राज खोलना – डाॅ संजु झा

पिछले कुछ दिनों से बैंक प्रबंधक रमण जी काफी परेशान थे।एक तो दिनभर बैंक में माथा-पच्ची और घर आने पर पत्नी और बच्चों का डरा सहमा चेहरा उनकी पेशानी पर चिंता की रेखाऍं डाल रहा था।पत्नी सीमा ने नाम -पता विहीन पत्र पकड़ाते हुए कहा -“देख लो!तीसरी बार यह धमकी भरा पत्र आ

चुका है!अब पानी सर से ऊपर जा चुका है।टालने से  चलनेवाला नहीं है, सुबह-सुबह थाने जाकर गुमनाम व्यक्ति के खिलाफ रिपोर्ट कर आओ। बच्चों को स्कूल भेजना भी दूभर हो रहा है!”

रमण जी स्थिति की गंभीरता को समझ रहे थे।एक महीने में तीसरी बार धमकी भरा पत्र आ चुका है।अब तो कुछ-न-कुछ करना ही पड़ेगा।एक बार फिर से लिफाफे से निकालकर पत्र पढ़ने लगे।पत्र में

वही पुरानी बातें लिखी थीं -“मुझे जल्द -से-जल्द पचास हजार रूपए दे दो, नहीं तो तुम्हारे दोनों बच्चे अपहृत कर लिए जाएंगे।”

सीमा भयभीत नजरों से पति की ओर देख रही थी।रमण जी वैसे तो बहुत ही ईमानदार और निर्भीक किस्म के व्यक्ति थे, परन्तु जब संतान पर बात आ जाती है,तो बड़े -बड़े साहसी व्यक्ति भी साहस खोने

लगते हैं। घर के मुखिया होने के नाते  परिवार का मनोबल बनाए रखना उनका कर्त्तव्य था।कुछ दिनों पहले उन्होंने नए घर में बहुत सारे काम करवाऍं थ। पत्नी का मन भटकाने के लिए मकान के काम

सम्बन्धित बातें करने लगे। उन्होंने पूछा -“सीमा! बढ़ई ने बाकी बचा हुआ  काम पूरा कर दिया था?”

सीमा -“हाॅंं! बढ़ई का काम तो पहले ही पूरा हो चुका था।आज बस छोटे-मोटे ही काम थे, जिन्हें करके चला गया है।”

रमण। -“तुमने उसे पैसे तो नहीं दिऍं?”

सीमा -” नहीं!पैसे तो नहीं दिऍं, परन्तु जाने से पहले पैसों के लिए जिद्द कर रहा था।”

रमण-“अब उस बढ़ई को एक पैसे और नहीं दूॅंगा।एक तो उसने काम भी अच्छा नहीं किया है,दूसरा एडवांस भी अधिक ले रखा है।”

सीमा -“छोड़ो उस बात को।सो जाओ।सुबह तुम्हें थाना भी जाना है!”

अगले दिन रमण जी ने दोनों बच्चों को स्कूल जाने से मना कर दिया।खुद जल्दी से तैयार होकर थाना की ओर चल दिऍं।थाना प्रभारी उनका परिचित था। उन्हें देखकर पूछा -“मैनेजर साहब!आपको थाना आने की क्या जरूरत पड़ गई?”

रमण जी ने‌ गंभीर मुद्रा में थाना प्रभारी के हाथों में गुमनाम चिट्ठी पकड़ा दी।

 पत्र पढ़कर  थाना  प्रभारी  ने पूछा मैनेजर साहब!घर  या बैंक में किसी से झगड़ा या दुश्मनी है?”

रमण जी ने सोचते हुए कहा -“सर!ऐसी तो कोई बात याद नहीं आ रही है!”

थाना प्रभारी ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा -” मुझे तो यह किसी टूटपूजिऍं का काम लगता है।फिर भी मैं कल आकर अपने‌ स्तर पर पूरी जाॅंच करूॅंगा।आप आश्वस्त होकर बैंक जाईए।”

थाना प्रभारी की बातों से रमण जी को थोड़ी तो तसल्ली हुई। बैंक जाकर अपने काम करने लगे, परन्तु मन में उधेड़बुन चल ही रही थी।काम खत्म होने पर शाम में घर आ गए।घर आकर धम्म से सोफे पर

पसर गए। शारीरिक थकान से ज्यादा मानसिक थकान व्यक्ति को पस्त कर देती है।पत्नी चाय-नाश्ता उनके सामने रख देती है और पूछती है -“थाना प्रभारी ने क्या कहा?”

रमण जी -“कल आकर गुमनाम पत्र का राज जानने की कोशिश करेगा।”

अगले दिन से एक सप्ताह तक पुलिस ने बैंक कर्मचारियों और घर के पड़ोसियों से गहन पूछताछ की, परन्तु नतीजा वही ‘ढ़ाक के तीन पात ‘ वाला ही रहा।कुछ दिनों तक तो पुलिस ने उनके बच्चों को

स्कूल के समय में सुरक्षा मुहैया करवाई।  धीरे-धीरे इसे किसी की शरारत मानकर इस केस में रूचि लेनी बंद कर दी, परन्तु रमण जी के घर में धमकी भरी चिट्ठी आनी बंद नहीं हुई।

रविवार का दिन था,रमण  जी को इस मुसीबत से छुटकारा पाने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था।

मस्तिष्क  में  कुछ अनहोनी सोचकर बुरे-बुरे ख्दियाल आ रहे थे।काफी दिनों बाद उसी समय उनके दोस्त सूरज जी मिलने आ गए। उन्हें परेशान देखकर पूछा -“दोस्त!कुछ परेशान लग रहे हो?”

रमण जी अचकचाते हुए -“नहीं तो!”

सूरज जी -“दोस्त! नहीं बताना चाहते हो,तो कोई बात नहीं!”

रमण जी  अपने दोस्त से अधिक देर तक बात छुपाऍं नहीं रख सके। उन्होंने चिट्ठी वाली बात बता दी।

सूरज जी ने सलाह देते हुए कहा -“दोस्त!मेरी सलाह मानो तो घर के दरवाजे पर सी सी टीवी लगवा लो। इससे चिट्ठी डालने वालों का पता चल जाएगा।”

उस समय सी सी टीवी का बहुत कम चलन था।केवल बड़े-बड़े दफ्तरों में ही लगे रहते थे। लगाने में खर्च भी बहुत लगता था।

सोचते हुए रमण जी ने कहा -“दोस्त! विचार तो बहुत अच्छा है, परन्तु महॅंगा भी बहुत पड़ेगा।”

सूरज जी -” दोस्त!अभी केवल परिवार की मानसिक शांति के बारे में ही सोचो, पैसों के बारे में नहीं!”

दोस्त की बात मानकर रमण जी ने चुपचाप घर में सी सी टीवी लगवा लिया।अब सबके मन में थोड़ा -बहुत सुकून मिलने लगा।एक महीने तक कोई गुमनाम चिट्ठी नहीं आई।रमण जी मन-ही-मन सोच

रहे थे -” शायद! अगल-बगल ही किसी की शरारत रही होगी,जिसे सी सी टीवी की भनक लग गई होगी!”

लेकिन रमण जी की सोच निर्मूल साबित हुई।कुछ दिनों बाद फिर से किवाड़ी के नीचे से फेंकी हुई वहीं चिट्ठी मिली।

अगले दिन रमण जी ने थाना प्रभारी को खबर किया।थाना प्रभारी आकर सी सी टीवी खोलकर देखने लगा।रमण जी भी ऑंखें गड़ाए देख रहे थे। ठंढ़ का मौसम होने के कारण अपराधी ने पूरे शरीर को

शाॅल से ढंक रखा था और चेहरे पर मफलर लपेटे हुए था।रमण जी उसे पहचानने की कोशिश कर रहे थे। अवचेतन मन में चेहरा कुछ जाना-पहचाना लग रहा था। उन्होंने थाना प्रभारी से एक बार फिर से

सी सी टीवी की फिल्म दिखाने को कहा।दूसरी बार जैसे ही सी सी टीवी चालू हुआ,वैसे ही रमण जी उछल पड़े-“अरे!इसने तो मेरा स्वेटर पहन रखा है,जिसे कुछ दिनों पहले मेरी पत्नी ने दिया था।”

 ध्यान से देखने पर उस व्यक्ति को भी पहचान गए।वह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि उनके घर में काम करनेवाला बढ़ई ही था।

थाना प्रभारी ने उस बढ़ई को गिरफ्तार कर लिया।सख्ती से पूछने पर उसने बताया -“मैनेजर साहब के घर में लकड़ी के बहुत सारे काम मैंने किए थे, परन्तु काम खराब होने के नाम पर इन लोगों ने मुझे

बहुत कम पैसे दिए।मुझे बहुत नुकसान हुआ,जिसके कारण मैं बहुत तनाव  में रहने लगा। परेशान होकर मैंने यह कदम उठाया।मेरा असली मकसद इन लोगों को भी परेशान करना और मानसिक कष्ट देना था।”

बढ़ई की बातें सुनकर रमण दम्पत्ति अवाक् रह गए।

थाना प्रभारी ने रमण जी की पीठ थपथपाते हुए कहा -“मैनेजर साहब!एक ही झटके में आपकी सारी उदासी,सारे अवसाद उड़न छू हो गए!”

थाना प्रभारी बढ़ई को गिरफ्तार कर ले जाने लगा।रमण जी ने रोकते हुए कहा -” सर!इसे माफ कर

दीजिए।सारी ग़लती इसी की नहीं है। हमलोग भी  स्कूल बस ड्राइवर,मेड,बिजली मिस्त्री,बढ़ई तथा किसी अन्य मेहनतकश मजदूरों का पैसा काट लेते हैं या कम मजदूरी देते हैं,जो उचित नहीं है! आज मेरी ऑंखें खुल गईं हैं!”

थाना प्रभारी -” सचमुच!आपकी बात सही है।गरीब मेहनतकश अपने हक के लिए कब किस रूप में विद्रोह कर दें,कुछ कहा नहीं जा सकता है। कभी-कभी इस कारण भयंकर-से-भयंकर कांड को भी अंजाम दे देते हैं।किसी का हक नहीं मारना चाहिए!”

गुमनाम पत्र का राज खुल चुका था।एक सबक के साथ रमण के परिवार को सुकून मिल चुका था।

समाप्त।

लेखिका -डाॅ संजु झा (स्वरचित)

मुहावरा व कहावतों की लघु-कथा प्रतियोगिता (19-25 जुलाई)

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