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आज वो….. सो कॉल्ड , खोया हुआ पुखराज मिल गया और सो कॉल्ड ,नजदीकी पारिवारिक मित्र को लौटा भी दिया ।पुरसुकून नींद आएगी आज रात।
बिस्तर पर लेटते ही तीन महीने पुरानी बातें फिल्मी रील की तरह चलने लगीं दिमाग में।
हमारे पड़ोसी और हमारे घर की दीवार सटी हुई है और दोनों परिवार समझो एक ही हैं।जैसे दूध में शक्कर कहें तो अतिश्योक्ति न होगी।
लेकिन दूध से शकर जल्द ही बाहर आ गई और रिश्ते में मधुमेह का कारण बन गई।
हुआ यूं कि उस दिन पड़ोसी का बेटा बोला ,भाभी मेरे मित्र के पास कुछ अच्छे असली पुखराज आए हैं।आप बता रहीं थी ,आप खरीदना चाह रहीं हैं।आप कहें तो ले आऊँ ?
पैसे की जल्दी नहीं है।आप कुछ दिन आजमा लें फिर पेमेंट कर देना।
रेखा ने तुरंत हामी भर दी ।और सचमुच धर्मेंद्र एक पीले रंग के कपड़े में सिला हुआ पुखराज ले आया जिसे बाँह में पहनना था।रेखा ने कुछ अच्छा होने की आस में उसी दिन पहन लिया।
अब कपड़े का घेरा बड़ा और रेखा की बाँह पतली!हर दिन काम काज के दौरान वह हाथ से गिरने को होता। नतीजतन रेखा ने उसे निकाल कर सम्भाल कर रख दिया। यूं कहें कि कुछ ज्यादा ही सम्भाल कर रख दिया।
बहुत ढूँढने पर भी नहीं मिला तो एकदिन आखिर रेखा ने धर्मेंद्र से कहा ,भैया जी ,पुखराज कहीं खो गया है।बताओ कितने पैसे देने होंगे?
धर्मेंद्र ने अतिरिक्त गंभीरता दिखाते हुए कहा ,अरे भाभी !पूरे पचास हज़ार का था। एक मिनट बाद सोच समझ कर बोला ,खैर !कोई बात नहीं ,आप थोड़े -थोड़े मतलब दस हजार की पाँच किश्तों में दे देना ।मैं अपने दोस्त को समझा लूँगा।
रेखा को काटो तो खून नहीं !पुखराज भी गया और ऊपर से पचास हजार का फ़टका ।आँसू भर कर आँखे नीचे किये लौट आई।
और लो !अगले दिन से पैसे के तक़ाज़े लगने लगे।
और आज अचानक ही आर्टिफिशियल जूलरी के ड्रावर में कुछ पीला सा देखा।उठाया तो खुशी से चीख निकल गई।पुखराजज्ज !
बिटिया देखते ही बोली ,लाओ माँ ,उन्हें लौटा आती हूँ।वे भी खुश हो जाएंगे।
अरे रुक !एक बार सुनार को तो दिखा लूँ।
सुनार बोला ,अरे ये तो पुखराज है ही नही!नकली रत्न है जिसे सुनहला कहते है ।ऐसे कई रत्न पाँच सौ रुपये में मिल जाते हैं।।
फिर से उसी पीले कपड़े में सिल के आज वापस लौटा दिया धर्मेंद्र को।
पचास हज़ार डूबने का ग़म साफ़ दिखाई दे रहा था धर्मेंद्र के चेहरे पर।
और रेखा !सुकून से मुस्कुरा रही थी।
आखिर सुनहले ने भी सुकून तो दिला दिया।
ज्योति अप्रतिम