लेकिन जैसे ही आरोही उसके सामने आती तो उसके लबों पे एक सन्नाटा सा छा जाता था ।उसकी घबराहट देख आरोही बोल पड़ी !! लगता है मैं हिटलर हूँ ! “जो मुझे देख वीर की बोलती बंद हो जाती हैं , या फिर ये बस भाषण ही लिख सकता हैं “ । ये सुन ! वीर भी बोल पड़ा ना तुम हिटलर हो ! ना ही मैं ख़ामोश हूँ ! बस इस पल ना तुम अपने हो ,ना ही बेगाने हो !! तुम कौन हो ?? कैसे कह दू ?? एक पहेली बन हवासों पे छाए हों .. …..
वाह वाह बहुत खूब !! वहाँ खड़े सब लोग उसकी शायरी की दाग देने लगे । हमे नहीं पता था कि तुम शायरी भी कर लेते हों । लेकिन ये सब सुन आरोही कुछ ख़ामोश सी खड़ी वीर को ही देख रही थी । शायद वो उसकी आँखों में अपना नाम पढ़ चुकी थी । थोड़ी देर में वो वहाँ से बिना कुछ कहे चली गई । उस रात के बाद वीर की बेचैनी और बढ़ गई । उसने अपनी दुविधा दूर करने के लिए आरोही को फ़ोन किया ,पर उसने कोई जवाब नहीं दिया । तीन चार दिन बाद वीर ने उसकी सहेली से उसके घर का पता लिया और अगली सुबह सब भूल कर हाथो में फूल लिए उससे मिलने उसके घर पहुँचा । तो आरोही उसके सामने आ खड़ी हुई ।
तुम यहाँ भी आ गए ! क्या हुआ आरोही तुम मुझसे इतना कतरा क्यों रही हो ?? आख़िर मुझसे कोई गलती हुई है तो मुझे बताओ !
जब वो जाने लगी तो वीर ने अपने प्यार का इज़हार कर दिया और कुछ पल बाद आरोही वीर के पास आयी और बोली “ मैं ऐसा कुछ नहीं सोचती ! तुम मेरे बस एक अच्छे दोस्त हो” ! लेकिन आज तुमने ऐसा सोच ये दोस्ती भी ख़त्म कर दी है” । ये बोल वो जाने लगी तो वीर ने पूछा कि “तुम मुझसे प्यार क्यों नहीं कर सकती “??
आरोही ने गहरी साँस ली और बोली-“ क्या तुम मुझसे प्यार करना बंद कर सकते हो ! मुझे भूल सकते हो “ !
वीर ने कहा नहीं ……..
ऐसे ही मैं तुम्हारे कहने या सोचने पे तुम से प्यार नहीं कर सकती ।प्यार जब होना होता है तब होता है ! ना कि ज़ोर ज़बरदस्ती से । ये कह वो जाने लगी और कुछ दूरी पे जाकर बोली उम्मीद करती हूँ अब तुम ये सब हरकते करना बंद कर दोगे । ये सुन ! वीर कुछ ना कह पाया….. बस जाते हुए लम्हों को समेट मोहबत की संदूक में दफ़न कर नफ़रत के ताले से जकड़ दिया ।और उम्मीद की चाबी को काले घने अतीत के साये में फेंक दिया । अगले दिन अपने को पठार सा मज़बूत कर नए तूफ़ानो से भिड़ने निकल पड़ा ।
अब पहले जैसा कुछ नहीं था ना ही वीर ,ना ही समय । क्योंकि एक बार गुजरा हुआ पल वापस नहीं आता । अब वीर का एक ही उद्देश्य था एक अच्छी नौकरी और अपनी माँ की हर इच्छा पूरी करना । अब जब कभी वो दोनो एक दूसरे के आमने सामने आते तो अजनबियों की तरह कतरा के निकल जाते । जहाँ एक तरफ वीर ने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया । वही आरोही भी संगीत सीखने में व्यस्त हो गयी। यूँही वक्त गुजरा और आरोही अपनी मंज़िल की ओर कदम बढ़ाते हुए सब कुछ पीछे छोड़ चली । एक वर्ष उपरांत वीर ने भी कॉलेज पास किया और आगे की पढ़ाई ले लिए दूसरे शहर चला गया ।
कुछ सालों में वीर को एक सरकारी कॉलेज में पढ़ाने की नौकरी मिल गई । वीर अपनी माँ को साथ ले लखनऊ पहुँचा जहाँ उसे किराए पे एक मकान मिला । अब उसकी माँ का बस एक ही सपना था कि उसके जीवन में एक ऐसी साथी आए जो उसे सम्भाले , कभी गिरने ना दे । बस यही सोच वीर की माँ ने उसके लिए जीवन साथी की खोज शुरू कर दी । यहाँ भी कॉलेज के विद्यार्थी बड़े ही शैतान थे । उन्हें देख वीर को भी अपना वक्त याद आ गया । सच में ये समय कितना अच्छा होता है हर फ़िक्र से ,हर ज़िक्र से आज़ाद बस परिंदे की भाँति उड़ते रहते हैं ।
दो महीने बाद बेला वीर के पास आयी और बोली सर मुझे हिंदी समझ तो आ जाती है पर मुझे थीसिस लिखने में दिक़्क़त आ रही है । क्या आप मेरी मदद कर देंगे ?? सर कॉलेज में तो समय ही नही मिलता । क्या आप छुट्टी वाले दिन घर आकर कुछ दिनो के लिए पढ़ा दिया करेंगे??? वीर कुछ सकुचाते हुए बोला ! ठीक है पहले तुम्हारे घरवालों से बात करूँगा फिर देखता हूँ । बेला मुस्कुराती हुई ठीक है सर ! आप कल आ जाएगा । अगले दिन वीर शाम को बेला के घर पहुँचा और दरवाज़े पे दस्तक देने लगा । तभी बेला आयी और उसे अंदर ले गयी । वीर ने कहा अपनी माँ को बुला दो या बाबा को …. सर मेरे माँ बाबा का देहांत एक वर्ष पहले हो चुका हैं ! ओह !! तो अभी घर में कौन हैं ???? सर मेरी भाभी हैं वो बस पास में ही गई हुई है ….. और तुम्हारे भैया ???? ….. वीर की ये बात सुन वो ख़ामोश हो गयी …..थोड़ी देर के सन्नाटे के बाद वो बोली सर वो हमारे साथ नही रहते ! उनकी अपनी एक अलग दुनिया है । ये सुन ! बहुत अचरज हुआ फिर वीर को लगा कि ज़्यादा पूछना उचित नही हैं ! क्योंकि ये उनका पारिवारिक मामला है । उसी क्षण घंटी बजी तो थोड़ी राहत मिली ! चलों अब मैं उनसे बात कर जल्दी निकलता हूँ ।
थोड़ी देर बाद बेला चाय लेकर आयी और बोली सर बस पाँच मिनट में भाभी आ रही है । जब बेला की भाभी अंदर आयी तो उनके आने से पहले एक महक वीर तक पहुँची अरे ! यें तो वही ख़ुशबू हैं जो आरोही लगाती थी ।वीर मन में आरोही की कल्पना करते हुए सोच में डूब गया और जब बेला की भाभी ने उसके सामने आकर नमस्ते बोला तो वीर हड़बड़ा के खड़ा हुआ…. नमस्ते मैम !
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