पिया का घर है, रानी हूं मैं –  अर्चना खंडेलवाल

“शुभि उस बर्तन को इधर रैक में रख, उस तरफ मेरा हाथ नहीं जाता है और वो शक्कर का डिब्बा इधर ला, उसे यहां रखना है।”

शुभि ने वैसा ही किया जैसा मां ने बोला|

“तू शादी के बाद सब भूल गई, मायके की रसोई में तेरा अब ध्यान नहीं है” मां ने हंसकर उलाहना दिया।

“नहीं, मां ऐसी बात नहीं है, मुझे याद है, पर आपने अब जगह बदल ली”।

“चल तू दो कप चाय चढ़ा दे” शुभि की मां ने कहा।

“मां, इलायची किसमें रखी है?” शुभि ने फिर पूछा।

मां ने आकर इलायची दे दी। चाय पीने के बाद शुभि ने कमरे में देखा सब बिखरा हुआ है, मां ये अलमारी जमा दूं?

रूक, मैं साथ बैठती हूं, नहीं तो तू सामान जमा जायेगी फिर मैं ढूंढती रहूंगी।तू समेट कर रख दें और मुझे देती जा, अपने घर का सामान अपने को पता होना चाहिए, झट से तेरे पिताजी को निकाल कर दे दूंगी।

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मां,आज वाशिंग मशीन लगा लूं?

ज्यादा कपड़े तो है नहीं, कल एक साथ लगा लेंगे, मां ने फिर कहा।

अच्छा मां, खाने में क्या बनाऊं? आप नहा लीजिए मैं दाल चावल चढ़ा देती हूं,शुभि ने रसोई में जाते हुये कहा।

नहीं, लाड़ो चावल परसों ही खाये थे, तेरे पिताजी को रोटी ही पसंद है।फ्रिज में लौकी रखी है, वो बना लें।

शुभि जब तक मायके में रही उसे हर काम के लिए पूछना पड़ता था,अब मां-पिताजी की खान-पान की आदतें भी उम्र के साथ बदल गई थी,घर में कुछ अलग नियम भी बन गये थे। हर काम मां की ही मर्जी से उनकी पसंद से ही करना था।

शुभि का मायका और ससुराल एक ही शहर में था, शादी के बाद वो पति की नौकरी की वजह से दूसरे शहर में रहने लग गई थी।

बच्चे बड़े हो गए थे,वो अपनी घर-गृहस्थी में पूरी तरह रम गई थी।



मायके में रहने के बाद थोड़े दिन वो ससुराल रहने चली गई । ससुराल में सास-ससुर और देवर -देवरानी थे. जब केवल सास-ससुर थे तो वो अपनी मर्जी से घर संभाल लेती थी, देवरानी के आने के बाद उस घर में नये नियम बन गये थे ।

रविवार का दिन था,सुबह से ही खटपट से शुभि की नींद खुल गई। ओहह! आज भी जल्दी उठना है,शुभि को थोड़ी झुंझलाहट हुई पर वो उठ गई।

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आखिर हम जिस घर में मेहमान बनकर जाते हैं, वहां के हिसाब से रहना होता है।

जितने दिन भी वो रही, हर काम के लिए पूछना और आज्ञा लेनी होती थी,हर घर के अलग नियम होते हैं,अलग खान-पान होता है।पहले सासू मां की चलती थी पर अब वो भी नये नियमों में ढ़़ल चुकी थी।

शुभि वहां भी दो चार दिन रही फिर अपने शहर में ही लौट आई ।अपने घर, अपने पिया के घर जहां वो अपनी मर्जी से रहती है, अपने हिसाब से बनाती है,अपने काम अपने हिसाब से निपटाती है,अपने घर में उसे किसी से पूछने की, आज्ञा लेने की जरूरत नहीं पड़ती।

शायद शादी के कुछ सालों बाद जब औरत अपनी गृहस्थी में रम जाती है तो उसे मायके और ससुराल दोनों जगह वो रह तो लेती है पर सूकून तो उसे अपने घर में ही मिलता है| उस घर में जिसकी वो मालकिन, रानी होती है। जहां सब उसकी मर्जी से होता है, उसके अपने नियम होते हैं।

सखियों,जो चैन, सूकून अपने घर में मिलता है वो और कहीं नहीं।

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अर्चना खंडेलवाल

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