पुत्रवती और डिम्पल का संकल्प – मधुलता पारे : Moral Stories in Hindi

 डिम्पल जल्दी-जल्दी किचन में हाथ चला रही थी अभी सुबह के 7 ही बजे थे, 8ः30 बजे उसे तथा अवनीश को निकलना था दोनों शहर की एक फार्मास्यूटिकल् कम्पनी में काम करते स्वयं का वाहन होने के कारण आधे घंटे में कम्पनी पहुंच जाते थे। घर में उनके अतिरिक्त अवनीश के माता-पिता तथा लगभग 5 वर्ष का बेटा शौर्य भी था।

अब तक डिम्पल ने कुकर लगा दिया था सबके लिए सब्जी छौंकी और टिफिन में रखने के लिए पराठे बनाने लगी तब ही बाथरूम से अवनीश की आवाज आई चाय में कितनी देर है ?‌ वह बाथरूम में शौर्य को ब्रश करवा रहा था सुबह उसे उठाने से लेकर स्कूल के लिए तैयार करने तक की पूरी ज़िम्मेदारी अवनीश ने ही उठा रखी थी।

जब चाय लेकर डिम्पल आगे के कमरे में आई तब अवनीश शौर्य को यूनीफॉर्म पहना रहा था। शौर्य के लिए दूध और सबके लिए चाय डिम्पल ने टेबल पर रखी और खुद ऑफिस के लिए तैयार होने चल दी।

अवनीश की मम्मी एक घरेलू महिला थीं पर वह अधिक काम नहीं कर पाती थीं इसीलिए डिम्पल ने एक खाना बनाने वाली महिला का इंतजाम कर दिया था जो लगभग 10ः30 बजे आकर मम्मी-पापा के लिए गरम रोटी बना जाया करती थी। सुबह 8ः40 बजे चौराहे पर शौर्य की स्कूल बस आती थी पापाजी की ड्यूटी थी वे सुबह शौर्य को छोड़ने और दोपहर में लेने जाते थे। मम्मी की तुलना में अवनीश के पापा ज्यादा फिट थे।

अचानक एक समस्या आ खड़ी हुई घर की कामवाली बाई जो कि झाड़ू, पोछा, बर्तन, कपड़े सब काम करती थी उसने आना बंद कर दिया संध्या को याने लगभग सात बजे के बाद अवनीश डिम्पल ऑफिस से आए तो इस समस्या से उनका सामना हुआ डिम्पल को महरी कमलाबाई का घर मालूम था

उसने स्कूटी उठाई और उसके घर पहुंच गई पर ये क्या वहां तो ताला लगा था आस पड़ोस में पूछताछ की तो पता चला कि वह जत्थेदारों के साथ तीर्थ यात्रा करने गई हैं और निकट भविष्य अर्थात् 15-20 दिन तो उसके आने की कोई संभावना नहीं हैं डिम्पल यह भी समझ गईं

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कि कमलाबाई क्यों किसी से भी छुट्टी लेकर नहीं गई क्योंकि कोई भी उसे इतने दिनों की छुट्टी नहीं देता। जब तक वह नहीं आती तब तक के लिए डिम्पल ने सामने वाले घर की मिश्रा आंटी को उनकी महरी को घर भेजने के लिए कहा।

दूसरे दिन रविवार था मेन गेट बजने की आवाज आई डिम्पल ने झांक कर देखा नीमा थी यही नाम मिश्रा आंटी ने महरी का बताया था उसके आने पर डिम्पल उसे काम समझाने अंदर कमरे में ले गई विस्तार से काम के बारे में बताया वह चुपचाप सुनती रही लगभग 30- 32 वर्ष की दुबली-पतली औसत कद की गेहुएं रंग की महिला थी नीमा का चेहरा एकदम भावशून्य। काम तथा मेहनताने पर उसने सहमति जताई तथा उसी दिन से काम शुरू कर दिया डिम्पल ने राहत की सांस ली।

            डिम्पल प्रदेश के एक छोटे कस्बे में पली-बढ़ी भावुक किस्म की लड़की थी। बी फार्मा करने के बाद लगभग 6 वर्ष पूर्व पिता ने फार्मा कंपनी में कार्यरत अवनीश से उसका विवाह करा दिया था। संयोग से दो वर्ष पहले डिम्पल की भी नौकरी अवनीश की कंपनी में ही लग गई।

बच्चे को तो मम्मी-पापा मिलकर संभाल लेते थे। डिम्पल के पिता ने स्वास्थ्य कारणवश बैंक की नौकरी से वी आर एस ले लिया था, मां शिक्षिका थीं छोटा भाई इंजीनियर बन गया था और नौकरी के लिए प्रयासरत था। ये सब लोग पास के कस्बे में ही रहते थे। अवनीश‌ के परिवार में भी उसका एक बड़ा भाई मनीष था जो कि एक साफ्टवेयर इंजीनियर था और पुणें की एक मल्टीनेशनल  कंपनी में कार्यरत था उसकी पत्नि नम्रता भी एक इंजीनियर थी पर वह नौकरी नहीं करती थी उनके दो बच्चे थे आरव और आहना।

         रोज संध्या 7 बजे के बाद अवनीश डिम्पल घर लौट आते थे पर आजकल घर आने के बाद मम्मी का नीमा पुराण शुरू हो जाता था बर्तन अच्छे नहीं मांजती, कपड़े अच्छे नहीं धोती आदि-आदि डिम्पल ने सोचा रविवार को इस विषय में बात करेगी। रविवार भी आ गया जब डिम्पल ने उसका काम देखा तो मम्मी की बातों में सच्चाई  लगी पर जब तक दूसरी बाई का प्रबंध नहीं हो जाता इसी से काम चलाना पड़ेगा उसने सोचा।

           अगले दिन सुबह मनीष की पत्नी नम्रता का फोन आया कि मनीष का एक्सीडेंट हो गया हैं उसे पीठ तथा पैर में चोट लगी हैं पैर में फ्रेक्चर हैं अस्पताल में रहना पड़ेगा इसलिए पापाजी को भेज दो। वो अस्पताल में रह लेंगे तथा वह घर में बच्चों को संभाल लेगी। घबराने वाली बात नहीं है,

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मम्मी को या तुम सबको आने की जरूरत नहीं है। पापाजी उसी दिन पुणें के लिए रवाना हो गए। अब पापाजी के जाने से शौर्य को स्कूल ले जाने-लाने की नई समस्या खड़ी हो गईं क्योंकि मम्मी ने साफ मना कर दिया कि घुटनों में दर्द होने के कारण उनसे चौराहे के बस स्टाप तक शौर्य को ले जाना और लाना संभव नहीं हो पाएगा डिम्पल को भी समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे इस समस्या का हल ढूंढे। आखिर में उसने नीमा से बात करने का निश्चय किया। अतिरिक्त आय के लालच में उसने हामी भर दी।

दो दिन तो सब ठीक रहा, टाइम पर नीमा शौर्य को स्टाॅप पर छोड़ भी आई और समय पर ले भी आई पर तीसरे दिन हंगामा हो गया नीमा शौर्य को सबेरे स्कूल बस में बैठा तो आई पर लेने नहीं गईं, स्कूल बस के ड्राइवर ने जब स्टाॅप पर किसी को नहीं देखा तो शौर्य को वापस स्कूल ले गया। स्कूल से अवनीश के पास फोन गया कि बच्चे को कोई लेने नहीं आया, ऑफिस से छुट्टी लेकर दोनों शौर्य के स्कूल पहुंचे फिर उसे लेकर घर गए इस कवायद में बच्चा परेशान हुआ सो अलग और डिम्पल की तो जैसे शामत ही आ गईं

अवनीश ने पूरी झल्लाहट उसी पर उतारी उसका कहना था जब घर का काम ही नीमा ठीक से नहीं करती तो उसको शौर्य की जिम्मेदारी क्यों दी डिम्पल के पास कहने को कुछ नहीं था इसीलिए वह चुप रही। दूसरे दिन उसने छुट्टी ली नीमा का रास्ता देखती रही पर वह नहीं आई हारकर उसने सब काम निपटाया सुबह शौर्य को भी स्टाप पर छोड़ आई फिर घर आकर मनीष भैया के हालचाल जानने पुणें फोन लगाया नम्रता ने बताया पापाजी को आने में अभी हफ्ता दस दिन और लगेंगे। रोटी बनाने बाई आ गई थी इसलिए दूसरे छोटे मोटे काम निपटाये

और शौर्य को लेने स्टाॅप पर गई, आने के बाद उसके मुंह-हाथ धुलवाए कपड़े बदलवाए फिर दोनों ने साथ में खाना खाया बहुत दिनों के बाद मां बेटे को इस तरह अकेले रहने का मौका मिला था। डिम्पल के रहने से मम्मी भी आज निश्चिंत थीं, अपने कमरे में आराम कर रही थीं शौर्य बड़ा प्यारा बच्चा था हंसता था तो अपनी मां के समान ही दोनों गालों में गड्ढे पड़ते थे। खाना खाने के बाद डिम्पल भी शौर्य के पास ही लेट गई कब आंख लगी पता ही नहीं चला जब उठी तो देखा 4ः30 बज रहे थे।

अचानक ध्यान आया प्रेस वाली अम्मा जो चार दिन पहले कपड़े ले गई हैं अभी तक नहीं आई हैं। पड़ोस की प्रिया से फोन लगाकर उसका पता पूछा उसने बताया मोहल्ले के छोर पर सड़क के दूसरी तरफ जो मल्टीस्टोरीबिल्डिंग है, याने कम आय वालों के लिए जो सरकार की ओर से मकान दिए गए हैं, उसी में उसका घर है। प्रेसवाली का घर डिम्पल को आसानी से मिल गया कपड़े लेकर जब वह लौट रही थी तो उसी बिल्डिंग के एक घर में उसे नीमा की झलक दिखी

डिम्पल ने जल्दी से कपड़े गाड़ी की डिक्की में रखे लाॅक लगाया और तेज कदमों से नीमा के घर की ओर चल दी, उसने बिना आवाज लगाए दरवाजे को धक्का दिया जो कि पहले से ही आधा खुला हुआ था।  दरवाजा खुल गया सामने नीमा खड़ी थी डिम्पल को सामने देख एकदम से घबरा गई। डिम्पल गुस्से से आकंठ भरी थी पर नीमा के घर के अंदर का दृश्य देखकर वह भी सकपका गईं, सामने एक छोटी खटोली पर एक छोटा बच्चा लेटा था एकदम अशक्त निढाल सा चेहरे पर केवल दो आंखें ही दिख रही थीं बिल्कुल निस्तेज।

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पूरा कमरा अस्त व्यस्त था नीमा के पीछे तीन लड़कियां दुबकी हुई थीं बड़ी लड़की लगभग नौ वर्ष की लग रही थी लड़के की उम्र  का आकलन मुश्किल था। लड़कियां आश्चर्य और उत्सुकता से डिम्पल को देख रही थीं अपनी आवाज को सामान्य करते हुए नीमा ने कहना शुरू किया दीदी बच्चे को बुखार आ रहा था अचानक बढ़ गया बड़ी लड़की रमा मुझे जोशी दीदी के यहां बुलाने गई मैं उसे लेकर तुरंत अस्पताल गई  देर से जाती तो डाक्टर नहीं मिलते इसी भागम-भाग में शौर्य बाबा को स्टाॅप से नहीं ला पाई। मुझे माफ कर दो दीदी अब आगे से ऐसा नहीं होगा

फिर कोने में रखी चटाई बिछाकर डिम्पल को बैठने का संकेत किया डिम्पल बैठी तो नहीं पर उसका गुस्सा जरूर थोड़ा कम हुआ उसने नीमा से पूछा तुम्हारे पति कहां हैं क्या करते हैं ? नीमा का स्वर भी अब सामान्य हो चला था मन की घबराहट भी अब कम हो गई थी उसने कहना शुरू किया दीदी 10 साल पहले तक सब अच्छा था पति ड्राइवर थे सास भी साथ में रहती थीं पर आज कोई नहीं है। एक के बाद एक जब तीन लड़कियां हुईं तो दोनों नाराज रहने लगे रात दिन ताने देते थे पर चार साल पहले जब राजू गोद में आया तो लगा

जैसे खुशियां लौट आईं पर ये खुशी अधिक  दिनों तक नहीं रहीं जैसे-जैसे राजू बड़ा होने लगा पता चला कि वह सामान्य बच्चों जैसा नहीं है डाक्टर  को दिखाया तो उन्होंने कहा कि यह सुन नहीं सकता हैं इसलिए बोल भी नहीं पाएगा दिमाग से भी कमजोर हैं सास पति के ताने फिर शुरू हो गए और एक दिन पति काम पर जाने का कहकर गए तो फिर लौटकर नहीं आए। सास भी अपने भाई के घर चली गईं।  पिछले साल पता चला कि अब वे इस दुनिया में नहीं हैं। तब से दीदी सुबह से शाम तक चकरघिन्नी की तरह घूमती रहती हूं।

इन मासूमों को दुनिया में लाई हूं तो इनको पालना भी मेरा फर्ज है और दीदी मेरा बेटा जैसा भी है उसमें मेरे प्राण बसते हैं उसी के कारण आज मैं पुत्रवती हूं इतना कहकर वह चुप हो गई। डिम्पल के लिए भी अब कहने-सुनने को कुछ रह नही गया था चुपचाप वहां से निकली, शौर्य की समस्या के समाधान के लिए संकटमोचन के रूप में छोटे भाई का ध्यान आया अधिकार से फोन लगाकर उसे अगले दिन पहली बस से घर आने का आदेश दिया और फिर इतमिनान से स्कूटी स्टार्ट कर घर की ओर चल दी। रास्ते भर सोचती रही

किस प्रकार नीमा की मदद करे ध्यान आया कि उसने तो पूछा ही नहीं कि लड़कियां पढ़ती भी हैं या नहीं उसने तय कर लिया कि उससे जो हो सकेगा इन बच्चियों के लिए करेगी उनकी शिक्षा के लिए यथा शक्ति योगदान देगी क्योंकि उसे मालूम था कि ये तीनों ही नीमा का भविष्य हैं। राजू के लिए भी किसी एन.जी.ओ. से संपर्क करेगी

उसकी मौसेरी बहन ज्योति के इस प्रकार के बच्चों से संबंध रखने वाले एक एन.जी.ओ. से संबंध है ये सब सोचकर उसका मन पंख जैसा हल्का हो गया घर भी आ गया था अवनीश अभी नहीं आए थे शौर्य दादी के साथ बाॅल खेल रहा था अचानक उसके ध्यान में फिर राजू आ गया और न्ए वर्ष के आगमन ने उसके संकल्प को एक नई ऊर्जा से भर दिया उसने मोबाइल निकाला और ज्योति का नंबर डायल करने लगी।

(मौलिक रचना)

                  – मधुलता पारे

        भोपाल

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