यह कहानी हैं एक छोटे से खुशहाल परिवार की ।सावित्री देवी का परिवार उनका बेटा निर्मल और बहु लता उनके दो बच्चे नीला और नवीन।नीला कॉलेज में ग्रेजुएशन कर रही है और नवीन अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई के आखिरी साल में है।
सावित्री देवी ने अपने पति को एक सड़क दुर्घटना में खो दिया था जब निर्मल जी दस साल के थे।सावित्री देवी ने अपने गहने गिरवी रखकर एक छोटी सी दुकान खोली जहां वो पूजा की सामग्री के साथ अपने हाथों के अचार बड़ी पापड़ भी बेचने लगी ।
मकान अपना था तो दोनों मां बेटे का अच्छे से गुजारा होने लगा। निर्मल जी ने कम उम्र से ही अपनी मां के साथ दुकान सम्हालने लगे थे लेकिन सावित्री देवी ने उन्हें ग्रेजुएशन करवाया क्योंकि वो शिक्षा को जरूरी समझती थी ।खुद वो दसवीं पास थी और फिर उनकी शादी करवा दी गई थी।
सावित्री देवी ने खुद चुन कर लता को पसंद कर निर्मल जी से शादी करवाई थी लता भी ग्रेजुएट थी और छोटे बच्चों के स्कूल में वो पढ़ाने जाती हैं क्योंकि सावित्री देवी से उसने कहा था कि उनको पढ़ाना पसंद है तो सास ने बहु का साथ दिया।
सावित्री देवी अनुशासन प्रिय महिला थी।अपने पोती और पोते में कोई भेद नहीं करती है।
नीला और नवीन को हर रविवार अपनी दादी माँ के आदेश से घर की सफाई करना होता था।नीला अपनी दादी के कमरे की सफाई कर रही थी तो अलमारी के कोने में उसे एक पुरानी, धूल से सनी डायरी मिली। उत्सुकता में उसने उसे खोला और पढ़ना शुरू किया। पहला पन्ना ही चौंका देने वाला था – “ये मेरा वो राज है, जो मैंने किसी से नहीं कहा।”
डायरी उसकी दादी की थी, और उसमें उन्होंने अपने पहले प्यार की कहानी लिखी थी। उस ज़माने में जब लड़कियाँ अपनी मर्ज़ी से कुछ नहीं कर सकती थीं, दादी ने एक लड़के से प्यार किया था – राजीव नाम था उसका। दोनों मिलना चाहते थे, शादी करना चाहते थे, लेकिन समाज और परिवार की दीवारें इतनी ऊंचीथीं कि प्यार दबा दिया गया।
एक दिन दादी ने लिखा था, “मैंने राजीव को आखिरी बार स्टेशन पर देखा था। उसकी आँखों में आंसू और मेरे हाथों में चूड़ियां थीं, किसी और के नाम की…”
नीला की आँखों में आंसू थे। इतने सालों से उसने अपनी दादी को सिर्फ़ एक सख़्त और अनुशासनप्रिय महिला के रूप में जाना था, पर आज उसे उनके दिल का दर्द समझ आया।
डायरी के आखिरी पन्ने पर लिखा था – “अगर कोई मेरा ये राज पढ़े, तो बस इतना समझे कि हर इंसान के भीतर एक अधूरी कहानी होती है। किसी को पूरा न कर सको, तो उसे इज़्ज़त से दफना देना सीखो…”।हमेशा राज़ को उजागर करने में ही समझदारी हो ऐसा नहीं है।
नीला ने डायरी को वापस संभालकर रखा और दादी से जाकर गले लग गई। उसने कोई सवाल नहीं किया, क्योंकि कुछ राज़ सवालों के लिए नहीं, समझने के लिए होते हैं।
हर मुस्कुराते चेहरे के पीछे कोई छुपा हुआ राज हो सकता है। समझदारी उसी में है कि हम उस राज को इज़्ज़त से संभालना सीखें।
कुछ राज़ को दफनाने में ही भलाई होती है परिवार के लिए ।
सोमा शर्मा
जमशेदपुर