पहचान – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

 ” क्या बात है सुगमा…आज बड़ी चहक रही है..।” अनिता ने अपनी खाना बनाने वाली से पूछा जो सब्ज़ियाँ काटते हुए गीत भी गुनगुनाती जा रही थी।

   ” हाँ दीदी..आज मेरा सपना जो पूरा हुआ तो क्यूँ ना इतराऊँ…क्यूँ ना करूँ अपनी किस्मत पर नाज़।” अपने दुपट्टे से हाथ पोंछती हुई सुगमा बोली तो अनिता की उत्सुकता बढ़ गई। उसने आश्चर्य- से पूछा,” क्या मतलब? “

  ” पिछले महीने आपको बताया था ना कि मेरी लिखी कहानी को चालीस हज़ार लोगों ने पढ़ा है..। “

  ” हाँ तो….।”

  ” तो दीदी…, मेरी वो कहानी प्रतियोगिता में फ़र्स्ट आई है।” कहते हुए उसकी आँखें खुशी- से छलक पड़ीं। 

    ” सच सुगमा…।” अनिता के लिये भी यह खुशी का पल था।उसे याद आया जब दस बरस पहले सुगमा बदहवास-सी उसके पास काम माँगने आई थी।

       सुगमा जब चार बरस की थी तभी उसके पिता की मृत्यु हो गई थी।बेटी को पालने के लिये उसकी माँ घरों में झाड़ू-बरतन का काम करने लगी।अकेली औरत…साथ में छोटी बच्ची…।लोगों की निगाहें हर वक्त उन्हें घूरती रहती।ऐसे में हरिचरण जो एक फ़ैक्ट्री में काम करता था,उनकी मदद करने लगा।कभी-कभी नन्हीं सुगमा के साथ खेलकर और बातें करके अपना मन भी बहला लिया करता था। फिर एक दिन हरिचरण ने सुगमा की माँ से विवाह कर लिया और उसका पिता बन गया।

       हरिचरण सुगमा के लिये खिलौने लाता और उसका हाथ पकड़कर स्कूल ले जाता। सुगमा पिता से कहती,” मैं बहुत पढ़ूँगी और अपनी पहचान बनाऊँगी।” 

  ” हाँ-हाँ..ज़रूर बनाओगी बेटी।” खुश होकर उसके पिता आशीर्वाद देते।

   फिर उसके भाई का जन्म हुआ।घर के खर्चे बढ़ने लगे तो उसकी माँ लोगों के कपड़े सिलने लगी।कुछ सालों के बाद माँ बीमार रहने लगीं।बेटी को सयानी होते देख उन्हें उसके विवाह की चिंता सताने लगी।एक दिन स्कूल से आने पर माँ ने उसे अपने पास बुलाया और सिर पर हाथ फेरते हुए बोली,” देख बेटी…मेरी सेहत दिनोंदिन गिरती जा रही है।मैं अपने सामने ही तुझे विदा कर देना चाहती हूँ।

तेरे सपने अधूरे रह जाएँगे.. मुझे माफ़ करना।” बस दसवीं की परीक्षा देते ही पिता के एक परिचित के बेटे शिवा के साथ उसका गठबंधन हो गया और वह ससुराल आ गई।शिवा अपने पिता के साथ ही खेती-बाड़ी का काम करता है।साल भर के अंदर वह एक बेटी की माँ भी बन गई।बेटी के चलते-बोलते तक में वह एक बेटे की भी माँ बन गई और अपनी घर-गृहस्थी को संवारने में वह व्यस्त हो गई।

      एक साल उसके गाँव में बहुत कम वर्षा हुई.. सूखा पड़ने के कारण फ़सलें बर्बाद हो गई।खाने के लाले पड़ने लगे तब शिवा उससे बोला,” सुगना…मैं काम की तलाश में शहर जा रहा हूँ।वहाँ मेरा दोस्त रमन है..अपनी कुशलता का समाचार देता रहूँगा।तुम सबका ख्याल रखना।” कहकर उसने माता-पिता का आशीर्वाद लिया और शहर चला गया।कुछ दिनों तक भटकने के बाद उसे एक काम मिला।उसके काम से खुश होकर मालिक ने उसकी पगार बढ़ा दी और रहने के लिये जगह भी दे दी।

       कुछ महीनों के बाद जब शिवा घर आया तब उसके पिता बोले,” बेटा..यहाँ का हम पति-पत्नी संभाल लेंगे।तुम अपने परिवार को अपने साथ ले जाओ।इस तरह सुगना शहर आ गई।

     सुगना के बच्चे स्कूल जाने लगे।उसने आसपास की महिलाओं को काम पर जाते देखा तो उसकी भी इच्छा हुई।उसने शिवा से कहा कि वह भी इन महिलाओं की तरह कोई काम करना चाहती है।शिवा ने सोचा, दो दिनों में इसके सिर से काम का भूत उतर जाएगा, इसलिये उसने ‘ठीक है’ कह दिया।

     काम की तलाश में ही वह भूखी- प्यासी भटकते-भटकते अनिता के दरवाज़े पर पहुँच गई थी।दो दिन पहले ही उसकी कामवाली ने उसे गुड बाय कह दिया था।इस तरह से वह अनिता के यहाँ खाना बनाने और साफ़-सफ़ाई का काम करने लगी।

      कुछ दिनों बाद अनिता ने उसे दो नये घर में भी काम दिला दिये तो उसकी आमदनी अच्छी होने लगी।एक दिन उसकी एक सहेली ने बताया कि मोबाइल में ‘बेटियाँ मंच’ नाम का एक ग्रुप है जिसकी कहानियाँ बहुत अच्छी होती हैं।पढ़ने का शौक तो उसे था ही..बस वह भी उस ग्रुप से जुड़ गई और अपने काम से जब भी फ़्री होती तो कहानियाँ पढ़ने लगती।बेटे से लाइक-कमेन्ट करना भी उसने सीख लिया था।

       फिर एक दिन उसे भी कहानी लिखने की इच्छा हुई।पति को बोली तो वह हा-हा करके हँसने लगा, बोला,” कहानी पढ़ लेती हो..वही बहुत है..लिखना-विखना तुम्हारे बस का नहीं है।” तब बेटी ने उसका हौंसला बढ़ाया..उसे टाइप करना.. ई-मेल करना सिखाया और फिर वो अपने विचारों और अनुभवों को कहानी का रूप देकर ‘बेटियाँ मंच’ पर पोस्ट करने लगी।

       एक दिन उसके बेटे ने कहा,” माँ..मैं भी तुम्हारी कहानी पढ़ूँगा… मेरे सभी दोस्त की मम्मी तुम्हारी कहानी पढ़तीं हैं।” अपनी पहचान बनते देख वह बहुत खुश हुई थी।जब उसकी एक कहानी को चालीस हज़ार लोगों ने पढ़ा तब तो उसकी खुशी का ठिकाना ही नहीं था और आज….,आज तो उसकी कहानी प्रतियोगिता में फ़र्स्ट आई थी तो…।

    ” दीदी…ईनाम में शील्ड मिला है।” अपने हैंडबैग से एक गोल्ड शील्ड निकालकर सुगना अनिता को दिखाने लगी तब उसकी तंद्रा टूटी।गोल्ड शील्ड पर सुगना का नाम और तस्वीर छपा देखकर वह बोली,” सुगना..एक छोटे गाँव से शहर आकर तूने अपने हौंसले और मेहनत से अपनी एक पहचान बनाई है और इस मुकाम तक पहुँची है तो तू क्यूँ ना करेगी अपनी किस्मत पर नाज…।तू तो सभी महिलाओं के लिये प्रेरणा है।”

       ” जानती हैं दीदी…ये शील्ड देखकर तो आज शिवा ने मुझे ‘आइ लब यू’ कहा….।” कहते हुए उस दो बच्चों की माँ के कपोल एक नवयौवना की तरह गुलाबी हो गये थे।अनिता ने तुरंत फ़्रिज़ से काजू कतली का एक टुकड़ा निकाला और उसके मुँह में डाल दिया। 

                            विभा गुप्ता

                               स्वरचित 

# क्यूँ ना करूँ अपनी किस्मत पर नाज़

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