सुधा के पति मनीष के गुजर जाने के बाद उनका बेटा समर और बहू लीना अपने साथ लंदन ले आए।
उसे बहुत याद आता अपना खुला-खुला घर,छोटा सा बगीचा पुरानी काम वाली संतो उसके बच्चे जो दादी-दादी कहते हर वक्त टाॅफी-चाकलेट और बिस्कुट के लालच में उसके आसपास मंडराते रहते थे,उसका छोटा मोटा काम खुशी-खुशी करते।
पति के साथ पहले नौकरी में फिर रिटायर्मेंट के बाद दोनों अपने सीधे-साधे जीवन में खुश थे।
समर और दो छोटी बेटियों की शादी अपने रिटायर्मेंट के पहले ही करके जिम्मेवारियों से फ्री होकर पेंशन में अच्छे से गुजारा कर रहे थे।
कभी-कभार बेटियां और बच्चे छुट्टियों मे आ जाते तो उनकी बैट्री चार्ज हो जाती उनके जाने के बाद फिर अपनी पुरानी दिनचर्या में लौट आते।समर क्यूंकि दूर था वो साल में एक-आध बार ही आ पाता।
फिर एक दिन अचानक दिल का दौरा पड़ने से सुधा के पति मनीष चल बसे!
सुधा ने मनीष के एकाएक जाने से बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला।
उसने वहीं इंडिया में फैसला लिया पर समर और लीना ने उसे अकेले छोड़ने को तैयार नहीं हुए वे उसे यह कहकर अपने साथ लंदन ले गए कि कुछ हो गया तो समर काम छोड़कर बार-बार भाग कर नहीं आ सकता।
घर बंद कर चाबियां संतो के हवाले कर बसी -बसाई गृहस्थी छोड़ जो उसने तिनका-तिनका कर के जोड़ी थी पति की जाने कितनी खट्टी-मीठी यादों की गठरी बांधे सुधा सात समुंदर पार चली आई।
बेटा-बहू ने किसी चीज की कमी नहीं छोड़ी,पर दोनों काम पर जाते इसलिए घर का काम निपटाने के बाद अकेलापन बहुत खलता ।
दिन तो कट जाता पर रात को पति के साथ बिताया समय,अपना घर,संतो-बच्चे-पड़ोसी बारी बारी आकर मन के दरवाजे दस्तक देते।
एक अजीब सी बेचैनी सुधा को अक्सर हताहत करती।
अपार्टमेंट के पास में एक छोटा सा पार्क जिसमें सुबह कुछ रिटायर लोग वाॅक करने आते शाम को बच्चे भी खेलते।
कोरोना और लंदन की ठंड के मारे लोग-बाग घर से कम निकलते।उस दिन बड़े दिनों के बाद सुधा का धूप में बैठने का मन किया ,वो बाहर निकल कर पार्क में पड़ी बेंच पर बैठ गई,कुछ देर बाद सर पर कैप लगाऐ ओवर कोट और मफलर लगाऐ मास्क पहने एक बुजूर्ग आए और बेंच के खाली हिस्से की तरफ इशारा करते हुए बैठ गए। सुधा सकपका एक तरफ सिकुड़ सी गई ।
“सू” पहचाना मुझे?उन्होने कैप और मास्क हटा कर पूछा?
जिस की आवाज सुन कर,जिस की सूरत देखकर सुधा के मन की तितलियां एक साथ उड़ने लगतीं थीं ,बरसों बाद उसकी आवाज सुनकर आज भी सुधा के गाल लाल हो उठे।सू नाम से तो उसे बस समीर ही पुकारा करता था।
सुधा को एक बार विश्वास ही नहीं हुआ कि कभी चालीस साल बाद यूं इतनी दूर कभी समीर से मुलाकात होगी।
समीर और सुधा पड़ोसी थे एक ही काॅलेज में पढ़ते थे! मन ही मन एक दूसरे को चाहते भी थे पर मुहब्बत का इज़हार कर पाते उससे पहले समीर दुबई चला गया! दोनो के रास्ते अलग हो गए।
“कैसे हो,यहाँ कैसे?सुधा ने फीकी सी हंसी से पूछा!
समीर ने बताया पत्नि के देहांत के बाद अकेला रह जाता इसलिए बेटी टीना यहाँ ले आई।
समीर-और तुम बताओ यहाँ कब से हो?
सुधा-मैं भी इनके जाने के बाद बेटे के साथ अभी आई हूँ।
फिर दोनों पिछले चालीस सालों का कभी ना खत्म होने वाला पुलिंदा खोल कर बैठ गए। पता नहीं चला कब पेड़ों के साऐ लंबे हो गए शाम गहराने लगी।
फिर दोनों शाम पांच बजे का इंतज़ार करते,आकर बेंच पर बैठते पुरानी यादें ताजा करते!
इतवार को सुधा ने समीर को लंच के लिए घर बुलाया और बच्चों से मिलवाया। सब यह देखकर बहुत खुश हुए कि मम्मी का अकेलापन कुछ दूर हुआ।
वहाँ लंदन में एक विधवा और एक अकेले मर्द की दोस्ती का गलत मतलब नहीं निकालते जैसा हमारे यहाँ इंडिया में कानाफूसी शुरू हो जाती है।
दोनों कभी पार्क मे टहलते या कभी-कभार पास के कैफे में काॅफी पी लेते।
लीना समर और समीर की बेटी टीना ने देखा कि उनके मां-बाप का अकेलापन दूर हो रहा है समीर और सुधा एक दूसरे को पहले से जानते हैं तो उन्होने उनके रिश्ते को नाम देने की सलाह दी एक नये बंधन में बंध कर!
पर सुधा और समीर ने एक दम मना कर दिया कि उनका रिश्ता एकदम पाक है वे दोनो उसे कोई नाम देकर उसका अपमान नहीं कर सकते, उन आत्माओं को तकलीफ नहीं दे सकते जो अब इस दुनिया में नहीं हैं।तुम लोगों को कोई तकलीफ़ या ऐतराज हो तो बताओ ! हम अपने अपने घर इंडिया चले जाऐंगे।
तीनों बच्चों ने एक स्वर में कहा “आप लोग जैसे रहना चाहें रहें पर वापस जाने की बिल्कुल भी ना सोचें!
कुमुद मोहन
लखनऊ