हे भगवान कैसे पत्थर दिल आदमी से शादी हुई है। मेरा तो भाग्य ही ख़राब है। इस आदमी को मेरी भावनाओं की कोई कद्र नहीं। रश्मि लगातार बोले जा रही थी, अतुल चुपचाप आॅफिस के लिए तैयार हो रहा था।
रश्मि और अतुल काॅलेज के समय से ही दोस्त थे, रश्मि अतुल को पसंद करती थी, पहले रश्मि ने ही अतुल के सामने शादी का प्रस्ताव रखा था। अतुल ने सहर्ष यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। दोनों का विवाह तीन वर्ष के अंतराल के बाद हुआ। इस दौरान अतुल ने रश्मि को ख़ूब उपहार दिए, घूमाया फिराया। रश्मि को लगा आगे भी सब कुछ ऐसा ही रहेगा
चूंकि अतुल घर का अकेला लड़का था, उससे बड़ी सिर्फ़ दो बहनें थीं। अतुल और रश्मि की शादी भी बड़ी धूमधाम से हुई थी। अतुल के पिताजी ने कभी अतुल से कुछ नहीं मांगा, अतुल जो कमाता था अपने और अधिकतर रश्मि पर ख़र्च कर देता था।
कपड़े, मेकअप, घूमना फिरना आदि। बाकी घर के सभी ख़र्च अतुल के पिताजी किया करते थे। वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता, बदलता ज़रूर है। अचानक पिताजी का यूं गुजर जाना, अतुल पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट गया। अतुल के पिताजी ने अतुल की शादी और व्यवसाय के लिए जो लोन लिया
था, अब अतुल को ही उतारना था। इसके अलावा एक दोस्त से भी कुछ रक़म उधार ले रखी थी। इसलिए अतुल ने निर्णय लिया कि घर में फ़िज़ूलखर्ची बिल्कुल बंद की जाए, जहाँ से भी पैसे बचें, बचाए जाएँ। पिताजी ने जो साख बनाई है, वो वैसी ही बनी रहनी चाहिए।
लेकिन रश्मि को तो अपने मनमुताबिक काम करने की आदत थी, उसे किसकी की कोई परवाह नहीं थी। वह काम करते हुए निरंतर अपने घर मोबाइल से बात करती रहती थी, जिससे हर रोज कुछ न कुछ नुकसान हो जाता था
जैसे कभी दूध गिर जाता था, कभी सब्जी ख़राब हो जाती थी क्योंकि उसका आधा ध्यान काम पर और आधा मोबाइल पर लगा रहता था। उसकी इस आदत से अतुल बहुत परेशान था। कईं बार अतुल के पिताजी भी रश्मि को इसके लिए टोक चुके थे, मगर रश्मि को समझ नहीं आया। एक बार रश्मि की बहन छुट्टी में मनाली गई तो रश्मि ने भी ज़िद पकड़ ली कि हम भी मनाली जायेंगे।
अतुल ने बहुत समझाया कि हमारा बिल्कुल भी बजट नहीं है। वो लोग अपने तरीके से चल रहे हैं और हमें अपने तरीके से चलना है लेकिन रश्मि को समझ नहीं आया। इस बात पर दोनों में बहुत झगड़ा हुआ। काफ़ी दिनों तक दोनों में बोलचाल बंद रही। एक दिन अचानक अतुल की दोनों बहनें घर
आयी, सुबह ग्यारह बजे की आयी हुई ननन्दों के लिए चार बजे तक भी रश्मि खाना नहीं बना पायी, अतुल ने इस बात को लेकर रश्मि को डांटा तो उसने मुँह फूला लिया।
बात बात उल्टा जवाब देना अब रश्मि की आदत बन चुकी थी। इस तरह से रश्मि के मायके में शादी थी, अब रश्मि ने ज़िद पकड़ ली कि मुझे नयी साड़ी चाहिए, अतुल बोला – पिछले महीने करवा चौथ पर ही तो तुम्हें तीन हज़ार की साड़ी दिलवाई है,
उसको पहन लेना। नहीं अब रश्मि ने ज़िद पकड़ ली मुझे शादी के लिए लहंगा चाहिए नहीं तो मैं नहीं जाऊंगी शादी में। अतुल ने बड़ी ही मुश्किल से स्थिति को सँभाला। आए दिन बेवजह के झगड़ों ने हँसमुख अतुल को गम्भीर, गुमसुम कर दिया।
हे ईश्वर! ये किस पचड़े में पड़ गया। अभी अतुल सोच रहा था कि इस लड़की को मैंने सबसे ज़्यादा प्यार किया। जब ये ही मुझे समझ नहीं रही है तो फिर कौन समझेगा मुझे।
तभी रश्मि एकदम झल्ला कर बोली- तुम कुछ बोलते क्यों नहीं? जब तुम्हें मेरी कोई बात सुननी ही नहीं थी तो क्यों की मुझसे शादी? अतुल एकदम शांत और धीमे स्वर में बोला – अभी तुमने ही तो मुझे पत्थर दिल कहा है, पत्थर तो ख़ामोश होते हैं।
अतुल रश्मि के पास जाकर टिफिन उठाता और ये कहकर चला जाता है कि
“रिश्तों की कश्मकश में आदमी कब पत्थर दिल हो जाता है, ये ख़ुद आदमी को भी पता नहीं चलता है।”
और
“जब भावनाओं की भूमि बंजर हो जाती है तो उस पर लगे रिश्तों के पेड़ सूखकर झाड़ हो जाते हैं।” और आदमी हो जाता है पत्थर दिल।
बाॅय रश्मि !
~अंकित चहल