बचपन की सखियाँ मंदिर में मिल जाती हैं। वहीँ पेड़ी पर बैठ लगी सुनाने अपनी राम कहानियाँ। चर्चा का मुख्य मुद्दा परिवार व बहू बेटों पर ही केंद्रित है। पवित्रा शान से कहती है,” देख बेना, मेरी तो एक ही बहू है पर ठीकठाक है। बोलती है
कामपुरता। मैं तो ठहरी बातूनी। बस यूँ समझ तेरी यह साथिन ख़ुद ही बड़बड़ करती रहती है।” देवकी दिलासा देती है,”ये तो अच्छा है न कि बेकार की तू तू मैं मैं से बचो। अरे ! क्या जीजाजी नहीं बतियाते। “
” कहाँ रे ! उन्हें अपने कारोबार से फुर्सत नहीं। बेटा भी कम ही बोलता है। मेरे तो ओठ ही चिपक जाते हैं।” पवित्रा रुआँसी हो कहती है।
अब देवकी अपना पिटारा खोलती है, “मेरी तीन हैं लेकिन तीनों के तेवर भिन्न भिन्न। देख बड़ी बहू ओठ सिलकर रहती है। हाँ पूरे घर की जिम्मेदारी सलीके से निभा लेती है। सुबह से रात तक उसको चैन नहीं। नाश्ते से लेकर रात के खाने तक सारी जिम्मेदारियां उठाती है। मझली है तेरे जैसी बातूनी, ऊपर से है मास्टरनी। घर के सारे बच्चों की पढ़ाई लिखाई उसी के जिम्मे है। अब बचा काम आने जाने वालों से हंसकर बात करना व सत्कार करना। यह छोटी बहू खूब निभाती है। काम धाम कुछ नहीं करना, बस बातों से सबको मोह लेना। उसका नाम ही पड़ गया मीठी बहू।”
पवित्रा सहेली की पीठ थपथपाकर कहती है, ” वाह! तेरे सब गुण बहुओं में हैं, चाहे अलग अलग।”
लेकिन देवकी छोटी की ही तारीफ़ करती है कि वह सबको मनुहार कर खाना खिलाती व गरमागरम चाय पिलाती है। हाँ वह खुद कुछ नहीं करती धरती। और बच्चे सारे चाची का पल्लू नहीं छोड़ते। उन्हें घुमाना फिराना, मूव्ही दिखाना आदि सारे काम वही करती है। बच्चे तो चाची के दीवाने हैं। एक वो ही है जो बोल का मोल जानती है।
पवित्रा कहती है कि मीठा बोलने वाले का भूसा भी बिक जाता है।
वह मीठी बहू की तारीफ़ करती है कि उसके कारण ही पूरा परिवार एक सूत्र में बन्धा हुआ है। तीनों बहुएँ अपने अपने दायित्व निभाते हुए परस्पर प्रेम से रहती हैं। यह क्या कम है।
पवित्रा पूछती है, ” अच्छा देवकी ! यह बता कि बहुओं में अभी तक झगड़ा या तनाव तो नहीं हुआ न। तेरी मीठी बहू के प्रेमिल व्यवहार ने सभी का दिल जीत लिया है। अच्छा अब चलती हूँ, बहुत देर हो गई है। मेरी सूमड़ी बहू का तो फोन भी नहीं आया कि मैं अभी तक घर क्यों नहीं पहुँची। “
घर की ओर जाते हुए देवकी सोचती है कि सच प्रेम जहाँ है वही परिवार सुखी है। तभी मीठी बहू का फोन आ जाता है, “अरे माँजी ! आज क्या मन्दिर में ही रहना है।
#परिवार
सरला मेहता
इंदौर