नीति की शादी को दस वर्ष हो गये थे आज। हर वर्ष वही याद दिलाती थी विनय को, दिन भर इंतज़ार करने के बाद ” कि आज हमारी शादी की वर्षगांठ है ” विनय को कभी याद नहीं रहता था। नीति ने भी आज चुप रहने का विचार बना लिया था। लेकिन वह मन ही मन उदास थी। विनय के द्वारा कोई प्रतिक्रिया न व्यक्त करने के कारण । अगले दिन नीति को सुस्त देखकर विनय ने उसके स्वास्थ्य के बारे में पूछा तो उसकी आखें भींग गईं। विनय को जब वजह पता लगी तो वह हँसने लगा। फिर थोड़ी देर बाद गंभीर होकर बोला “नीति तुम बिना मतलब की बातों को मन में जगह मत दिया करो। हमें सारी जिंदगी साथ रहना है। एक दूसरे के गुण अवगुणों को अपनाकर। इसलिये जो इच्छा हो उसे व्यक्त कर दिया करो। और मुझे जहाँ गलत महसूस करो टोक दिया करो। कोई बात भूल जाना या जीवन साथी की परवाह न करना, प्राकृतिक आपदा नहीं है। जिसे झेला जाय। इसका निराकरण आपसी सहयोग से हो सकता है। कल का दिन निकल गया तो क्या हुआ हम आज बाहर घूमने चलेंगे, खरीदारी करेंगे, बाहर खाना खायेंगे। ताकि तुम्हें कुछ राहत मिले किचन से। ” विनय की बातें सुनकर नीति अचंभित हो रही थी क्योंकि विनय ने आज तक उसके प्रति कभी हमदर्दी नहीं जताई थी। वह तो विनय को क्रोधी और मनमानी करने वाला व्यक्ति ही समझती रही थी। विनय की सुलझीं और प्यार भरी बातें सुनकर नीति को अपनी दादी की याद आ गई। जो हमेशा पुरुषों के व्यवहार को पहेली का नाम देतीं थीं।
नीति ने अपने आप को संभाला और विनय की बातों में सहमति जताते हुए गृह कार्य में व्यस्त हो गई। आज वह अपने आप को बहुत प्रफुल्लित महसूस कर रही थी। क्यों कि विनय की बातों ने दिल में छुपे गमों को निकाल फेंका था। और वहाँ पर अब खुशियाँ खिलखिला रहीं थीं।
#कभी_खुशी_कभी_ग़म
स्वरचित — मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश.