पत्थर दिल

” चलिए पापा बाहर थोड़ा सा बाहर घूम कर आते है ”  आरुषि ने देवेंद्र जी का हाथ पकड़ते हुए कहा

देवेंद्र जी कुर्सी से उठ कर आरुषि का हाथ पकड़ कर बाहर जाने लगे

“रुक जाए दीदी और पापा आप भी “सुमन ने पीछे से कहा

“क्या हुआ सुमन ?” नैना ने पूछा

” दीदी पापा घर से बाहर नहीं जाएंगे और अगर जायेंगे तो इस घर के दरवाज़े हमेशा के लिए उनके लिए बंद हो जाएंगे ” सुमन ने सोफे पर बैठते हुए कहा

नैना और आरुषि दोनों उसे हैरानी से देखने लगी ये सुमन है जिसने कभी ऊँची आवाज़ में बात नहीं की हमेशा मुस्कुराने वाली समझदार मम्मी के साथ ऐसे रहती थी जैसे उनकी बेटी है बहू नहीं

” यश ये आरुषि क्या बोल रही है ” नैना ने पूछा

यश कुछ बोलता उस से पहले सुमन ने कहा ” मै सही बोल रही हूँ”

“ये पापा का घर है और तुम उनको अपने ही घर आने के लिए मना कर रही हो होती कौन जो तुम इस तरह से पापा से बोलने वाली ” आरुषि ने थोड़ा गुस्सा होते हुए कहा

“मै इस घर की बहू हूँ और आपके भाई की पत्नी हूँ ” सुमन ने प्यार से जवाब दिया

” तो “? नैना ने भी गुस्सा होते हुए कहा

“मै तो आने नहीं दूंगी आप ले जाना अपने साथ पापा को ” सुमन ने कहा

“यश ये क्या बदतमीजी है ये सुमन क्या बोल रही है तुम कुछ बोलते क्यों नहीं  “?   नैना ने कहा

यश चुप चाप खड़ा था

” ये देखो बीवी का गुलाम तुम्हारी बीवी पापा को घर से बाहर निकालने की बात कर रही है और ये चुप है …. क्यों नहीं आ सकते पापा वापस ….क्या ये घर तुमने अपने नाम करवा लिया है “?

“नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है दीदी ” सुमन ने कहा

“तो फिर क्या हुआ “?आरुषि ने पूछा

आज से पंद्रह दिन पहले देवेंद्र जी की पत्नी वैजयंती जी का स्वर्गवास दिल का दौरा पड़ने से ही गया था उनकी दो बेटियां थी और एक बेटा बड़ी नैना और छोटी वाली आरुषि सबकी शादियां हो गई थी सबका अपना परिवार था यश की पत्नी सुमन बहुत सुघड़ और समझदार थी उसने वैजयंती के साथ मिल कर पूरा घर सम्भाल लिया था दो बच्चे थे उसके और वो खुद वर्क फ्राम होम करती थी । नैना और आयुषी जब भी आती सुमन की तारीफ करते नहीं थकती और वैजयंती को बोलती की आप बहुत लकी हो का आपको सुमन जैसी बहू मिल है वैजयंती भी सुमन के साथ बहुत खुश रहती थी ।

सब कुछ अच्छा था जैसे घर की कामना हर कोई करता है बिल्कुल वैसा।

नैना ने थोड़ा शांत होते हुए कहा ” सुमन अभी माँ गई है और तुम इस तरह की बात कर रही हो कितना दुख हो रहा होगा उन्हें”

” कोई दुख नहीं हो रहा होगा उन्हें आज़ाद हो गयी वो इस क़ैद खाने से पापा की तानाशाही से बहुत खुश होंगी मम्मी ” सुमन ने इतना कहा था कि सब उसकी तरफ देखने लगे

सुमन ने फिर कहा ” आपकी दोनों की शादी को लगभग पंद्रह साल हो गए और मेरी शादी को दस साल हो गए आप तो दूर रहते हो मै तो यहीं रहती हूँ तो आपको कैसे पता होगा कि आपके पापा किसी हिटलर से कम नहीं है मम्मी का जीना मुश्क़िल कर दिया था इन्होंने ” उसकी इस बात पर देवेंद्र जी ने उसे गुस्से से देखा

” ऐसे मत देखिए पापा अपने एक कैदी बना रखा था उनको वो अपनी पसंद से कुछ कर नहीं सकती थी ना कही जा सकती थी ना कही आ सकती थी  … मम्मी अपनी पसंद का कुछ बना ले तो पापा दो दिन तक उनको इस बात को लेकर सुनाते थे कि ये क्या बना दिया बिल्कुल बेकार बना है …कोई दोस्त नहीं थे उनके किसी से बात नहीं करती थी वो क्योंकि पापा कही जाने ही नहीं देते थे उनको ।

“ये क्या बोल रही हो तुम पापा ने मम्मी को हमेशा  बहुत अच्छे से रखा हमने देखा है हर साल पापा उनको घुमाने ले जाते थे सब रिश्तेदारों से मिलने ले जाते थे और बहुत ध्यान रखते थे पापा ” आरुषि ने कहा

“हाँ ….बहुत ध्यान रखते थे कभी पूछा मम्मी से कि तुमको जाना हैं कही …नहीं बस जाना है अपनी पसंद की जगह ले कर गए पापा हमेशा मम्मी क्या पहने क्या खाए सब कुछ पापा डिसाइड करते थे ।”

” रिश्तेदारों के वो सिर्फ अपने वालों के जाते थे कभी मम्मी के मायके ले गए या रहने दिया उनकी अरे आप दूर मत जाओ ना मम्मी के ताऊजी की डेथ पर पापा ने उन्हें जाने ही नहीं दिया रोती रही मम्मी लेकिन पापा ने जाने नहीं दिया… और नानाजी की डेथ पर वो तीन दिन में उनको ले आए सब रुके हुए थे दीदी आप भी पांच दिन के बाद आई थी … क्या था रहने देते उनको …मामाजी ने कितना रोका दो ही भाई बहन थे ना थोड़ा रह लेते साथ में लेकिन नहीं  ले आए वो पता है क्यों क्योंकि पापा के बहुत पुराने दोस्त आ रहे थे

उनको लंच पर बुलाया था अब बताओ दोस्त का लंच जरूरी था या नानाजी “? ऐसी बहुत सारी बातें है दीदी जो आपको पता नहीं होगी …. मैने देखा मम्मी को अपने ताऊजी के लिए रोते हुए नानाजी के लिए रोते हुए आप सोच रही होंगी कि यश भी तो ले जा सकता था हां बिलकुल ले जा सकते थे अगर शुभम होने वाला नहीं होता और नानाजी के समय में अदिति होने वाली थी  आप नहीं सोच सकती दीदी मैने किस हाल में मम्मी को देख है ….ये ऊपर से दिखने वाले इंसान पत्थर का दिल लिए हुए है अरे पत्नी थी वो इनकी लेकिन इन्होंने तो उन्हें इंसान ही नहीं समझ पत्नी क्या समझते

हाँ इस बात की तारीफ मै करूंगी कि इन्होंने आप तीनों की परवरिश बहुत अच्छी की आपके लिए ये आदर्श पिता तो हो सकते है लेकिन माँ के लिए ये बिलकुल भी अच्छे पति

नहीं थे ।

देवेंद्र जी सुमन को देख रहे सुमन की आँखों से आंसू बह निकले उसने सामने रखी हुई वैजयंती की तस्वीर को उठाया और अपने सीने से लगा कर ज़ोर से रोने लगी

नैना और आरुषि की आँखों से भी आंसू बह निकले यश ने आगे बढ़कर सुमन को अपनी बाहों में भर लिया

सुमन हिचकियों ले कर रो रही थी कुछ देर बाद सब शांत हुए …. नैना और आरुषि ने जाकर सुमन को गले से लगा लिया और उसके सिर पर हाथ फेरने लगी ।

सुमन थोड़ा शांत हुयी और बोली ” पापा कभी इस घर से बाहर नहीं जाएंगे और अगर गए तो इस घर में वापस नहीं आयेगे ये मेरा आखिरी फैसला है अब ये घर इनके लिए कैदखाना है जैसे मम्मी के लिए था आप लोग मुझे जो भी समझे मेरा दिल इनके लिए पत्थर का हो चुका है ।”

सुमन ने वैजयंती की तस्वीर पर एक बार प्यार से हाथ फेरा उसे सामने रखी हुई मेज पर रखा और अंदर चली गयी।

समाप्त

स्वरचित

काल्पनिक कहानी

अनु माथुर ©

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