बताओ ना चाचा मेरे साथ ही ऐसा सब क्यूँ होता है?अभागन हूँ ना,तभी तो?
अरे, नहीं-नहीं मेरी बच्ची,कौन कहता है तू अभागन है,देखना तेरे भाग से सब ईर्ष्या करेंगे।भगवान सब ठीक कर देंगे।
चाचा,मेरे मन को तस्सली दे रहो ना,जबकि आप जानते हो,मेरे आगे आगे मेरा दुर्भाग्य ही चलता है।चलना भी सीखा नही था कि मम्मी पापा छोड़ गये, वो तो आपने पाल लिया चाचा,नही तो पता नही मुझ उस समय की बच्ची का क्या होता?आपका प्यार तो मिला पर चाची का मन मैं ना जीत सकी,अभागन अभागी ही रह गयी।
मन छोटा मत कर,रागी।भगवान सब ठीक करेगा।
शिवशंकर और रामदेव दो सगे भाई थे।दोनो के अलग अलग व्यवसाय थे,अपने अपने घर थे।शिवशंकर बड़े थे,उनके कोई औलाद नही थी। गावँ में अपनी कुलदेवी से शिवशंकर और उनकी पत्नी ने मन्नत मांगी थी,कि यदि उनके औलाद होगी तो वे गावँ में बड़ा भंडारा तो कराएंगे ही साथ ही गांव की एक मात्र धर्मशाला में एक कमरे का निर्माण भी करायेगे।कुछ ऐसा सुखद संयोग हुआ कि शिवशंकर के यहां गृहलक्ष्मी का पदापर्ण हो ही गया।उन्होंने अपनी पुत्री का नाम रखा रागिनी,जिसे वे प्यार से रागी कहने लगे।
पुत्री प्राप्ति के बाद भी शिवशंकर अपनी कुलदेवी के यहां मांगी मन्नत को भूले नही,सो आठ माह की रागी को साथ ले वे अपनी पत्नी के साथ अपनी कार से मन्नत पूरी करने गाँव चले ही गये।वहाँ उन्होंने खूब बड़े भंडारे का आयोजन किया,और बाद में धर्मशाला में कमरे के निर्माण के लिये इक्कीस हजार रुपये भी दिये, साथ ही आश्वासन दिया कि कमीबेसी होने पर वह और धन भी भिजवा देंगे।इस मन्नत को पूरी करने के बाद शिवशंकर अपने को संतुष्ट महसूस कर रहे थे।
सब कार्य निपटाकर शिवशंकर अपनी पत्नी और नवजात बेटी के साथ वापस शहर लौट चले।विधि को कुछ और ही मंजूर था।शिवशंकर की पत्नी ने बेटी रागी को कार की पिछली सीट पर तकिये लगा कर सुला दिया और स्वयं आगे की सीट पर अपने पति के साथ बैठ गयी।कुछ किलोमीटर ही चले होंगे कि अंधाधुंध रफ्तार से आते ट्रक ने उनकी कार से टक्कर मार दी।दुर्घटना घट चुकी थी।शिवशंकर और उनकी पत्नी की मौके पर ही मृत्यु हो गयी।आश्चर्यजनक रूप से पिछली सीट पर लेटी रागिनी को खरोच तक न आयी।
रामदेव को जैसे ही इस दुर्घटना का पता चला,वे दौड़े चले आये।भाई-भाभी का अंतिम संस्कार करा कर वे रागी को सीने से चिपकाये अपने घर लौट आये।अपनी पत्नी जानकी से बोले भागवान देखो तुम्हारी गोद मे बच्चा आने से पहले ही रागी ने हमें मां बाप बना दिया।रागी अब हमारी ही बेटी है।जानकी कुछ बोली तो नही पर रागी को अपनी गोद मे ले लिया।हकीकत में जानकी मन से रागी को स्वीकार नही कर पायी थी।जानकी को लगता कि रागी मनहूस है,एक साथ ही अपने माँ पिता को खा गयी
।रामदेव अपनी पत्नी के मनोभावो को समझ रहे थे,पर कुछ न कर सकने की स्थिति में अपने को पा रहे थे।रागी की परवरिश तो उनके घर में ही आखिर होनी थी।समय के साथ सब ठीक हो जायेगा, सोचकर वे अपने मन को तस्सली दे लेते।इस बीच राम देव के यहां भी एक बेटी और बेटे का आगमन हो गया।तीनो बच्चे धीरे धीरे बड़े होने लगे।
रामदेव की पुत्री नीलू और पुत्र पंकज के साथ रागी भी स्कूल जाने लगी थी।जानकी का रागी के प्रति भेदभाव कम होने का नाम ही नही ले रहा था।अब रागी भी सब कुछ समझने लगी थी।उसके बालमन में हमेशा आता कि चाची क्यों उससे नफरत करती है,उसका क्या कसूर है?वो तो पढ़ने के साथ साथ घर का भी खूब काम करती है।पर चाची रोज ही किसी न किसी बात पर उसे डांटती ही रहती।वो तो बस एक चाचा ही थे जो उसे दिल से प्यार करते।उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ जब रागी
और नीलू के हाई स्कूल के परिणाम आये जिसमे रागी ने टॉप किया था,नीलू के मार्क्स रागी से कुछ ही कम थे,तो जानकी रागी के परिणाम पर खुशी जाहिर न करके नीलू पर बरस रही थी कि उसके मार्क्स रागी से कम क्यो आये।रागी सोच कर आई थी कि उसके रिजल्ट को देख कम से कम आज चाची जरूर खुश होगी।पर यहां तो कुछ हुआ ही नही।नीलू पर चाची को बरसते देख वह सहम गयी, मानो उसने कोई गलती कर दी हो।वह चुपचाप कमरे में चली आयी।उसे ध्यान नही पड़ता कि जब चाची नीलू के नये कपड़ो के साथ उसके लिये
भी लायी हो।कभी कभी चाचा ही ला देते थे।वह तो नीलू के ही पुराने कपड़े पहनती आयी थी।रागी को तो अपनी मां की सूरत तक याद नही थी,जब से होश संभाला तो वह जानकी को ही मां बुलाती थी,पर जानकी ने ही उसे अपने को चाची और रामदेव को चाचा कहना सिखाया।बाल मन उस समय कुछ समझ ही नही पाया,जैसा बताया वैसा सीख लिया।
रागी मन मस्तिष्क से समय से पूर्व ही परिपक्व हो चुकी थी।वह समझ चुकी थी कि वह चाची के लिये अप्रिय है।ग्रेजुएशन के बाद रागी और नीलू की शादी की चर्चा घर मे चलने लगी।रागी चूंकि नीलू से भले ही कुछ महीने ही बड़ी थी,थी तो बड़ी ही,इसी कारण रामदेव का सोचना था कि पहले रागी की शादी तय हो,बाद में नीलू की।बाद में भले ही शादी एक साथ कर दी जाये।
रविवार के दिन अवनीश और उसका परिवार रागी को देखने आने वाला था,कि रामदेव को अपने व्यावसायिक कार्य से अर्जेंट बाहर जाना पड़ गया।जानकी ने कहा कि तुम चिंता मत करो मैं सब संभाल लूँगी।आश्वस्त हो रामदेव चला गया।लड़के वाले आये तो उनके सामने रागी साधारण वेश में ही आयी।उन्हें चाहिये थी स्मार्ट बहू।रागी की सुंदरता को उन्होंने उसके वेश से तौल लिया। फिर भी रागी और अवनीश को बाहर लॉन में अकेले बात चीत के लिये भेज दिया गया।इसी बीच नीलू भी वहां आ गयी।उसका आधुनिक परिवेश और खुलापन से अवनीश के माता पिता को प्रभावित देख जानकी ने नीलू के बारे में भी प्रस्ताव उनके समक्ष रख दिया।
इस प्रस्ताव से अवनीश के माता पिता खुश नजर आये।नीलू के साथ संबंध के लिये वे इशारा भी कर गये।उधर रागी की जब अवनीश से अकेले में बात हुई तो वह उसे शालीन और धीर गंभीर लगा।सच तो यह रहा कि रागी को अवनीश पसंद आ गया,उसे लगा कि अवनीश ही उसकी मंजिल है।
रात्रि में रामदेव भी आ गये,उन्होंने पूरी जानकारी जानकी से ली।उत्सुकता वश रागी उनकी बात सुनने लगी।तब उसे पता चला कि चाची तो अवनीश की शादी नीलू से कराना चाहती हैं।सुनकर रामदेव जी बोले देखो जानकी यदि उन्हें रागी पसंद नही तो भी हम वहां अपनी नीलू की शादी नही करेंगे।अरे जानकी रागी हमारी बच्ची ही है,तूने ही जैसे भी हो पाला है,पालने से तो पशु से भी प्रेम हो जाता है,तेरी ममता रागी के लिये क्यो नही जागी?सच कहूं जानकी मुझे तो तू अभागन लग रही है,जो अपनी बेटी को बेटी ना मान सकी।
रागी ने चाची की मंशा जानी तो उसको अपने अंदर कुछ टूटता महसूस हुआ,कुछ ही घंटों में उसने अवनीश से अपने को मानसिक रूप से जोड़ लिया था।
आंखों में आये आंसुओ को रोकने का असफल प्रयास करते हुए वह अपने कमरे में दौड़ पड़ी। फफकते हुए बोली माँ तेरी सूरत तो याद नही पर क्या तू होती तो क्या तब भी मेरे साथ ऐसा ही होता?
तभी रामदेव जी उसके कमरे में आ गये और उसको फफकते देख उसके सिर पर हाथ फिराने लगे।चाचा को पास देख रागी उनसे चिपट गयी और बोली चाचा यह सब मेरे ही साथ क्यों होता है, अभागन हूँ ना।
रागी को सांत्वना दे रामदेव उसके कमरे से वापस आ गये।वे समझ गये थे उनकी बातों से रागी का संतुष्ट होने का प्रश्न ही नही उठता, पर कर ही क्या सकते थे?
आज पहली बार जानकी को महसूस हो रहा था कि उससे रागी के साथ अन्याय की पराकाष्ठा हो गयी है।
अगले दिन जानकी पहली बार खुद रागी के कमरे में आयी और बोली रागी बेटी देख तो ड्राइंग रूम में कौन तुझसे मिलने आये है।पहली बार बेटी का सम्बोधन सुन रागी चाची का मुँह देखती रह गयी।आज जानकी के रूप में रागी को मां दिखाई दे रही थी।वह माँ माँ कहते कहते जानकी से चिपट गयी।जानकी भी अपने आंसू पोछते हुए उसे ले ड्राइंग रूम में ले आयी तो रागी चौक पड़ी सामने अवनीश सपरिवार उपस्थित थे।अवनीश की माँ ने उठकर अपने गले से सोने का हार उतार कर रागी के गले मे डाल कर उसका हाथ अवनीश के हाथ मे देकर बोली बेटा अवनीश तेरी पसंद ही हमारी पसंद है।
आज पहली बार रागी मुस्काई थी,चुपके से।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित।
*आखिर मेरे साथ ही ऐसा सब क्यों होता है*