पत्थर दिल – मधू वशिष्ट : Moral Stories in Hindi

मां आप इतनी पत्थरदिल और  कठोर कैसे हो सकती हो? रिवान आपका पोता है और इस वक्त उसको अकेला नहीं छोड़ा जा सकता। आपको पता तो है गिन्नी और मैं कितने व्यस्त रहते हैं। रिवान के लिए हमने ₹30000 महीना देकर जो आया रखी थी कल जब मैं जल्दी घर आया तो मैंने देखा रिवान तो अपने कमरे में सो रहा था

और वह अपने बॉयफ्रेंड के साथ हमारे कमरे में—और  वह कई बार रिवान को अकेला छोड़कर भी घर से निकल जाती थी। उससे पहले  हमने खाना बनाने वाली, बर्तन वाली  अलग-अलग भी लगाई तो उनको मैनेज करना भी सर दर्द ही था।

आज किस पर विश्वास करें। आप भी मेरे साथ चलने को तैयार नहीं हो तो मैं अपने रिवान को ऐसे तो नहीं छोड़ सकता, मन करता है कि मैं नौकरी ही छोड़ दूं परंतु फ्लैट का ऋण और बहुत से ऋण सब चुकेंगे कैसे? गिन्नी के तो अपने ही बहुत खर्च हैं। मैं आपको विश्वास तो दिला रहा हूं

कि अब के हमने नोएडा में जो फ्लोर लिया है उसमें ऊपर छत पर दो कमरों का एक पूरा सेट अलग बना है।

आने जाने के लिए लिफ्ट भी है। आप गिन्नी से भले ही कोई मतलब मत रखना परंतु रिवान का ख्याल तो हो ही जाएगा ना। जाने वह रिवान को सुलाने के लिए खिलाती क्या थी? रिवान प्रतिदिन कमजोर और चुप होता जा रहा है।

          शीला जी का बेटा पंकज लगभग गिड़गिड़ा ही रहा था और शीला की कठोरता का आवरण ओड़े चुप ही बैठी थीं। आइए आपको शीला जी और उनके परिवार से परिचय कराऊं। शीला जी एक सेवानिवृत प्रोफेसर थी। उनके पति  की भी मिनिस्ट्री से डायरेक्टर पद से सेवानिवृत होने के उपरांत हृदयाघात से मृत्यु हो गई थी।

दिल्ली के ही ग्रामीण इलाके में उनका बहुत बड़ा घर था। पति की मृत्यु के बाद उन्होंने आसपास के गरीब और काबिल बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया था। दिल्ली में धीरे-धीरे मेट्रो की भी सुविधा आ गई थी तो उनके लिए अब कहीं आना जाना भी सरल हो गया था। उनके एकमात्र पुत्र पंकज ने इंजीनियरिंग की डिग्री करने के बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे वेतन पर नोएडा

में नौकरी पा ली थी। अब दिल्ली से नोएडा जाना इतना मुश्किल भी नहीं था कभी गाड़ी और कभी मेट्रो से पंकज आराम से अपने ऑफिस जाता था। वहां ही उसने अपनी एक सहकर्मी गिन्नी से विवाह करने की इच्छा जताई और जल्द ही दोनों का विवाह भी हो गया। गिन्नी के माता पिता नोएडा में ही रहते थे।

उसके पिता एयर इंडिया में ऑफिसर थे इस कारण वह मुंबई बेंगलुरु हमेशा बड़े-बड़े शहरों में रहते आए थे। अपने पिता के साथ गिन्नी देश-विदेश में बहुत घूमी थी उसका भाई अभी सिंगापुर में ही काम करता था। सेवानिवृत होने के उपरांत गिन्नी के पिता ने नोएडा में ही मकान ले लिया था।

         विवाह के बाद गिन्नी को दिल्ली के उस छोटे से ग्रामीण इलाके में  बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। शीला जी के पास में यूं ही औरतों का सिलाई सीखने स्वेटर के डिजाइन पूछने या कि बच्चों के पढ़ने आने से गिन्नी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था।

उसे समझ नहीं आता था कि उसकी सासू मां क्यों भला बिना पैसे लिए यह समाज सेवा करती रहती है? घर में खुद खाना बनाना और खाना लगाना यह तो गिन्नी की आदत में ही नहीं था । भले ही झाड़ू पोछा बर्तन कोई कर जाती हो परंतु बाकी सारे नियम, तुलसी पूजन, गाय की रोटी बनाना,

रसोई का काम खुद करना यह सब तो शीला जी स्वयं ही करती थी। हालांकि उन्होंने ना तो कभी गिन्नी से कुछ करने के लिए कहा और ना ही उससे कोई सहयोग की अपेक्षा रखी परंतु गिन्नी उस गांव में रहना ही नहीं चाहती थी उसने पंकज पर नोएडा चलने के लिए जोर दिया।

      शीला जी को जब पता चला की गिन्नी मां बनने वाली है तो शीला जी ने उसके लिए बहुत चाव करने चाहे परंतु वह शीला जी के हाथ का बनाया हुआ कुछ भी बड़े बेमन से ही खाती थी। अधिकांश समय तो वह दोनों जब नोएडा जाते थे

तो वहां से ही दफ्तर से ही कुछ खा पी कर आ जाते थे। इसके अतिरिक्त शनिवार रविवार वह अपनी मम्मी के ही ज्यादा समय रहने लगी। कुछ समय बाद जब शीला जी पंकज से कहती कि गिन्नी को बोल दो कि अब वह दफ्तर से छुट्टी ले ले या सारा काम वर्क फ्रॉम होम ही करना शुरू कर दे क्योंकि इस अवस्था में गाड़ी में यूं ही घूमते रहना ठीक नहीं है।

पंकज के गिन्नी से ऐसा कहने पर गिन्नी ने पंकज के साथ आने की बजाए नोएडा में ही एक फ्लैट किराए पर ले लिया।

उसके बेटा होने की सूचना मिलने पर जब शीला जी उससे मिलने गई तो गिन्नी ने स्पष्ट कह दिया कि मैं नर्सिंग होम से सीधा अपनी मम्मी के पास जाऊंगी। आप कृपया अपना ख्याल रख लीजिए मेरा और मेरे बच्चे का ख्याल तो मम्मी आराम से रख लेंगी।

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       अपने ही पोते से मिलने जाना और मिलना शीला जी को असहज कर देता था। गिन्नी के मायके में उसकी माताजी और बच्चे के लिए रखी गई आया बच्चे को  शीला जी को देखने दे वही बहुत है, खिलाना तो भूल ही जाओ।

धीरे-धीरे शीला जी ने अकेले रहना सीख लिया और कभी-कभी पंकज शीला जी से मिलने आ जाता था। शीला जी अपनी ही दुनिया में व्यस्त हो गई।गांव में सब उनका बहुत सम्मान करते थे। जिन बच्चों को वह मुफ्त में पढ़ाती थी वह धोबिन, दूधवाली मालिन और पड़ोस के गांव नाते के रिश्तेदार सब उनका कोई काम करके बहुत प्रसन्न होते थे। 

       कुछ समय पहले गिन्नी के माता-पिता भी उसके भाई के बच्चों को संभालने के लिए सिंगापुर चले गए तब से पंकज और गिन्नी को अपने बेटे रिवान को संभालना बहुत मुश्किल हो रहा था और इसी कारण ही पंकज शीला जी से साथ चलने की विनती कर रहा था। 

       शीला जी ने पंकज को कहा पंकज तुम जब चाहो यहां पर जाकर पहले के जैसे रह सकते हो अन्यथा मैं आ पाई तो कुछ समय के लिए जरूर आ जाऊंगी परंतु तुमने राधिका चाची के बेटे को नोएडा में नौकरी पर लगवाया था ना ,

तो मैंने राधिका से बात कर ली है। वह तुम्हारे साथ चली जाएगी ऊपर वाले कमरे में नोएडा में ही पीजी में रहने वाला उनका बेटा भी उनके साथ रह लेगा। वह रिवान का ख्याल बहुत अच्छे से रख लेंगी। मुझे पता है तुम्हें मां की नहीं एक अच्छी आया की जरूरत है।

जीवन में कभी मुझे लगा या कि तुम्हें मां की ही जरूरत महसूस हुई तो मैं तुम्हारे साथ रहने के लिए जरूर आ जाऊंगी। राधिका चाची तुम्हारे साथ ही चली जाएगी और तुम अब निश्चिंत होकर अपना काम करो और मुझे मेरा काम करने दो।

    पाठकगण आपका क्या ख्याल है क्या शीला की वास्तव में ही पत्थर दिल थीं कमेंट में बताइए।

पत्थर दिल विषय के अंतर्गत लिखी गई कहानी

लेखिका : मधू वशिष्ट

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