हरे हरे फूलों के पौधों के बीच एक छोटी सी झोपड़ी और उसमें सुई से माला बनाती राधिका छोटी सी बेटी को गोद मे लिये दुग्धपान करा रही थी माला बनाते बनाते ही वह ख्वाव में बेटी के भविष्य के बारे में सोंच रही थी कि यह पौधे इतने फूल देंगे कि हम बहुत सी रकम जोड़ लेंगे और बेटी को खूब पढ़ाएंगे कभी भी गरीबी का साया उसपर नही पड़ने देंगे धीरे धीरे इसके सपनो को पंख लगने शुरू हुये मंदिरों में लोग उसकी बनाई माला को पसन्द करते थे हांथोहाँथ बिक जाती थी मालाएं बहुत खुश थी राधिका की उसके सपने भगवान पूरे कर रहे है धीरे धीरे फूलों की मांग बढ़ी सावन आया तो मंदिरों में फूलों की अतिरिक्त मांग भी बढ़ी जिस कारण पड़ोस की जमीन किराये पर लेकर फूलों की खेती शुरू कर दी जानकी यही नाम था
बेटी का उसका दाखिला एक स्कूल में करा दिया और खुशहाल जिंदगी जीने लगी अचानक कोरोना महामारी ने पांव पसार लिये और पूरा देश के साथ साथ मंदिरों में ताले पड़ गये विवाह स्थगित हो गये दुकानों के उद्घाटन पर कुन्तलों जाने बाले फूलों के ऑर्डर कैंसिल हो गये फूल खेत मे ही पेंड के साथ ही सूख गये जुटाई रकम धीरे धीरे खर्च होने लगी कुछ बची तो स्कूल की फीस में चली गई बस सहारा कोटे पर मिलने बाला राशन ही रहा फिर भी उम्मीद और आशा की किरण ने हिम्मत नही हारने दी स्कूल न जाने से जानकी भी खेलकूद में पड़ गई और जो भी सीखा वह भूल गई पर स्कूल ने फीस मॉफ नही की और साहूकार से कर्ज लेकर फीस भर दी कि अगले वर्ष सब ठीक हो जायेगा पर यह क्या दोवारा उससे भी भयंकर बीमारी ने रूप ले लिया फिर से मन्दिर शादी बन्द हो गई खेत फिर सूख गया और रोज की आमदनी भी खत्म जानकी को कोरोना महामारी ने जकड़ लिया वह अस्पताल के चक्कर काटती रही पर पैसा न होने पर कोई भर्ती नही कर रहा था स्थिति खराव हो रही थी पर शायद नियति के हांथो वह मजबूर थी जानकी ने संघर्ष करते हुये दम तोड़ दिया अंतिम संस्कार की लंबी लाइन थी रोते रोते विटिया को जमीन में दफन कर दिया और घर आ गई उसी समय दीपावली तक अनाज फ्री देने की घोषणा प्रधानमंत्री कर रहे थे वह एकटक देख रही थी कि उसके सभी सपनो का अंतिम संस्कार हो गया और यह बचा तो राशन न जाने कितने परिवारों की यह कहानी बन गई आज जो शायद सभी से छिपी है,
गोविन्द गुप्ता,