुए थी ये बात तो मैं कभी जान ही नहीं पाई मैं तो उसे अपनी बेटी ही समझती रही मेरा एक ही बेटा है मैंने तो सोचा था मुझे बहू के रूप में एक बेटी मिल गई पर बहू का बदला रूप देख मैं तो जड़ हो गई मेरा हर ख्वाब टूटकर बिखर गया मैंने उसको लेकर कितने ही सपने बुने थे वो सारे सपनें चकनाचूर होकर बिखर गए! क्या बहू को बेटी की तरह रखना गलत है जो सास, बहू के साथ गलत व्यवहार करती हैं उन पर तो लोग बहुत जल्दी अंगुली उठाकर उन्हें ताने मारते हैं पर जो बहूएं अपनी सास का अपमान करतीं हैं उन पर झूठा इल्जाम लगाकर उनके मन को दुखाती  हैं उन बहूओ का क्या !?? जानती हो रमा !!? जब मेरी बहू मेरा अपमान कर रही थी तब मेरा बेटा भी वहीं था उसने भी अपनी पत्नी को कुछ नहीं कहा वो चुपचाप खड़ा मेरा अपमान देखता रहा मुझे अपने बेटे और अपने दिए संस्कारों पर बहुत गर्व था लेकिन मेरे बेटे ने मेरा गुरूर तोड़ दिया मैंने तो अपने बेटे को ऐसे संस्कार नहीं दिए थे की वो अपने मां-बाप को अपमानित होता देखे और मौन खड़ा रहे क्या यही सब देखने सहने के लिए एक मां मौत के मुंह में जाकर बच्चे को जन्म देती है ??” इतना कहकर कामिनी चुप हो गई।

कामिनी की बात सुनकर रमा स्तब्ध रह गई वो जानती थी कामिनी जो भी कह रही है वो बिल्कुल सच ही होगा ये बात सभी को पता है कि,कामिनी अपनी बहू को बेटी की तरह ही रखती थी उस पर कोई बंधन नहीं था कामिनी की बहू तो ज्यादातर अपने पति के साथ या अपने मायके में रहती थी वो कामिनी के साथ रहती भी नहीं थी शादी के दो सालों में वो मुश्किल से दो महीने ही अपनी ससुराल में रही  कामिनी ने इस पर भी कोई एतराज़ नहीं किया फिर भी उसकी बहू ऐसी निकली”।

कुछ सोचकर रमा की आंखों में गुस्सा फूट पड़ा  उसने गम्भीर लहज़े में कहा,” कामिनी इसकी जिम्मेदार भी तू ही है तूने ही अपनी बहू को ज़रूरत से ज़्यादा सिर चढ़ा लिया था तेरी सीधाई का उसने गलत फायदा उठाया उसके माता-पिता भी इस कृत्य में शामिल होंगे मुझे भी यही लग रहा है तेरी बहू अब तुम से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती इसीलिए उसने तेरे स्वाभिमान पर चोट की है जिससे तू स्वयं उससे सब रिश्ते तोड़ दे ,यही उसकी और उसके घर वालों की साज़िश थी अगर तू मेरी सलाह मानें तो मैं  यही कहूंगी अब  तूझे अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं करना चाहिए है । तू अपनी बहू को उसके हाल पर छोड़ दे और उससे दूरी बना ले वरना वो तूझे बात-बे-बात अपमानित करती रहेगी  मुझे तो लगता है की  तेरी बहू की साज़िश में तेरा बेटा भी मिला हुआ है वरना कोई भी बहू अपनी सास को अपमानित करने से पहले सौ बार सोचेगी । आज कल के बच्चों को सिर्फ अपना स्वार्थ दिखाई देता है बेटियों के मां-बाप भी अपनी बेटियों को घर जोड़ने का नहीं तोड़ने की शिक्षा देते हैं लेकिन वो ये भूल जाते हैं की अपने कर्मों का फल हर व्यक्ति को यही भोगना पड़ता है तू बीती बातों को भूलकर जीजाजी के साथ अपने लिए जी अब तक तू परिवार,बेटा, बहू के लिए जीती रही है शायद ईश्वर ने ये सब इसीलिए किया है की अब तू अपने लिए जीए एक बात और है तूझे अपने बेटे बहू पर अंधविश्वास था तू मुझसे कहती थी वो दोनों तेरा बहुत सम्मान करते हैं और हमेशा करते रहेंगे तूझे याद होगा उस समय मैंने कहा था ये तो समय ही बताएगा आज तू खुद देख उन्होंने तेरे विश्वास की धज्जियां उड़ा दी इसी लिए कहा गया है कभी भी किसी पर जरूरत से ज्यादा विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि विश्वास को खोते देर नहीं लगती अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है तू उन लोगों से दूरी बना ले थोड़े दिनों बाद देखना वो दोनों खुद तेरे पास आएंगे ये मनुष्य की फितरत है जब हम किसी को ज्यादा महत्व देते हैं तो वो हमारी अहमियत नहीं समझता हमसे दूर भागता है लेकिन जब हम उनसे दूरी बना लेते हैं तब उन्हें हमारी अहमियत का पता चलता है”


रमा

की बात सुनकर कामिनी के चेहरे पर दर्द भरी मुस्कान फैल गई उसने गहरी सांस लेकर कहा, “शायद तुम ठीक कह रही हो अब मैं अपने बारे में सोचूंगी रिश्तों में आए इस दर्द भरे बदलाव को अपने लिए सुखद अहसास में बदलने की कोशिश करूंगी भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है ये तो मुझे नहीं पता लेकिन इतना मैं अच्छी तरह जानती हूं आगे जो भी होगा अच्छा ही होगा”


ये हुई न कोई बात हम दोनों नये बदलाव करने में कालेज समय से ही माहिर हैं एक बार और सही??” इतना कहकर रमा खिलखिलाकर हंस पड़ी  कामिनी के चेहरे पर भी मुस्कान फैल गई रमा ने महसूस किया अब कामिनी आंखों में धीरे-धीरे दर्द का सैलाब कम होने लगा है लेकिन उसके चेहरे पर सोच की लकीरें स्पष्ट दिखाई दे रही थीं कामिनी के मन में बार-बार एक ही विचार कौंध रहा था मेरे संस्कारों में कहां क्या कमी रह गई थी जो मेरे बेटे ने मेरे आत्म-सम्मान  स्वाभिमान और विश्वास को रौंद कर रख दिया।

डॉ कंचन शुक्ला

स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित अयोध्या उत्तर प्रदेश

#ईर्ष्या

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