दीदी क्या बात है आजकल आपने मायके आना छोड़ ही दिया है। इस बार गर्मियों की छुट्टी पर भी आप हमसे मिलने नहीं आई ??
नहीं नहीं भाभी ऐसी कोई बात नहीं है। वह तो बस मैं इन दिनों थोड़ा व्यस्त रहने लगी हूं। शिव को भी मैंने इस गर्मी की छुट्टियों में एक्स्ट्रा क्लास ज्वाइन करवा दी थी और फिर मेरी सास की भी तबीयत ठीक नहीं थी, तो मैं उन्हें अस्वस्थ हालत में कैसे छोड़ कर आ सकती थी,और किसके सहारे छोड़ कर आती।
तुषार को भी ऑफिस के काम से बाहर जाना पड़ गया था। ऐसे में मेरी सासू मां कैसे अकेले रहती, कैसे उनका मन लगता,और कौन उनकी देखभाल करता।
तुम तो जानती हो भाभी। तुषार इस घर के इकलौते बेटे हैं इसीलिए उनकी पत्नी होने के नाते यह तो मेरा फर्ज बनता है। बस और कोई बात नहीं है भाभी। वरना मैं जरूर आती, कह कर रेवती ने फोन रख दिया और सोचने लगी।
जिस आंगन में खेल कर मैं बड़ी हुई। मां बाबूजी भाई रमन के साथ इतनी यादें जुड़ी हुई है। उसे मैं कैसे भूल सकती हूं। अपने मायके जाना किसे अच्छा नहीं लगता । मुझे इस तरह मौन देखकर तुषार मुझसे पूछ बैठे।
क्या बात है रेवती, जब से तुमने अपनी भाभी से बात की है । तब से बहुत उदास देख रहा हूं। तुषार की बात सुनकर मैं शांत मन से बोल उठी। तुषार नवमी भाभी से बात करते हुए मुझे वहां की बातें याद आने लगी, तो मैं थोड़ी मौन हो गई,बस और कुछ नहीं, कह कर मैं रसोई की ओर चल पड़ी।
मैंने कहने को तुषार को तो कह दिया, मगर बात यहीं खत्म नहीं हुई थी। मैं फिर सोचने लगी। मैं अपने मायके की बातें तुषार से कैसे कह सकती हूं। तुषार के मन में फिर मेरी भाभी के प्रति कोई सम्मान नहीं रह जाएगा। वैसे नवमी भी बुरी नहीं है, मगर जब भी मैं अपने मायके जाती हूं, तो एक-दो दिन तो
सब ठीक चलता है, मगर फिर नवमी मां के बारे में मुझे कुछ ना कुछ कहती ही रहती है और तो और उस बीच कोई पड़ोसी परिचित आकर बैठ जाए तो वो इस बात को और भी बढ़ा चढ़ा कर कहने लग जाती है।
मुझ तक तो फिर भी ठीक था, मगर कम से कम पड़ोसी के सामने तो अपने घर के राज नहीं खोलने चाहिए क्योंकि मुझे लगता है। जब तक कोई बात कहनी जरूरी ना हो । घर के राज घर में ही रहने देना चाहिए मगर नवमी ऐसा नहीं करती है।
वह तो यह भी नहीं सोचती। मुझे अपनी मां के बारे में सुनकर कितना बुरा लगता है। यही सब सोचते सोचते मैं फिर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गई।
आज अचानक सुबह सुबह डोर बेल बज उठी। मैंने जैसे ही दरवाजा खोला। भाई रमन और भाभी नवमी को देखकर मैं खुश होने के साथ-साथ चहक कर बोल उठी। अरे वाह आज इस तरह अचानक सुबह सुबह आकर तुम दोनों ने तो मेरा दिल खुश कर दिया।
आते कैसे नहीं दीदी, आपने जो आना छोड़ दिया है कहते हुए रमन और नवमी मेरे कदमों में झुक गए। मैं भी उन दोनों को ढेरों आशीर्वाद देते हुए कहने लगी।
अरे ऐसी कोई बात नहीं है। मैं इन दिनों में कुछ ज्यादा ही व्यस्त थी। मैंने नवमी भाभी से कहा तो था। रमन कुछ कहता उसके पहले ही नवमी मुझे बोल उठी थी। दीदी मुझे क्षमा कर दीजिए। मैं जानती हूं। आपने आना क्यों छोड़ दिया है।
सच कहूं तो दीदी, मैं मन की बुरी नहीं हूं, मगर थोड़ी नासमझ जरूर हूं, तभी तो मैंने मां के बारे में आपसे तो कहा सो कहा, मगर मैं आपकी उपस्थिति में पड़ोसियों से भी कह जाती थी। जो कि मेरा सबसे गलत कदम था।
मगर दीदी इस गर्मी की छुट्टियों में आपके नहीं आने से रमन बहुत निराश हो गए और मम्मी जी का तो कहना ही क्या? वह तो अब मुझे कुछ भी नहीं कहती है, और दीदी सच कहूं तो मुझे भी इस बार जब आप नहीं आई, तो मुझे बहुत खालीपन महसूस हुआ।
लोग ठीक कहते हैं, जिस घर में बहन बेटी ना हो । उस घर के आंगन को बड़ी उदासी झेलनी पड़ती है कहते कहते नवमी की आंखों से आंसू बह निकले। नवमी भाभी को इस तरह देखकर मुझ से रहा न गया और उसे गले से लगाते हुए मै बोल उठी।
भाभी प्लीज तुम इस तरह मत सोचो। यह सच है मुझे कभी कभी तुम्हारी बातें सुनकर बहुत तकलीफ होती थी। मगर मैं भी किसे कहती, अगर तुषार से कह देती, तो शायद उसकी नजरों में तुम्हारा सम्मान नहीं रहता इसीलिए मैं अंदर ही अंदर बहुत घुटन महसूस कर रही थी ।
आज बहुत अच्छा किया जो तुम और रमन यहां आ गए। मेरी बात सुनते ही नवमी फिर दुखी मन से बोल उठी। दीदी आपने तो जीजा जी के सामने अपने मायके के राज नहीं खोले,मगर मैं तो पड़ोसी तक के सामने अपने घर के राज खोल गई । जो मुझे कभी नहीं खोलने चाहिए थे।
रमन जो इतनी देर से हम दोनों की बातें सुन रहा था,मुस्कुरा कर बोल पड़ा। अब तो ननद भाभी सॉरी और प्यार वाला नाटक बंद करो। प्लीज दीदी मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है।
भाई द्वार पर आया है, मगर एक मेरी दीदी है। जो अपने भूखे भाई का पेट इन आंसुओं से भर रही है। जबकि बचपन में तो अपने हिस्से तक का मुझे खिला देती थी। रमन की बात सुनकर मैं हंस पड़ी और कहने लगी ।
अरे भाई आज भी वही होगा क्योंकि तुम्हारे जीजा जी नाश्ता करके आज जरा जल्दी ही ऑफिस जा चुके हैं,और तुम लोगों ने मुझे पहले कोई खबर नहीं दी, तो आज भी तुम्हें मैं अपने हिस्से का ही खिलाऊंगी क्योंकि तुम्हें बड़ी भूख लगी हुई है,रही बात मेरी और नवमी भाभी की तो, वह मैं अभी फटाफट तैयार कर लूंगी कह कर मुस्कुराते हुए रसोई की ओर चल दी।
सच कहूं तो आज मेरा मन बेहद खुश था क्योंकि नवमी को यह बात अच्छी तरह समझ आ गई थी कि घर के राज खोलने नहीं चाहिए और हर किसी के सामने तो हरगिज नहीं।
स्वयं रचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम