सुबह के चार बज रहे थे कोई दरवाजे की सांकल जोर जोर से किवाड़ पर मार रहा था। ऐसा लग रहा था कि किवाड़ ही तोड़ डालेगा।
सुमित्रा नींद से उठी उसे समझ नहीं आ रहा था, इतनी सुबह कौन आया और इतना बेसब्री से किवाड़ कौन पीट रहा है।
उसने पूछा,” कौन है?”
दरवाजेके पीछे से घबराई हुई आवाज में सुमित बोला ,”दीदी दरवाजा खोलो मैं हूँ सुमित।”
” सुमित तुम इतनी सुबह-सुबह क्या बात तुम हॉस्टल से कब आये?” दरवाजा खोलते हुये हड़बड़ाई सी सुमित्रा ने सवाल किया?
“दीदी जल्दी से दरवाजा बंद कर दो मेरे पीछे पुलिस पड़ी है!”
“पुलिस ये तुम क्या कह रहे हो! मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा?” आश्चर्य से पूछते हुए सुमित्रा ने दरवाजा बंद कर कें साँकल चढ़ा दी।
सुमित्रा जयपुर शहर में हवामहल के पास एक बस्ती में रहने वाली साधारण नयन नक्श वाली मेहनती लड़की है, उसकी उम्र यही कोई पैंतीस साल के आस-पास होगी।
उससे दस साल छोटा उसका एक भाई है सुमित जब सुमित्रा बीस साल की थी, तभी उसके माता पिता का एक एक्सीडेन्ट में स्वर्गवास हो गया!
माता पिता के सिवा सुमित्रा और सुमित की देखभाल करने वाला कोई नही था।
सुमित्रा उस समय बीए द्वितीय वर्ष में पढ़ रही थी।
अचानाक माता पिता की मृत्यु के बाद उसको अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी और छोटे भाई की पालन पोषण की जिम्मेदारी उसके ऊपर आ गई।
उसके पिता की छोटी सी ‘बिसाती’ की दुकान वहीं हवामहल के करीब थी। दुकान पर रंगबिरंगे मोती मनकों की माला, हस्त कलाओं से निर्मित कई तरह की वस्तुयें बिकती थी। सुमित्रा अब उसी दुकान पर बैठने लगी !
उसको भी सुंदर सुंदर रखियाँ बनानी आती थी। पहले वो छोटे भाई के लिये हर रक्षबंधन में अपने हाथ से राखी बनाती थी।
लेकिन अब दुकान पर बेचने के लिये राखी बनाने लगी उसकी राखियों की सुंदरता देख कर रक्षाबंधन में अच्छी विक्री होने लगी जिससे उसकी आमदनी में इजाफा होने लगा।
भाई सुमित की पढ़ाई का खर्चा भी निकलने लगा दिन रात मेहनत करके पैसे जोड़ती, खुद बहुत ही साधरण ढंग से रहती पर भाई को कोई कमी नहीं होने देती।
हाँ एक बात थी वो प्रत्येक रक्षाबंधन पर अपने भाई के लिये स्पेशल राखी बनना कभी नहीं भूलती, वो पवित्र धागों की पवित्रतता से बनाई राखी होती वैसी राखी वो दूसरी नही बनाती थी।
क्योंकि वो चाहती थी उसके प्यारे भाई की कलाई पर जो राखी हो वो पूरे जयपुर में किसी की कलाई पर नही होनी चाहिए क्यो कि उसके भाई में उसकी जान बसती थी!वो अपने भाई को सबसे अच्छा बनानाचाहती थी।
दिन गुजरते गये भाई सुमित अब बारहवीं पास कर चुका था।
सुमित्रा ने सुमित को ग्रेजुएशन करने के लिये दिल्ली के एक कालेज में एडमिशन करा दिया और हॉस्टल में रहने की व्यवस्था कर दी।
सुमित्रा को अब और अधिक पैसों की जरूरत थी, अतः वह दिन रात मेहनत करने लगी और सुमित पर उतना ध्यान नही दे पा रही थी।
एक तो दिल्ली दूर था आने जाने में समय भी लगता और पैसे भी खर्च होते और दुकान अलग से बंद करनी पड़ती तो आमदनी भी नही होती।
इस लिये वो ख्याल नही रख पा रही थी। उसने सोचा अब सुमित कोई छोटा बच्चा थोड़ी रहा अब बड़ा हो गया है वो अपना ख्याल खुद रख लेगा।
उधर कालेज में सुमित कुछ गलत लड़को की संगत में पड़ गया और उसकी आदत बिगड़ गई वो सट्टा लगाने लगा, वो किसी न किसी बहाने अपनी बहन से पैसे मंगाने लगा।
जब सुमित्रा पूछती,”पैसे किस लिये चाहिये अभी कुछ दिन पहले तो भेजे थे ?”
तो सुमित कहता,” आज बुक्स लेनी है , कभी कालेज में कोई फंक्शन के लिए जमा करने हैं।” कुछ ना कुछ बहाने बना देता।
दिन पर दिन उसकी पैसों की डिमांड बढ़ती जा रही थी। एक वर्ष तक ऐसा ही चलता रहा अब सुमित्रा परेशान रहने लगी।
दिन रात मेहनत कर के भी वो पूरा नही कर पा रही थी अब उस का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता था।
फिर सावन आ गया और रक्षाबंधन आने वाला था उसने हिम्मत जुटा कर राखियाँ बनाना शुरू किया अच्छी अच्छी राखियाँ बनाई और इस बार राखी खूब बिकी आमदनी भी अच्छी हुई। हर बार की तरह इस बार भी सुमित के लिए भी स्पेशल वाली राखी बनाई।
देखते-देखते रक्षाबंधन का दिन आ गया, वो भाई का बेसब्री से इंतजार कर रही थी, बार बार दरवाजे पर जाती और बाहर झांक कर दूर तक देखती जहाँ तक गली दिखती थी, पर सुमित नही दिखाई पड़ता फिर लौट आती। इंतजार करते-करते शाम हो गई पर सुमित नही आया।
अब सुमित्रा को चिंता होने लगी, उसका दिल घबरा रहा था और बेचैनी बढ़ रही थी कहीं कोई अनहोनी तो नही हो गई!
आज पहली बार ऐसा हुआ कि वो सुमित की कलाई पर राखी नही बांध पाई थी। सुमित के जन्म से अबतक हर साल सुमित की कलाई पर राखी सजी है पर आज नही बंध पाई!
उसको चैन नहीं पड़ रहा था उसने पीसीओ जा कर सुमित के हॉस्टल में फोन लगाया सुमित से बात की उसने कहा, “कल परीक्षा है इस लिए नही आया।”
पर उसने अपनी दीदी से झूठ बोला था! वह दोस्तों के साथ सट्टा लगाने में व्यस्त था।
कुछ दिनो बाद उस के पास पैसे खत्म हो गये,वो जयपुर आया और दो दिन रुका।
उसकी दीदी ने फीस जमा करने के पैसे दिये और कहा और पैसों की जरूरत हो तो बताना लेकिन सुमित को सट्टा लगाने की बुरी लत पड़ चुकी थी!
उसने रात को सुमित्रा के सोने के बाद अलमारी से उसकी सारी जमा पूंजी चुरा ली और अगले दिन दीदी से विदा लेकर चला गया।
उसने सोचा इस बार बड़ा सट्टा लगाऊँगा और पैसे दुगने कर के चुपचाप अलमारी में रख दूँगा!
उधर किसी तरह पुलिस को सूचना मिली कि हास्टल में सट्टेबाजी का खेल चल रहा है , पुलिस ने छापा मारा और कई लड़कों को पकड़ लिया लेकिन सुमित पता नही किस तरह दीवार फांद कर भाग निकला लेकिन कहते हैं ना बुरे काम का बुरा नतीजा होता है।
पकड़े गए साथियों मे किसी ने सुमित के घर का पता बता दिया। सुमित घर पहुंचा ही था, और दीदी को मनगढंत कहानी सुना ही रहा था, कि थोड़ी देर में पुलिस भी आ गई।
पुलिस ने सुमित्रा को पूरी सच्चाई बताई सुमित्रा अपना सिर पकड़ कर वहीं धम से फर्श पर बैठ गई।
सुमित को पुलिस लेकर जाने लगी तो सुमित ने पुलिस वाले से अपनी दीदी से दो मिनट बात करने की इजाजत मांगी, पुलिस ने हामी भर दी।
सुमित सुमित्रा के पैरों पर गिर पड़ा और गिडगिडाते हुए बोला,” दीदी तुम मुझे कभी माफ मत करना,कभी नही!
मै आपका गुनहगार हूँ। आप की माफी के कबिल नही…मैंने तुम्हारी राखी की पवित्रता को नष्ट किया और तुम्हारे विश्वास को धोखा दिया।इस लिए आप कभी मुझे माफ मत करना!”
कुछ पल रुककर सांस ली फिर बोला,” मुझे लगता था मेरा ‘बुरा वक्त’ कभी नही आयेगा, पर मैं गलत था बुरे काम का “बुरा वक्त” जरूर आता है। मुझे इस “वक्त का डर” होना चाहिए था,पर नही था, मै अंधा हो गया था।” इतना कहकर वो चला गया पुलिस के साथ।
हथकड़ियों से जकड़े हांथों में जाते हुये सुमित को देखकर सुमित्रा उठी और भरी हुई आवाज में बोली,”भाई ‘वक्त का डर’ सभी को होना चाहिये नही तो सभी निरंकुश हो कर बुरे काम करेंगे, और फिर उनका ‘बुरा वक्त’ आता जरूर है ये ‘अटल सत्य’ है! इसलिए ‘वक्त से डरो’!
जा भाई अपने किये की सजा काट कर आ, मैंने तुम्हे माफ किया”!!
सुनीता मौर्या “सुप्रिया”
#वक्त से डरो