“ ममी मेरी वो जयपुरी लहरिया लाल पीली चुन्नी नहीं मिल रही, कहीं देखी आपने, आज कालिज में तीज उत्सव मनाया जा रहा है, तो मैनें वो ओढ़नी थी” छवि ने तैयार होते होते मां से पूछा।
“ मिलेगी कहां से, वो तो छाया को ओढ़े देखा मैनें, अभी अभी तो गई है , तेरे कमरे से ही तो निकली थी” मल्लिका ने रसोई में से ही उत्तर दिया“ओफ्फ, ये लड़की भी ना,पूछे ना, लेकिन कम से कम बता तो दे, छवि झुझंलाते हुए बोली। तूने ही सर पे चढ़ा रखा है उसे, तभी हर समय अपनी मनमर्जी करती रहती है, मल्लिका ने कहा।
चलो छोड़ो, कोई बात नहीं, छोटी है ना, और छवि फुलकारी पहन कर चली गई।दोनों बहनों का प्यार देखकर मल्लिका के चेहरे पर गर्वमिश्रित मुस्कान तैर गई। बच्चों का आपसी प्यार देखकर हर मां बाप खुश होता ही है।
छवि और छाया दोनों बहनें और एक छोटा भाई अंकुर जो कि इन दोनों से काफी छोटा था। छवि और छाया की उम्र में तीन साल का अंतर था आदतों में एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत। जहां छवि एक दम ठहरे हुए स्वभाव की, शांत, शीतल , मितभाषी, आज्ञाकारी, कुछ शर्मीली सी, वहीं छाया चंचल हिरणी सी, बिना सोचे समझे जो मुँह में आया बोल दिया, और खर्चीली होने के साथ साथ फैशन नेवल भी।
वो तो इन्के पिता हरदीप कुछ गर्ममिजाज के थे तो थोड़ा डर था। छवि एम. काम. के फाईनल इयर में थी तो छाया दूसरे कालिज में फैशन डिजाईनिंग का कोर्स कर रही थी।
दोनों बहनों में बनती तो बहुत थी, लेकिन अपने जेब खर्च में छाया की पूरी न पड़ती और वो छवि के प्यार का नाजायज फायदा उठाती। दोनों का साईज लगभग एक ही था तो हर चीज पर पहला हक उसी का होता।
पल्लवी तो टोकती मगर छवि हंस कर टाल देती।कुछ महीनों पहले छवि और रेयांश में किसी सैमीनार में दोस्ती हुई। दरअसल रेयाशं वहां पर स्पीकर के तौर पर आया था और छवि ने भी वो सैमीनार अटैंड किया।
वहां पर छवि की बातचीत का अंदाज, डिस्कशन सैशन वगैरह में वह छवि से काफी प्रभावित हुआ, और दो चार मुलाकातों में ही न जाने कब उनमें दोस्ती हो गई।
एक दिन उन दोनों को छाया ने इकट्ठे किसी कैफे में बैठे देख लिया तो उसके हाथ तो जैसे हुक्म का इक्का लग गया। छवि तो उसे कुछ वैसे ही नहीं कहती थी, पर छाया अब तो बात बात पर उसे धमकी देती कि वो रेयांश से मिलने वाली बात घर में बता देगी।भले ही वो हंसी मजाक में कहती लेकिन छवि के मन में कुछ भय तो था ही। पिताजी का गर्म स्वभाव और रेयांश का विजातीय होना। रेयाशं में कोई कमी नहीं थी। हर तरह से वो छवि से इक्कीस ही रहा होगा।
छवि अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद ही इस रिश्ते में आगे बढ़ना चाहती थी, मुंह से भले ही दोनों ने कुछ नहीं कहा लेकिन दोनों तरफ प्यार के अंकुर फूट चुके थे। आजकल पता नहीं छाया को क्या हो गया, कोई बात होती चुपके से उसके कान में ‘ राज खोलने’ की बात कह देती और छवि का दिल धक से रह जाता।
घर का काम तो वो पहले ही बहुत कम करती थी, अब तो बिल्कुल ही बंद कर दिया। उसके हिस्से का काम भी छवि करती। उस दिन तो हद ही हो गई,छाया के कालिज का लड़के लड़कियों का दो दिन का टूअर जा रहा था। छाया को पता था कि घर से प्रमिशन नहीं मिलने वाली, हां अगर छवि भी ये कह दे कि सिरफ लड़कियां ही जा रही है तभी छाया जा पाती।
झूठ बोलना छवि के बस का नहीं था, लेकिन अपना राज छुपाने के लिए उसने ये किया। उसे ग्लानि तो बहुत हुई और छाया पर गुस्सा भी आया लेकिन वो भी जैसे दिल के हाथों मजबूर थी। अगले तीन चार महीनें कई बार छाया ने छवि को ब्लैकमेल किया। चाहे छोटी छोटी बातें थी लेकिन छवि तंग आ चुकी थी।
डिग्री पूरी हो गई थी,एक दिन छवि ने मल्लिका को सब बता दिया। बात पिताजी तक पहुचीं। थोड़ा जातीय विरोध तो था मन में लेकिन बाकी सब बहुत अच्छा था तो वो मान गए, रेयाशं और उसके परिवार से मिल भी लिए, लेकिन रेयांश के पिताजी दो महीने के लिए कैनेडा गए हुए थे तो बाकी बातचीत उनके आने पर होनी थी।
छवि के मन से बहुत बड़ा बोझ उतर गया।छवि के कहने से छाया को कुछ नहीं बताया गया था, वैसे भी वो अपने में ही मस्त रहती। परतुं छाया की धमकियों का अब छवि पर कोई असर नहीं था। छाया हैरान थी, एक दिन गुस्से में आकर उसने मां के सामने अपनी और से छवि का राज खोल दिया।
पल्लवी ने शांति से सिर्फ इतना ही कहा, कोई बात नहीं, देखते है, आखिर शादी तो करनी है।लेकिन मां वो विजातीय ——-इसके आगे वो कुछ बोलती, मां ने कहा, कोई बात नहीं जमाना बदल चुका है। छाया दिल की बुरी नहीं थी, बस बचपना था। कुछ महीनों बाद छवि और रेयांश की धूमधाम से शादी हो गई। रेयांश आज भी छाया को छेड़ते हुए मजाक में कहता है, क्यूं साली साहिबा, आखिर खोल ही दिया हमारे इश्क का राज।
और छाया झेंपते हुए कहती” तो क्या हुआ, इकलौती साली हूं , मजाक करने का इतना हक तो बनता ही है, और तीनों हँस देते।
मुहावरा-राज खोलन विमला गुगलानी चंडीगढ़ मुहावरा—राज खोलना