Moral Stories in Hindi :
फोन की बेल बजते ही नूपुर ने विजय से कहा – “देखना किसका फोन है “?
“सविता दीदी का फोन है ” विजय ने कहा
अरे ये दीदी भी ना… अभी परसो ही तो आया था उनका फोन और मैंने उनको सब बताया था | मै अभी नहीं कर रही बात फुर्सत होगी तो कर लूँगी |
अच्छा मैं बात कर लेता हूँ – विजय ने कहा
प्रणाम दीदी
उधर से सविता ने कहा – विजय सब ठीक है नई जगह है कैसा लग रहा है?
हाँ दीदी सब ठीक है… अभी तो सामान भी फैला हुआ है ….चल रहा है… कहीं जाना तो हुआ नहीं अभी….वो नुपुर बच्चों के साथ थोड़ा busy है बात करेगी आपसे |
हाँ हाँ कोई बात नहीं मैंने तो यूँ ही फोन किया था | चल मैं रखती हूँ … ध्यान रखना सबका और अपना भी | गुड नाइट
हो गई बात.. क्या कह रही थी दीदी?
हाँ.. हो गई… कुछ नहीं बस हाल चाल पूछ रही थी |
सारे परिवार में ये तुम्हारी ताईजी की बेटी ही है जो सबको फोन करती रहती है.. कौन कहाँ है.. क्या कर रहा है..इनको जानना बहुत ज़रूरी है | अरे इतना फोन तो मेरी और तुम्हारी मम्मी भी नहीं करती |
ओहो… तुम्हें पता तो है उनका nature ही ऐसा है..मैं सब से सबसे छोटा हूँ ना इसलिए ..,और पहले सब एक साथ रहते थे ना और उनको सबसे बहुत लगाव है | अब सब दूर हो गए हैं तो ऐसे तो मिल नहीं पाते…इसलिए वो फोन करती है |और सबकी खबर रखती हैं |
“पता है और ये बात तुम मुझे कितनी बार बता चुके हो ” दो दिन में क्या ही हो जायेगा ?
अच्छा चलो… खाना लगाओ
हम्म कहकर नुपुर किचन में चली गयी |
विजय बैंक में सरकारी नौकरी करता था उसका ट्रांसवर मुंबई की पनवेल ब्रांच में हुआ था वो बिहार का रहने वाला था … पहली बार कोई उनके घर से इतना दूर आया था | बाक़ी सब घर परिवार वाले वहीं बिहार में आस – पास के शहर में ही रहते थे | वो नुपुर को लेकर 10 दिन पहले ही आया था.. और वो दोनों अभी घर को ठीक करने में busy थे | बच्चों का स्कूल शुरू हो गया था | विजय को कल से join करना था | नूपुर इन्हीं सब कामों मे busy थी |
इस बीच विजय की बात हुई दीदी से.. लेकिन नुपुर ने बात नहीं की |
हैलो दीदी…
नूपुर कैसी हो ?
हॉस्पिटल में हूँ दीदी
क्या हुआ?
… हम लोग बाहर गए हुए थे | आपको तो पता ही है अभी नई गाड़ी ली है… बच्चों की छुट्टी थी तो सोचा थोड़ा घूम कर आते है… शाम हो गयी थी हम लोगो को आते -आते ..कार से हम बिल्डिंग की तरफ मुड़े ही थे कि अचानक पता नहीं क्या हुआ विजय बोले कि सिर घूम रहा है मेरा …l
…जैसे – तैसे विजय ने गाड़ी गेट के अंदर की…. बाहर निकले गाड़ी से और vomat हो गयी… मुझे कुछ समझ ही नहीं आया…
Watchman को बुलाया विजय को चेयर पर बैठाया फिर भी उनको चक्कर आ रहे थे | कहाँ जाऊँ कुछ समझ नहीं आ रहा था…तभी बिल्डिंग के सेक्रेटरी आते हुए दिखाई दिए तो उन्होंने बोला कि एम. जी. एम . में जाओ kamothe ….. उन्होंने हेल्प की टैक्सी बुक करके मैं यहाँ आई हूँ | Sunday है तो इमर्जेंसी वाले डॉक्टर है… ड्रिप लगी हुई है बी. पी लो है बता रहे है अभी तो बाक़ी कल दिखाना होगा डॉक्टर को |
बच्चे कहाँ है?
यहीं है दीदी
अच्छा तुम घबराओ मत सब ठीक हो जायेगा.. किसी को फोन किया..?
नहीं दीदी अभी तो मैं..
अच्छा कोई बात नहीं
तुम ध्यान रखो और कुछ नहीं होगा विजय को
हम्म कह कर नुपुर ने फोन कट कर दिया |
विजय को ड्रिप लगी हुई थी अभी करीब 1 घंटा और लगेगा डॉक्टर ने बताया |
नूपुर वहीं चेयर पर बच्चों के साथ बैठ गयी.. दोनों बच्चे थक गए थे… और उनको नींद भी आ रही थी |
आधे घंटे बाद किसी ने उसका नाम पुकार
नूपुर ….
जी ….उसने कहा उसके सामने करीब 55, 60 साल की महिला , एक पुरुष और एक लगभग उसी के उम्र की एक महिला और खड़ी थी |
मैं सविता की सहेली शैली हूँ…. सविता ने बताया कि विजय हॉस्पिटल में है |
जी – नूपुर ने कहा
ये मेरा बेटा गौरव और मेरी बहु सुनिधि है
नूपुर ने हाथ जोड़ कर नमस्ते की |
सुनिधि ने उसके हाथों को अपने हाथ में लिया और बोली सब ठीक हो जायेगा.. हम सब है ना |
शैली ने प्यार से उसके सिर पर हाथ रखा… नूपुर की आँखो में आँसू आ गए
तभी उसका फोन बजा सविता का फोन था
जी दीदी – कहते हुए उसने अपने आँसू पोछे |
सविता बोली – शैली आ गयी?
हाँ दीदी
अच्छा ठीक है – गौरव सब देख लगा तुम फिकर मत करना .. फोन ज़रा शैली को देना |
नूपुर ने फोन शैली को दिया
सविता ने शैली से क्या कहा ये पता नहीं किसी को शैली बस हाँ.. ना में जवाब दे रही थी |
शैली ने गौरव को डॉक्टर से बात करने को बोला | सुनिधि दोनों बच्चों के पास बैठी हुई थी और शैली नुपुर से बात कर रही थी
गौरव ने आकर बताया कि कुछ टेस्ट होंगे कल और अभी 20 मिनट बाद हम विजय को घर ले जा सकते है |
थोड़ी देर बाद नुपुर ने शैली का परिचय विजय से करवाया तो वो उनको पहचान गया |
गौरव अपनी कार में सबको ले कर विजय के घर आ गया ….उसे आराम से लिटाया नुपुर ने बच्चों को सुला दिया | विजय भी दवा के असर से सो गया था |
शैली ने गौरव से कहा – ” मैं यहीं रुकती हूँ आज तुम और सुनिधि जाओ…. रात का वक़्त है अकेले नहीं छोड़ सकती मैं नूपुर को |
हाँ कह कर गौरव जाने लगा सुनिधि ने नूपुर से कहा कुछ बात हो तो फोन करना हम सुबह आयेंगे और दोनों
चले गए |
नूपुर ने बच्चों के कमरे में ही शैली के सोने का इंतेज़ाम कर दिया था |
नूपुर ने शैली से कहा – आज आप नहीं होती तो मैं क्या करती… कहते कहते वो रो दी शायद इतनी देर से वो अपने आँसुओं को रोक के रखी हुई थी | शैली बस उसके सिर को सहला रही थी… |
अगले दिन गौरव विजय को लेकर डॉक्टर के यहाँ गया कुछ टेस्ट हुए ….पता चला विजय को cervical spondylosis
है थेरेपी से आराम मिलेगा | नूपुर और विजय को घर छोड़ कर वो चला गया | शैली थोड़ी देर में आऊँगी कह कर गौरव के साथ चली गयी |
शाम 5 बजे डोरबेल बजी… नूपुर दरवाज़ा खोलने गयी तो सामने.. सविता खड़ी थी
दीदी आप कहते हुए उसने झुककर सविता के पैर छुए |
खुश रहो कहकर सविता ने उसे गले से लगा लिया |
कैसा है विजय ?
ठीक है… आपकी फ्रेंड शैली दीदी ने बहुत मदद की |
सविता मुस्कुरा दी… अरे यहीं खड़ी रहोगी या विजय के पास भी ले चलोगी?
हाँ दीदी चलिए ना… ये आपको देख कर खुश हो जायेंगे..
विजय ने जैसे ही सविता को आते हुए देखा वो उठने लगा और बोला – दीदी आप?
अरे उठने की ज़रूरत नहीं है… तुम आराम करो कह कर वो उसके पास बैठ गयी |
“”अब कैसी तबियत है”?
“ठीक है दीदी “
“डॉक्टर ने क्या कहा”?
थेरेपी के लिए बोला है और बस चक्कर ना आए… Vomat ना हो उसकी दवा दी है बाक़ी कुछ भी नहीं.. खाने पीने का कोई परहेज़ नहीं है |
चलो अच्छी बात है
पर दीदी ये शैली दी यहाँ कैसे वो तो आरा में रहती है ना?
हाँ विजय वो आरा में ही रहती है… उसका बेटा गौरव यहाँ एम. एन. सी. में है आ जाती है कभी – कभी मुंबई |
उस दिन नुपुर से बात करके मैंने शैली को फोन लगाया… मुझे पता था गौरव मुंबई में ही है… लेकिन शैली आई हुई है ये पता नहीं था… मुंबई में गौरव है कहाँ ये भी नहीं पता था इत्तेफाक से गौरव वाशी में ही रहता है | मैंने जब शैली को बताया तो उसने मुझसे कहा घबराओ मत मैं देख लेती हूँ फिर बताऊंगी |
बाक़ी तो तुम्हें पता ही है..
और आप यहाँ कैसे…? – विजय ने पूछा
कल रात जब शैली से बात हुयी तो वो बोली विजय ठीक है लेकिन नुपुर अकेली है बच्चों को और विजय दोनों को संभलना ज़रा मुश्क़िल होगा …शहर भी नया है उसे कुछ ज़्यादा पता भी नहीं है.. तू आ जाती तो उसको थोड़ा सहारा मिल जाता |
बस फिर क्या मैंने शिवम् को बोला कि मुझे जाना है उसने जो Flight मिली उसका ticket करा दिया…. गौरव ने बोला था कि मैं आ जाऊँगा लेने लेकिन मैंने बोला मैं cab से पहुँच जाऊँगी उसने तुम्हारे घर का address और location मुझे भेज दिया था….. अब इतना सब मैंने फोन से सीख लिया है |
अच्छा नुपुर रानी चाय पिलाओगी अच्छी सी.. Flight की चाय तो बहुत खराब थी |
और बच्चे कहाँ है?
वो आते होंगे बाहर खेलने गए है कह कर नुपुर चाय बनाने चली गयी |
एक हफ्ते रह कर सविता वहाँ रही शैली से भी मिली और वापस मुज़फरपुर चली गयी |
रात के 9 बज रहे थे नपुर खाना लगा रही थी कि उसका फोन बजा… विजय ने कमरे से उसका फोन लाते हुए बोला सविता दीदी का फोन है… बोल दूँ कि तुम busy हो बाद में बात करोगी |
कैसी बातें करते हो विजय इधर दो फोन और तुम बच्चों को खाना परोस दो ज़रा मैं बात कर लूँ ज़रा – इतना कह कर उसने फोन उठाया और –
प्रणाम दीदी कह कर बातों में लग गयी… विजय मुस्कुरा कर बच्चों को खाना परोस रहा था |
सच कहा है रिश्तों की परख मुसीबत में ही होती है.. और समझ भी तभी आती है |
आशा करती हूँ आपको ये कहानी पसंद आयी होगी | फिर मिलूँगी जल्दी ही एक नयी कहानी साथ |
धन्यवाद
स्वरचित्
अनु माथुर