सुमेश को आज लड़की देखने जाना था।वह स्वयं एक मल्टीनेशनल कम्पनी में मैनेजर के पद पर चेन्नई में कार्यरत था।अपने लिये वह वर्किंग वाइफ ही चाहता था।पहले तो उसके माता-पिता वर्किंग बहू के लिये ना कह दिये थें लेकिन फिर सोचे,घर में बेटे के साथ बहू की आमदनी भी आये तो क्या बुराई है।
सुमेश ने जीवनसाथी डाॅट काॅम से तीन लड़कियों को शाॅर्टलिस्ट किया था जिनमें से एक को सुमेश की सैलेरी कम लगी और दूसरी को उसके माता-पिता के संग रहना पसंद नहीं था।तीसरी लड़की से ही मिलने आज वह जा रहा था।लड़की का नाम आकांक्षा था, वह भी चेन्नई के ही एक निजी बैंक की एम्प्लाॅइ थी।
लड़कीवालों के अच्छे आदर-सत्कार और व्यवहार को देखकर सुमेश के माता-पिता बहुत प्रसन्न हुए।आकांक्षा से भी उन्होंने जो भी प्रश्न पूछे, उसने सही-सही जवाब दे दिये।जब सुमेश ने पूछा कि मेरे माता-पिता भी मेरे संग रहेंगे, आपको कोई आपत्ति?तब आकांक्षा ने जवाब दिया कि आपके माता-पिता मेरे भी माता-पिता हैं तो आपत्ति कैसी? जवाब सुनकर सुमेश गदगद हो गया।उसने कहा, “चलिये तो अब बात पक्की।”
आकांक्षा बोली,” आप लोगों ने मुझसे जो भी सवाल किये,मैंने जवाब दिये।अब मुझे भी सुमेश जी से कुछ बातें कहनी है।” ” हाँ-हाँ बेटी, क्यों नहीं?हमलोग बाहर चले जाते हैं, तुम लोग अकेले में बात कर लो।”
” नहीं आंटी जी, अकेले में नहीं।” आकांक्षा बोली, ” मैं आपलोगों के सामने ही सुमेश जी से बात करूँगी।” फिर वो सुमेश की तरफ़ देखकर बोली, ” सुमेश जी, आपको खाना बनाता है?”
” ये कैसा बेतुका सवाल है?” सुमेश की माँ भड़क उठी।सुमेश ने अपनी माँ को शांत रहने को कहा और आकांक्षा को जवाब दिया,” नहीं ।”
आकांक्षा ने फिर प्रश्न किया, ” सिलाई करनी आती है?”
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सुमेश ने जवाब दिया, ” नहीं, लेकिन इसकी ज़रूरत क्या है? ये सब तो लड़कियों का काम है,मेरी पत्नी बनने के बाद आप करेंगी ही।”
आकांक्षा ने जवाब दिया, ” आपने ठीक कहा, लेकिन जब मैं आपके साथ ही नौकरी कर रही हूँ,फाइनेंसली आपको सपोर्ट भी कर रही हूँ, फिर तो लड़का-लड़की का भेद रहा नहीं।जब मैं घर का काम करके बैंक की नौकरी कर सकती हूँ तो आपको भी मेरे देर से आने पर अथवा बीमार पड़ने पर खाना बनाना,अपने कुरते के बटन लगाने जैसे छोटे-मोटे काम स्वयं करके मेरी मदद तो करना ही चाहिए।” आकांक्षा की दलील सुनकर सुमेश अवाक् रह गया। उसने कहा कि हम आपस में विचार करके आपको अपना निर्णय कल बताते हैं।
आकांक्षा की बात सुमेश के माता-पिता को अच्छी नहीं लगी।उनका बेटा घर में खाना बनाने के लिए तो इतनी पढ़ाई किया नहीं है, वह तो बड़ी कंपनी में अफसर है अफसर।अब उन्होंने नौकरी वाली बहू लाने का इरादा त्यागकर कोई घरेलू लड़की को ही अपनी बहू का मन बना लिया।उधर सुमेश रातभर आकांक्षा की बात पर विचार करता रहा।उसे याद आने लगा,उसकी माँ का पूरा दिन घर के कामों में बीत जाता है।आकांक्षा उसी काम को कम समय में पूरा करके बैंक जायेगी और आकर फिर घर का काम करेगी।यानि कि आकांक्षा पर दोहरे काम का बोझ, ऐसे में अगर वह एक समय का खाना बनाने के लिए सुमेश से उम्मीद करती है तो क्या गलत है।रही बात पुरुष अहं की,तो पत्नी को सहयोग देने में अहं का स्थान तो होना ही नहीं चाहिए।हम पुरुषों की सोच आज भी दकियानुसी ही है।वर्किंग वाइफ़ के साथ चलकर आधुनिक दिखना चाहते है लेकिन पत्नी का हाथ बँटाने में मर्दानगी को ठेस लगना समझते हैं।अंततः उसने एक फ़ैसला कर लिया।
सुबह होते ही उसने आकांक्षा को अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि विवाह की तिथि आप अपनी सुविधानुसार ही तय कीजिएगा, मैं एडजेस्ट कर लूँगा।और हाँ, मैंने ‘कुकरी क्लास ‘ ज्वाइन कर लिया है।आई होप, अब आपको कोई शिकायत नहीं होगी।
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जवाब में आकांक्षा बोली, ” मुझे आपसे यही उम्मीद थी।थैंक्स कि आपने मेरे विचार का सम्मान रखा।और हाँ, आप ….।” ” बाकी बातें कल ‘ओरिएंटल रेस्ट्रां ‘ में लंच पर करें तो कैसा रहेगा?” आकांक्षा को बीच में ही टोकते हुए सुमेश ने पूछा।
” बहुत अच्छा रहेगा।” आकांक्षा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
—– विभा गुप्ता