पता नहीं किस जमाने में जी रही हैं आप! – अनिला द्विवेदी तिवारी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : मधुरिमा जी को उनकी बेटी त्रिशा और बहू मेघा घूमने जाने के लिए तैयारी कर रहीं थी। 

दोनों ननद, भाभी मधुरिमा के कपड़े एक सूटकेश में भर रहीं थी। बेटी और बहू आपस में बातें भी करती  जा रहीं थी कि माँ-पापा ने हम भाई-बहन के लालन-पालन, पढ़ाई-लिखाई, शादी-ब्याह आदि की फिकर में अपनी सारी जिंदगी होम दी। ना जाने कितनी ही खुशियों को उन्होंने कुर्बान किया है। हमने माँ-पापा को बहुत से समझौते करते हुए देखे हैं। उन्होंने अपनी कितनी ही इच्छाओं को अपने अंदर ही दफन करके रख लिया है। 

अतः अब हमारा भी तो कुछ कर्तव्य बनता है कि हम भी उनके लिए कुछ करें।

अपने कमरे में मधुरिमा जी यह सब सुन रहीं थी।

बेटी ने अपने माता-पिता के आने-जाने का टिकिट बुक किया था। बेटे ने होटल में रहने और खाने-पीने का बंदोबस्त करके उनके अकाउंट में पैसे डाल दिए थे। साथ ही अपना एक एटीएम दूसरे बैंक का दे रखा था ताकि पैसे को लेकर किसी प्रकार की अड़चन ना आए।

बहू मेघा भी कामकाजी थी अतः उसने अपनी तरफ से घूमने-फिरने का खर्च और कुछ अच्छे से कपड़े एवम एक-दो लक्जरी कपड़ा बैग और हैंड बैग खरीद कर ले आई थी। साथ ही कुछ मेकअप की सामग्री भी। 

बेटा अपने पिता के लिए कुछ चार-छः जोड़े अच्छे से कपड़े लेकर आया था। उसने घर में घुसते ही कहा,,, “माँ के लिए तो तुम दोनों जाकर सामान ले आईं पर पापा को तो भुला ही बैठी थी।”

तब चित्रा ने कहा,,, ” नहीं भैया हम कुछ भूले नहीं थे, हमने सोचा था जेंट्स के जरूरत के सामान की आपको अधिक पहचान होगी इसलिए पापा के लिए आप ही लेकर आएं जो कुछ भी लाएं।

जब से हम जानने लायक हुए तब से आज तक माँ-पापा घर के आस-पास के मंदिरों के सिवाय कहीं गए ही नहीं। ना जाने अपनी कितनी ख्वाहिशों का गला घोटा है हमारे लिए। इसलिए हम तो यही चाहते हैं कि माँ-पापा दिल खोलकर घूमें फिरें।

आपस में ननद-भौजाई और चित्रा का भाई बातें भी करती जा रहे थे और तैयारियां भी करते जा रहे थे।

सब तैयारियां हो जाने के बाद चित्रा ने अपनी माँ को बुलाकर सब सामान दिखाया और एक-एक सामान के बारे में समझाने लगी।

तब उसकी माँ ने अपनी बहू और बेटी से कहा,,, “अरे बच्चों ये सामान क्यों लाए हो? मैं कौन सा मेकअप करती हूँ और ये इतने मॉडर्न कपड़े! इन्हें कौन पहनेगा भला?”

तभी बहू मेघा ने कहा,,, “माँ आप कपड़े पहनेंगी और मेकअप करेंगी जो घूमने जाएगा और कौन?”

“बेटा अब ये सब इस उम्र में अच्छा लगता है क्या? मुझे तो ऐसे ही रहने दो, जैसा मैं हमेशा रहती हूँ। चार लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे!”

“माँ पता नहीं आप भी किस जमाने में जी रही हैं? आप किन चार लोगों की बात कर रही हैं? वहाँ तो हर व्यक्ति ऐसे ही होंगे। और सब नए होंगे। फिर उन्हें कैसे पता होगा कि आप हमेशा क्या पहनती हैं और कैसे रहती हैं?”

“माँ भाभी एकदम सही कह रहीं हैं। लोगों का क्या है वो तो कुछ भी बोलते हैं!”

आखिरकार मधुरिमा जी को अपनी बहू और बेटी के हिसाब से तैयार होकर घूमने जाना ही पड़ा। खुशी-खुशी वे अपने पति के साथ पिकनिक टूर पर निकल गईं थी यह सोचते हुए कि इतने अच्छे बेटी-दामाद और बेटा-बहू मिलना भी सौभाग्य की बात है। वो कितनी खुशकिस्मत हैं!

स्वरचित

©अनिला द्विवेदी तिवारी

जबलपुर मध्यप्रदेश 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!