Moral stories in hindi : उर्मि की शादी की दसवीं सालगिरह थी।विवेक ने सरप्राइज पार्टी प्लान की थी।सुबह से उर्मि के कान तरस रहे थे,विवेक के मुंह से हैप्पी एनिवर्सरी सुनने के लिए।ऐसा पिछले नौ सालों में कभी नहीं हुआ कि विवेक अपनी शादी की सालगिरह भूले हों।
बच्चों का जन्मदिन, उर्मि का जन्मदिन हमेशा उत्साहित होकर मनाया था उन्होंने।लाख रोक -टोक करने पर भी एक महीने पहले ही केक का ऑर्डर और फोटोग्राफर की बुकिंग कर देते थे।पूरी कॉलोनी को निमंत्रण देना नहीं भूलते थे।मां को एक दिन पहले ही खीर के लिए ज्यादा दूध लेने की याद दिला देते थे।
आज वही विवेक सुबह ऑफिस चले गए सामान्य होकर। उर्मि के गले से यह बात उतर ही नहीं थी,गुस्से से चेहरा तमतमा रहा था।शाम को मां ने ही विवेक का फोन रिसीव किया।खुशी से लगभग चीखते हुए बोलीं”देखी!मेरा बेटा कुछ भूलता नहीं।मैं ना कहती थी,उसे जरूर याद होगा।जा,अब जल्दी से तैयार हो जा।उसकी दी हुई काली साड़ी ही पहनना।
“जलसा में पार्टी दे रहा है।आता ही होगा।जाकर तैयार हो जा,जल्दी।”उर्मि का मन तो किया मां के मुंह पर ही सुना दे,पर बच्चों के चेहरे पर खुशी देखकर चुपचाप तैयार होने लगी।बड़े आए,याद रखने वाले।एक बार विश करने से कौन सा महाभारत अशुद्ध हो जाता।बड़बड़ाती हुई काली साड़ी पहन ही रही थी
कि,बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई।दरवाजे से विवेक का चिल्लाना शुरू हो गया था”उर्मि!ओ उर्मि,जल्दी करो बाबा।सात बजे सब पंहुंच जाएंगे होटल।”सबके सामने कुछ बोल भी नहीं पाई।मुंह फुलाकर बच्चों और मां को लेकर गाड़ी में बैठ गई उर्मि।दस मिनट में विवेक भी तैयार होकर आ गए।
कुछ ही देर में होटल के सजे-धजे लॉन में पहुंच कर उर्मि ने देखा,उसके विद्यालय का पूरा स्टॉफ उपस्थित हैं।विवेक के ऑफिस वाले भी स्वागत में खड़े थे।मेज पर बड़ा सा केक रखा हुआ था।विवेक के साथ केक काटकर जैसे ही उर्मि ने अपना चेहरा ऊपर उठाया,एक परिचित चेहरे को देखकर चौंक गई।यह तो समीर है।यहां कैसे आया?इसे किसने बुलाया होगा? उर्मि की पार्टी की खबर इसे कैसे हुई?”
“उर्मि,इनसे मिलो,ये मि समीर हैं।अभी छह महीने पहले ही अहमदाबाद से ट्रांसफर होकर यहां पुणे आएं हैं।बहुत मेहनती हैं।अरे हां!ये भी जबलपुर से ही हैं।रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय से ग्रैजुएट हैं।”विवेक ने समीर का परिचय उर्मि से करवाया,तो उर्मि मानो सपने से जगी।समीर ने शालीनता से हांथ जोड़कर सालगिरह की मुबारकबाद दी। उर्मि ने जवाब देना उचित नहीं समझा।काफी असहज हो रही थी उर्मि।बड़ी मुश्किल से पार्टी खत्म हुई।घर वापस आकर विवेक से नजरें मिलाने में भी संकोच हो रहा था।
एक पुरुष का अहंकार कब सुखी जीवन के बीच आ जाए,पता नहीं।पति कहां अपनी पत्नी के मायके वाले दोस्त को सहर्ष स्वीकार कर सकतें हैं।विवेक वैसे पति कम और मित्र ज्यादा थे, उर्मि के। रूढ़िवादी परंपराओं से इतर उन्होंने कभी उर्मि के नौकरी करने पर विरोध नहीं किया।
मायके की हर परेशानी में खुलकर साथ दिया उसका। उर्मि कभी कोई बात नहीं छिपाती थी उनसे,यह उसका स्वभाव था।आज फिर विवेक से क्यों नजरें चुरा रही है वह?विवेक ने सहजता से उर्मि की चुप्पी को गुस्सा मानकर माफी मांग ली। सरप्राइज वाली बात मां ने ही उनके दिमाग में डाली थी।
अब उर्मि का कोई भी दिन सामान्य नहीं बीतता।हर समय एक डर सा सताने लगा था।ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।टिफिन लाकर जब विवेक उसके खाने की तारीफ करते हुए कहते”उर्मि,कल से थोड़ा ज्यादा बना दिया करो खाना भई।सब तुम्हारे खाने की तारीफ करते हैं।तुम्हारा पुलाव तो फेमस हो गया है।
वो समीर भी कह रहे थे ।”विवेक की बात बीच में ही काटकर उर्मि बोली”क्या कह रहे थे,आपके मि समीर?मैं आपके लिए खाना देती हूं,ना कि पूरे ऑफिस के लिए।जिन्हें खाना हो वो,मंगवा लिया करें होटल से।”
विवेक अवाक हो गए, उर्मि का यह रूप देखकर।वह तो ऐसी नहीं थी।जानवरों तक को बुला-बुला कर खिलाने वाली उर्मि हमेशा ही ज्यादा खाना भरकर देती थी।आज यह व्यवहार क्यों?रात को भी आजकल उर्मि पहले की तरह बकर -बकर नहीं करती थी।समीर भी ऑफिस में सीरियस रहने लगा था।पेंटिंग के शौकीन समीर के चित्रों की काफी चर्चा सुनी थी विवेक ने।एक दिन उसके साथ मीटिंग के दौरान लैपटॉप पर शकुंतला जैसी एक पेंटिंग पर नजर पड़ी विवेक की।नीचे लिखा था”रति”।
विवेक अब सब समझ गए थे।
शाम को घर आकर उर्मि को तैयार होने के लिए कहा।अचानक घूमने जाने की बात पर उर्मि भी हैरान थी,पर ज्यादा पूछताछ करना विवेक को पसंद नहीं।तैयार होकर विवेक के साथ एक हॉस्पिटल में पहुंची उर्मि।विवेक ने उसका हांथ पकड़ा और एक केबिन में ले गए।वहां एक महिला बिस्तर पर मरणासन्न थीं।पास ही में समीर बैठा हुआ था।वह विवेक और उर्मि को देखकर चौंक गया।विवेक ने समीर से उसकी पत्नी की तबीयत के बारे में पूछा ,तो वह असहज हो गया।”सर ,आपको कैसे पता चला मेरी पत्नी के बारे में?”
विवेक ने मुस्कुराते हुए कहा”जैसे तुम्हें पता चला मेरी पत्नी के बारे में।”उर्मि ने आश्चर्य से विवेक की ओर देखा तो वह बोले”चलो अभी घर चलते हैं।कल से समीर के लिए खाना देना और उनकी पत्नी से रोज आना मिलने।”मूक होकर उर्मि गाड़ी में बैठते ही रोने लगी।विवेक ने गाड़ी पास के गणेश मंदिर में रोकी।
भगवान की मूर्ति के सामने खड़े होकर बोले विवेक”उर्मि,तुम औरतें अपने पति को खलनायक क्यों समझती हो?हम क्या कभी तुम्हारे नायक नहीं बन पाएंगें?इतना अविश्वास क्यों?तुमने अपना शत-प्रतिशत दिया है हमारे वैवाहिक जीवन को,मेरे माता-पिता को,बच्चों को।तुम्हारी एक ईमानदार छवि है
मेरे हृदय में।हर समय बक-बक करने वाली मेरी उर्मि कभी झूठ नहीं बोलती।फ़िर तुमने अपनी पहचान क्यों छिपाई।याद है तुम्हें,शादी की पहली रात ही हम दोनों ने अपने जीवन के सारे सच एक दूसरे को बता दिए थे।जैसे मैंने तुम्हें बताया था कि मैं एक नर्स के प्रेम में पागल था।शादी भी करना चाहता था ,अपने से दस साल बड़ी उस औरत से।ऐन वक्त पर वह किसी और की हो गई।तुमने कितना मजाक उड़ाया था मेरा।
तुमने भी सहजता से बताया था कि समीर तुम्हारे कॉलेज में पढ़ता था।बहुत अच्छी पेंटिंग करता था।नाटक में एक बार तुमने रति और उसने भुवन का किरदार निभाया था।तुम मन ही मन उससे प्रेम करती थी,पर जाति का भेद था और वह विदेश चला गया था पढ़ाई करने।याद है ना तुम्हें?मुझे याद है ।
अरे!तुम हो ही रति की तरह खूबसूरत।तुम्हारे ऊपर गर्व रहा है सदा मुझे।तुम जैसी आत्मनिर्भर और मजबूत लड़की,अपनी भावनाओं के मोहपाश में पड़कर कभी कमजोर नहीं पड़ सकती।समीर ने पहले ही दिन होटल में तुम्हें देखकर धीरे से”रति”, ही पुकारा था।विदेश से वापस आकर उसने भी शादी कर ली।यह संयोग ही है कि तुम उसके बॉस की बीवी निकली।इसमें तुम्हारा क्या दोष है उर्मि?मेरा प्यार इतना कमजोर तो नहीं कि तुम अपनी पुरानी पहचान मुझसे छिपाओ।तुम शेरनी थी,हो और हमेशा रहोगी।अरे!तुमसे मैं ही अभी तक डरता हूं,तो तुम्हारे सहपाठियों की क्या मजाल?”
विवेक के कंधे पर सर रखकर आज उर्मि ने किनारा पा लिया था।सच ही तो है अपनी पुरानी पहचान,दोस्ती छिपाने की क्या आवश्यकता है?यदि आप वर्तमान के रिश्तों को ईमानदारी से जी रहें हैं।
शुभ्रा बैनर्जी
बहुत सुंदर, हृदय स्पर्शी कहानी.. पर सभी सत्य को उस रूप में नहीं ले पाते.. ऐसे साथी कहानियों में ही मिलते हैं..
खुले दिल वाले संयमित लोग बिरले ही होते हैं। उनकी सोच से किसी का कोई नुक्सान नहीं होता।