पुलकन – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

अरे भई श्रीमती जी कहां हैं आप लीजिए मॉर्निंग टी हाजिर है सुबोध जी ने चाय की केतली टिकोजी सहित लाकर बेड की साइड टेबल पर रख दी।

शामली जी  वाश रूम से निकल रहीं थीं…!

अरे सॉरी मुझे उठने में देर हो गई मैं बनाती ना आप क्यूं बना लाए कुछ शर्मिंदगी के एहसास से वह सहसा लरज उठीं थीं।

आज के बाद से आपका ये बंदा रोज आपके लिए मॉर्निंग टी बना कर लायेगा सुबोध ने चहक कर कहा।

अरे ये भी कोई बात हुई अच्छा लगता है क्या.. रिटायर हो गए हैं तो क्या अब ये सब चूल्हे चौके का काम करेंगे असहज हो उठी थीं शामली।

लम्बे समय से वह सुबोध के रिटायरमेंट को लेकर बहुत चिंतित रहती थीं।उनके कोई संतान भी नहीं थी ।शामली को लगता था सुबोध रिटायर होने के बाद संतान ना होने का गम महसूस करने लगेंगे अकेले पड़ जायेंगे क्या करेंगे कैसे उनकी दिनचर्या कटेगी..!!

कौन कमबख्त कहता है कि हम रिटायर और बेकार हो गए हैं नई नौकरी तुरंत मिल गई है आपके ऑफिस में  सुबोध जी आज बड़े बिंदास मूड में थे।

कल ही उनकी सेवानिवृत्ति हुई है ।शानदार दीर्घ सेवाकाल व्यतीत करने के उपरांत का सुख और तसल्ली आज का पहला दिन  वह दिल से महसूस कर रहे थे।

वर्तमान समय में शासकीय नौकरी करना कितना कठिन हो गया है। उस पर अगर आप एक अधिकारी के पद पर हैं जैसा कि सुबोध जी थे तब तो कर्तव्य निर्वहन और भी दुरूह हो जाता है।इसलिए कल की वृहद शानदार पार्टी में उपस्थित सभी के द्वारा अपनी कार्यकुशलता कर्तव्यनिष्ठा की मुक्त कंठ से की गई सराहना अब तक उनके कानों में घुल कर विमोहित कर रही थी।

ये क्या कह रहे हैं आप क्यों चाय बनाएंगे अरे अभी ही तो समय मिला है आपको तसल्ली से उठने घूमने आराम से अखबार पढ़ने का और पहले ही दिन से ये….. शामली जी को वास्तव में बहुत बुरा लग रहा था।

कल भी आपने मेरी ही प्रशंसा के पुल बांध दिए थे अरे आपकी सेवानिवृत्ति पार्टी थी सब आपकी कितनी तारीफ कर रहे थे मुझे आप पर बहुत गर्व महसूस हो रहा था लेकिन आपको मेरी तारीफ वहां सबके सामने नहीं करना चाहिए था।

चलिए बैठिए यहां पर ये लीजिए अखबार ये लीजिए आपकी चाय… शामली ने मीठी झिड़की देते हुए कहा।

उहूँ …मैने जो कह दिया सो कह दिया। कल भी मैने सोलह आने सही बात कही थी अगर आप मेरा साथ हर कदम पर ना देतीं तो

हो चुकी होती नौकरी और मिल चुकी होती इतनी प्रशंसा..अब आपकी ड्यूटी खत्म श्रीमती जी ये बंदा आज से आपकी खिदमत में हाजिर रहेगा सो रहेगा आइए आप यहां बैठिए ये लीजिए अखबार और साथ में चाय…

अब सुनाइए समाचार हमें भी….हाथ पकड़कर जबरन बिठा दिया कुर्सी पर…ऐसा करिए राशिफल पढ़ के बताइए मुझे याद है पहले तो आप यही पढ़ा करती थीं …. सुबोध आज शामली के पीछे पड़े थे ।

हां एकदम ऐसे ही अब एक हाथ में चाय का कप और एक हाथ में अखबार वाह क्या खूब फोटो आई है आपकी मोबाइल में देखते हुए सुबोध जैसे खिल गए ।

सुबोध जी का यह नया रूप जहां शामली जी को हैरत में डाल रहा था वहीं एक मीठी पुलकन का एहसास भी करा रहा था।

मेरे ऑफिस में कोई जगह खाली नहीं है आपको नौकरी नही मिलने वाली शामली जी ने भी हंसकर पलटवार कर दिया था।

सुबोध हमेशा शामली के किचन को उनका ऑफिस और उन्हे एचओडी कह कर चिढ़ाया करते थे।

वाह ऐसे कैसे खाली नहीं है कल ही खाली हुई है आज मैंने भर दी सुबोध अपलक उन्हें देखते हुए कह रहे थे।

कल !! कल कैसे खाली हुई है उन्हे अपनी ओर इस तरह देखते पाकर शामली फिर असहज हो उठी उनके गाल सिंदूरी हो उठे।

क्यों आप भी तो रिटायर हुई हैं सुबोध मुग्ध भाव से  मुस्कुरा रहे थे।

मैं!! मुझे कौन रिटायर करेगा सुबोध हंस पड़ी शामली।

हंसती हुई शामली की सूरत आज सुबोध को निहाल कर गई थी।

शामली कितनी खूबसूरत हो तुम बिलकुल वैसी ही जब तुम्हें मैने पहली बार देखा था जब तुम….

प्रसाद देने आई थी तुम्हारे घर शामली खिलखिला उठी।

हां हम लोग नए नए तुम्हारी कॉलोनी में शिफ्ट हुए थे समान जमा ही रहे थे कि डोर बेल बजी दरवाजा मैने ही खोला था और सामने तुम थीं…. स्निग्ध मधुर जैसे कोई ओस की बूंद हो… मुझे देख शर्मा गईं थीं… आंटी जी नहीं हैं क्या!! जल्दी से निगाहें नीची करते हुए पूछा था तुमने।

और मैं तो जैसे तुम्हारी उन्हीं शर्माती सकुचाती नजरों में डूब ही गया था… फिर से उन्हें देखने को आकुल मन तुमसे छेड़ छाड़ कर बैठा था।

क्यों मैं हूं तो आपके सामने ही खड़ा हूं मैने तुम्हारी सकुचाहट का मजा लेते हुए कहा तो तुम और भी सिमट गई थीं।

जी वो आंटीजी से मिलना था.. धीमा सा स्वर उभरा।

अच्छा और मुझसे नहीं मिलना है मैं भी तो इसी घर में रहता हूं अगर मैं कहूं कि आपकी आंटीजी घर में नहीं है फिर… पता नहीं तुम्हे देख मानो दिल मेरे बस में ही नही रहा था #अब दिल पे कोई जोर चलता नहीं है सो मैं भी तुमसे बात करने को तुम्हारी बात सुनने को उतारू हो उठा था।

अरे आंटीजी नहीं है क्या !!सहसा तुम्हारी मासूम आंखों में निराशा झलक उठी थी।फिर थोड़ा कसमसाते हुए तुमने प्रसाद का पैकेट मेरी तरफ बढ़ा दिया था।ये मां ने भेजा था आंटीजी को देने के लिए… मेरे हाथों ने लपक कर पैकेट के साथ उन कोमल लरजते हाथों को भी पकड़ लिया था जो मेरे स्पर्श से थरथरा उठे थे।

कहां का प्रसाद है मैने हाथों की गिरफ्त मजबूत करते हुए फिर पूछ लिया था मैं उसे अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहता था.. ऐसा प्रतीत हो रहा था तुम सामने खड़ी रहो और ये बातें यूं ही होती रहें..!!

…और तुम यकायक हाथ छुड़ा कर भाग गईं थीं और शायद साथ में मेरा दिल भी तुम्हारे ही पास रह गया था…

सुबोध जैसे भावमग्न हो गए थे…..बहते जा रहे थे..!

अच्छा जी तभी तो फिर मेरे घर के ही चक्कर लगा लगा कर मुझे राजी कर लिया फिर मेरे मां पिताजी को भी शामली की खूबसूरत आंखें उन दिनों को याद कर चमक उठीं और होंठों पर सलज्ज मुस्कान छा गई।

हां शामली तब से आज तक इस दिल में तुम्ही हो बस तुम्हीं उन दिनों अपनी नई नौकरी के चक्कर में नई नवेली पत्नी की तरफ ज्यादा ध्यान ही नही दे सका चाह कर भी तुम्हें उतना आराम और सुकून नहीं दे सका जिसकी तुम हकदार थीं।लेकिन अब बहुत हो गया आज से भरपाई … सुबोध ने चाय की प्याली पकड़ते हुए कहा।

बस बस बहुत हो गया इतनी तारीफ मुझसे हजम नही हो रही है सुबह की चाय तक ही रहेगी आपकी ड्यूटी ऑफिस अभी भी मेरा है आप मुझे इतनी आसानी से बेदखल नही कर सकते.. शामली इठला कर बोल उठी और सुबोध लाजवाब उन्हें देखते ही रह गए…!कैसे ताल सकते थे उनकी बात…क्या करते दिल पर किसी का कोई जोर तो रहता नहीं ना..!!

दिल पर कोई जोर चलता नहीं #

लतिका श्रीवास्तव

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