पिंजरे का पंछी – मंगला श्रीवास्तव : hindi Stories

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जब गीता की शादी तय हुई तो उसके छोटे से मन ने ससुराल वहां के लोगो से अपने होने वाले साजन से मन ही मन दोस्ती कर ली थी ।

वह हरपल सपने देखती और सोचती सास ससुर उसके माता पिता जैसे होगे उसकी एक नंद और एक देवर था छोटे सा परिवार था उनको वह भाई बहन जैसा प्यार करेगी ।

उसकी सारी सहेलियां उसके सपनो की हंसी उड़ाती कहती तुम बस ख्वाब ही देखती रहो असल

में कोई भी ससुराल में वैसा रिश्ता नही निभाता जैसा कि हम सोचकर जाते है।

गीता बोलती नही तुम सब लोग देखना मैं अपने व्यवहार से सबको अपनी पसंद के रिश्ते में ढाल लूंगी।

इन्हीं सपनो को संजोकर वह एक दिन बाबुल के आंगन से विदा होकर ससुराल पहुंच जाती हैं।

पहले दिन मुंह दिखाई आदि की रस्म और फिर हनीमून पर चली जाती है उसको लगता है जैसे की उसने जैसा सोचा वैसा ही परिवार उसको मिला है।

बस अब उसको सबको अपना बनाना है,हनीमून की सुंदर यादें लेकर वह वापस जब आती है

और अपनी नई गृहस्थी घर को संभालने लगती है।

पति की जॉब दूसरे शहर में थी ,वह हफ्ते मे एक ही बार आते थे ।

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पर धीरे धीरे उसके ससुराल के लोगो का व्यवहार थोड़े ही दिनों में

उसको पता चलने लगता है।

सुंदर दिखने वाली गीता को उसकी सास हर वक्त शक की नजर से

देखती ।कोई भी आता तो वह मिलने और बैठने तो बुलाती नई बहू होने के नाते परंतु वह और रिंकी दीदी यानी उसकी ननद हर वक्त उसकी बातो का उसका निरीक्षण इस तरह करती रहती जैसे वह कोई ऐसी वैसी लड़की हो ।

हद तो तब हो गई जब उसने अपने पिता समान ससुर को हाथ में चाय दे दी निर्मला देवी ने उस पर लांछन तक लगा दिया उनके पैरों को चरण छूते वक्त स्पर्श कर लिया ।

क्या तुम्हारे घर आदमियों के इसी तरह पैर छुए जाते दूर से छूते हैं सपर्श नहीं करते है उसकी ननद बोलती जो की उसकी ही हमउम्र थी । यहां तक की हो गया की जब उसके बड़े भाई उसको लेने आए तो सास ने नमक मिर्च लगाकर उसके बारे मे उनको बोला ।

अगर उसके परिवार का कोई आता तो वह कुछ भी बोलकर उनका अपमान करने से भी नही चूकती इस कारण उसके घर धीरे धीरे सबने छोड़ दिया था।

अगर मायके से कोई लेने भी आता तो वह रुकना पसंद नही करता था। वह खुद भी उनको तभी घर आने का बोलती जब दिनेश घर होते ।

और लोगो के जाते ही उसके बैठने से लेकर बात करने के तरीके का तक मीन मेख निकाल कर उसकी टोकती।

धीरे धीरे पढ़ी लिखी गीता के अंदर एक डर सा बैठ गया अब वह कोई भी आता तो या तो सामने जाने से कतराती या आकर सिर ढक कर बैठ जाती क्योंकि उसकी सास को उसके सिर का पल्ला अगर नीचे दिखता तो उसको कहती की घर से यही सीखकर आई है बेशर्मी से रहना तेरी भाभियों के सर का पल्ला कभी नीचे गिरा देखा क्या?

कितने कायदे से रहती हैं वह सबके सामने…. यह सुनकर गीता चुपचाप कमरे में जाकर रोने लेती

शनिवार को जब दिनेश आता तो उसकी सास और ननद ऐसी बन जाती जैसे उनके जैसा कोई नही

है प्यार के मीठे बोल बोलती थी।

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,वह जब दिनेश को भी अपने दिल की बात बता नही पाती थी उसकी सास ना जाने कैसे सारी बात सुन लेती और दिनेश के जाने के बाद घर में धमाल मचा देती थी।

अपने घर में संस्कार भरा माहौल देख कर आई गीता उनको कुछ जवाब भी नही दे पाती थी,ससुर जी सास के कहने में ही चलते थे ।

शादी के चंद दिनों बाद ही सुंदर सी दिखने वाली गीता के चेहरे की रौनक खत्म हो गई थी।

धीरे धीरे गीता अपना कॉन्फिडेंस खोने लगी थी ।

मायके ने वह घर में सबसे छोटी होने के कारण अपने भाई भाभियों सभी की लाडली थी और हरवक्त हंसते हंसाते रहना ही उनके घर की रौनक था।

वह गीता ससुराल में आकर पिंजरे बंद पंछी के समान हो गई थी जिसको अपने मन से न जीने का अधिकार था ना ही हंसने बोलने का और ना ही कही जाने का,

वह जब भी मायके आती तो सब उसको देखकर हैरान हो जाते की उनकी गीता कहां गई यह वह गीता नही जो कभी हारती नही थी।

जो रोते हुएं को हंसा देती थी वही गीता की आंखों में से अब झर झर आंसू बहते रहते थे।

अब उसको समझ आ गया था की

चाहे वह कितना भी प्रयास कर ले परंतु ससुराल के लोगो को वह अपना नही बना सकती है।

क्यों की ससुराल ससुराल ही रहता है और वह के लोग ससुराल वाले।

गीता आज चोपन साल की हो गई है सास ससुर अब नही रहे ,ननद देवर की शादी हो गई अपना परिवार हो गया। गीता के बच्चे भी बड़े हो गए पर वह अपना कॉन्फिडेंस इतना खो चुकी है की

आज भी वह कोई निर्णय अपने मन से अपने लिए नही ले पाती

आज भी वह अपना खोया वजूद ढूंढती है अपने आप में जो उसको अबतक नही मिला।।

मंगला श्रीवास्तव इंदौर

स्वरचित मौलिक रचना।

#ससुराल

(V)

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