जैसे ही कनिका ने मेरे केबिन का दरवाजा खोला वैसे ही एक जानी पहचानी सी हल्की परफ्यूम की खुशबू का मुझे एहसास हुआ और अचानक से मेरे मुंह से आवाज निकला ख्वाहिश…….. यह तो वहीं परफ्यूम की खुशबू है जो लगभग 20 साल पहले कॉलेज में मेरे साथ पढ़ने वाली एक लड़की ख्वाहिश के कपड़ों से आती थी।
इन 20 सालों में शायद ही कोई ऐसा दिन रहा होगा जिस दिन मैंने इस परफ्यूम की खुशबू को मिस ना किया हो। सर एक महिला गोल्ड लोन के लिए आयी हैं ।कनिका की आवाज से मेरा ध्यान टूटा मैं एक बैंक में मैनेजर था और दो महीने पहले उसी शहर में मेरा ट्रांसफर हुआ
जहां से मैंने अपने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की थी। कनिका इसी बैंक में लोन का काम देखती है। कनिका बोली सर सारे गोल्ड को मापने के बाद इनका 80000 का लोन अप्रूव्ड हो रहा है पर वो 1 लख रुपए के लोन के लिए अनुरोध कर रही है। गोल्ड लोन के लिए गिरवी रखने वाली गहनों में सोने के कंगन कानों के झुमके और मंगलसूत्र है।वह एक स्कूल में संगीत की शिक्षिका है
और उनका सैलरी अकाउंट हमारे ही बैंक में है। उस अकाउंट में 35000 रुपए हर महीने सैलरी आती है। वह पहले भी पर्सनल लोन ले चुकी हैं। यह उनका गोल्ड लोन का एप्लीकेशन फार्म है।
गोल्ड लोन के फार्म पर पहला शब्द “ख्वाइश”पढ़ते ही मैं 20 साल पहले कॉलेज की यादों में चला गया। ख्वाहिश मेरे बैच में पढ़ने वाली सबसे चुलबुली लड़की थी हमेशा हंसते और गुनगुनाते रहने वाली। रंग रूप और कपड़े उसके हमेशा ही साधारण से थे पर उसके चेहरे की मुस्कुराहट में जो आकर्षण था
वह मुझे आज तक किसी लड़की में नहीं दिखा। हमेशा हंसते मुस्कुराते और खुश रहने वाली ख्वाहिश जिन लड़कियों के साथ रहती हंसते हंसाते रहती।मैं जितना इंट्रोवर्ट था वह उतनी ही बातूनी थी। मैं क्लास के एक कोने में बैठा उसके परफ्यूम की खुशबू को महसूस करता था। संगीत में ख्वाहिश को बेहद लगाव था
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और वह जब गीत या ग़ज़ल गाती तो उसकी मधुर आवाज से ऐसा लगता है कानों में मिश्री घुल रही हो और दिल को शीतलता का एहसास होता। कॉलेज के वार्षिकोत्सव में उसके गाने के बाद लगातार काफी देर तक तालियां बजती रही थी। ख्वाइश को साज सिंगार और फैशन से कोई विशेष लगाव ना होकर सादगी पसंद लड़की थी
। ख्वाहिश को देखकर तो मंदिर की मूर्ति देखने जैसी पवित्रता का एहसास होता था।उन दिनों छाया की तरह उसके साथ रहने वाली उसकी सबसे खास सहेली रोशनी ने शायद मेरे एक तरफा प्यार को मेरी आंखों में भाॅंप लिया था।
कनिका को मैंने ख्वाहिश को अंदर केबिन में भेजने के लिए कहा और सर झुका कर में फाइलों में अपनी व्यस्तता दिखाने की कोशिश करने लगा। केबिन का दरवाजा खोलकर दो महिलाएं अंदर आई तो मैंने उन्हें सामने लगी कुर्सी की ओर बैठने का इशारा किया। मैं नजरे नहीं उठा पा रहा था।
जिस परफ्यूम की खुशबू को मैं बरसों तक ढूंढता रहा था उसी परफ्यूम की खुशबू से मेरा पूरा केबिन भर गया ।मेरा दिल कई गुना तेजी से धड़कने लगा था और मन बेचैन हो उठा था मुझ में इतनी हिम्मत नहीं हो रही थी कि मैं नज़रें उठा पाऊं। मैंने फोन पर तीन चाय के लिए ऑर्डर कर दिया।
मैंने हल्की नजर से उन दोनों महिलाओं को दिखा ख्वाहिश के साथ आने वाली महिला उसकी कॉलेज की दोस्त रोशनी ही थी। फिर सारी हिम्मत जोड़कर मैंने अपना सर उठाया मुझे देखते ही रोशनी ने तुरंत पहचान लिया अरे विप्लव तुम । मैनेजर बन गए हो क्या ठाठ है यार,,,,ख्वाहिश देखो यह तो वही विप्लव है
जो कॉलेज में हमारे साथ पढ़ता था। वह बोले जा रही थी और ख्वाहिश गुमसुम सी चुपचाप देख रही थी। कभी सागर की लहरों की तरह अल्हड़ और मस्तमौला रहने वाली लड़की ख्वाइश अब बिल्कुल नदी के जल की तरह शांत और गंभीर थी। चाय आने के बाद मैंने हाल-चाल पूछ ख्वाहिश चुप थी लेकिन रोशनी ही बता रही थी
सब कुछ अच्छा चल रहा है पर अनुराग जीजू बीमार हैं इसलिए ख्वाहिश को पैसे की जरूरत है अनुराग जीजू साहित्यकार हैं और अपनी लेखनी से थोड़े बहुत ही पैसे कमा पाते हैं। साधारण से कुर्ते पजामे में अक्सर एक कप चाय की खातिर वह साहित्यिक सभाओं में अनुराग जीजू की उपस्थिति रहती है।
एक बेटी भी है जो अब दशमी कक्षा पास कर चुकी है। नियति कितनी क्रूर हो सकती है यह मुझे एहसास हुआ दीपावली के समय आमतौर पर महिलाएं नए गहने खरीदती हैं इस समय मैं जीवन में जिसे सबसे ज्यादा प्यार करता था उसे अपना मंगलसूत्र तक गिरवी रखना पड़ रहा था। कापते होठों से मेरे मुंह से आवाज निकली ख्वाहिश तुम कैसी हो
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… ख्वाहिश मैं धीरे से कहा थोड़ी परेशान हूं पर बहुत अच्छी हूं, भगवान अपने प्यारों भक्तों की परीक्षा लेते हैं मैं उसी परीक्षा से गुजर रही हूं । बरसों बाद ख्वाहिश कि इस मीठी आवाज में मेरे हृदय के तारों को झंझोर कर रख दिया । मुझे समझ में नहीं आ रहा था
कि मैं खूब हंसू या खूब रोऊं। मैंने कनिका को बुलाया और सारे गहने गहने वापस करने को कहा और खुद गारंटर बनकर ख्वाहिश को 1 लाख का पर्सनल लोन अप्रूव्ड कर दिया।
लेखक :संजीव कुमार