“पत्थर दिल” – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi

गीतू एकदम पत्थर दिल बन गई थी आजकल ।जबसे पति चले गए तब से न किसी से कुछ बोलती न किसी से मिलती।बस अपने घर में अपने काम से मतलब रखती ।गीता नाम था उसका लेकिन गौरव हमेशा प्यार से गीतू बुलाने लगे थे।उसे भी गीतू सुनना अच्छा लगता ।सोलह साल की रही होगी जब गौरव की दुलहन बन गई थी ।

ससुराल और सास ससुर सभी का भरपूर दुलार मिला था उसे ।एक छोटी ननद और एक छोटा देवर भी था।ननद सोनी भी सखी बन गई थी ।दोनों एक दूसरे से हर बात शेयर करती ।अम्मा जी कभी कुछ कह भी देती गीतू के लिए तो सोनी हमेशा भाभी का पक्ष लेती और अम्मा को निरूत्तर कर देती।देवर बंटी भी भाभी के आगे पीछे घूमता रहता ।

बहुत खुश हो गई थी गीतू तब।गीतू के माता पिता भी निहाल हो गये थे बेटी को सुखी देख कर ।दो साल बीत गया ।अम्मा जी गुहार लगाने लगी “अब तो आँगन में नन्हा मुन्ना खेलना चाहिए “।समय आगे बढ़ने लगा ।पांच साल बीत गए ।माँ बनने के कोई लक्षण  नहीं दिखाई दिया ।

अम्मा जी की बेचैनी बढ़ती गई ।कैसे वंश चलेगा? डाक्टर से परामर्श लिया गया ।पहले तो शंका गीतू पर थी उसी में कोई खराबी होगी ।बाँझ औरत का तमगा भी लग गया ।अब अम्मा जी गीतू को बात बे बात तानों से छलनी करने का कोई मौका नहीं छोड़ती।सबकुछ सहती रही गीतू।पति का साथ हमेशा मिलता रहा।

इसी में खुश हो गई थी गीतू ।देवर और ननद अपनी शिक्षा पूरी कर चुके थे ।दोनों की शादी एक ही बार में निबटा दी गई ।सोनी अपनी गृहस्थी में मगन हो गई थी ।बीच बीच में मिलने आ जाती ।देवर की शादी खूब ले दे कर हुई।बंटी की पत्नी निशा दान दहेज के साथ खूब सूरती मे भी कम नहीं थी।अतः सास की दुलारी बन गई ।गीतू और गौरव डाक्टर से परामर्श लेकर आये।

जांच हुई तो खराबी गौरव मे ही निकली।अब अम्मा जी एकदम चुप हो गयी ।बहू को चाहे कितना भी बोल देना है लेकिन बेटे की बात अलग है ।आपस की सलाह मशविरा हो गई ।तय हुआ कि अनाथालय से एक बच्चा गोद लिया जाए ।खूब देख सुन कर एक अनाथालय गये दोनों ।वह मिशनरी द्वारा संचालित था।वहां साफ सफाई का पूरा ध्यान रखा हुआ था ।गौरव अपनी पत्नी को लेकर आये ।

चारों तरफ छोटे छोटे पालने में नन्हे मुन्ने कुछ सो रहे थे।कुछ रो भी रहे थे ।घूमते घूमते एक जगह रूक गए दोनों ।बहुत ही सुन्दर, एक बच्चा जो बहुत रो रहा था उसे गीतू ने गोद में उठा लिया ।बच्चा एकदम चुप हो गया ।गीतू ने सोच लिया इसी को अपनापन देना है ।फिर सारी कार्रवाई पूरी करके बच्चे को दोनों घर ले आये ।पूरा परिवार खुश हो गया ।

नामकरण और छठी का उत्सव खूब धूम धाम से मनाया गया ।गीतू और गौरव की दुनिया बच्चे मे समा गई ।शिवम नाम रखा गया उसका ।गौरव अच्छे नौकरी में थे तो बच्चे के पालन पोषण खूब अच्छी तरह होने लगा ।अब  बंटी भी एक बेटे का पिता बन गया था ।सास ससुर का प्यार बंट गया ।उनको लगता बंटी का बच्चा आखिर अपना खून है ।शिवम का क्या? न जाने किसका खून है?

किस जाति का है? शिवम घर में उपेक्षित होने लगा ।माता पिता तो खूब खयाल रखते थे उसका।लेकिन वह अपने घर में उपेक्षित होने पर थोड़ा जिद्दी हो गया ।जिसके चलते दादा दादी से मार भी खाता कभी कभी ।स्कूल जाने लगा था शिवम।उसकी दोस्ती गलत लड़को से हो गई ।कभी कभी स्कूल से गायब हो जाता ।शिकायत आने पर घर में मार खाता।इसी तरह दिन बीत रहा था

कि अचानक एक दिन आफिस से आते समय गौरव का एक्सीडेंट हो गया ।कोई ट्रक वाला उनके बाइक को ठोकर मार कर भाग गया था ।लोग दौड़ कर एम्बुलेंस बुलाते तबतक गौरव दुनिया से मुक्त हो गये।घर में खबर मिली तो पूरा परिवार जुट गया और सारी खाना पूर्ति करके उसे घर ले गये।फिर क्रिया कर्म का पूरा हुआ ।गीतू की दुनिया उजाड़ हो गई थी ।

दुख की इस घड़ी में शिवम को संभालने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ गई थी ।गौरव के चले जाने से वह बहुत अकेला पन महसूस कर रही थी ।छोटी देवरानी भी चार बात सुना देती ।बेटे से कहती तो वह भी अपनी चाची का ही पक्ष लेता।दिन महीने साल से भाग रहा था समय ।बेटा पढ़ाई पूरी करके नौकरी करने लगा ।मन मे एक अच्छी बहू के सपने संजोये खुश होने की कोशिश करती रही

गीतू तभी बेटे ने फरमान सुना दिया था कि वह अपनी सहकर्मी से शादी करना चाहता है ।दंग रह गई थी वह।उसके पालन-पोषण मे तो कोई कमी नहीं थी फिर यह सब?क्या करती ,बेटे की पसंद को स्वीकार करना ही पड़ेगा ।शादी हो गयी उसकी ।गीतू भी बेटे बहू को पाकर उसके साथ रहने को तैयार हो गई ।बेटे की पोस्टिंग दिल्ली में थी।तीनों एकसाथ रहने आ गये।कुछ दिन तो ठीक ठाक रहा

।फिर बेटा और बहू से उसकी दूरी बढ़ती गई ।गीतू ने एकदिन सोचा,आज पूछ कर रहेगी वह इतनी दूरी और बेरुखी क्यों?पति की अच्छी नौकरी थी तो शिवम के पालन पोषण मे कभी किसी बात के लिए कमी नहीं होने दिया ।फिर? वह बहू को बहुत प्यार करती थी ।इसी से रसोई में घुसने नहीं दिया ।तरह-तरह के व्यंजन बना कर खिलाया करती उन्हे ।

फिर भी दोनों की चेहरे पर नाराजगी झलक रही थी माँ को देख कर ।बहू आफिस जाती।और घर आकर कमरे में पड़ी रहती है ।टीवी देखती रहती है।अब गीतू भी उम्र होने से थकने लगी थी ।उसे लगता कि बहू आकर हाथ बटाती ।खाना तो गीतू ही बनाती थी।इधर एक सप्ताह से काम वाली बाई को भी हटा दिया गया था ।

महंगाई का रोना लेकर ।बहुत थक कर चूर हो गई थी गीतू एक दिन ।और फिर सुना कि यह मेरी अपनी माँ नहीं है,उसे तो किसी अनाथालय से लाया गया है ।ओह!तो यह बात है? इसलिए मोह ममता नहीं रह गया है दोनों में ।अपनापन है ही कहाँ?  वह अब नहीं रहेगी इनके साथ ।चली जायेगी अपने घर ।

दूसरे दिन सुबह आठ बजे शिवम आफिस जाने की तैयारी कर रहा था तभी गीतू ने सुना दिया ।” बेटा , मै अपने घर जाना चाहती हूँ ” टिकट हो जाता तो ठीक था ।”ठीक है मम्मी,देखता हूँ ।कहकर वह अपने कमरे में चला गया ।अंदर से आवाज़ आई” वह चली जायेगी तो काम कैसे चलेगा? आजकल इतनी जल्दी,कम पैसे में बाइ मिलेगी क्या?

“यह बहू की आवाज थी।गीतू का फैसला अडिग था ।वह अपना सामान पैक करने लगी ।बेटा टिकट ले आया था ।ट्रेन खुल गई थी ।उसने राहत की सांस ली ।न जाने किसने उसे यह सच बता दिया था ।अपनी पूरी दुनिया उसी बेटे पर न्योछावर कर दिया था उसने ।उसका क्या मिला?  सास ससुर छोटे बेटे के साथ रहते थे ।घर पहुँची तो अपनी गृहस्थी अलग कर लिया ।

देवरानी ने तो पहले ही जता दिया था कि वह सबके लिए नहीं बना सकती।सास ससुर भी उसी के तरफ थे।अब गीतू ने एकदम मौन धारण कर लिया ।पत्थर दिल बन गई थी वह।न किसी से बोलती न किसी से मिलती।एक महीने बीत गए ।एकदिन तबियत खराब होने लगी और बेहोश हो गई ।

देवरानी दौड़ कर आई तबतक गीतू संसार से जा चुकी थी ।मुहल्ले के लोग जुट गये ।सभी ने कहा “एकदम पत्थर दिल थी ” किसी से कोई मतलब ही नहीं था।अच्छा हुआ चली गई ।बेटा भी तो नहीं पूछता था।और फिर पत्थर दिल का अंत हो गया ।किसके लिए जीती?

  उमा वर्मा ।राँची ।झारखंड ।

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