रीना की ममता – रेनू अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

रीना की शादी तीस साल पहले एक ऐसे घर में हुई, जहां उसकी विधवा सास और पांच छोटे छोटे देवर-ननदें थीं। उसका पति सबसे बड़ा था। रीना बेहद दयालु और ममतामयी थी। सास हमेशा बीमार रहती थीं। रीना ने उनकी भरपूर सेवा की और सब बच्चों को अपनी संतान की तरह पाला। सास हमेशा उसे मन ही मन दुआ देती रहती थी।

रीना दिन-रात सबकी देखभाल में लगी रहती। घर का काम, बच्चों की पढ़ाई, सास की दवाइयां – उसने कोई जिम्मेदारी अधूरी न छोड़ी। धीरे-धीरे वह सब की भाभी से भाभी मां बन गई।

सास के देहांत के बाद रीना और उसके पति ने तय किया कि वे अपना बच्चा नहीं करेंगे। रीना ने कहा –

“एक बच्चा हो जाता तो अच्छा था।”

पति ने मुस्कुराकर जवाब दिया –

“ये सब तो हमारे ही बच्चे हैं। इनका प्यार ही हमारा परिवार है।” रीना ने भी इस बात को हंसते-हंसते स्वीकार कर लिया।

समय के साथ सब बड़े हुए और उनकी शादियां हो गईं। नई बहुएं आईं। शुरू में सब रीना का आदर करतीं, पर धीरे-धीरे उनके मन में ईर्ष्या पनपने लगी। वजह यही थी कि गांव में रीना की बहुत इज्जत थी। लोग उसकी मिसाल देते –

“ऐसी बहू सबको मिले।”

नई देवरानियां यह सुनकर कुंठित हो जातीं। धीरे-धीरे उन्होंने पतियों के कान भरने शुरू कर दिए। जो बच्चे कभी रीना से अलग न होते थे, वही अब बेरुखी दिखाने लगे। रीना यह देख बहुत आहत होती, पर कभी किसी से शिकायत न करती।

सबसे छोटे देवर से रीना का स्नेह कुछ ज्यादा था। जब वह बीमार पड़ता, रीना रातभर उसकी देखभाल करती। यही बात उसकी पत्नी को चुभती। वह ताने देती –

“बहुत चिंता हो रही है न।

एक दिन छोटी देवरानी ने सारी सीमाएं लांघ दीं। उसने रीना पर भद्दे आरोप लगाए। रीना का कलेजा कांप गया। घर का माहौल कटु हो गया। रीना के पति ने गुस्से में कहा –

“शर्म करो! ये औरत तुम सबको बच्चों जैसा स्नेह  देती है और तुम इतना बड़ा लांछन लगाती हो? भगवान सब देखता है!” वक्त से डरो।

मगर इस डांट से देवरानियों का मन और कड़वा हो गया। उन्होंने घर बांटने की ठान ली। रीना ने हाथ जोड़कर कहा –

“मत जाओ, मैं अकेली कैसे रहूंगी?”

लेकिन किसी ने न सुनी।

बंटवारे के बाद रीना का आंगन सूना हो गया। वह रोज़ पुराने दिनों की यादों में खोई रहती। कभी लगता, कोई दरवाजे पर आवाज दे रहा है। उसकी आंखें बार-बार भर आतीं। मन में सिर्फ एक पछतावा रहता –

काश मैंने भी बच्चा कर लिया होता!

धीरे-धीरे रीना का स्वास्थ्य गिरने लगा। अपमान और अकेलापन उसे खा गया। एक दिन चुपचाप दुनिया को अलविदा कह गई।

उसकी अंतिम यात्रा में पूरा मोहल्ला उमड़ पड़ा। सब कह रहे थे –

“ऐसी भाभी मां कम ही होती है। उसने जीवन होम कर दिया।”

रीना के पति ने डबडबाई आंखों अपने भाइयों की तरफ देखते हुए कहा

“भगवान सब देखता है। वक्त से डरो।

कुछ समय बीता। रीना के देवर का बेटा, जो बचपन में रीना से बहुत स्नेह पाता था, बड़ा हो गया। उसने अपनी आंखों से देखा था कि किस तरह उसकी ताई मां के साथ अन्याय हुआ। धीरे-धीरे उसके मन में अपनी मां-बाप के प्रति गहरी नाराजगी और पीड़ा भरती गई।

वह सोचता – “जिन्होंने मुझे गोद में खिलाया, वही इतनी अकेली होकर चली गईं। मेरे अपने ही उनका सहारा न बन सके।”

समय बदला। उसके मां-बाप वृद्ध हो गए और बीमार रहने लगे। एक दिन क्रोध में उसने कह दिया –

“तुमने ताई मां को घर से दूर किया था। अब मुझसे उम्मीद मत रखना। मैं तुम्हें वृद्धाश्रम भेजूंगा।”

यह सुनकर उसके मां-बाप के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसी रात उसे सपना आया।  ताई मां मुस्कुराते हुए कह रही थीं –

“बेटा, तुम मेरी ममता में पले हो। अपने मां-बाप को छोड़ने की गलती मत करना। जो मैंने सहा उसका बदला तुम न लो। नहीं तो तुममें और उनमें कोई अंतर न रहेगा।”

सपना देखकर उसकी आंखें खुल गईं। उसकी आत्मा जैसे जाग उठी। सुबह होते ही वह दौड़कर अपने मां-बाप के पास गया। उनकी आंखों में पश्चात्ताप देखकर उसका दिल पसीज गया।

उसने हाथ जोड़कर कहा –

“मुझे माफ करो। मैंने भी वही कठोरता दिखाने की ठानी थी। ताई मां ने ही मुझे रास्ता दिखाया।”

उसके मां-बाप फूट-फूटकर रो पड़े। तभी पहली बार उन्हें सच में अपनी गलती का एहसास हुआ। रीना की ममता ने मरकर भी घर को फिर एक बार जोड़ दिया था।

रेनू अग्रवाल 

#वक्त से डरो

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