बेंगलूर जाने के बाद लगभग रोजाना ही दोनों में बातचीत हो जाती थी । अपने सुखद भविष्य की उम्मीद में राजन दिल लगा कर मेहनत कर रहा था। आज, छह महीने बाद वो उससे मिलने आने वाला था । देवप्रिया ने ऑफिस से छुट्टी ले ली थी ताकि वह अपना पूरा दिन राजन के साथ बिता पाए । स्टेशन पर राजन को देखते ही भाग कर उससे लिपट गयी देवप्रिया । आँखों से बहते आंसू राजन को भिगोते रहे ।
आस पास के लोग उन्हें ही देख रहे थे , पर उन सबसे बेखबर देवप्रिया दीवानों की तरह राजन से लिपट कर रोती रही । आस पास के लोगों की घूरती हुई निगाहों को नजरअंदाज करते हुए, राजन उसे स्टेशन से बाहर ले आया । पूरा दिन उन्होंने साथ ही गुजरा । बीच-बीच में दामिनी (राजन की कजिन) का फ़ोन भी आता रहा । शाम को राजन की चेन्नई की ट्रैन थी । देवप्रिया को ऐसा लगा कि पूरा दिन मानों कुछ पलों में ही बीत गया था और…… फिर से जुदाई का समय आ गया था ।
हालांकि उसे इस बात की ख़ुशी थी कि सिर्फ उससे मिलने ही राजन इतनी दूर आया था, पर ना जाने क्यों मन में बेसिर पैर की आशंकाएँ जन्म ले रहीं थीं । कुछ तो था जो देवप्रिया को आगाह कर रहा था । रह-रह कर उसका मन किसी अनिष्ट की आशंका से भयभीत हो रहा था । शायद जब आप किसी को खुद से ज्यादा प्यार करो, उसको खोने का डर ज्यादा लगता है । देवप्रिया का डर भी शायद इसी कारण था । खैर,फिर दुबारा जल्दी ही मिलने का वादा कर राजन ने उससे विदाई ली ।
इधर देवप्रिया के घर में भी अब उसकी शादी की बात चलनी शुरूं हो चुकी थी। पर किसी तरह से उसने अपने माता पिता को दो वर्ष तक रुकने को मना लिया था। इस समय राजन से शादी की बात करना व्यर्थ था । वह अब पढ़ाई में इतना व्यस्त हो चुका था कि उनमें बातचीत पहले से काफी कम हो गयी थी । फिर भी, इस बीच उसे जब भी समय मिला, वह दिल्ली देवप्रिया से मिलने आया था ।
कैंपस प्लेसमेंट से राजन को एक मल्टीनेशनल कम्पनी में बहुत बढ़िया नौकरी मिल गयी थी । देवप्रिया को बस अब उसके वापिस आने का इंतज़ार था । राजन ने उसे बताया कि वह पहले घर जाकर खुद अपनी माँ को यह खुशखबरी देगा और फिर उसके बाद उससे आकर मिलेगा । बेसब्री से देवप्रिया राजन का इंतज़ार करने लगी । वादे के अनुसार राजन अगले हफ्ते दिल्ली पहुंच गया । अपना हर वादा पूरा कर रहा था राजन ,पर ना जाने क्यों देवप्रिया को राजन के बातचीत के तरीके में कुछ बदलाव लग रहा था ।
हमेशा की तरह इस बार भी वह एक दिन के लिए ही आया था, पर लगातार फ़ोन आने की वजह से उसके और राजन के बीच ना के बराबर बातचीत हो पा रही थी । हर बार फ़ोन आने पर वह उठ कर दूसरी जगह चला जाता था और बातचीत पूरी होने के बाद ही वापिस आता था । इससे पहले कभी भी राजन ने इस तरह का व्यवहार नहीं किया था । बहुत पूछने पर भी वह किसका फ़ोन है, राजन बात टालता रहा । खैर, देवप्रिया एक दिन की ख़ुशी को लड़ाई-झगड़े में खराब नहीं करना चाहती थी , इसलिए चुप हो गयी । राजन ने भी उससे इधर-उधर की बात की, शादी की बात को वो फिलहाल “मम्मी नहीं मान रहीं” कह कर टाल गया था । उसने अंदाजा लगाया कि हो सकता है फ़ोन राजन के घर से ही आ रहे हों और वो देवप्रिया को किसी प्रकार की टेंशन नहीं देना चाहता है इसलिए उसके सामने बात न कर रहा हो , यह सोच कर ही उसके अधरों में मुस्कुराहट आ गयी । देवप्रिया को पता था कि खुद उसके माता – पिता राजन की मम्मी की सहमति के बिना उनकी शादी को राजी नहीं होंगे, सो उसे भी इंतज़ार करना ही ठीक लगा ।
रिहाई (भाग 4)
रिहाई (भाग 2 )
धन्यवाद
स्वरचित
कल्पनिक कहानी
अंजू गुप्ता