” पर मम्मा…मनीष के घर में तो बहुत गंदगी होगी …अंशु और रुनझुन तो एक पल भी वहाँ रह नहीं पाएँगे..।” मानसी अपनी माँ सुनयना से थोड़ा रूठते हुए बोली तो वो बोलीं,” तो फिर ठीक है…हम ही अपना कनाडा जाना कैंसिल कर देते हैं…अविनाश भाईसाहब के…।”
” अरे नहीं मम्मा…आप और डैड कनाडा जाइये…मैं चली…।”
” मेरा अच्छा बच्चा…और सुन..ना दिल लगे तो दो दिनों में वापस आ जाना।” सुनयना ने बेटी को दुलारा।
” ठीक है मम्मा..।” कहकर मानसी ने फ़ोन डिस्कनेक्ट किया और बेमन-से अपने ससुराल जाने की तैयारी करने लगी।
मानसी के पिता रामकृष्ण चौधरी सिविल इंजीनियर थे और माता सुनयना सुघड़ गृहिणी।एक बड़ा भाई था अनिरुद्ध।अनिरुद्ध इंजीनियरिंग करके मुंबई के कॉलेज़ से एमबीए करके एक मल्टीनेशनल कंपनी में ज़ाॅब करने लगा और अपने साथ करने काम करने वाली ईशा के साथ विवाह करके मुंबई में ही सेटेल हो गया।
मानसी की पढ़ाई में ख़ास रुचि थी नहीं…इसलिये वह आर्टस लेकर बीए करने लगी।तभी नीना नाम की लड़की से उसकी मित्रता हुई।दोनों के बीच पढ़ाई के साथ-साथ घर-परिवार की भी बातें होती थीं।बातचीत में भी नीना ने उसे अपने ममेरे भाई मनीष जो कि हाॅस्टल में रहकर सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था, के बारे में बताया तो वह मन में मनीष की एक तस्वीर बनाने लगी।एक दिन अपने विषय के नोट्स लेने जब वो नीना के घर गई तो मनीष से उसकी पहली मुलाकात हुई।मनीष का लंबा कद, आकर्षक व्यक्तित्व और बात करने की अदा पर वह तो फ़िदा हो गई और फिर उन दोनों के बीच फ़ोन पर चैटिंग और मुलाकातों का सिलसिला चल पड़ा।मनीष ने उसे स्पष्ट किया कि मेरी ग्रामीण पृष्ठभूमि शायद तुम्हें पसंद नहीं आये।तब मानसी पर प्यार का खुमार था..उसने कह दिया कि मैं तो आपके साथ हर हाल में रह लूँगी।
मनीष ने एक प्राइवेट कंपनी में साल भर काम किया और फिर अपनी खुद की फ़र्म खोल ली।
बेटी के ग्रेजुएट होने के बाद सुनयना उसके लिये रिश्ता तलाश करने लगी तब मानसी ने उन्हें मनीष के बारे में बताया।’परिवार गाँव में’ सुनकर सुनयना हिचकिचाई लेकिन चौधरी जी खुश हुए जो लड़का अपनी मेहनत से यहाँ तक पहुँचा है वो आगे भी बहुत तरक्की करेगा।उन्होंने मनीष के माता-पिता को घर बुलवा लिया और बातचीत करके एक शुभ मुहूर्त में दोनों का विवाह कर दिया।
मानसी के सास-ससुर और जेठ-जेठानी मिलने आते रहते थें लेकिन वो स्वयं गाँव जाने की बात पर आना-कानी करने लगती।तब उसके ससुर बेटे से बोले कि बहू पर दबाव मत डाल..उसका जी करेगा तो खुद ही आ जायेगी।समय के साथ वो बेटा अंशु तथा बेटी रुनझुन की माँ बन गई और अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गई।महीने दो महीने में वह अपने मायके चली जाती थी।
एक दिन चौधरी जी ने अपने दामाद से पूछ लिया कि मानसी आपके घर गई? तब मनीष हकलाते हुए बोला कि जा.. ए.. गी..अभी रुनझुन…।” चौधरी जी समझ गये और मानसी के जाने के बाद पत्नी से बोले,” मानसी को कहो कि वो छुट्टियों में अपने ससुराल जाये।”
” ऐसा क्यों कहते हैं..एक ही तो बेटी है…वहाँ पर अगर उसे कुछ…।” सुनयना आपत्ति जताई तब चौधरी जी बोले,” मनीष के माता-पिता ने भी मेहनत करके बेटे को शहर में पढ़ाया है..उनके भी तो कुछ अरमान होंगे ना..।तुम भी तो पहले गाँव जाने से कतराती थी तब तुम्हारी दादी ने तुम्हें समझाया था कि बेटी..छोटी-छोटी बातों में खुशियों को तलाश करना सीखो।वही सबक अब अपनी लाडली को दो।”
” जी…लेकिन कैसे..।” सुनयना धीरे-से बोली तब चौधरी जी ने उनके कान में कुछ कहा।
अंशु की सप्ताह भर की छुट्टियाँ हुई तब मानसी ने फ़ोन करके अपने आने की सूचना देना चाहा तब सुनयना बोली,” हम तो परसों कनाडा जा रहें हैं तेरे अविनाश अंकल के पास तो तू इस बार अपने ससुराल चली जा।” सुनकर वो दुखी हो गई..गाँव की कमियाँ गिनाने लगी तब सुनयना ने उसे समझाया कि अपनों के साथ रहने में ही जीवन का आनंद है और उनकी छोटी-छोटी बातों में ही तुम खुशियों को तलाश करना सीखो।फिर भी मानसी तैयार नहीं हुई लेकिन जब सुनयना कनाडा जाने का प्लान कैंसिल करने की बात कही तो वह मनीष के पैतृक घर जाने के लिये राजी हो गई।उसने मनीष को कहा और सामान पैक करके अगली सुबह वो लोग गाँव के लिये रवाना हो गये।
गाँव की सीमा में प्रवेश करते ही दोनों तरफ़ हरियाली और खेत देखकर बच्चे बहुत खुश होने लगे।घर पर उसकी जेठानी नीना ने बहुत प्यार-से उसका स्वागत किया।घर के अंदर साफ़-सफ़ाई और सारी सुविधायें देखकर तो वह चकित ही रह गई।खाना खाने के लिए सब लोग नीचे बैठ गये।अपनी थाली मेज पर लगी देखकर उसने प्रश्न किया तब जेठानी बोली,” मानसी..तुम्हें नीचे बैठने में परेशानी होगी तो..।” तब तक मानसी अपनी थाली लेकर सबके साथ बैठ चुकी थी।रात में वह काफ़ी देर तक जेठानी के कमरे में बैठकर बातें करती रही।
सुबह नाश्ता करके अंशु-रुनझुन अपनी दीदी-भैया के साथ खेलने निकल गये तब मानसी रसोई में जाकर बोली,” दीदी..मैं सब्ज़ी बना देती हूँ।”
” नहीं रे….हाथ जल गये तो देवर जी मेरी खबर लेंगे।” हँसते हुए बोली तो मानसी भी उसी लहज़े में बोली,” जल जाये हाथ…।”कहकर वह सब्ज़ी बनाने लगी।रात को सास-ससुर, जेठ-जेठानी, मनीष और वो एक साथ बैठकर बातें करते,ताश खेलते और अंतराक्षरी खेलते…।ससुर को गाना गाते देख तो वह दंग रह गई।वह सोचने लगती है कि जिन बातों को सोचकर मैं डर जाती थी, उन्हीं में आज मुझे कितना आनंद आ रहा है।मम्मा ने ठीक ही कहा था कि अपनों के साथ समय बिताने में ही सच्ची खुशी मिलती है।एक दिन वह सास के साथ अपने खेत-खलिहान भी देखने गई थी और आकर पति से बोली,” मनीष…कितना सुंदर है तुम्हारा गाँव..।”
” मेरा नहीं मानसी..हमारा गाँव..।”
” हाँ-हाँ..हमारा गाँव।” मानसी ने गर्व से कहा।
इसी तरह से खाते-पीते,हँसते-खेलते और बातें करते हुए एक सप्ताह बीत गये।एक दिन सुनयना जी का फ़ोन भी आया तो मानसी इतना ही कह पाई कि मम्मा..बाद में बात करती हूँ..अभी फ़ार्म हाउस देखने जा रही हूँ।
बच्चों की छुट्टियाँ समाप्त हो चुकी थी..मनीष ने मानसी को सामान पैक करने को कहा तो वह रुआँसी होकर बोली,” मनीष…कुछ दिन और रह …।”
” अगली छुट्टी में फिर आ जाएँगे..।” हँसते हुए मनीष बोला तो वह उत्साह-से अपना पैकिंग करने लगी।विदा होते समय जेठानी से गले मिली तो अपने आँसू नहीं रोक पाई।
दो दिन बाद सुनयना जी का फ़ोन आया।उन्होंने पूछा कि कैसी रही छुट्टियाँ तब मानसी चहक उठी,” इट वाॅज़ रियल हैप्पिनेस मम्मा…बहुत मज़ा आया…बच्चों ने तो जमकर मस्ती की थी।पिक्स(picture) तो आपने देखे ही हैं।मम्मा…अंशु की नेक्स्ट वकेशन में आप और डैड भी हमारे साथ चलियेगा..और ना मम्मा…।” वह बोलती जा रही थी…पीछे खड़े मनीष मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे और चौधरी जी पत्नी की आँखों में देखते हुए बोले,” बधाई हो…तुम्हारी लाडली ससुराल चली गई।”
विभा गुप्ता
स्वरचित, बैंगलुरु
# छोटी-छोटी बातों में खुशियों को तलाश करना सीखो
Nice story
Absolutely